18-05-2024, 12:28 PM
"अब बात बहुत आगे निकल गयी है। अब घबराकर पीछे हटने की मत सोचो। अब आगे अच्छा अच्छा सोचो, क्योंकि तुम्हीं ने बात यहां तक पहुंचाई है और अब मैं तो पीछे हटने वाला नहीं हूं।" वह निश्चिंत होकर कार चलाते हुए दृढ़ स्वर में बोला। सच ही तो बोल रहा था वह। स्थिति यहां तक पहुंचाने की जिम्मेदार मैं ही हूं और अब घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था। पहली बार मेरी नादानी का फायदा घुसा ने उठाया। फिर उसके द्वारा वही कृत्य दुहराया जाने लगा तो मुझे मजा आने लगा था, नतीजा यह हुआ कि अब तो मैं सेक्स की आदी हो गयी थी। घुसा वह पहला आदमी था जिसने मेरे साथ संभोग किया था और अब तक करता आ रहा था। सच कहूं तो मैं न सिर्फ सेक्स की आदी हुई थी बल्कि घुसा की भी आदी हो गयी थी। अब घनश्याम के रूप में यह दूसरा आदमी मेरे सेक्स जीवन में शामिल होने जा रहा था। यह दूसरा आदमी मेरे लिए अजनबी नहीं था और न ही नया था। लेकिन पचपन साठ साल का ऐसा आदमी जिसे मैं बचपन से घनश्याम चाचा कहती आ रही थी, उसके साथ सेक्स करने की कल्पना से ही मुझे बड़ा अजीब लग रहा था। जोश जोश में मेरे उकसावे पर घनश्याम का तो मन बन चुका था, लेकिन अब जब उस उकसावे का परिणाम मेरे सामने दिखाई देने लगा तो मेरे मन में एक डर सा महसूस होने लगा था। अबतक मैं सोच रही थी कि घुसा हो, घनश्याम हो या रघु, क्या फर्क पड़ता है लेकिन अब मालूम हो रहा था कि फर्क तो पड़ता है। घुसा की मैं अभ्यस्त थी और अबतक मेरे जीवन में घुसा ही एकमात्र पुरुष था जिससे मेरा शारीरिक संबंध था। लेकिन मेरे लिए घनश्याम के साथ सेक्स करने के बारे में सोचना एक पराए पुरुष के साथ सेक्स करने जैसा लग रहा था। हालांकि घनश्याम को मैं बचपन से जानती थी लेकिन एक ड्राईवर की हैसियत से और जिसे मैं बचपन से घनश्याम चाचा बुलाया करती थी। वे भी मुझे रोजा बिटिया ही बुलाते थे। उनके साथ सेक्स करने की सोच मात्र दो तीन दिन पहले ही मेरे दिमाग में आयी थी, वह भी परिस्थिति जन्य उत्तेजना के कारण। अब वही सोच वास्तविकता के रुप में सामने आ गया तो मैं हतप्रभ रह गयी थी। घनश्याम मुझे बचपन से जिस नजर से देखता आ रहा था, आज अचानक वह नजर बदल गयी थी। उसकी नजर में मैं सिर्फ एक भोग्या नारी थी। उम्र का इतना बड़ा फर्क का भी उसके लिए कोई मायने नहीं रह गया था।
अब, मैं पचास साल की उम्र में पहुंच चुकी हूं और इस उम्र तक पहुंचते पहुंचते कई मर्दों के साथ मैं शारीरिक संबंधों का लुत्फ लेती आ रही हूं, तब भी मैं जब उस समय की बात सोचती हूं तो लगता है कि घनश्याम यदि चाहता तो मेरी कमसिन उम्र की नादानी समझ कर मुझे डांट कर मना कर सकता था और परपुरुषों के साथ इस तरह के संबंध बनाने की मेरी हवस को रोकने में मददगार हो सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि उल्टे उसे बहती गंगा में हाथ धोना फायदेमंद लगा। उस नादान उम्र में ही मुझे इस सच को स्वीकार करना पड़ा कि सेक्स संबंध बनाने के लिए, अपना पराया, उम्र का फर्क या ऊंच नीच, व्यक्ति की हैसियत कोई मायने नहीं रखता है।
