13-05-2024, 11:10 PM
"ओओओओओ हमारी बन्नो रानी तो लाल भभूका हो रही है। क्या बात है? लगता है इसका बुढ़ऊ रात को सोने नहीं दिया होगा।" यह रेखा थी।
"छि छि क्या बोले जा रही हो गधी कहीं की। कमसे कम जगह तो देख कर बात करो।" रेखा की बात सुनकर मैं बिगड़ती हुई उनसे बोली। रेखा की बात सुनकर मेरा दिल धक्क से रह गया। सच ही तो था, कोई यहां सुन लेता तो हमारे बारे में क्या सोचता। मैं मुड़ कर घनश्याम की ओर देखने लगी तो ऐसा लगा जैसे उसने भी हमारी बातें सुन ली थीं, यह उसके माथे की शिकन बता रही थी।
"ओय होय हमारी शरीफजादी, जरा उधर देखो तो, एक और इसका बुड्ढा ठर्की, कैसे हमें घूर रहा है। साली एक से एक नमूना पाल कर रखी हुई है।" घनश्याम की ओर देखते हुए शीला बोली।
"तुमलोग ऐसी ही बातें करोगी तो आज मुझसे क्लास नहीं हो पाएगा।" मैं बोली।
"क्लास कौन मां का ....... करना चाह रहा है। हम तो आज तुम्हारी ही क्लास लेने वाली हैं।" रेखा बोली।
"ऐसी बात है तो फिर मैं चली।" कहकर कार की ओर मुड़ी ही थी कि शीला ने मुझे थाम लिया।
"अरे बन्नो रानी, कहां चली। चल चल मूर्ख, हम तो ऐसे ही मजाक कर रही थीं। तुम्हारा हुलिया ही ऐसा है कि तुम्हारी खिंचाई करने से हम खुद को रोक नहीं पा रही हैं।" कहकर मुझे खींचती हुई कॉलेज परिसर में ले आई। शीला को क्या पता था कि रेखा और रश्मि के मन में घनश्याम के बारे में क्या धारणा बन चुकी है।
हमें कॉलेज परिसर में प्रवेश करते देख कर घनश्याम भी वापस चला गया। गेट में घुसते वक्त गेटकीपर से मेरी आंखें चार हुईं। वह बड़ी हसरत भरी निगाहों से मुझे देख रहा था। मुझे उसपर तरस आ रहा था। बेचारा, उसने मेरे नग्न जिस्म का दीदार जो कर लिया था। किसी लड़की की नंगी देह को देखने के बाद किसी के दिल पर क्या बीतती होगी , यह मैं सिर्फ अंदाजा ही लगा सकती थी। जब जब उसकी आंखों के सामने से गुजरती हूंगी, मेरा नंगा जिस्म उसकी आंखों के सामने घूमता होगा। एक आह भरकर रह जाता था होगा। यही हाल क्या घनश्याम की नहीं हो रही थी होगी? कॉलेज में मेरे साथ हुए कांड के दिन उत्तेजना के वशीभूत जिस तरह से घनश्याम के मन में अपने प्रति कामनाएं जगाने के लिए मैं ने हरकतें कीं और उसके बाद मेरी सेक्सी देह को घुसा के साथ निर्वस्त्र देख कर उसकी जो हालत हुई होगी वह मैं भलीभांति जानती थी। उसके दिल में भी हूक सी उठती होगी कि घुसा के स्थान पर वह क्यों नहीं था। अवसर उसके हाथ में था, चाहता तो रास्ते में ही किसी सुनसान जगह में मुझे ले कर मेरी उत्तेजना का लाभ उठा सकता था। परिस्थितियों ने रघु और घनश्याम के मन में मेरे लिए कामनाओं का तूफान ला दिया था होगा। बस अब बहुत हुआ। अब और उनके सब्र का इम्तिहान लेना उनके साथ ज्यादती थी। घुसा की कारस्तानी (मेहरबानी) से चुदाई का चस्का भी मुझे लग चुका था। मैं सोचने लगी कि जब सेक्स का मजा ही लेना है तो घुसा के साथ ही क्यों? आखिर वह मेरा कौन सा खासमखास है जो मैं उसे ही तरजीह दूं? इस नादान उम्र में ही सेक्स का नया स्वाद चख चुकी थी और लगातार घुसा के द्वारा सेक्स की गुड़िया की तरह इस्तेमाल की जा रही थी तो सेक्स का मजा लेने की एक तरह से आदी सी होने लगी थी। ऐसी हालत में अपने शरीर के अदम्य वासना की आग ही बुझाने के लिए क्या घुसा, क्या घनश्याम और क्या रघु, क्या फर्क पड़ता था मेरे लिए। घनश्याम और रघु के लंड का दर्शन ही मेरे मन को ललचाने के लिए काफी था। मेरी दृष्टि में वे घुसा से किसी भी तरह कम नहीं थे। मुझे चुदाई के मजे से मतलब था। सच कहूं तो रघु का और घनश्याम का हथियार देख लेने के बाद से मेरे मन में भी एक हलचल सी मची हुई थी। बस मैंने तत्काल निर्णय कर लिया कि इनकी मुराद पूरी करने में और विलंब नहीं करूंगी ताकि मेरे मन में भी उनसे चुदने की जो उत्कंठा जाग उठी है, वह भी पूरी हो जाए और मेरे भावी सेक्स जीवन में उनकी क्या भूमिका रहेगी उसका भी निर्णय हो जाए।
