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Adultery मौके पर चौका
#50
Heart 
उन्होंने अपने कपड़े उतारते हुए कहा- "तुम भी अपने कपड़े उतार दो, सग़ीर"

हम दोनों नंगे हो गए और फिर से चिपक गए।

मैं कमरे के खुले दरवाज़े की तरफ देख रहा था, जो उन्होंने महसूस कर लिया और कहा- "फिकर ना करो ख़ान साहब देर से आऐंगे और घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं है"

हम दोनों एक-दूसरे के साथ चिपके हुए थे और खूब पसंदिगी से चूमा-चाटी कर रहे थे, वो मेरी आँखों में देख रहीं थीं।

उन्होंने कहा- "तुम बहुत ही अच्छे और खूबसूरत जवान हो…तुम्हारा हथियार कितना लम्बा और मोटा है... काश..."

मैं उनकी तरफ़ देखता रहा और उन्होंने फिर ‘काश’ के बाद कुछ ना कहा।

उन्होंने कहा- "मैं खुशनसीब हूँ कि मेरी पहली चुदाई तुम करोगे"

और यह कह कर फिर से मेरे जिस्म के ऊपर आकर जगह-जगह से चूसने लगीं और लण्ड को हाथों में लेकर सहलाने लगीं और कहा कुछ भी नहीं। मेरे सीने पर जगह-जगह काट रही थीं और बार-बार मेरी आँखों में झाँक रही थीं। इधर मेरे सामने ख़ान साहब का मुर्दा लण्ड घूम रहा था। हक़ीक़त में वो चूमा चाटी के अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते थे।

तो क्या उनकी बेगम फरज़ाना अभी तक कुंवारी थी?

वो फिर मेरे बाजू में लेट गईं और बोलीं- "अब आ जाओ और शुरू हो जाओ, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। बहुत प्यासी हूँ सग़ीर, अब जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो"

मैं समझ गया कि उनका मतलब चुदाई से ही था। मैंने आज तक कभी चुदाई नहीं की थी। बस जानता था और पढ़ा था। पहले न कभी ब्लू-फ़िल्म देखी थी।

मैं उनकी टाँगों के दरमियान आ गया। वो यूँ तो मामूली शक्ल-सूरत की थीं लेकिन जिस्म बड़ा गदराया हुआ था और चूत का तो क्या कहना। लगता था था आज ही उन्होंने झांटे साफ़ कीं थीं। चूत कि दोनों फांके आपस में चिपकी हुई थीं, लगता था कि इसने आज तक लण्ड कि शकल भी नहीं देखी है। फांकों के निचले हिस्से से कुछ लिसलिसा सा पानी निकल रहा था।

उनका पेट खूब गोरा और बिल्कुल चिकना था जिस पर उनकी दोनों चूचियां नुकीली भरी हुई और बिलकुल तनी हुई थीं। निप्पल कड़े होकर बिलकुल खड़े थे। लंबे से बाल और लंबी गर्दन, बड़ी-बड़ी आँखें..! बस बाक़ी सब कुछ आम सा था।

मैं उन्हें देख रहा था।

उन्होंने पूछा- "क्या यह तुम्हारा पहली बार है?"

मैंने कहा- "जी"

फिर वो कुछ ना बोलीं। मैं उनके ऊपर था। मेरा लण्ड खूब सख़्त और लोहे की तरह तना हुआ था।

उन्होंने कहा- "परेशान ना हो, ख़ान साहब ने मुझे तुमसे चुदने की इज़ाज़त दे दी है क्योंकि वो इस क़ाबिल नहीं हैं। उन्होंने मेरी खातिर और अपनी आबरू बचाने के लिए तुम को मुन्तखिब किया है। मेरा यक़ीन करो कि शादी से पहले और बाद में यह मेरा भी पहला ही मौका है और शायद तुम्हारे अलावा किसी और से होगा भी नहीं"

