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Adultery यादों के झरोखे से
#58
Heart 
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा सायरा और दीदी उठ चुके है। मैं भी फ़टाफ़ट उठ कर तैयार हो गया , तब तक दीदी नाश्ता बना लाई। नाश्ता करके मैं बाइक उठा कर तुरंत अस्पताल निकल गया। वहां की सारी खाना पूरी करके मैं मामी को लेकर घर वापस आ गया।

सारे दिन मिलने जुलने वाले आते रहे हालांकि मामी अब बिलकुल ठीक थीं और बारह दिन बाद उनके टाँके भी कट जाने थे। 

रात को सबने खाना पीना खाया और फिर मैंने दीदी से चुपके से पूछा, "आज लेट बैठ कैसे होगी"

"बिलकुल चुपचाप रहो, अपने आप अब्बू या फूफी बता देंगी और सुन  सग़ीर! कोई ऐसी वैसी हरकत मत कर देना जिससे अब्बू को हम पर शक हो जाये" -दीदी ने डरते डरते चारों तरफ देख कर कहा ।

“ठीक है ठीक है दीदी" -मैंने जबाब दिया

हालांकि गांड मेरी खुद भी फट रही थी लेकिन इस बहनचोद लंड से बुरी तरह परेशान था। मादरचोद कभी भी कहीं भी खडा हो जाता था।

तभी अम्मी ने कौन कहाँ लेटेगा का फैसला सुना दिया। सायरा ऊपर रज़िया के साथ, दीदी ड्राइंग रूम में मामी के साथ, मैं मामू के साथ उनके कमरे में और अम्मी मामी के साथ दूसरे बेडरूम में सोयेंगी। पता नहीं इस तुगलकी फरमान को सुन कर किस किस की झांट जली थी या नहीं लेकिन मेरी तो बुरी तरह सुलग उठीं थीं।

तभी मामू बोले, "अरे सो जायेंगे, जिसे जहां जगह मिलेगी वहां, पहले इतने दिन बाद सब इकट्ठे हुए है सो बतियाते है, अभी तो सिर्फ साढ़े नौ ही तो बजे है"

मेरी जान में जान आई और मैं अपने लंड की खुराक की जुगत में लग गया जो की दीदी या रज़िया में से ही एक थीं। हालांकि मज़ा सायरा को चोदने में भी बहुत आया था लेकिन इन कुंवारी चूतों की बात ही अलग थी। क्या फंसा फंसा लंड चूत में जाता था। कसम से ऐसा लगता था कि अमूल मक्खन की टिकिया में अपना लंड ठांस दिया हो। खैर सभी मामी के कमरे में आकर इकट्ठे हो गए और कुर्सियों व बेड पर बैठ गए।

थोड़ी देर बतियाने के बाद सायरा की अम्मी उठते हुए बोली, "अच्छा मैं तो अब सोने जाती हूँ बहुत तेज़ नींद आ रही है"

"हां हां चलो अब मैं भी सोता हूँ चल कर" -मामू बोले

मैं थोडा और टाइम पास करने की गरज से बोला, "आप लोग सोइये, हम लोगों को नींद नहीं आ रही"

मामू के जाने के बाद मैंने अपनी रात की जुगाड़ के लिए जाल बुनना शुरू कर दिया।

"यार ये लोग तो हॉस्पिटल से आये है, थके हुए भी है इसलिए इन लोगों को सोने दो। हम लोगों ने कौन से पहाड़ खोदे है जो इतनी ज़ल्दी सो जायेंगे। क्यों न हम चारो ऊपर वाले कमरे में चल कर रमी खेलें?"

दीदी और रज़िया कुछ नहीं बोले परन्तु सायरा बोली, "आईडिया बुरा नहीं है"

"तुम लोग जो मर्ज़ी आये करो, हम लोगों को अब सोने दो। रात के ग्यारह बज चुके है" -अम्मी ने कहा

मेरी तो बल्ले बल्ले हो गयी। मैंने उठते हुए कहा, "अम्मी सही कह रहीं हैं, हम लोग ऊपर चल कर ताश खेलते है। इन लोगों को सोने दिया जाय, वहां हॉस्पिटल में वैसे भी तीन दिन में आराम नहीं मिला होगा"

मैंने तीनो लोगो को ऊपर भेज कर रूम की लाइट बंद करके नाईट बल्ब जला दिया और खुद भी अपने लंड को सहलाता हुआ ऊपर चल दिया