उस दिन क्लास में मेरा मन ही नहीं लग रहा था। मेरा शरीर ही क्लास में था लेकिन मेरे मन में घुसा द्वारा सबेरे बताई हुई मां के साथ सेक्स वाली घटना ही घूम रही थी और उस घटना की कल्पना कर करके पागल हुई जा रही थी। भगवान जाने पहली बार घुसा जैसे मोटे लंड वाले आदमी से गांड़ मरवाने से मां को कैसा अनुभव हुआ होगा। उसकी चाल ढाल में थोड़ा परिवर्तन हुआ था लेकिन चेहरे पर एक सुकून सा दिखाई दे रहा था। जरूर मां को घुसा से गांड़ मरवाना अच्छा लगा था होगा और उसको भरपूर संतोष भी मिला होगा। आखिर घुसा एक नंबर का खेला खाया, चतुर और दमदार चुदक्कड़ जो ठहरा। जब बहला फुसलाकर मुझ जैसी कमसिन कली की गांड़ मारने में सफल हो सकता था तो मेरी मां तो पकी पकाई प्रौढ़ महिला थी, उसे मुझसे ज्यादा तकलीफ़ तो अवश्य नहीं हुई होगी। हां बस उसकी चाल थोड़ी बदल गई थी, जो कि स्वाभाविक भी थी। उस चुदाई की कल्पना के साथ ही साथ रघु और घनश्याम के साथ मेरा सेक्स संबंध कैसे स्थापित हो, यह भी मेरे मन में चल रहा था। अगर वे पहल नहीं करेंगे तो मैं कैसे पहल करूंगी यह बातें भी मेरे मन में चल रही थीं। सच पूछिए तो आज कॉलेज आना ही मेरे लिए बेकार सिद्ध हो रहा था। सबेरे ही सबेरे मन में जो कुलबुलाहट शुरू हुई थी उसके बाद मन अशांत ही रहा। ब्रेक में भी मेरी सहेलियां मेरी खिंचाई करती रहीं लेकिन मैं अनमनी सी ही रही।
"क्यों री, रात को ज्यादा ठुकाई हो गई क्या?" शीला बोली।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं।"
"फिर?"
"बस, तबियत थोड़ी ठीक नहीं है।" बोल कर चुप हो गई।
"छि छि क्या बोले जा रही हो गधी कहीं की। कमसे कम जगह तो देख कर बात करो।" रेखा की बात सुनकर मैं बिगड़ती हुई उनसे बोली। रेखा की बात सुनकर मेरा दिल धक्क से रह गया। सच ही तो था, कोई यहां सुन लेता तो हमारे बारे में क्या सोचता। मैं मुड़ कर घनश्याम की ओर देखने लगी तो ऐसा लगा जैसे उसने भी हमारी बातें सुन ली थीं, यह उसके माथे की शिकन बता रही थी।
"ओय होय हमारी शरीफजादी, जरा उधर देखो तो, एक और इसका बुड्ढा ठर्की, कैसे हमें घूर रहा है। साली एक से एक नमूना पाल कर रखी हुई है।" घनश्याम की ओर देखते हुए शीला बोली।
"तुमलोग ऐसी ही बातें करोगी तो आज मुझसे क्लास नहीं हो पाएगा।" मैं बोली।
"क्लास कौन मां का ....... करना चाह रहा है। हम तो आज तुम्हारी ही क्लास लेने वाली हैं।" रेखा बोली।
"ऐसी बात है तो फिर मैं चली।" कहकर कार की ओर मुड़ी ही थी कि शीला ने मुझे थाम लिया।
"अरे बन्नो रानी, कहां चली। चल चल मूर्ख, हम तो ऐसे ही मजाक कर रही थीं। तुम्हारा हुलिया ही ऐसा है कि तुम्हारी खिंचाई करने से हम खुद को रोक नहीं पा रही हैं।" कहकर मुझे खींचती हुई कॉलेज परिसर में ले आई। शीला को क्या पता था कि रेखा और रश्मि के मन में घनश्याम के बारे में क्या धारणा बन चुकी है।