यह कहते हुए वे उदास हो गईं और मुझे भी वो दिन याद आने लगे। जब खान साहब मुझ से नाकाम सेक्स करते थे।

फ़रज़ाना की उदासी का सबब जाना तो मैं उनकी चूचियां चूसने लगा और मेरा लण्ड अपनी मंज़िल तलाश करने लगा। उनकी चूत कुछ गीली सी महसूस हो रही थी और मेरा लण्ड बिलकुल उनकी चूत के मुहाने पर था। मेरे जरा से धक्के में मेरा लण्ड उनकी चूत में दाखिल होने लगा। मुझे चुदाई का तजुर्बा तो नहीं था, लेकिन अब सब कुछ खुद ही मालूम होने लगा।

फ़रज़ाना के चेहरे पर अब खुशी और सुकून तो था, उनको कुछ दर्द भी हो रहा था, उनकी एक ‘आह’ सी निकली।

मेरे अगले हमले के लिए वे तैयार तो थीं, पर मैंने हमला कुछ बेदर्दी से किया क्योंकि मुझे चुदाई का कोई कोई अनुभव नहीं था। मैंने सुपाड़ा चूत में घुस जाने के बाद जोश में आकर एक करारा झटका मारते हुए पूरा लण्ड एक ही झटके में उनकी चूत में ठांस दिया जो सीधा बच्चेदानी से जाकर टकरा गया।

उनके गले से एक बहुत लम्बी दर्द भरी चीख निकल गई- "हाय अल्ला... ओहो मेरी अम्मी... मर गई... आआऐईईईई ईईई..!"

मैं डर गया। मैंने अपना लण्ड बाहर खींचने की सोच ही रहा था कि उन्होंने दर्द से तड़फते हुए भी मुझे जकड़ लिया और मुझसे बोलीं- "नहीं सग़ीर, तुम हटना नहीं… यह दर्द कुछ ही धक्कों में चला जाएगा, बस कुछ देर अपना लण्ड ऐसे ही चूत में पड़ा रहने दो"

फिर मैंने उनकी चूचियों को अपने होंठों से चूसना शुरू कर दिया। मैं ज़िन्दगी में कभी किसी कि नंगी चूचियों को छूना तो दूर देखा तक नहीं था। मैं उनकी चूत में अपने लण्ड को फंसाये उनकी चूचियों को बुरी तरह से चूस और मसल रहा था। फरज़ाना बिना रोके अपने निचले होंठ को अपने दांतो से दबाये मुझे चूचियां मसलते देख रहीं थीं। उनकी आँखों में बहुत सुकून महसूस हो रहा था।

थोड़ी देर बाद जब उनकी चूत ने कुछ राहत महसूस की तो उन्होंने नीचे से अपने चूतड़ उचकाने शुरू कर दिए।

मैंने उनकी आँखों में देखा तो वे बोली- "जी, सग़ीर अब चोदिए आप"

मैंने फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। कुछ धक्कों के बाद वे बहुत ही मस्ती से मेरे लण्ड को अपनी चूत में ले रहीं थीं। उन्होंने अपनी दोनों टाँगे ऊपर उठा कर पूरा फैला दी जिससे अब उनकी चूत पूरी तौर से उभर कर ऊपर उठ गई थी। अब मेरा लण्ड सीधा उनकी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था। पूरी तरह से मस्ती का आलम था। मालूम हुआ कि यह वही अमल है जिससे जिस्म और रूह दोनों को सुकून मिलता है और शायद ऐसा मज़ा सिर्फ़ महसूस हो सकता है, अल्फाज़ों में बयान नहीं हो सकता।

मुझे नहीं मालूम कि यह मस्ती थी या मज़ा था। लौड़े को अन्दर गरम-गरम महसूस हो रहा था, जो कि और भी लज्जत दे रहा था। मेरा लण्ड एक तंग संकरी सी बेहद गर्म गली में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। फरज़ाना पूरी मस्ती में आँखे बंद किये चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी। लंड को उनकी चूत खूब गीली लग रही थी और पूरे बदन में नशा सा था। वो मेरे और मैं उनके होंठों को चूस रहे थे और पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखी। वो और मैं दोनों ही बुरी तरह हांफ रहे थे।

