16-05-2024, 08:02 AM
"अरे ऐसा ही होता है। जिस रात को थोड़ी ज्यादा ठुकाई हो जाए तो ऐसा ही होता है।" रेखा बोली।
"चुप हरामजादी। तुम्हें होता होगा।"
"अच्छा गुरु मां, तुम तो गुरु हो, तुम्हें भला क्या होगा।" रश्मि बोली।
"अब तुम मुंह बंद करोगी कि लगाऊं एक?'" मैं खीझ कर बोली।
"कल राधा को लगाई, अब मुझे लगाने की बात कर रही है? लगाओ। मजा आ जायेगा।"
"तुम लोग अर्थ का अनर्थ करने में माहिर हो। बस अब आगे कुछ मत बोलो। वरना ठीक नहीं होगा।" मैं अब झल्ला उठी थी।
"अच्छा लो चुप हो गये। बस एक बात बताना था कि कल तुमने जो वीडियो और फोटो भेजी थी, बड़ी जबरदस्त थीं।" शीला बोली।
"लेकिन उसमें एक कमी थी।"
"क्या कमी थी?" मैं जानती थी कि कमी से उसका तात्पर्य क्या था।
"उसमें असली हिरोईन वाली गायब है।"
"असली हिरोईन?"
"हां, सबसे मस्त वाली।"
"कौन सी?"
"रोजा की, और किसकी।" शीला बोली।
"धत, कोई अपनी इस तरह की फोटो किसी को दिखाता है क्या?" मैं बोली।
"कोई बात नहीं। हमने साक्षात दर्शन कर लिया है फिर फोटो की क्या जरूरत। अच्छा, आज किसके यहां जाना है?" रेखा बोली।
"आज मैं कहीं नहीं जा रही हूं। फिर कभी।" मैं तुरंत बोली।
"अच्छा कल?"
"कल की बात कल करेंगे।" मैं बोली।
"अच्छा ठीक है कल।"
"लेकिन किसके पास?" रेखा बोली।
"वह भी कल तय करेंगे।"
"ठीक है लेकिन कल पक्का ना?"
"हां बाबा कल पक्का।" बोलकर मैंने पल्ला झाड़ लिया।
इसी तरह हमारी चंडाल चौकड़ी की बातें हुईं और भी इधर उधर की बातें करते हुए बेकार की नोंक झोंक के साथ ब्रेक खत्म हुआ फिर हम क्लास में चले गए लेकिन मेरे मन में शांति नहीं थी। कॉलेज में क्लासेस का एक एक पल पहाड़ जैसा लग रहा था। जैसे ही कॉलेज खत्म हुआ मैं भागी भागी बाहर निकल रही थी कि,
"अरे बन्नो रानी कहां भागी जा रही हो?" पीछे से शीला की आवाज आई।
"मुझे आज जल्दी घर जाना है। कल मिलते हैं। बाय।" कहती हुई मैं शीला को हक्की-बक्की छोड़कर जल्दी से सामने खड़ी अपनी कार की ओर बढ़ी, जहां, घनश्याम पहले से मौजूद था। मैं ने हड़बड़ी में गेटकीपर रघु की ओर एक नजर देखा तो वह हल्का सा झुक कर मुझे सलाम करता दिखा। मैं ने हल्का सा सर हिला कर उसके अभिवादन का उत्तर दिया।
"चलिए।" मैं जल्दी से कार की सामने सीट पर बैठते हुए बोली।
"क्या बात है, बहुत जल्दी में हो?" घनश्याम मुझे घूर कर देखते हुए बोला।
"हां, जल्दी में हूं लेकिन आपको इससे क्या?" मैं तल्ख स्वर में बोली।
"मैं सुबह से तुम्हें परेशान देख रहा हूं। मैं तुम्हारी परेशानी जान सकता हूं?"
"जानकर क्या कीजिएगा?" मैं अपनी स्कर्ट को हल्के से ऊपर की ओर उठा कर बोली। वह एक नजर मेरी जांघों की ओर देख कर मुस्कुरा उठा।
"बहुत कुछ कर सकता हूं। तुम बोल कर तो देखो।"
मैं अपनी टॉप के ऊपरी दो बटनों को खोल कर बोली, "आप या तो बेवकूफ हैं या बेवकूफ बनने का दिखावा कर रहे हैं।"
"न मैं बेवकूफ हूं और न ही बेवकूफ बनने का दिखावा कर रहा हूं। सीधे सीधे पूछ रहा हूं कि सीधे घर चलें या...." वह अपनी बोली में अर्थ पूर्ण विराम दिया।
""या?" मैं समझ गई कि वह मुद्दे की बात मुझसे कहलवाना चाहता है। मैं इतनी बड़ी भी रंडी नहीं हूं कि सीधे सीधे बोलती कि चलिए कहीं एकान्त में मुझे चोद कर अपनी और मेरी तमन्ना पूरी कर लीजिए।
"ठीक है, मैं समझ गया कहां जाना है।" कहकर उसने गाड़ी दूसरी तरफ मोड़ दी और साथ ही अपना बायां हाथ मेरी बायीं जांघ पर रख दिया।
"यह यह कककहां ले जा रहे हैं और यह क्या कर रहे हैं?" मैं उसके इस तरह बेलौस आक्रामक पहल से पल भर को हतप्रभ रह गयी।
"चुप हरामजादी। तुम्हें होता होगा।"
"अच्छा गुरु मां, तुम तो गुरु हो, तुम्हें भला क्या होगा।" रश्मि बोली।
"अब तुम मुंह बंद करोगी कि लगाऊं एक?'" मैं खीझ कर बोली।
"कल राधा को लगाई, अब मुझे लगाने की बात कर रही है? लगाओ। मजा आ जायेगा।"
"तुम लोग अर्थ का अनर्थ करने में माहिर हो। बस अब आगे कुछ मत बोलो। वरना ठीक नहीं होगा।" मैं अब झल्ला उठी थी।
"अच्छा लो चुप हो गये। बस एक बात बताना था कि कल तुमने जो वीडियो और फोटो भेजी थी, बड़ी जबरदस्त थीं।" शीला बोली।
"लेकिन उसमें एक कमी थी।"
"क्या कमी थी?" मैं जानती थी कि कमी से उसका तात्पर्य क्या था।
"उसमें असली हिरोईन वाली गायब है।"
"असली हिरोईन?"
