08-05-2024, 11:40 AM
मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गयी तो नहाते वक्त मेरा हाथ अपनी चूत पर पड़ी तो सनसना उठी। आज इस चूत में पहली बार एक कृत्रिम लिंग का प्रवेश हुआ था। कृत्रिम लिंग के साथ राधा की चुदाई भला भूलने वाली चीज है? क्या गजब की चुदाई हुई थी मेरी। साली मर्दों को भी फेल करने की क्षमता रखने वाली राधा तो एक नंबर की चुदक्कड़ निकली। इसके साथ ही साथ किसी लड़की को कृत्रिम लिंग से चोदने का वह पहला अनुभव भी कम रोमांचक नहीं था। साली राधा भी मेरी चुदाई का लोहा मान गई होगी। पहली बार किसी लड़की से चुदने और किसी लड़की को चोदने का यह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय दिन बन कर रह गया।
नहा धोकर फ्रेश होकर कपड़े बदलते वक्त मेरे जेहन में घनश्याम और कॉलेज के गेटकीपर रघु का ख्याल आया। दोनों ही मुझे चोदने को लालायित थे। केवल एक उपयुक्त अवसर की जरूरत थी और दोनों के दोनों मेरे शरीर से एकाकार होने में पल भर भी देर करना गंवारा नहीं करते। लेकिन इन दोनों में से पहले कौन बाजी मारने वाला था यह तो आने वाला समय तय करने वाला था। इनमेें बाजी मारने की ज्यादा संभावना घनश्याम की थी। अब आगे क्या होने वाला था यह मुझे बहुत जल्द, कल ही पता चल जाने वाला था।
इतनी कम उम्र में और काफी कम समय में ही मुझे अपने तन के यौनांगों के छेड़छाड़ का जो उत्तेजक और आनंददायक अनुभव मिल गया था उससे मैं अचंभित थी और बहुत खुश भी थी। मेरी सोच में भी काफी परिवर्तन आ गया था। मैं सोच रही थी कि यदि मेरी जिंदगी में यह सब चल रहा है तो निश्चित ही समाज में इस प्रकार का सेक्स संबंध औरों के जीवन में भी चल रहा होगा, जिसका हमें पता नहीं है, इसका साक्षात प्रमाण मेरी सहेलियां थीं। ढंके छिपे ढंग से कितने स्त्री पुरुष विवाहेतर सेक्स संबंध में लिप्त होंगे, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होगा। मेरी मां की तरह कितनी स्त्रियां पराए मर्दों की बांहों में अपनी अतृप्त कामनाओं की तृप्ति ढूंढ़ रही होंगी। कितने अतृप्त पुरुष पराई स्त्रियों के जिस्म में अपनी जिंदगी की खुशी ढूंढ़ रहे होंगे। तभी मुझे ख्याल आया कि मेरे पिता भी, जो इतने लंबे लंबे समय के लिए घर से बाहर रहते हैं, क्या वे अपवाद होंगे? कत्तई नहीं। मैं ने निष्कर्ष यही निकाला कि ढंके छिपे ढंग से ही सही, यह सब सभी जगह चल रहा है। यह सब सोच सोच कर मेरे मन के किसी कोने पर एक अपराधबोध था, वह छूमंतर हो गया। अब मैं खुद को काफी हल्की फुल्की महसूस करने लगी थी।अब मैं बिना किसी अपराधबोध के स्वच्छंदता पूर्वक अपने मनपसंद व्यक्ति के साथ सेक्स संबंध बना कर अपनी काम क्षुधा शांत कर सकती हूं। यह सोच मुझे कितना सुकून दे रहा था मैं बता नहीं सकती।
रात को भोजन के वक्त जब मैं डाइनिंग टेबल पर आई, तबतक मैं काफी बदल चुकी थी। मैं सीधे बिना किसी अपराधबोध के मां की आंखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी और उसी तरह घुसा की आंखों में भी बिना शर्म के आंखें डाल कर बात कर रही थी। एकदम बिंदास। शाम को मैंने जो बातें मां से कही थीं, उस पर शायद मेरी मां ने ठंढे दिमाग से सोचा था होगा, इसलिए वह भी बिल्कुल सामान्य ढंग से बातें कर रही थी, हालांकि मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि अपनी आंखों से उन्होंने जो गंदा दृष्य देखा था, उसे भूल पाना इतना आसान नहीं था। उसे भूलने में समय तो लगना ही था, या शायद ज़िन्दगी भर न भूल पाए, लेकिन समय के साथ उसके चलते हमारे संबंधों की खटास में कमी और धीरे-धीरे खटास पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, इसका मुझे पूर्ण विश्वास था। इसी विश्वास के साथ खाना ख़त्म करके उधर उधर की बातें करने के बाद मैं अपने कमरे में आई। मां भी अपने कमरे में चली गई।
कुछ ही देर बाद मेरे कमरे का दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं जैसे ही दरवाजा खोली तो सामने घुसा को खड़ा पाई। "क्या है?" मैं बोली।
"बस ऐसे ही चला आया, काहे कि आज तुमसे कुछ 'खास बात' हुई नहीं ना।" वह बोलने में संकोच कर रहा था।
"शीईईईई, चुप बेवकूफ, मां सो गयी क्या?" मैं फुसफुसा कर बोली।
"हां छोटी मालकिन" वह भी धीरे से बोला।
"पहले दरवाजा बंद कर मूर्ख आदमी।" मैं बोली।
वह दरवाजा बंद करके मेरी ओर मुखातिब हुआ।
"मां सो गयी क्या?" मैं बोली। मैं जानती थी वह क्या बोलना चाह रहा था।
"हां, बड़ी मालकिन सो गयी है, इसी लिए तो आया।" वह अपने पीछे दरवाजा बंद करके बोला।
"ओके, अब साफ साफ बोलो क्या बात है?" मैं बोली।
"तुमने मुझे बचा लिया उसका धन्यवाद देना था।"
"ऐसे ही धन्यवाद दिया जाता है?" मैं अपने बिस्तर पर बैठते हुए मुस्कुरा कर बोली।
"जानते हैं, लेकिन....."
"ओह, अब झिझकने भी लगे हो?" मैं उसकी खिंचाई करते हुए बोली।
"नहीं ऐसी बात नहीं है। अभी शायद हमको बड़ी मालकिन का बुलावा आ जाएगा। इसलिए सिर्फ मुंह से ही धन्यवाद दे रहे हैं।"
"नहीं तो?" मैं शरारती मुस्कान के साथ बोली। वैसे भी अभी मुझे आराम की जरूरत थी और साथ सेक्स करने की थोड़ी इच्छा थी भी तो मैंने मन को समझा लिया था। मुझे मालूम था कि कल सारी कसर पूरी हो जाएगी।
"नहीं तो इससे धन्यवाद दे देता।" वह थोड़ा झिझका और पैजामे के ऊपर से ही अपने लंड की ओर इशारा करते हुए बोला।
नहा धोकर फ्रेश होकर कपड़े बदलते वक्त मेरे जेहन में घनश्याम और कॉलेज के गेटकीपर रघु का ख्याल आया। दोनों ही मुझे चोदने को लालायित थे। केवल एक उपयुक्त अवसर की जरूरत थी और दोनों के दोनों मेरे शरीर से एकाकार होने में पल भर भी देर करना गंवारा नहीं करते। लेकिन इन दोनों में से पहले कौन बाजी मारने वाला था यह तो आने वाला समय तय करने वाला था। इनमेें बाजी मारने की ज्यादा संभावना घनश्याम की थी। अब आगे क्या होने वाला था यह मुझे बहुत जल्द, कल ही पता चल जाने वाला था।
इतनी कम उम्र में और काफी कम समय में ही मुझे अपने तन के यौनांगों के छेड़छाड़ का जो उत्तेजक और आनंददायक अनुभव मिल गया था उससे मैं अचंभित थी और बहुत खुश भी थी। मेरी सोच में भी काफी परिवर्तन आ गया था। मैं सोच रही थी कि यदि मेरी जिंदगी में यह सब चल रहा है तो निश्चित ही समाज में इस प्रकार का सेक्स संबंध औरों के जीवन में भी चल रहा होगा, जिसका हमें पता नहीं है, इसका साक्षात प्रमाण मेरी सहेलियां थीं। ढंके छिपे ढंग से कितने स्त्री पुरुष विवाहेतर सेक्स संबंध में लिप्त होंगे, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होगा। मेरी मां की तरह कितनी स्त्रियां पराए मर्दों की बांहों में अपनी अतृप्त