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Adultery मौके पर चौका
#47
Heart 
ख़वातीन और हाज़रात को आपके दोस्त सग़ीर ख़ान का आदाब!

दोस्तों! यह कहानी बहुत पहले की है जब मैं मदरसे में तालीम हासिल करने जाया करता था। मैं बहुत ही गोरा चिट्टा हसीन तरीन लड़का था। लड़कियां मुझसे दोस्ती करने को आगे पीछे घूमतीं थीं पर मैं बचपन से ही क्रिकेट का शौक़ीन था सो मेरे फ्रेंड्स भी सभी लड़के ही हुआ करते थे। लण्ड और चूत के खेल से मैं पूरी तौर पर अनजान था।

मदरसे में मुझे जो तालीम दिया करते थे उनका नाम तो पता नहीं पर सब उन्हें 'ख़ान साहब' कह कर बुलाते थे। ख़ान साहब लम्बे चौड़े मूल पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के रहने वाले थे। वह मुझे अक्सर अपने पास बुला कर मेरे शरीर पर हाथ फेरा करते थे जो मुझे बहुत नाग़वार गुजरता था। परन्तु उस्ताद होने की वजह से मैं कुछ बोल नहीं पाता था।

एक रोज़ ख़ान साहब ने मुझे छुट्टी होने के बाद सभी फाइलें और कागज़ ले चल कर उनके क़्वार्टर में पहुँचाने को बोला। सारे बच्चे जा चुके थे, मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उस्ताद थे सो मन मार कर मैं कागज़ात लेकर उनके पीछे चलने लगा।

क़्वार्टर पहुँच कर ख़ान साहब अपने कमरे में चले गए। मैंने सभी कागज़ात उनकी टेबल पर करीने से रख कर जाने की इज़ाजत लेने उनके कमरे में गया तो वह सिर्फ एक अंडरविअर पहने लेटे थे। उन्होंने अपने पास बुलाकर मेरे गाल पर किस किया और शाबाशी देते हुए मेरे चूतड़ों पर हाथ फिराने लगे।

मैं सख़्त शर्मिंदा था, कल तक जिस काम से मुझे नफ़रत थी, आज वही मेरे साथ हो रहा था। वैसे मेरे साथ इस तरह की हरकत करने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी लेकिन मुझे ऐसा सेक्स करने की कोइ चाहत कभी नहीं थी। मैंने उन्हें रोकना चाहा पर मैंने सोचा बेकार है क्योंकि उस वक़्त क़्वार्टर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं था।

वो मुझसे उम्र में भी काफी बड़े थे, मैं उनसे मुफ़्त में छुट्टियाँ भी पाता था। मैं मन मसोस कर उनकी ज्यादती बर्दाश्त करता रहा।

थोड़ी देर बाद ख़ान साहब ने मुझे अपने से चिपकाते हुए मेरी शर्ट के सभी बटन खोल कर उसे उतार दिया फिर मेरी बनियान भी निकाल कर मेरी निप्पल्स को बारी बारी जीभ से चुभलाते हुए चूसने लगे। फिर उन्होंने मेरा पेंट भी उतार दिया। अब मैं बिलकुल नंगा था क्योंकि मैंने पेंट के अंदर कुछ नहीं पहना था।

मुझे नंगा करके थोड़ी देर बाद उन्होंने अपना अंडरविअर भी निकल दिया। मैंने देखा कि उनकी टांगों के जोड़ के बीच एक साधारण सा लण्ड लटक रहा था जिसमे बिलकुल भी सख्ती नहीं थी। अब उन्होंने मेरे बदन को फिर से चूमना चाटना शुरू कर दिया। मुझे बहुत ही बुरा लग रहा था, मैं सोच रहा था कि अब मेरा दैहिक शोषण होकर ही रहेगा।

थोड़ी देर चूमा चाटी करने के बाद उन्होंने मेरे हाथ में अपना लण्ड पकड़ा दिया और उसे हिलाने का इशारा किया। मैं उनका लण्ड हिला रहा था और वो मेरे लण्ड को कभी सहलाते तो कभी मेरी गांड के छेद पर ऊँगली से दबाब डालते।
वो मुझे काफ़ी देर तक चूमते रहे, पर उन्होंने मेरी गाण्ड नहीं मारी उल्टे मुझसे कपड़े पहन लेने का फरमान सुना दिया। मैं मन ही मन बहुत खुश था कि जान बची तो लाखों पाए।

