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Adultery यादों के झरोखे से
#61
Heart 
मैं बिना कोई आहट किये धीरे से ऊपर आया और उन तीनों से बोला, "जल्दी से मेरे साथ चलो। तुम लोगो को मैं लाइव बी० एफ० दिखाता हूँ"

"क्या मतलब?"

"मतलब नीचे चल के ही पता चलेगा"

हम चारो धीरे से बिना कोई आवाज़ किये नीचे आ गए। नीचे आकर मैंने मामू के कमरे की तरफ इशारा किया तो सब दरवाजे की दरार से आँख लगा कर अंदर देखने लगे।

तब तक अंदर का नज़ारा ही बदल चुका था मामी ने कंधे झुका कर अपना सर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथ पीछे करके अपनी चूत की फांकों को चौड़ा कर दिया और अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली। चूत का चीरा 5 इंच का तो जरुर होगा। उसकी फांकें तो काली थी पर अंदर का रंग लाल तरबूज की गिरी जैसा था जो पूरा काम-रस से भरा था। 

मामू ने पहले तो उसके नितंबों पर 2-3 बार थपकी लगाई और फिर अपने एक हाथ पर थूक लगा कर अपने सुपारे पर चुपड़ दिया। फिर उन्होंने अपना लंड मामी की चूत के छेद पर रख दिया। अब मामू ने उनकी कमर पकड़ ली और उस झोटे की तरह एक हुंकार भरी और एक जोर का झटका लगाया। पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में घप्प से मामी की चूत के अंदर समां गया। 

मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई। मैं तो सोच रहा था कि मामी जोर से चिल्लाएगी पर वो तो मस्त हुई बस बहुत धीरे धीरे आह...याह्ह... करती रही।

मेरी साँसें तेज हो गई थी और दिल की धड़कने बेकाबू सी होने लगी थी। मेरा लंड चड्डी के अन्दर ही उठक बैठक लगाने लगा था । मुझे तो पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ अपनी चड्डी के अन्दर लंड पर पहुँच गए थे। मैंने उसे कस के ऐंठे जा रहा था लेकिन वो कंट्रोल में आने को बिलकुल भी तैयार नहीं था ।

दूसरी तरफ तो जैसे सुनामी ही आ गई थी। मामू जोर जोर से धक्के लगा रहे थे और मामी की कामुक सीत्कारें कमरे के बाहर तक मुझे साफ़ साफ़ सुनाई पड रहीं थीं । कमरे के बाहर हम चारों की अंदर का नज़ारा देख कर हालत बहुत ख़राब थी।

दीदी ने सायरा और रज़िया को पकड़ कर सीढ़ियों पर धकेला और फिर मुझे खींचती हुई ऊपर ले आईं।

"ये क्या बेहूदगी है सग़ीर, ऐसे कोई बड़ों के कमरे में झांकता है क्या?" -दीदी गुस्से में बोलीं

"अरे दीदी, मैं तो सिर्फ मज़े ले रहा था" -फिर थोड़ा सीरियस होकर बोला "और ये दिखा रहा था कि ज़िन्दगी बहुत छोटी है मेरी बहनों इसलिए मौज़ मस्ती का कोई भी मौका हाथ से न जाने दो"

"हाय हाय... अम्मी तो अभी तक पूरी मस्ती से मज़े ले रहीं है" -सायरा ने मुंह दबा कर हँसते हुए कहा "और खालू... ये तो पुराना याराना लगता है दोनों का... ही...ही..."

"तू चुप नहीं होगी?" -दीदी सायरा पर गुस्सा होती बोलीं

रज़िया के चेहरे पर हैरत और सुकून दोनों के मिले जुले भाव थे। वो हलके से मुस्कराते हुए मेरी तरफ देख रही थी।

"यार मुझे तो अपना डीएनए टेस्ट करना पड़ेगा... ही... ही... ही..." -सायरा ने फिर एक सुर्रा छोड़ा

"सायरा! चुप कर बदमाश... वो अम्मी है तेरी" -दीदी सायरा के बाल पकड़ कर हिलातीं बोलीं

"यार! अजब कन्फ्यूज़न है, अब तो कोई भी अपने बाप के बारे में गारंटी नहीं दे सकता... सब फुल मस्त होकर चुदाई में लगे है" -मैंने फिर एक फुलझड़ी सुलगाई

"क्या सग़ीर तू भी? इस सायरा कि सोहबत में आकर तू भी अब ये गंदे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करने लगा" -दीदी अब कुछ नार्मल होकर बोलीं

"अरे यार! क्या फालतू की बहस कर रहे हैं हम लोग? अरे जिसको जिसके साथ सेक्स में मज़ा आता है, उससे वो करेगा... हम लोग कुछ नहीं कर सकते?। आपको सग़ीर के साथ करना हो तो कर लो, कसम से कल रात मुझे तो बड़ा मज़ा आया" -सायरा ने बेबाकी से कहा

"हाय अल्लाह, कुछ शर्म हया बाकी है या नहीं?" -दीदी मुंह पर हाथ रख कर बोलीं

"अरे यार दीदी, जब मर्दों की तबियत होती है तो वो अपना जहाँ मर्ज़ी आये पेल देते है, तो सारी बंदिशें क्या हम लड़कियों के लिए ही हैं" -सायरा कुछ तल्ख़ लहज़े में बोली, "हाँ मैं फिर कहती हूँ कि कल रात मैंने सग़ीर के साथ पहली बार सेक्स किया था लेकिन उसने मुझे इतना मज़ा दिया कि आज तक किसी के साथ नहीं आया और जब भी मौका मिलेगा तो मैं अब सग़ीर को सेक्स के लिए कभी मना नहीं करूंगी"

