Thread Rating:
  • 3 Vote(s) - 3.33 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery यादों के झरोखे से
#33
Heart 
यह सब देख कर सारी टेंशन भूल कर मेरा लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा। मैंने धीरे से थोड़ी सी करवट लेकर अपने हाथ से दीदी की मक्खन मलाई जैसी गांड को मसलना शुरू कर दिया। अब मेरा लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था , मैंने दीदी का हाथ अपने लंड से हटा कर अपने गले में डाल लिया और पूरी तरह से करवट लेकर अपना लंड उनके दोनों जांघों के जोड़ पर टिका कर रगड़ना शुरू कर दिया। 

दीदी को भी हौले हौले मज़ा आने लगा था सो उन्होंने एक टांग उठा कर मेरी कमर पर चढ़ा ली। अब मेरे लंड को चूत के पूरी तरह से नज़ारे हो गए। मैंने अपने लंड को दीदी की चूत पर टिका कर सुपाडे को चूत में अन्दर बाहर करने लगा। 

मैंने दीदी के रसीले होंठो को चूसते हुए अपनी जीभ दीदी के मुंह में डाल दी , अब दीदी की चूत भी पनीली हो चुकी थी उन्होंने धीरे से आँखे खोलते हुए मेरी जीभ को लोलीपॉप की तरह चूसना शुरू कर दिया। मेरा लंड अब दीदी की चूत को फिर से चोदने के लिए पूरी तरह से तैयार था। 

दीदी भी अपनी चूत को चुदवाने के लिए बेताब नज़र आ रही थी। मैंने भी देर न करते हुए दीदी को अबकी बार घोड़ी बना कर खडा कर दिया और उनके पीछे की तरफ जाकर पनीली चूत पर लंड को टिका कर एक झटके में ठांस दिया। साथ ही उनके चूतरस में अपना अंगूठा गीला करके उनकी गांड में करने लगा।

"अरे बहनचोद! आज तो मज़ा आ गया, चोद मेरे भैय्या और जम के चोद अपनी दीदी की चूत को, फाड़ के रख दे आज तू, अगर मुझे पता होता कि तू मेरी चूत में अपने इस शानदार लंड को ठांसना चाहता है तो मै पहले ही तुझसे चुदवा लेती, पता नहीं कब से मेरी चूत लंड की प्यासी थी मेरे राजा ... आआआह चोद खूब चोद आज तू" -दीदी मस्ती में बडबडाई।

मेरा लंड दीदी की चूत को धकाधक चोद रहा था। थोड़ी देर में अंगूठा आराम से गांड में अंदर बाहर होने लगा तो मैंने दो उंगली घुमाते हुए अंदर बाहर करनी शुरू कर दीं। जिससे उनकी गांड का छेद थोड़ा ढीला हो गया था फिर मैंने दीदी की चूत से लंड को बाहर खींच लिया।

"क्या हुआ बहनचोद! लंड क्यूं बहार निकाल लिया।" दीदी थोडा गुस्से से बोली।

"अरे कुछ नहीं दीदी, ज़रा तुम्हारे दूसरे छेद को ट्राई करने का दिल कर रहा है, तुम बस चुपचाप मज़े लेती रहो” -मैंने दीदी की गांड को थूक से गीला करते हुए कहा।

"क्या बोला भोसड़ी के! तू मेरी गांड मारेगा , नहीं नहीं तेरा ये हलब्बी लंड मेरी गांड बर्दाश्त नहीं कर पायेगी, तू चूत में पेल ना, अब तुझे क्या मेरी चूत में मज़ा नहीं आ रहा है” -दीदी ने अपनी गांड को थोड़ा सा उंचा करके मेरे लंड को दोबारा अपनी चूत में लेने की कोशिश करते हुए कहा।

"तुम बस चुपचाप घोड़ी बनी पिलवाती रहो दीदी और देखती जाओ मै तुम्हे कैसे कैसे मज़े दिलवाता हूँ " -मैंने दीदी की गांड पर अपने लंड का सुपाडा टिकाते हुए कहा। 