तभी मेरा ध्यान उनके लण्ड पर गया जो मेरे इतना सहलाने के बाद भी सख्त नहीं हुआ था बल्कि अभी तक बिल्कुल मुरझाया हुआ था और ऐसा लग रहा था कि लण्ड के नाम पर बस एक गोश्त का टुकड़ा लटक रहा हो। खैर, मैं बहुत खुश था कि जान छूटी।

उन्होंने मेरी जेब में दो रूपए डाल दिए। मैं बहुत खुश था कि चलो इन पैसों से कोई चीज खरीद कर खाऊँगा।

ख़ान साहब इसी तरह अक्सर किसी न किसी बहाने मुझे अपने क़्वार्टर में बुलाते और दोनों नंगे होकर चूमा चाटी करते फिर मेरी जेब में दो रुपये डाल कर मुझे जाने को बोल देते। मैं भी खुश था कि पैसे भी मिल जाते हैं और गाण्ड भी नहीं मरवानी पड़ी। मुझे तो बहुत बाद में मालूम हुआ कि ऐसे लोगों को नामर्द यानी इंपोटेंट कहते हैं।

ख़ान साहब एक तन्हा शख़्स थे। मुझे नहीं मालूम कि उनका कोई आगे-पीछे वाला था भी या नहीं। बावर्ची और मुलाज़िम उनके घर पर काम करते थे और उनकी शराफ़त की वजह से शोहरत भी बहुत थी।

यह अलग बात है मुझे मालूम था कि वे कितने बड़े मादरचोद इन्सान थे। मैंने कभी किसी से (उनके एहतराम की वजह से) ज़िक्र भी नहीं किया। कह भी देता तो शायद, लोग यक़ीन ना करते और ज़रूरत भी नहीं थी।

उनसे मेरे ताल्लुकात का ये एक सबब था और मैं उनका ख्याल भी रखता था। उनकी बीमारी में, मैंने तीमारदारी की और मैं क्या, हमारे इलाके के सभी लोग उनका ख्याल रखते थे।

वह इस काम के साथ साथ अपनी पढाई करते हुए परीक्षा भी देते रहते थे। कुछ समय बाद उनकी किसी बड़ी पोस्ट पर नियुक्ति हो गई, मैं फिर भी उनके पास जाता रहा। उन्होंने काफ़ी अरसे से वो गंदी हरकत भी बंद कर दी थी।

दिन गुजरते गए। मैं कॉलेज में चला गया और उनसे कभी-कभार मिलता था। मैं कॉलेज में सेकेंड इयर में था, उन्होंने मुझे एक आदमी के जरिए मुझे बुलवाया।

मैं उनके बुलावे पर शाम को उनके दफ्तर गया। वे मुझसे बहुत अदब से मिले और घर चलने को कहा। मैंने सोचा शायद फिर वही चूमा-चाटी करेगा साला... लेकिन अब मैं वो लड़का नहीं बल्कि पूरा मर्द बन गया था। हालाँकि अभी तक मैंने किसी के साथ सेक्स नहीं किया था। मैंने सोचा अगर आज इसने फिर वही हरकत दी तो इसकी गांड मार लूंगा। और फिर अब मुझे पैसों की भी कोई खास ज़रूरत नहीं थी। मुझे कॉलेज की तरफ से स्कॉलर-शिप मिलती थी और मेरा कोई विशेष खर्चा भी नहीं था। ऊपर से अब्बू मुझे डेली कुछ न कुछ देते ही रहते थे।

उनका घर भी दफ्तर के अहाते में ही था, हम वहाँ चले गए, उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया तो एक ख़ातून ने दरवाज़ा खोला। मैंने पहली बार उनके घर में ख़ातून देखी थी, बल्कि कभी किसी ख़ातून का नाम भी उनके हवाले से नहीं सुना था।

उन्होंने कहा- "ये मेरी बेगम हैं"

मैं खुश हुआ कि उन्होंने शादी कर ली और शायद इसी वजह से उन्होंने मुझे काफ़ी अरसे से बुलाया भी नहीं।