"हाय अल्ला... तू तो बहुत बेशरम है सायरा" -दीदी ने मुंह पर हाथ रख कर मुस्कराते हुए कहा

"दीदी, मैं तो कहती हूँ, आप भी अपनी ज़िन्दगी खुल के जियो, कुछ साल बाद बूढी हो जाओगी तब पछताओगी और फिर सग़ीर भी अभी यहीं है" -सायरा ने चुटकी ली

मैंने सही मौका देख कर चौका मरते हुए कहा- "सायरा, दीदी कि तुमसे ज्यादा कहीं मस्त है और रज़िया का तो जवाब ही नहीं"

यह कह कर मैंने रज़िया को अपनी बांहों में भर कर भींच लिया। रज़िया ने शरमाते हुए अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया।

"या मेरे खुदा, कितने ज़लील इंसान हो तुम सग़ीर... तू सायरा कि सोहबत में बिलकुल ही बिगड़ गया लगता है" -दीदी दिखावटी गुस्से से बोलीं

"क्यों सग़ीर? रूही समीना आपा की मारी या अभी तक नहीं? वैसे रूही तो बहुत ही पर्दानशीं है" -सायरा बोली

"अब तुम लोग बिलकुल खामोश हो जाओ। कोई भी बिलकुल ये गलीच लफ्ज़ नहीं बोलेगा" -दीदी बोलीं

"बोलेगा कोई नहीं पर कर तो सकता है? या वो भी नहीं" -मैंने फिर से एक फुलझड़ी छोड़ दी

"या मेरे खुदा... सग़ीर तू बहुत ही कमीना है रे"

उसके बाद पूरी रात मैं अपनी तीनों बहनों के साथ ऊपर वाले कमरे में चुदाई का खेल खेलता रहा। दीदी शुरू में थोड़ी नानुकुर की पर उन्हें सायरा पटरी पर ले आई और रज़िया तो कुछ बोल ही नहीं रही थी, हाँ दीदी के सामने नंगा होने में उसने बहुत ज़ोर लगाया पर आखिर उसे भी सायरा और मेरे सामने हार माननी ही पड़ी।

दूसरी रात भी मामू नीचे सायरा की अम्मी के साथ और हम तीनो ऊपर वाले कमरे में पूरी तौर पर नंगे होकर चुदाई का मज़े लेते रहे।

दूसरे दिन हम लोगों को वापस आना था। चलते वक़्त सायरा मेरे गले से लिपट गई और मेरे लण्ड को पकड़ कर बोली, "बहुत मिस करूंगी तुम्हें"

मैंने पुछा- "मुझे या इसे"

"दोनों को" -उसने भी पूरी बेशर्मी से जवाब दिया

हाँ रज़िया ज़रूर सीढ़ियों पर परदे के पीछे खड़ी हम लोगों को देख रही थी। मेरी निगाह जब उस पर पड़ी तो मैंने अचानक अपनी ज़ेब टटोलते हुए कहा- "मेरा वॉलेट कहाँ है? अरे रज़िया तूने देखा कहीं?"

रज़िया ने बिना कुछ बोले ना में सर हिलाया। वो बिलकुल चुप थी।

"कहीं ऊपर वाले कमरे में तो नहीं?" -मैंने फिर से कहते हुए दीदी की तरफ देखा

दीदी शायद समझ गई थीं, उन्होंने बोला, "मैंने नहीं देखा भाई"

मैंने सीढ़ियों की तरफ बढ़ते हुए बोला, "रज़िया प्लीज़! ज़रा ढूंढने में मेरी मदद तो कर"

रज़िया मेरे पीछे पीछे ऊपर कमरे में आ गई। मैंने रज़िया को अपनी बाँहों में भर लिया।

"तेरी बहुत याद आएगी... तू तो दिल में बस गई जान"

ये कहते हुए मैंने उसके लबों पर अपने लब लगा दिए। ये क्या??? उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। बिना बोले ही जैसे मेरी हर बात का वो जवाब अपने आंसुओं से दे रही थी।

"परेशान नहीं होते मेरी जान, मैं वहां पहुँच कर कुछ दिन बाद तुझे किसी ना किसी बहाने से बुलवा लूंगा" -मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा, "और हाँ, मेरा वॉलेट मेरी ज़ेब में है"

"मुझे पता है... मैंने आपको कपडे पहनने के बाद खुद ही तो दिया था" -रज़िया ने हलके से मुस्कुराते हुए कहा

"बस ऐसे ही मुस्कराते रहना जान वरना मुझे बहुत दुःख होगा" -मैंने उसको फिर से किस करते हुए कहा

"अरे सग़ीर, कहाँ रह गया? वॉलेट मिला या नहीं, जल्दी करो नहीं तो ट्रैन छूट जाएगी" -नीचे से अम्मी की आवाज़ आई

"मिल गया अम्मी" -कहते हुए मैं नीचे आ गया

दोस्तों! ये थीं मेरी लुधियाने की कुछ बेहतरीन यादें...
अगले वाक़ये तक के लिए ख़ुदा हाफिज़
Namaskar Namaskar Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 18-05-2024, 02:51 PM



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