हमें कॉलेज परिसर में प्रवेश करते देख कर घनश्याम भी वापस चला गया। गेट में घुसते वक्त गेटकीपर से मेरी आंखें चार हुईं। वह बड़ी हसरत भरी निगाहों से मुझे देख रहा था। मुझे उसपर तरस आ रहा था। बेचारा, उसने मेरे नग्न जिस्म का दीदार जो कर लिया था। किसी लड़की की नंगी देह को देखने के बाद किसी के दिल पर क्या बीतती होगी , यह मैं सिर्फ अंदाजा ही लगा सकती थी। जब जब उसकी आंखों के सामने से गुजरती हूंगी, मेरा नंगा जिस्म उसकी आंखों के सामने घूमता होगा। एक आह भरकर रह जाता था होगा। यही हाल क्या घनश्याम की नहीं हो रही थी होगी? कॉलेज में मेरे साथ हुए कांड के दिन उत्तेजना के वशीभूत जिस तरह से घनश्याम के मन में अपने प्रति कामनाएं जगाने के लिए मैं ने हरकतें कीं और उसके बाद मेरी सेक्सी देह को घुसा के साथ निर्वस्त्र देख कर उसकी जो हालत हुई होगी वह मैं भलीभांति जानती थी। उसके दिल में भी हूक सी उठती होगी कि घुसा के स्थान पर वह क्यों नहीं था। अवसर उसके हाथ में था, चाहता तो रास्ते में ही किसी सुनसान जगह में मुझे ले कर मेरी उत्तेजना का लाभ उठा सकता था। परिस्थितियों ने रघु और घनश्याम के मन में मेरे लिए कामनाओं का तूफान ला दिया था होगा। बस अब बहुत हुआ। अब और उनके सब्र का इम्तिहान लेना उनके साथ ज्यादती थी। घुसा की कारस्तानी (मेहरबानी) से चुदाई का चस्का भी मुझे लग चुका था। मैं सोचने लगी कि जब सेक्स का मजा ही लेना है तो घुसा के साथ ही क्यों? आखिर वह मेरा कौन सा खासमखास है जो मैं उसे ही तरजीह दूं? इस नादान उम्र में ही सेक्स का नया स्वाद चख चुकी थी और लगातार घुसा के द्वारा सेक्स की गुड़िया की तरह इस्तेमाल की जा रही थी तो सेक्स का मजा लेने की एक तरह से आदी सी होने लगी थी। ऐसी हालत में अपने शरीर के अदम्य वासना की आग ही बुझाने के लिए क्या घुसा, क्या घनश्याम और क्या रघु, क्या फर्क पड़ता था मेरे लिए। घनश्याम और रघु के लंड का दर्शन ही मेरे मन को ललचाने के लिए काफी था। मेरी दृष्टि में वे घुसा से किसी भी तरह कम नहीं थे। मुझे चुदाई के मजे से मतलब था। सच कहूं तो रघु का और घनश्याम का हथियार देख लेने के बाद से मेरे मन में भी एक हलचल सी मची हुई थी। बस मैंने तत्काल निर्णय कर लिया कि इनकी मुराद पूरी करने में और विलंब नहीं करूंगी ताकि मेरे मन में भी उनसे चुदने की जो उत्कंठा जाग उठी है, वह भी पूरी हो जाए और मेरे भावी सेक्स जीवन में उनकी क्या भूमिका रहेगी उसका भी निर्णय हो जाए।
उस दिन क्लास में मेरा मन ही नहीं लग रहा था। मेरा शरीर ही क्लास में था लेकिन मेरे मन में घुसा द्वारा सबेरे बताई हुई मां के साथ सेक्स वाली घटना ही घूम रही थी और उस घटना की कल्पना कर करके पागल हुई जा रही थी। भगवान जाने पहली बार घुसा जैसे मोटे लंड वाले आदमी से गांड़ मरवाने से मां को कैसा अनुभव हुआ होगा। उसकी चाल ढाल में थोड़ा परिवर्तन हुआ था लेकिन चेहरे पर एक सुकून सा दिखाई दे रहा था। जरूर मां को घुसा से गांड़ मरवाना अच्छा लगा था होगा और उसको भरपूर संतोष भी मिला होगा। आखिर घुसा एक नंबर का खेला खाया, चतुर और दमदार चुदक्कड़ जो ठहरा। जब बहला फुसलाकर मुझ जैसी कमसिन कली की गांड़ मारने में सफल हो सकता था तो मेरी मां तो पकी पकाई प्रौढ़ महिला थी, उसे मुझसे ज्यादा तकलीफ़ तो अवश्य नहीं हुई होगी। हां बस उसकी चाल थोड़ी बदल गई थी, जो कि स्वाभाविक भी थी। उस चुदाई की कल्पना के साथ ही साथ रघु और घनश्याम के साथ मेरा सेक्स संबंध कैसे स्थापित हो, यह भी मेरे मन में चल रहा था। अगर वे पहल नहीं करेंगे तो मैं कैसे पहल करूंगी यह बातें भी मेरे मन में चल रही थीं। सच पूछिए तो आज कॉलेज आना ही मेरे लिए बेकार सिद्ध हो रहा था। सबेरे ही सबेरे मन में जो कुलबुलाहट शुरू हुई थी उसके बाद मन अशांत ही रहा। ब्रेक में भी मेरी सहेलियां मेरी खिंचाई करती रहीं लेकिन मैं अनमनी सी ही रही।
"क्यों री, रात को ज्यादा ठुकाई हो गई क्या?" शीला बोली।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं।"
"फिर?"
"बस, तबियत थोड़ी ठीक नहीं है।" बोल कर चुप हो गई।