ऊपर आकर मैंने ताश की गड्डी बेड पर फेंकी और जानबूझ कर अपने बदन पर सिर्फ तीन कपड़े यानी बनियान, अंडरवीयर व लुंगी ही रहने दिए और बोला, "देखो! आज हम लोग रमी तो खेलेंगे लेकिन ठीक वैसे ही जैसे मैं अपने हॉस्टल में फ्रेंड्स के साथ खेलता हूँ"

"क्या मतलब ?" -दीदी ने पूछा

"जो भी हारेगा उसे अपने शरीर से एक कपडा उतरना पड़ेगा" -मैंने ज़बाब दिया "और जिसके शरीर पर सबसे पहले कपडे ख़तम होंगे उसे बाकी तीनो के दो दो आदेश मानने होंगे"

"दिमाग तो ठीक है तेरा, तू अपनी बहनों को नंगी करना चाहता है" -दीदी ने उन दोनों के सामने अपने को कच्ची कुंवारी कली की तरह पेश करते हुए कहा

"अरे दीदी ! ये ज़रूरी तो नहीं कि हम ही हारे, हार तो ये ज़नाब भी सकते हैं, फिर हम तीनो मिल कर इन्हें नंगा करके छत पर घुमांयेंगे" -सायरा ने दीदी को समझाया

दीदी बेमन से चुप रहीं और सायरा ने उछल कर पत्ते बांटने शुरू कर दिए। परन्तु वो नासमझ एक बात भूल रहीं थीं कि चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर, कटना खरबूजे को ही है।

पहली चाल में मैं जानबूझ कर हार गया और मैंने अपनी बनियान उतार कर एक तरफ रख दी। उसके बाद तो हद हो गयी, तीन चाल लगातार रजिया हारती चली गयी और उसकी चुन्नी और हेरम पहले ही उतर चुकी थी अब सिर्फ वह ब्रा पेंटी और टॉप पहने थी जिनमे से वह किसी को भी उतारने को तैयार नहीं थी। तभी सायरा ने आगे बढ़ कर ज़बरन उसका टॉप उतार दिया। उसने शरमा कर अपनी ब्रा में कसी रसीली चूचियों को अपनी बांहों से ढँक लिया।

"अरे! इसमे इतना शरमा क्यों रही है? कोई बाहर का तो है नहीं, सब अपने ही तो है" -मैंने उसे समझाते हुए कहा

ज़बकि मैं चाह रहा था कि दीदी हार जाएँ क्योंकि वह सबसे बड़ी हैं। उनके नंगा होने के बाद फिर मुझे बाकी इन दोनों को नंगा करने में वक़्त नहीं लगना था।

तभी सायरा बोली- "यार! इस गेम के साथ एक एक चाय और होती तो मज़ा आ जाता"

"मैं बना के लाती हूँ" -कह कर रजिया फटाक से उठ कर खडी हो गयी और अपने कपडे पहिनने लगी।

उसका सिर्फ ब्रा और पेंटी में गोरा गोरा बदन देख कर मेरा लंड तो गनगना उठा।

"नो नो! जो जिस कंडीशन में है वैसा ही रहेगा, कोई चीटिंग नहीं चलेगी।… चाय मैं बना के लाता हूँ" -मैंने कहा

रज़िया मन मसोस कर वैसी ही चुपचाप बेड पर आकर बैठ गयी। मैं भी उसी कंडीशन में नीचे चाय बनाने चल दिया।

मामू कहीं जाग न जाएँ इसलिए मैं बिना कोई आवाज़ किये बहुत धीरे से किचिन की तरफ जा रहा था तभी मुझे मामू के कमरे से कुछ हल्की हल्की आवाजे आतीं सुनाई पडीं।

मैंने उनके कमरे में धीरे से झांका तो देखा कि मामू सायरा की अम्मी को अपने से चिपकाए उनकी कुर्ती में हाथ डाल कर मज़े से चूचियां मसल रहे थे।

"बड़ी देर लगा दी आने में, कब से तुम्हारी राह देख रहा था" -मामू बोले

"क्या करती, उस कमरे में आपकी बहन जो लेटीं थीं। जब तक उनकी तरफ से निश्चिन्त नहीं हो गई तब तक आने की हिम्मत ही नहीं पडी" -सायरा की अम्मी ने जबाब दिया।

फिर दोनों खामोश हो गए और चुपचाप एक दूसरे के कपडे उतारने लगे। थोड़ी ही देर में दोनों बिलकुल नंगे होकर एक दूसरे के अंगो को सहलाते हुए होठ चूसने लगे।

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 18-05-2024, 02:36 PM



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