"हां, सबसे मस्त वाली।"
"कौन सी?"
"रोजा की, और किसकी।" शीला बोली।
"धत, कोई अपनी इस तरह की फोटो किसी को दिखाता है क्या?" मैं बोली।
"कोई बात नहीं। हमने साक्षात दर्शन कर लिया है फिर फोटो की क्या जरूरत। अच्छा, आज किसके यहां जाना है?" रेखा बोली।
"आज मैं कहीं नहीं जा रही हूं। फिर कभी।" मैं तुरंत बोली।
"अच्छा कल?"
"कल की बात कल करेंगे।" मैं बोली।
"अच्छा ठीक है कल।"
"लेकिन किसके पास?" रेखा बोली।
"वह भी कल तय करेंगे।"
"ठीक है लेकिन कल पक्का ना?"
"हां बाबा कल पक्का।" बोलकर मैंने पल्ला झाड़ लिया।
इसी तरह हमारी चंडाल चौकड़ी की बातें हुईं और भी इधर उधर की बातें करते हुए बेकार की नोंक झोंक के साथ ब्रेक खत्म हुआ फिर हम क्लास में चले गए लेकिन मेरे मन में शांति नहीं थी। कॉलेज में क्लासेस का एक एक पल पहाड़ जैसा लग रहा था। जैसे ही कॉलेज खत्म हुआ मैं भागी भागी बाहर निकल रही थी कि,
"अरे बन्नो रानी कहां भागी जा रही हो?" पीछे से शीला की आवाज आई।
"मुझे आज जल्दी घर जाना है। कल मिलते हैं। बाय।" कहती हुई मैं शीला को हक्की-बक्की छोड़कर जल्दी से सामने खड़ी अपनी कार की ओर बढ़ी, जहां, घनश्याम पहले से मौजूद था। मैं ने हड़बड़ी में गेटकीपर रघु की ओर एक नजर देखा तो वह हल्का सा झुक कर मुझे सलाम करता दिखा। मैं ने हल्का सा सर हिला कर उसके अभिवादन का उत्तर दिया।
"चलिए।" मैं जल्दी से कार की सामने सीट पर बैठते हुए बोली।
"क्या बात है, बहुत जल्दी में हो?" घनश्याम मुझे घूर कर देखते हुए बोला।
"हां, जल्दी में हूं लेकिन आपको इससे क्या?" मैं तल्ख स्वर में बोली।
"मैं सुबह से तुम्हें परेशान देख रहा हूं। मैं तुम्हारी परेशानी जान सकता हूं?"
"जानकर क्या कीजिएगा?" मैं अपनी स्कर्ट को हल्के से ऊपर की ओर उठा कर बोली। वह एक नजर मेरी जांघों की ओर देख कर मुस्कुरा उठा।
"बहुत कुछ कर सकता हूं। तुम बोल कर तो देखो।"
मैं अपनी टॉप के ऊपरी दो बटनों को खोल कर बोली, "आप या तो बेवकूफ हैं या बेवकूफ बनने का दिखावा कर रहे हैं।"
"न मैं बेवकूफ हूं और न ही बेवकूफ बनने का दिखावा कर रहा हूं। सीधे सीधे पूछ रहा हूं कि सीधे घर चलें या...." वह अपनी बोली में अर्थ पूर्ण विराम दिया।
""या?" मैं समझ गई कि वह मुद्दे की बात मुझसे कहलवाना चाहता है। मैं इतनी बड़ी भी रंडी नहीं हूं कि सीधे सीधे बोलती कि चलिए कहीं एकान्त में मुझे चोद कर अपनी और मेरी तमन्ना पूरी कर लीजिए।
"ठीक है, मैं समझ गया कहां जाना है।" कहकर उसने गाड़ी दूसरी तरफ मोड़ दी और साथ ही अपना बायां हाथ मेरी बायीं जांघ पर रख दिया।
"यह यह कककहां ले जा रहे हैं और यह क्या कर रहे हैं?" मैं उसके इस तरह बेलौस आक्रामक पहल से पल भर को हतप्रभ रह गयी।