कामनाओं की तृप्ति ढूंढ़ रही होंगी। कितने अतृप्त पुरुष पराई स्त्रियों के जिस्म में अपनी जिंदगी की खुशी ढूंढ़ रहे होंगे। तभी मुझे ख्याल आया कि मेरे पिता भी, जो इतने लंबे लंबे समय के लिए घर से बाहर रहते हैं, क्या वे अपवाद होंगे? कत्तई नहीं। मैं ने निष्कर्ष यही निकाला कि ढंके छिपे ढंग से ही सही, यह सब सभी जगह चल रहा है। यह सब सोच सोच कर मेरे मन के किसी कोने पर एक अपराधबोध था, वह छूमंतर हो गया। अब मैं खुद को काफी हल्की फुल्की महसूस करने लगी थी।अब मैं बिना किसी अपराधबोध के स्वच्छंदता पूर्वक अपने मनपसंद व्यक्ति के साथ सेक्स संबंध बना कर अपनी काम क्षुधा शांत कर सकती हूं। यह सोच मुझे कितना सुकून दे रहा था मैं बता नहीं सकती।
रात को भोजन के वक्त जब मैं डाइनिंग टेबल पर आई, तबतक मैं काफी बदल चुकी थी। मैं सीधे बिना किसी अपराधबोध के मां की आंखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी और उसी तरह घुसा की आंखों में भी बिना शर्म के आंखें डाल कर बात कर रही थी। एकदम बिंदास। शाम को मैंने जो बातें मां से कही थीं, उस पर शायद मेरी मां ने ठंढे दिमाग से सोचा था होगा, इसलिए वह भी बिल्कुल सामान्य ढंग से बातें कर रही थी, हालांकि मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि अपनी आंखों से उन्होंने जो गंदा दृष्य देखा था, उसे भूल पाना इतना आसान नहीं था। उसे भूलने में समय तो लगना ही था, या शायद ज़िन्दगी भर न भूल पाए, लेकिन समय के साथ उसके चलते हमारे संबंधों की खटास में कमी और धीरे-धीरे खटास पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, इसका मुझे पूर्ण विश्वास था। इसी विश्वास के साथ खाना ख़त्म करके उधर उधर की बातें करने के बाद मैं अपने कमरे में आई। मां भी अपने कमरे में चली गई।
कुछ ही देर बाद मेरे कमरे का दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं जैसे ही दरवाजा खोली तो सामने घुसा को खड़ा पाई। "क्या है?" मैं बोली।
"बस ऐसे ही चला आया, काहे कि आज तुमसे कुछ 'खास बात' हुई नहीं ना।" वह बोलने में संकोच कर रहा था।
"शीईईईई, चुप बेवकूफ, मां सो गयी क्या?" मैं फुसफुसा कर बोली।
"हां छोटी मालकिन" वह भी धीरे से बोला।
"पहले दरवाजा बंद कर मूर्ख आदमी।" मैं बोली।
वह दरवाजा बंद करके मेरी ओर मुखातिब हुआ।
"मां सो गयी क्या?" मैं बोली। मैं जानती थी वह क्या बोलना चाह रहा था।
"हां, बड़ी मालकिन सो गयी है, इसी लिए तो आया।" वह अपने पीछे दरवाजा बंद करके बोला।
"ओके, अब साफ साफ बोलो क्या बात है?" मैं बोली।
"तुमने मुझे बचा लिया उसका धन्यवाद देना था।"
"ऐसे ही धन्यवाद दिया जाता है?" मैं अपने बिस्तर पर बैठते हुए मुस्कुरा कर बोली।
"जानते हैं, लेकिन....."
"ओह, अब झिझकने भी लगे हो?" मैं उसकी खिंचाई करते हुए बोली।
"नहीं ऐसी बात नहीं है। अभी शायद हमको बड़ी मालकिन का बुलावा आ जाएगा। इसलिए सिर्फ मुंह से ही धन्यवाद दे रहे हैं।"
"नहीं तो?" मैं शरारती मुस्कान के साथ बोली। वैसे भी अभी मुझे आराम की जरूरत थी और साथ सेक्स करने की थोड़ी इच्छा थी भी तो मैंने मन को समझा लिया था। मुझे मालूम था कि कल सारी कसर पूरी हो जाएगी।
"नहीं तो इससे धन्यवाद दे देता।" वह थोड़ा झिझका और पैजामे के ऊपर से ही अपने लंड की ओर इशारा करते हुए बोला।