13-05-2024, 02:59 PM
रज़िया पूरी तरह से चुदासी होकर मुझसे चिपकी थी लेकिन शायद शरम या संकोच के कारण वो सोने का ड्रामा कर रही थी वरना उसकी चूत मेरे लंड को गपकने को मुंह बाये खड़ी थी।
चूँकि मुझे भी पता था कि ये सोने का सिर्फ नाटक कर रही है वरना इसकी चूत की हालत चीख चीख कर कह रही है कि मुझे चोदो व पेल पेल कर फाड़ दो।सो मैंने सबसे पहले रज़िया को धीरे से अपने बगल में लिटा करके उसकी इकलौती चड्डी भी उतार कर उसे नंगा कर दिया व अपनी बनियान उतार कर मैं भी पूरा नंगा होकर उसके बगल में आ कर एक हाथ से उसकी संतरे जैसी चूची को मसलते हुए दूसरी चूची के निप्पल को चुकर चुकर करके चूसने लग गया।
रज़िया की आँखे ज़रूर इस वक़्त बंद थीं परन्तु उसके हाथ मेरे बालों में धीरे धीरे चल रहे थे जो ये साबित कर रहे थे कि वह भी पूरी मस्ती में है। उसकी चूत व मेरा लंड दोनों एक दूसरे के मिलन को धडाधड पानी छोड़ रहे थे।
मैंने भी अब देर करना ठीक नहीं समझा क्योंकि दो बार पहले ही खड़े लण्ड पर धोखा हो चुका था। मैंने उसे बेड पर चित्त लिटा कर उसकी टांगों को फैला कर अपने फनफनाते लंड का सुपाडा उसकी बुर पे टिका कर घिसना शुरू कर दिया। मेरे ऐसा करते ही रज़िया के मुंह से सिसकारियां निकालनी शुरू हो गयीं वह दोनों हाथों से सिर के नीचे रक्खे तकिये को कस कर पकडे धीरे धीरे छटपटा सी रही थी, उसकी चूत की हालत मेरे लंड से भी बद्तर हो रही थी लेकिन शायद अभी कहीं न कहीं थोड़ी बहुत शरम बाकी थी जिससे वह अपनी आँखे व मुंह दोनों बंद किये थी परन्तु उसकी रह रह कर झटके लेती कमर मानों चिल्ला चिल्ला के मेरे लंड से बिसमिल्लाह की गुज़ारिश कर रही थी।
चूंकि मेरी हालत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी सो मैं उसकी चूत पर अपने लंड का सुपाडा टिका कर उसके ऊपर लेट गया और उसकी बगलों में हाथ डाल के उसके कन्धों को कस कर पकड़ लिया। नीचे से वह अपनी चूत उचकाने की कोशिश करके मेरे लंड को अन्दर लेना चाह रही थी चूँकि मैंने उसे कस के दबा रक्खा था सो वह कामयाब नहीं हो पा रही थी।
अपना एक हाथ निकाल कर मैंने उसके घुटने के नीचे लगा कर उसकी टांग को मोड़ कर उसके पेट की तरफ कर दिया, दूसरे पैर को उसने खुद ही ऊपर उठा कर अपनी टांगों को पूरा फैला दिया।
उसकी चूत अब पूरी तरह से उभर कर बाहर उठ गई थी। इस पोजीशन में चोदने से हर ठोकर में लण्ड पूरा जड़ तक चूत में जाता है जिससे चुदाई का भी भरपूर मज़ा मिलता है।
मैंने एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना आधे से ज्यादा लंड उसकी चूत में ठांस दिया। एक पल के लिए रुक कर मैंने रज़िया के चहरे की तरफ़ देखा तो दंग रह गया, उसने न तो आँखे खोली और ना मुंह से आवाज़ निकलने दी। हाँ उसकी आँखों से भल-भल आँसू निकल के तकिये में ज़ज्ब हो रहे थे और वह अपने दांतों से अपने निचले होंठ को कुचले जा रही थी। मैंने अपने लंड को सुपाडे तक पीछे खींचकर फिर से एक ज़ोरदार धक्का से अबकी बार जड़ तक ठांस दिया। आखिर बहुत बर्दाश्त करने के बाद भी उसके गले से एक भारी सी आह s s s निकल गयी।
" बहुत दर्द हो रहा है भाईजान" वह नीचे से छटपटाते हुए रोते रोते बोली
"बस छुटकी बस , हो गया ...... अब दर्द नहीं होगा " मैंने उसके कंधे छोड़ कर अपने दोनों हाथों की उँगलियों की कैंची बनाकर उसमे उसका सिर जकड़ लिया।
वह मेरे नीचे पूरी तरह से बेबस दबी थी और सिर्फ़ उसके हाथ आज़ाद थे, जिनसे वह मेरी पीठ अपने बड़े बड़े नाखूनों की मदद से खुरच रही थी। मैं अपनी जीभ से उसके होठों को चाटते हुए भकाभक अपने लंड को उसकी मांसल व मखमली टाइट चूत में अन्दर बाहर कर रहा था।
शायद रज़िया का दर्द अब कुछ कम हो गया था क्योंकि उसने अपनी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया था व मेरे लंड की हर ठोकर पर नीचे से अपनी चूत उचका कर पूरा का पूरा ठंसवाने की कोशिश कर रही थी।
