11-05-2024, 12:52 PM
"अरे हरामी, मेरी गांड़ फट रही है। निकाल बाहर।" वह चिल्लाने लगी लेकिन ऐसी हालत में हम छोड़ देते तो फिर कभी हमको उसकी गांड़ मारने का मौका नहीं मिलता। हम दुबारा धक्का लगाए तो मेरा पूरा लंड अंदर चला गया।
"अरे धोखेबाज। धोखा देकर मेरी गांड़ फाड़ दिया हरामी। छोड़ दो छोड़ दो। यह क्या कर दिया कुत्ता कहीं का।" वह और जोर से चिल्लाए जा रही थी। लेकिन हम जानते थे कि कुछ ही देर में वह शांत हो जाएगी और धीरे धीरे धक्के लगाने से उसकी गांड़ फैल कर ढीली हो जाएगी। वही हुआ।
"धीरज रखिए मैडमजी। अब आपको तकलीफ़ नहीं होगी बल्कि मजा तो अब आएगा।" बोलकर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा और तुम्हारी मां की चूचियों से खेलने लगा। उसकी चूत पर भी उंगली करने लगा। कुछ ही मिनटों में वह शांत हो गई और अपनी गांड़ उछालने लगी। अब हम अपनी मर्जी के मालिक थे।
"अब कैसा लग रहा है मैडमजी?" हम बोले।
"चुप बदमाश। मेरी गांड़ फाड़ कर पूछ रहा है कैसा लग रहा है। चुपचाप चोदता रह कुत्ता कहीं का।" वह बोली। उसकी बोली में कोई गुस्सा नहीं था और ना ही दर्द था। वह तो मजे से गांड़ हिला रही थी। हम को तो अब तेरी मां की गांड़ चोदने का लाईसेंस मिल गया था। हमको तो इतना मज़ा आ रहा था कि पूछो ही मत। फिर क्या था, हम लगे गचागच तेरी मां की गांड़ मारने और तुम्हारी मां सिसकारियां निकालने लगी। करीब दस मिनट में ही तुम्हारी मां झड़ने लगी। हमने चोदने की स्पीड बढ़ा दी और दो मिनट बाद ही मेरा लंड भी अपना माल गिराने लगा। हम दोनों झड़ गए तब तुम्हारी मां हांफती हुई बोली,
"लुच्चा कहीं का। मुझे बुद्धू बना कर मेरी गांड़ मार ली ना?"
"वह सब छोड़िए, अच्छा लगा कि नहीं, यह बताईए?" हम तेरी मां के बगल में लुढ़क कर बोले।
"बहुत अच्छा लगा लेकिन शुरू में तो तुमने मेरी जान ही निकाल दी थी।" वह भी बिस्तर पर पसर कर हांफती हुई बोली।
"पहली बार थी ना इसलिए थोड़ी तकलीफ़ हुई। अब आगे तकलीफ़ नहीं होगी।" हम उसकी गांड़ सहलाते हुए बोले।
"शायद तुम सही बोल रहे हो। तुम बहुत माहिर शिकारी हो। किसका शिकार कैसे करना है बहुत अच्छी तरह से जानते हो। सच में मैं बहुत खुश हुई।"
"हम यही सुनना चाहते थे। तो अब हम चलें मैडमजी?"
"जाओ, लेकिन याद रखना, मेरी बेटी से दूर ही रहना।"
"जी मैडम जी, याद रखेंगे।" हम बोले। फिर वह बोलने लगी कि उसकी डांट से हमको बुरा लगा हो तो माफ कर दें। हम भी बोले कि कौन मां होगी जो ऐसी बात का पता लगने पर गुस्सा नहीं होगी। हम बोले कि गलती किया है तो डांट लगना तो बनता ही है।
वह बोली, "सही बोला। आईंदा ऐसी ग़लती नहीं होनी चाहिए। तुम सिर्फ मेरे हो। समझ गये?'"
"जी मैडम जी समझ गया। आईंदा से ऐसी ग़लती नहीं होगी।" हम बोले।
यह सुनकर मैं हंस पड़ी और बोली, "आईंदा से कैसी गलती नहीं होगी?" मेरी बात सुन कर वह मुझे देखने लगा। उसे मेरी बात समझ नहीं आई। "अरे पागल बुड्ढे, आईंदा से पकड़े जाने की ग़लती मत करना। समझे?"
