09-05-2024, 11:33 PM
"बहुत बढ़िया। वैसे धन्यवाद बोलने की जरूरत नहीं है। धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए।"
"किस लिए?"
"तुमने मुझे जिंदगी का मजा लेने के लिए बहुत बढ़िया रास्ता जो दिखा दिया है।"
"ओह, यह आज नहीं तो कल तो होना ही था।" वह अब मुस्कान के साथ बोला।
"होना ही था यह तो सच है। जहां तुम्हारे जैसा आदमी हो, वहां यह नहीं होगा, यह कैसे संभव है। सच बोल रही हूं ना?" मैं बोली।
"वह तो वह तो एक दुर्घटना थी।" वह हकलाते हुए बोला।
"चुप हरामी। दुर्घटना थी। वह तुम्हारे जैसे आदमी के लिए उस परिस्थिति से उत्पन्न, तुम्हारे दिमाग में जो कुत्सित भावना थी उसको अमल में लाने का स्वर्णिम अवसर था, जिसका तुमने बहुत चालाकी और बढ़िया तरीके से लाभ उठाया था। दुर्घटना बोलकर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते हो। सब समझती हूं मैं। दुबारा दुर्घटना मत बोलना मेरे सामने कमीने।" मैं डांटती हुई बोली।
"ठीक है चलो मान लिया। लेकिन उसके बाद जो होता रहा उसका क्या?" वह भी कम ढीठ नहीं था। पूरी तरह अपनी ग़लती नहीं मान रहा था।
"दुर्घटना की आड़ में तुमने जो कुछ किया उसके जिम्मेदार तो तुम हो ही। मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि जो कुछ भी हुआ, उससे मुझे मजा लेने का जो नया रास्ता मिला, उसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद कहना चाहती हूं, और कोई बात नहीं है। उस दिन के बाद जो कुछ होता आया है वह उसी दिन का फल है। मुझे चुदाई के मजे से परिचित कराया और उस समय से मुझे जो चस्का लगा है, उसी के कारण अब मैं तुमसे चुदवा रही हूं। कुछ समझे मेरे प्यारे बुड्ढे चुदक्कड़ जी। अब जाओ और बड़ी मालकिन की 'सेवा' करो और जहां तक तेरे धन्यवाद की बात है तो वह मैं तुझसे बाद में सूद समेत ले लूंगी।" मैं उठ कर उससे लिपट कर चूमते हुए बोली। उससे लिपटने के क्रम में मैं उसके लंड को सहला रही थी।
"हे भगवान, यह क्या है? बिना अंडरवियर के ही हो साले। इतना बड़े लंड के साथ बिना अंडरवियर के आने में शरम नहीं आती है तुम्हें? पूरा खंभा बना हुआ है गधे कहीं के। बहुत बड़े हरामी हो जी। साला पता नहीं कहां से ऐसा गधा सरीखा लंड पाया है। अभी मौका मिलता तो अभिए मुझे चोद लेते, है कि नहीं और मुझे चोद कर ऐसे ही मेरी मां को चोदने चले जाते। साला बेटी को चोद कर मां की चुदाई करता कुत्ता कहीं का। चल चल फूटो जल्दी यहां से, नहीं तो अपनी चूत की खुजली से परेशान मां कहीं तुम्हें खोजती हुई इधर आ गई तो सचमुच तुम तो गये काम से।" मैं बोली। मेरी बात सुन कर घुसा मुस्कुरा उठा।
"अभी जब अंडरवियर उतारना ही है तो फिर पहनने की जरूरत ही क्या है छोटी मैडम। वैसे बोलो तो एक छोटी चुदाई फटाफट वाली कर सकते हैं।" वह थोड़ी शरारत भरे लहजे में बोला।
"भगवान किसी को तेरे जैसा हरामी किसी को न बनाए। (वैसे मन ही मन तो सोच रही थी कि भगवान ऐसा हरामी कुछ चुनिंदा लोगों की ही नसीब में लिखता है) तुझे पता है ना कि कल कैसे मेरी गांड़ छील कर रख दिया? अभी तक गांड़ जल रही है मां के लौड़े। पूरा गांड़ फुला कर रख दिया मादरचोद। अब फूटो यहां से। कल देखती हूं तुमको।" मैं डांटते हुए बोली।
"थैंक्यू" जाते जाते दांत निपोरते हुए थैंक्यू बोलना नहीं भूला कुत्ता कहीं का। उसके निकलते ही जैसे ही मैं दरवाजा बंद कर रही थी, मुझे मां की आवाज सुनाई पड़ी जो शायद अभी अभी ही अपने कमरे से निकली थी और ड्राइंग रूम की तरफ जा रही थी,
"घुसा, कहां हो।"
"जी मैडम जी, हम किचन में हैं।" बहुत जल्दी वह किचन में भी पहुंच गया था। अगर मैं उसे नहीं भगाती तो यह कमीना आज गया था काम से।
"क्या कर रहे हो किचन में अभी तक?"
"जी बर्तन साफ करके रख रहा हूं।"
"ठीक है, किचन का काम खत्म करके मेरे कमरे में पानी पहुंचा देना।" मेरी मां की आवाज सुनाई दी और उसके कदमों की चाप से मैं समझ गई कि वह अपने कमरे की ओर जा रही थी। मैं जानती थी कि उसे किस चीज की प्यास लगी है। घुसा तो उस खास पानी का पूरा टैंकर था। सिर्फ टैंकर ही क्या, अच्छा खासा पानी का जबरदस्त पाईप भी था उसके पास। 'पाईप' घुसेड़ कर दम तक प्यास बुझाने की क्षमता थी उसके अंदर।
"किस लिए?"