मै जानता था कि चूत और गांड बिलकुल डिफरेंट होतीं है सो मैंने दीदी की कमर को कसके पकड़ के अपने तकरीबन एक चौथाई लंड को गांड में ठांस दिया।

"हाय हाय मार डाला इस बहनचोद ने" -यह कह कर दीदी बेड पर उल्टी ही लेट गयी। मैंने भी झट से दीदी की कमर को छोड़ कर उनकी बगल में हाथ डाल कर कंधे जकड लिए और अपने पैरों से उनकी टांगों को चौड़ा कर फैला दिया लेकिन इस उठापटक में मेरा लंड दीदी की गांड से बाहर निकल गया।

"प्लीज! मेरी गांड मत मार, बहुत दर्द हो रहा है... तू मेरी चूत क्यों नहीं मारता है बहनचोद" -दीदी गिडगिडाते हुए बोली लेकिन मेरा लंड दीदी की फुल टायट गांड में जाकर दुबारा घुसने के लिए बुरी तरह फनफना रहा था और दीदी बुरी तरह से जकड़ी मेरे नीचे बेबस भी थी सो मैंने उनकी चीखों पर ध्यान न देते हुए अपने लंड पर थूक लगाकर फिर से उनकी गांड पर टिका कर अबकी बार एक झटके में तकरीबन आधा ठांस दिया।

"हाय हाय कोई मुझे इस बहन के लौड़े से बचाओ, कमीने मेरी गांड फट गयी है मादरचोद, अब तो छोड़ दे" -दीदी मेरे नीचे फडफड़ाने की कोशिश करते हुए चिल्लाई। 

मै तो जैसे बहरा हो गया था। ये मौक़ा मुद्दत बाद मेरे हाथ आया था जिसे मै किसी भी कीमत पर गवां नहीं सकता था सो मैंने उसी पोजीशन में थोड़ी सी कमर उचका कर एक कस के धक्का मार कर पूरा का पूरा लंड दीदी की गांड में ठांस दिया।

"हाय अल्ला , मर गयी ... अरे मादरचोद छोड़ दे, मेरी गांड बुरी तरह से फट गयी है ... ऐसा लग रहा है कि गांड में किसी ने पूरा का पूरा भाला घुसा दिया है ... छोड़ दे बहनचोद ... छोड़ दे" -दीदी अब बुरी तरह से बिलबिला रही थी लेकिन मै जानता था कि उनकी चीखें सुनने वाला वहां कोई नहीं था फिर भी मैने ऐतिहातन एक हाथ से उनके मुँह को दबा कर उनकी गांड मार रहा था।

अब दीदी की गांड पूरी तरह से रवां हो चुकी थी सो वह अब शांत होकर गांड मरवा रही थी। फिर मैंने दीदी की गांड से लंड को बाहर निकाल लिया और उन्हें चित्त लिटा कर उनकी चूत में फिर से पेल दिया। 

दीदी की चूत गांड मरने से भकाभक पानी फ़ेंक रही थी सो मैंने अपने लंड को निकाल कर अपना लंड और उनकी चूत को ढंग से पास पडी नाइटी से पोंछ लिया। अब मैंने दुबारा अपने फनफनाते लंड का सुपाडा दीदी की चूत पर टिका कर एक झटके में पूरा का पूरा लंड जड़ तक ठांस दिया।

"हाय हाय कुत्ते !! आज क्या तू मेरे सारे छेद फाड़ कर ही दम लेगा कमीने ... मादरचोद ... भोसड़ी के ... मुझसे क्या दुश्मनी है जो इतनी बेरहमी से ठोंक रहा है, भले ही मैं सगी नहीं पर हूँ तो तेरी बहन ही" -दीदी फिर से चिल्लाई।

"चिंता मत कर मेरी रानी दीदी ... आज तेरे सारे छेद रवां हो जायेंगे ... तेरी सारी की सारी खुजली मिटा दूंगा" -मैंने दीदी की रसीली मस्त मस्त चूचियों को कस कस के मसलते हुए उनकी चूत की पटरी पर अपने लंड की रेलगाड़ी दौडाते हुए कहा।