"समझ गया छुटकी मैडमजी।" वह मुस्कुरा कर बोला। बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला। जो कुछ मैं सुन रही थी वह इतनी उत्तेजक थीं कि आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि मेरी क्या हालत हो रही थी होगी। मैं तन्मयतापूर्वक उसकी बातें सुनती रही और उसकी बातें सुनते-सुनते मेरे कॉलेज जाने का समय हो गया।
"अरे धोखेबाज। धोखा देकर मेरी गांड़ फाड़ दिया हरामी। छोड़ दो छोड़ दो। यह क्या कर दिया कुत्ता कहीं का।" वह और जोर से चिल्लाए जा रही थी। लेकिन हम जानते थे कि कुछ ही देर में वह शांत हो जाएगी और धीरे धीरे धक्के लगाने से उसकी गांड़ फैल कर ढीली हो जाएगी। वही हुआ।
"धीरज रखिए मैडमजी। अब आपको तकलीफ़ नहीं होगी बल्कि मजा तो अब आएगा।" बोलकर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा और तुम्हारी मां की चूचियों से खेलने लगा। उसकी चूत पर भी उंगली करने लगा। कुछ ही मिनटों में वह शांत हो गई और अपनी गांड़ उछालने लगी। अब हम अपनी मर्जी के मालिक थे।
"अब कैसा लग रहा है मैडमजी?" हम बोले।
"चुप बदमाश। मेरी गांड़ फाड़ कर पूछ रहा है कैसा लग रहा है। चुपचाप चोदता रह कुत्ता कहीं का।" वह बोली। उसकी बोली में कोई गुस्सा नहीं था और ना ही दर्द था। वह तो मजे से गांड़ हिला रही थी। हम को तो अब तेरी मां की गांड़ चोदने का लाईसेंस मिल गया था। हमको तो इतना मज़ा आ रहा था कि पूछो ही मत। फिर क्या था, हम लगे गचागच तेरी मां की गांड़ मारने और तुम्हारी मां सिसकारियां निकालने लगी। करीब दस मिनट में ही तुम्हारी मां झड़ने लगी। हमने चोदने की स्पीड बढ़ा दी और दो मिनट बाद ही मेरा लंड भी अपना माल गिराने लगा। हम दोनों झड़ गए तब तुम्हारी मां हांफती हुई बोली,
"लुच्चा कहीं का। मुझे बुद्धू बना कर मेरी गांड़ मार ली ना?"
"वह सब छोड़िए, अच्छा लगा कि नहीं, यह बताईए?" हम तेरी मां के बगल में लुढ़क कर बोले।
"बहुत अच्छा लगा लेकिन शुरू में तो तुमने मेरी जान ही निकाल दी थी।" वह भी बिस्तर पर पसर कर हांफती हुई बोली।
"पहली बार थी ना इसलिए थोड़ी तकलीफ़ हुई। अब आगे तकलीफ़ नहीं होगी।" हम उसकी गांड़ सहलाते हुए बोले।
"शायद तुम सही बोल रहे हो। तुम बहुत माहिर शिकारी हो। किसका शिकार कैसे करना है बहुत अच्छी तरह से जानते हो। सच में मैं बहुत खुश हुई।"
"हम यही सुनना चाहते थे। तो अब हम चलें मैडमजी?"
"जाओ, लेकिन याद रखना, मेरी बेटी से दूर ही रहना।"
"जी मैडम जी, याद रखेंगे।" हम बोले। फिर वह बोलने लगी कि उसकी डांट से हमको बुरा लगा हो तो माफ कर दें। हम भी बोले कि कौन मां होगी जो ऐसी बात का पता लगने पर गुस्सा नहीं होगी। हम बोले कि गलती किया है तो डांट लगना तो बनता ही है।
वह बोली, "सही बोला। आईंदा ऐसी ग़लती नहीं होनी चाहिए। तुम सिर्फ मेरे हो। समझ गये?'"
"जी मैडम जी समझ गया। आईंदा से ऐसी ग़लती नहीं होगी।" हम बोले।
यह सुनकर मैं हंस पड़ी और बोली, "आईंदा से कैसी गलती नहीं होगी?" मेरी बात सुन कर वह मुझे देखने लगा। उसे मेरी बात समझ नहीं आई। "अरे पागल बुड्ढे, आईंदा से पकड़े जाने की ग़लती मत करना। समझे?"
"समझ गया छुटकी मैडमजी।" वह मुस्कुरा कर बोला। बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला। जो कुछ मैं सुन रही थी वह इतनी उत्तेजक थीं कि आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि मेरी क्या हालत हो रही थी होगी। मैं तन्मयतापूर्वक उसकी बातें सुनती रही और उसकी बातें सुनते-सुनते मेरे कॉलेज जाने का समय हो गया।