उन्होंने अपनी बेगम फ़रज़ाना से मेरा परिचय कराया।

फ़रज़ाना से कहा- "बेगम! यही सग़ीर है, मेरे सबसे अज़ीज़-तरीन स्टूडेंट, जिनका ज़िक्र मैंने आपसे किया था"

इसका मतलब था कि उन्होंने अपनी बेगम से मेरे बारे में पहले कभी चर्चा की होगी।

फ़रज़ाना ख़ातून उम्र में मुझ से बड़ी थीं और ख़ान साहब से कुछ ज्यादा ही छोटी थीं। ख़ान साहब से क़द में लंबी और खूब गोरी और बेहद आम सी ख़ातून, उनके चेहरे पर कोई कशिश भी नहीं थी। ऐसा लगता था जैसे उन्हें किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। चेहरा भी बुझा बुझा सा था। आँखे ऐसी लग रही थीं जैसे कई रात से सोई न हो।

काफ़ी देर के बाद ख़ान साहब ने कहा- "सग़ीर, मुझे और फ़रज़ाना को तुम्हारी मदद की ज़रूरत है"

मैं कुछ नहीं बोला, वो चाय बगैरह पीकर वापिस दफ्तर चले गए, जाते-जाते खान साहब कह गए कि हम दोनों बातें करें, वे कुछ जरूरी काम निबटा कर आते हैं, तब सब मिल कर खाना खायेंगे।

उनके जाने के बाद फ़रज़ाना साहिबा ने मुझे अपना घर दिखाना शुरू कर दिया। सरकारी घर था, मगर बहुत बड़ा था। फ़रज़ाना ने मुझे एक-एक कमरे को दिखाया और उस कमरे में ले गईं जिसमें टीवी था। उस ज़माने में ब्लॅक एंड व्हाइट टीवी भी बहुत ही कम लोगों के घर में होता था।

वो मेरे साथ बैठ गईं। उन्होंने मेरे बारे मैं पूछा और कहा- "ख़ान साहब सिर्फ आपको याद करते हैं। उन्होंने आपके बारे में मुझे बताया है कि आप ही उनके सबसे करीब के स्टूडेंट थे"

मैंने मन ही मन सोच मादरचोद ने कहीं मेरे साथ चूमा-चाटी के किस्से तो नहीं सुना दिए लेकिन फिर सोचा कि ऐसी बातें अपनी बीवी को क्यों बतायेगा!

वो फ़रज़ाना मेरे क़रीब आ गईं और बिल्कुल चिपक कर बैठ गईं।

उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा- "मैं आपको प्यार कर सकती हूँ?"

मैंने उनकी तरफ देखा और घबरा गया कि यह सब क्या हो रहा है। उन्होंने मेरे जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और मुझे गले लगा कर प्यार करने लगीं। मेरी ज़िंदगी में माँ के अलावा पहली बार किसी ने प्यार किया था और मैं एक शर्मीला लड़का हूँ, मैं घबरा गया था।

उन्होंने मुझे प्यार करते हुए मेरे होंठों चुम्बन लिया। मैं उनके गले लगा हुआ था और वो मुझे बेतहाशा प्यार कर रहीं थीं लेकिन सिवाय घबराहट के मेरे अन्दर कोई फीलिंग नहीं थी।

अब उनका हाथ मेरे लंड पर था जो बिल्कुल बैठा हुआ था। मैं कुछ नहीं कर रहा था मेरा लण्ड उनके हाथों में था और मेरे होंठों पर उनके होंठ थे। जो कुछ भी हो रहा था सब उनकी मर्जी से हो रहा था।

उन्होंने कहा- "आओ मेरे साथ लेट जाओ..!"

उन्होंने खुद ही मुझे बिस्तर पर अपने साथ लेटा लिया। वो मुझ से चिपट गईं और अब जाकर मेरे अन्दर कुछ होना शुरू हुआ यानि लण्ड भी खड़ा होने लगा और सब कुछ अच्छा लगने लगा।

वो मेरे ऊपर आ गईं और खूब चूमने लगीं, जिसके जवाब मैं भी उनको चूमने लगा, मेरा लण्ड अब पूरी तरह सख़्त हो चुका था।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 17-05-2024, 12:54 PM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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