"आआआआआह बहनचोद! आज तो तूने वाकई सारे नट बोल्ट ढीले कर दिए कमीने... ऒऒऒओह ... आआआआआह ... हा s s य ... हाआआआय" -कहते हुए दीदी का शरीर अचानक तन कर ढीला पड़ गया, मेरे लंड पर दीदी की चूत ने गरमागरम पानी छोड़ दिया। 

मेरा लंड भी अब फुल स्पीड से दीदी की चूत में अन्दर बाहर हो रहा था , उनकी चूत से पानी रिस रिस कर उनकी गांड के चौड़े छेद में जा रहा था।

पूरे कमरे में सिर्फ फच्च फच्च और मीठी मीठी सिसकियों की आवाज़ें गूंज रहीं थीं। मुझे अब रज़िया की तरफ से भी कोई टेंशन नहीं थी क्योंकि उसे जो देखना था वह देख ही चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि दीदी कि कायदे से जमकर चुदाई हुई है। अब बस उसका कुछ इंतज़ाम करना था इसलिए मैं निश्चिंत होकर दीदी को भकाभक चोद रहा था।

मुझे भी अब अपना स्टेशन नज़र आ गया था सो मेरे लंड ने दीदी की चूत में गाढ़ा गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया। अब हम दोनों ही बुरी तरह से थक कर चूर हो चुके थे। हम दोनों एक दूसरे की बांहों में पड़े हांफ रहे थे फिर कब हम दोनों उसी पोजीशन में सो गए ये पता ही नहीं चला।

हमेशा की तरह सुबह तकरीबन साढ़े छः बजे मेरी आँख खुली तो मैंने देखा दीदी बेड पर हाथ ऊपर को किये टाँगे फैलाये सो रही थी। उनकी बड़ी बड़ी गुलाबी मस्त चूचियां उन्नत पर्वत शिखरों सी मुझे ललकारती लग रहीं थीं। मैंने उठ कर उनकी चूत को इस वक़्त ध्यान से देखा तब पता चला कि रात में जो मैंने बुरी तरह से चोदा था इस वज़ह से वह सूज गयी थी व चारों तरफ खून निकल कर सूख कर चिपका था, थोडा नीचे झुक के देखने पर पता चला कि गांड का छेद अभी तक चौड़ा था।

फिर मैंने अपने लंड पर एक निगाह डाली जो रात की कुश्ती के बाद अब मस्त होकर शांत पड़ा था। मैंने चारों तरफ देखा , हर तरफ सन्नाटा था जिसका मतलब था कि रज़िया अभी तक नीचे नहीं आयी थी। 

मैंने सोच लिया था कि इस रज़िया नाम की मुसीबत का कोई ना कोई हल तो ढूँढना ही पड़ेगा। मैं धीरे से दीदी के बालों को सहलाते हुए उनके होठों को चूसने लगा। दीदी ने कराहते हुए धीरे से आँखे खोल दीं। 

"अब उठ जाओ दीदी , सुबह हो चुकी है। कभी भी कोई आ सकता है"

दीदी भी सारी बात समझते हुए बिना देर लगाए एक झटके में उठ कर बेड से उतर गयीं। जैसे ही उन्होंने बेड से ज़मीन पर पैर रक्खे उनके मुंह से एक चीख सी निकल गयी,
"हाय अल्ला s s s s s s मर गयी" -कहते हुए दीदी फिर से बेड पर धम्म से बैठ गई।

"क्या हुआ दीदी ! सब ठीक तो है" -मैंने दीदी के नंगे बदन को सहलाते हुए पूछा

"क्या खाक़ ठीक है, कमीने पूरी रात चोद चोद के सारे दरवाजे खिड़कियाँ सब तोड़ डाले, कोई भी छेद नहीं छोड़ा तूने हरामी जिसमे अपना लंड न पेला हो और अब पूछता है क्या हुआ दीदी" -दीदी गुस्से और दर्द से भिन्नाते हुए बोली।

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
Like Reply


Messages In This Thread
RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 09-05-2024, 02:57 PM



Users browsing this thread: 10 Guest(s)