अब मैं उसके सिर को छोड़ कर दोनों हाथो से चूचियों को कस कर मसलते हुए पूरी ताक़त से रज़िया को चोद रहा था। मज़े की अधिकता के कारण रज़िया की आँखे फिर बंद हो चुकीं थी, अब वह टांगों से मेरी कमर को व हाथों से मेरी पीठ को बुरी तरह से जकड़े नीचे से गांड उचका उचका कर चुदवा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे अपने लंड पर गरमागरम लावा सा महसूस हुआ और रज़िया हाथ पैर ढीले छोड़ कर हांफती हुई टाँगे फैलाये चुदवाती रही लेकिन मुझे अब मज़ा नहीं आ रहा था सो मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर पास पड़े टॉप से उसकी चूत व अपने लंड को ढंग से साफ़ करके फिर चोदना शुरू कर दिया। दीदी की तरह रज़िया बिना नाज़ नखरे दिखाए ज़म के चुद रही थी और सबसे बड़ी बात उसने अपने होठों पर तो जैसे फेवीकोल लगा रक्खा था।
लेकिन दोस्तों मेरी आदत है कि मुझे चुपचाप चोदने में बिलकुल मज़ा नहीं आता सो मैं रज़िया को छेड़ते बोला, "कैसा लग रहा है चुदने में, मज़ा आ रहा है या नहीं"
"हूँ..." कहकर उसने फिर आँखे बंद कर लीं। मेरा लंड उसे पूरी ताक़त से चोद रहा था।
"अरे कुछ तो बोलो, जिससे लगे कि मैं किसी ज़िंदा लौंडिया की चूत में अपना लंड पेल रहा हूँ" -मैंने उसे फिर छेड़ा
"क्या बोलूँ, अब बोलने को बचा ही क्या है, कल रात में दीदी आज मुझे ...... दोनों को तो आप निपटा चुके है" -रज़िया ने उसी तरह आँखे बंद किये ज़बाब दिया, अब वह मुझसे फिर कस कर चिपक गयी थी।
मैंने उसी स्पीड से चोदते हुए कहा, "क्या रज़िया ! ऊपर वाले ने तुम लोगों को चूत इसीलिए दी है कि इसे लंड से चुदवाओ, अरे अगर मैं नहीं चोदता तो कोई और चोदता, चूत बनी ही लंड पिलवाने को है... कोई ऐसी चूत बता दो जो चुदी ना हो" रज़िया ने इस बार कोई ज़बाब नहीं दिया बस मुझसे थोडा और कस कर लिपट गयी।
मुझे अपना अब स्टेशन नज़र आने लगा था सो पूरे शरीर की ताक़त लंड में इकठ्ठी करके दोनों हाथों से चूचियां मसलते हुए मैं उसे चोदने लगा। अचानक हम दोनों के शरीर ने झटका लेते हुए एक साथ ही पानी निकाल दिया और बेड पर पड़े हांफने लगे।
रज़िया इस वक़्त बड़ी नशीली आँखों से मुझे देख रही थी, वह धीरे से करवट लेकर मेरे सीने पर अपना सिर रख मुझसे नंगी ही चिपक कर लेट गयी। यूं तो रज़िया बहुत खूबसूरत नहीं थी लेकिन उसके शरीर की बनावट दीदी से इक्कीस ही थी यह मुझे उसको नंगा देखने पर ही पता लगा। लाइट कलर की बेडशीट पर तकरीबन एक x एक फुट के एरिया में गहरा लाल निशान पड़ा था जो उसकी कुंवारी चूत की सील टूटने की गवाही दे रहा था।
पता नहीं क्यों इस वक़्त मुझे रज़िया पर बहुत ही प्यार आ रहा था जो बिना होठों और जीभ का इस्तेमाल किये सिर्फ नज़रों से ही अपनी दिल की बात मुझसे किये जा रही थी। उसकी आँखों में असीम तृप्ति के भाव थे जैसे किसी बहुत दिन के भूखे शख्श को रोटी की जगह कोई रसगुल्ला खिला दे।
वह धीरे धीरे मेरे सीने को सहलाती हुई मुझसे चिपकी लेटी थी। मैंने भी उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसे अपने ऊपर लिटा लिया। यह जानते हुए भी कि वह मेरी छोटी बहन है मुझे वाकई इस वक़्त उस पर बहुत प्यार आ रहा था रज़िया की चुदाई के बाद मुझे एक असीम तृप्ति का अनुभव हो रहा था।
इतना मज़ा मुझे बहुत दिनों बाद किसी चूत को चोदने में मिला था, वाकई रज़िया की एक एक चीज़ ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत में बनाई थी। चूंकि मैं पूरी रात का जगा हुआ था सो मैं रज़िया को अपने से चिपकाये हुए वैसे ही सो गया। शाम तकरीबन चार बजे भूख के कारण मेरी आँख खुली तो देखा मैं ऊपर वाले कमरे में अकेला ही सो रहा था, रज़िया पता नहीं कब उठ कर नीचे चली गयी थी। मैं भी फटाफट उठ कर नीचे आया तो देखा दीदी नहा धोकर किचिन में कुछ कर रहीं थीं और रज़िया नहा कर अपने गीले बाल ड्रायर से सुखा रही थी।
उसने पिंक कलर का टॉप और पर्पल कलर की लॉन्ग स्कर्ट पहन रखी थी। जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं वो धीरे से शरमा कर मुस्करा दी, उसके चेहरे पर एक अजीब से सुकून का भाव था व उसका रूप और निखर आया था।
contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
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