अरे, यह मैं क्या लेकर बैठ गई। हां तो मैं कह रही थी कि मेरा हाथ पैंट के ऊपर से ही ठीक घनश्याम के लिंग के ऊपर था और मुझे लग रहा था जैसे मेरा हाथ वहीं चिपक गया हो। मेरा हाथ कांप रहा था। मेरी हालत को भांप कर घनश्याम ने झट से अपने पैंट की बेल्ट ढीली की और चेन खोल कर अपना विशाल लिंग बाहर निकाल दिया।
"लो अब इसे पकड़ कर अपने मन की झिझक और डर को दूर भगाने की कोशिश करो।" कहकर उसने मेरे हाथ में अपना तना हुआ लिंग पकड़ा दिया। उफ उस गरमागरम रॉड को हाथ से पकड़ते ही जैसे उस रॉड की गर्मी मेरे डर से ठंढे पड़ते जिस्म में गर्मी का संचार करने लगी। मेरा हाथ उसके लंड पर चिपक कर रह गया था। वैसे तो उसके लंड की मोटाई मुझे महसूस हो रही थी लेकिन मैं एक नजर नीचे डाली तो उसके लंड की मोटाई के साथ ही साथ उसकी लंबाई देखकर मेरी घिग्घी बंध गई। लंड के सामने बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। इधर घनश्याम कार चलाते चलाते गीयर बदलते समय मेरी जांघों पर हाथ फेरता जा रहा था और धीरे धीरे उसका हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर तक जाने लगा। उस समय तो मैं चिहुंक ही उठी जब उसके हाथ का स्पर्श मैंने अपनी पैंटी के ऊपर ठीक अपनी चूत पर महसूस किया। मेरी तो मानो सांसें ही कुछ पलों के लिए थम सी गई थीं। मेरा पूरा शरीर थरथरा उठा था। उस उत्तेजक हरकत से भी और मेरे साथ जो होने वाला था उसके बारे में सोच कर भी।
"नहीं नहीं, यह मुझसे नहीं होगा।" मैं बुदबुदा उठी।
"क्या बोली? नहीं होगा? सब होगा। अब तुम मेरे लंड को ऐसे ही पकड़े मत रहो। थोड़ा खेलो इससे। ऐसा करने से तुम्हारे अंदर का सारा डर खत्म हो जाएगा।" वह बोला और मेरा हाथ जो उसके लंड को पकड़े हुए था, पकड़ कर ऊपर नीचे करके छोड़ दिया। उसके निर्देश के अनुसार मैं वही क्रिया को धीरे धीरे यंत्रवत करने लगी। इधर उसका हाथ जो मेरी पैंटी के ऊपर पहुंच चुका था, पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। "ओओओओओ ओओओहहह..... नननननहींईंईंईंई नहींईंईंईंईंईंईं......" मैं सिसक भी उठी और मरी मरी आवाज में इनकार भी कर बैठी लेकिन एक दम कमजोर इनकार। मेरे इस कमजोर इनकार को सुनकर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा और कार चलता रहा। मेरी आंखें बंद हो चुकीं थीं और एक अजीब सी उत्तेजना मुझपर हावी हो रही थी। मन में अब भी उहापोह की स्थिति थी। इसी स्थिति में कार आगे बढ़ती जा रही थी। मैं महसूस कर रही थी कि कार कभी दाईं ओर मुड़ती, कभी बाईं ओर मुड़ती और कभी यू टर्न लेती, पता नहीं कहां जा रही थी।