लंड को अन्दर-बाहर करने में तेज़ी आ गई थी और अब उनकी भी मस्ती में डूबी हुई आवाजें आ रही थीं, जो कि सिर्फ़ लुत्फ़ ही लुत्फ़ की अलामत थी।

"हाँ जी, सग़ीर ऐसे ही चोदो, रफ़्तार कम मत करना"

"जी मैम, नहीं करूँगा" -यह कहते हुए मैं उन्हें पूरी ताक़त से चोदने लगा।

भरा हुआ उनका बदन मेरे नीचे था और दिल चाहता था कि कभी उनसे जुदा ना होऊँ।

चुदाई की रफ़्तार तेज़ होती जा रही थी। उन्होंने भी मुझे पूरी ताक़त से जकड़ा हुआ था और लंड भी अपने गिर्द यही कैफियत महसूस कर रहा था।

चुदाई की इंतेहा हो रही थी और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बाजुओं में से निकाल कर उनके दोनों कंधों को अपनी सीने की तरफ खींचा हुआ था।

मैं अपने लण्ड को रफ़्तार से अन्दर-बाहर कर रहा था।

चुदाई की इस स्थिति में उन्होंने कहा- "आह... सग़ीर... मेरे सरताज... क्या मज़ा है... ऐसे ही चोदते रहना... बस मेरा होने वाला है मेरी जान...!"

उनकी जुबान से हल्की-हल्की मादक आवाजें आ रहीं थीं। उनकी इस तकलीफ़ को मैं अपनी उन पर फ़तह होने की लज्ज़त में डूब रहा था।

मैंने एक ना सुनी और खूब ज़ोर-ज़ोर से झटके लगाने लगा, जो कि मेरे लंड का फितरी तक़ाज़ा था और मैं सब कुछ भूल कर कि वो मुझसे बड़ी हैं और ख़ान साहब की बेगम हैं, सिर्फ़ और सिर्फ़ लण्ड का साथ दे रहा था। पहली बार मैंने जाना था कि चुदाई में कितना लुत्फ़ है, मुझे तो बस इसी छेद में ज़न्नत दिखाई दे रही थी।

मुझे चुदाई इतनी ज्यादा पसन्द आ रही थी कि मेरे लण्ड को लग रहा था कि दाखिल तो हुआ चूत से मगर निकलना चाह रहा है शायद उनके हलक़ से…!

उनकी मंज़िल तो आ चुकी थी। मैं खौफ़नाक झटके लगा रहा था कि जैसे खुद भी उनके अन्दर जाने की कोशिश कर रहा होऊँ। उन्होंने मुझे बहुत ताक़त से जकड़ लिया था कि वो मेरे धक्कों को कुछ हद तक रोक सकें, लेकिन कहाँ वो शहरी ख़ातून और कहाँ मैं कुंवारा नौजवान, खूब ज़ोर कर पूरी ताक़त से हचक हचक कर चोदे जा रहा था। 

उनके मुंह से अब हल्की सी चीखें निकलने लगीं थीं।

"अब रुक जाओ सग़ीर, लगता है मेरी चूत फट गई है... प्लीज..."

मैं उनकी हर बात अनसुनी करता हुआ पूरे जुनून से उन्हें जकड़े चोदने में लगा था।

इतना जुनून था कि मेरे मुंह से अब गालियां निकलने लगीं थीं। आख़िरकार मैंने एक तेज़ झटका मारा और मेरा लण्ड उनकी बच्चेदानी पर जाकर टिक गया। मैंने हांफते हुए अपना सर उनकी चूचियों पर रख कर एक दो तीन और पता नहीं कितनी पिचकारी मारते हुए अपने माल से उनकी बच्चेदानी को भर दिया।

CONTD ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 17-05-2024, 04:56 PM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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