"तुमने मुझे जिंदगी का मजा लेने के लिए बहुत बढ़िया रास्ता जो दिखा दिया है।"
"ओह, यह आज नहीं तो कल तो होना ही था।" वह अब मुस्कान के साथ बोला।
"होना ही था यह तो सच है। जहां तुम्हारे जैसा आदमी हो, वहां यह नहीं होगा, यह कैसे संभव है। सच बोल रही हूं ना?" मैं बोली।
"वह तो वह तो एक दुर्घटना थी।" वह हकलाते हुए बोला।
"चुप हरामी। दुर्घटना थी। वह तुम्हारे जैसे आदमी के लिए उस परिस्थिति से उत्पन्न, तुम्हारे दिमाग में जो कुत्सित भावना थी उसको अमल में लाने का स्वर्णिम अवसर था, जिसका तुमने बहुत चालाकी और बढ़िया तरीके से लाभ उठाया था। दुर्घटना बोलकर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते हो। सब समझती हूं मैं। दुबारा दुर्घटना मत बोलना मेरे सामने कमीने।" मैं डांटती हुई बोली।
"ठीक है चलो मान लिया। लेकिन उसके बाद जो होता रहा उसका क्या?" वह भी कम ढीठ नहीं था। पूरी तरह अपनी ग़लती नहीं मान रहा था।
"दुर्घटना की आड़ में तुमने जो कुछ किया उसके जिम्मेदार तो तुम हो ही। मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि जो कुछ भी हुआ, उससे मुझे मजा लेने का जो नया रास्ता मिला, उसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद कहना चाहती हूं, और कोई बात नहीं है। उस दिन के बाद जो कुछ होता आया है वह उसी दिन का फल है। मुझे चुदाई के मजे से परिचित कराया और उस समय से मुझे जो चस्का लगा है, उसी के कारण अब मैं तुमसे चुदवा रही हूं। कुछ समझे मेरे प्यारे बुड्ढे चुदक्कड़ जी। अब जाओ और बड़ी मालकिन की 'सेवा' करो और जहां तक तेरे धन्यवाद की बात है तो वह मैं तुझसे बाद में सूद समेत ले लूंगी।" मैं उठ कर उससे लिपट कर चूमते हुए बोली। उससे लिपटने के क्रम में मैं उसके लंड को सहला रही थी।
"हे भगवान, यह क्या है? बिना अंडरवियर के ही हो साले। इतना बड़े लंड के साथ बिना अंडरवियर के आने में शरम नहीं आती है तुम्हें? पूरा खंभा बना हुआ है गधे कहीं के। बहुत बड़े हरामी हो जी। साला पता नहीं कहां से ऐसा गधा सरीखा लंड पाया है। अभी मौका मिलता तो अभिए मुझे चोद लेते, है कि नहीं और मुझे चोद कर ऐसे ही मेरी मां को चोदने चले जाते। साला बेटी को चोद कर मां की चुदाई करता कुत्ता कहीं का। चल चल फूटो जल्दी यहां से, नहीं तो अपनी चूत की खुजली से परेशान मां कहीं तुम्हें खोजती हुई इधर आ गई तो सचमुच तुम तो गये काम से।" मैं बोली। मेरी बात सुन कर घुसा मुस्कुरा उठा।
"अभी जब अंडरवियर उतारना ही है तो फिर पहनने की जरूरत ही क्या है छोटी मैडम। वैसे बोलो तो एक छोटी चुदाई फटाफट वाली कर सकते हैं।" वह थोड़ी शरारत भरे लहजे में बोला।
"भगवान किसी को तेरे जैसा हरामी किसी को न बनाए। (वैसे मन ही मन तो सोच रही थी कि भगवान ऐसा हरामी कुछ चुनिंदा लोगों की ही नसीब में लिखता है) तुझे पता है ना कि कल कैसे मेरी गांड़ छील कर रख दिया? अभी तक गांड़ जल रही है मां के लौड़े। पूरा गांड़ फुला कर रख दिया मादरचोद। अब फूटो यहां से। कल देखती हूं तुमको।" मैं डांटते हुए बोली।
"थैंक्यू" जाते जाते दांत निपोरते हुए थैंक्यू बोलना नहीं भूला कुत्ता कहीं का। उसके निकलते ही जैसे ही मैं दरवाजा बंद कर रही थी, मुझे मां की आवाज सुनाई पड़ी जो शायद अभी अभी ही अपने कमरे से निकली थी और ड्राइंग रूम की तरफ जा रही थी,
"घुसा, कहां हो।"
"जी मैडम जी, हम किचन में हैं।" बहुत जल्दी वह किचन में भी पहुंच गया था। अगर मैं उसे नहीं भगाती तो यह कमीना आज गया था काम से।
"क्या कर रहे हो किचन में अभी तक?"
"जी बर्तन साफ करके रख रहा हूं।"
"ठीक है, किचन का काम खत्म करके मेरे कमरे में पानी पहुंचा देना।" मेरी मां की आवाज सुनाई दी और उसके कदमों की चाप से मैं समझ गई कि वह अपने कमरे की ओर जा रही थी। मैं जानती थी कि उसे किस चीज की प्यास लगी है। घुसा तो उस खास पानी का पूरा टैंकर था। सिर्फ टैंकर ही क्या, अच्छा खासा पानी का जबरदस्त पाईप भी था उसके पास। 'पाईप' घुसेड़ कर दम तक प्यास बुझाने की क्षमता थी उसके अंदर।