अब, मैं पचास साल की उम्र में पहुंच चुकी हूं और इस उम्र तक पहुंचते पहुंचते कई मर्दों के साथ मैं शारीरिक संबंधों का लुत्फ लेती आ रही हूं, तब भी मैं जब उस समय की बात सोचती हूं तो लगता है कि घनश्याम यदि चाहता तो मेरी कमसिन उम्र की नादानी समझ कर मुझे डांट कर मना कर सकता था और परपुरुषों के साथ इस तरह के संबंध बनाने की मेरी हवस को रोकने में मददगार हो सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि उल्टे उसे बहती गंगा में हाथ धोना फायदेमंद लगा। उस नादान उम्र में ही मुझे इस सच को स्वीकार करना पड़ा कि सेक्स संबंध बनाने के लिए, अपना पराया, उम्र का फर्क या ऊंच नीच, व्यक्ति की हैसियत कोई मायने नहीं रखता है।
अरे, यह मैं क्या लेकर बैठ गई। हां तो मैं कह रही थी कि मेरा हाथ पैंट के ऊपर से ही ठीक घनश्याम के लिंग के ऊपर था और मुझे लग रहा था जैसे मेरा हाथ वहीं चिपक गया हो। मेरा हाथ कांप रहा था। मेरी हालत को भांप कर घनश्याम ने झट से अपने पैंट की बेल्ट ढीली की और चेन खोल कर अपना विशाल लिंग बाहर निकाल दिया।
"लो अब इसे पकड़ कर अपने मन की झिझक और डर को दूर भगाने की कोशिश करो।" कहकर उसने मेरे हाथ में अपना तना हुआ लिंग पकड़ा दिया। उफ उस गरमागरम रॉड को हाथ से पकड़ते ही जैसे उस रॉड की गर्मी मेरे डर से ठंढे पड़ते जिस्म में गर्मी का संचार करने लगी। मेरा हाथ उसके लंड पर चिपक कर रह गया था। वैसे तो उसके लंड की मोटाई मुझे महसूस हो रही थी लेकिन मैं एक नजर नीचे डाली तो उसके लंड की मोटाई के साथ ही साथ उसकी लंबाई देखकर मेरी घिग्घी बंध गई। लंड के सामने बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। इधर घनश्याम कार चलाते चलाते गीयर बदलते समय मेरी जांघों पर हाथ फेरता जा रहा था और धीरे धीरे उसका हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर तक जाने लगा। उस समय तो मैं चिहुंक ही उठी जब उसके हाथ का स्पर्श मैंने अपनी पैंटी के ऊपर ठीक अपनी चूत पर महसूस किया। मेरी तो मानो सांसें ही कुछ पलों के लिए थम सी गई थीं। मेरा पूरा शरीर थरथरा उठा था। उस उत्तेजक हरकत से भी और मेरे साथ जो होने वाला था उसके बारे में सोच कर भी।
"नहीं नहीं, यह मुझसे नहीं होगा।" मैं बुदबुदा उठी।
"क्या बोली? नहीं होगा? सब होगा। अब तुम मेरे लंड को ऐसे ही पकड़े मत रहो। थोड़ा खेलो इससे। ऐसा करने से तुम्हारे अंदर का सारा डर खत्म हो जाएगा।" वह बोला और मेरा हाथ जो उसके लंड को पकड़े हुए था, पकड़ कर ऊपर नीचे करके छोड़ दिया। उसके निर्देश के अनुसार मैं वही क्रिया को धीरे धीरे यंत्रवत करने लगी। इधर उसका हाथ जो मेरी पैंटी के ऊपर पहुंच चुका था, पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। "ओओओओओ ओओओहहह..... नननननहींईंईंईंई नहींईंईंईंईंईंईं......" मैं सिसक भी उठी और मरी मरी आवाज में इनकार भी कर बैठी लेकिन एक दम कमजोर इनकार। मेरे इस कमजोर इनकार को सुनकर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा और कार चलता रहा। मेरी आंखें बंद हो चुकीं थीं और एक अजीब सी उत्तेजना मुझपर हावी हो रही थी। मन में अब भी उहापोह की स्थिति थी। इसी स्थिति में कार आगे बढ़ती जा रही थी। मैं महसूस कर रही थी कि कार कभी दाईं ओर मुड़ती, कभी बाईं ओर मुड़ती और कभी यू टर्न लेती, पता नहीं कहां जा रही थी।