03-05-2024, 04:14 PM
"जी आंटी।" कहकर हमने नमस्ते की मुद्रा में उसकी मां की ओर हाथ जोड़ दिए। उसकी मां को क्या पता था कि अक्ल के मामले शीला ही हम लोगों की गुरु थी। मैं मन ही मन हंसने लगी।
"ओके बाय।" शीला बोली और हमलोग शीला को बाय कहकर वहां से निकल गयीं। उस समय शाम का छः बज रहा था। हमलोगों ने पहले ही अपने अपने घरों में खबर कर दिया था कि आज थोड़ी देर हो जाएगी। जैसे ही शीला के घर से हम बाहर निकले, सामने हमारी कार खड़ी मिली।
"चलो हमारी कार में ही। तुम दोनों को ड्रॉप करते हुए हम चलेंगे।" मैंने रेखा और रश्मि से कहा। रेखा और रश्मि के घर हमारे घर के रास्ते में ही थे। हम तीनों हमारी कार में ही निकल पड़े। घनश्याम ने क्या क्या नहीं सोच रखा था होगा।सोचा था होगा कि मैं अकेली ही होऊंगी और उस अकेले पन का कुछ न कुछ लाभ तो आज जरूर उठाने का मौका मिलेगा लेकिन हम तीन लोगों को एक साथ देख कर उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया होगा। मायूसी उसके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी। मैं तिरछी नजरों से घनश्याम की ओर देखती हुई सामने की सीट पर बैठी और रेखा और रश्मि पीछे की ओर बैठ गयीं। उसी तरह बैठी जैसे मैं कल बैठी थी। मेरी चमकती हुई चिकनी जांघें खुली हुई थीं। बेचारा घनश्याम हवस भरी नज़रों से एक नजर मेरी जांघों को देखा और मन मसोस कर कार स्टार्ट कर दिया। रास्ते में यदा कदा घनश्याम की नजरें रीयर व्यू दर्पण पर भी पड़ रही थीं जिसमें वह रश्मि और रेखा को भी देखे जा रहा था। रश्मि और रेखा ने भी घाट घाट का पानी पिया हुआ था। मर्दों की ऐसी दृष्टि का अर्थ समझना कौन सी बड़ी बात थी। पहले रश्मि का घर पहुंचा।कार से उतरते वक्त रश्मि अर्थपूर्ण दृष्टि से मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। फिर रेखा का घर पहुंचा। रेखा ने इशारे से मुझे कार से उतरने को कहा तो कार से उतर कर जैसे ही उसके पास पहुंची, उसने मेरे कान में जो कुछ कहा उसे सुनकर मैं लाल हो गयी। "जरा संभलकर रहना, तुम्हारा ड्राईवर भी एक नंबर का लौंडियाबाज प्रतीत होता है।" वह बोली थी।
"हट साली, जैसी तू, वैसी ही सोच और वैसी ही दृष्टि है तुम्हारी।" मैं झिड़क कर बोली। हालांकि सच्चाई तो यही थी।
"मानो न मानो, मर्जी तुम्हारी।" कहकर बाय करते हुए वह भी रुखसत हुई।
"हां तो चाचाजी बात क्या है, ऐसे गुमसुम क्यों हैं?" जैसे ही कार स्टार्ट हुई, मैं जानबूझकर छेड़ती हुई बोली।
"कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" वह बोला।
"कुछ तो है। बोलिए ना।" मैं उनकी जांघ पर हाथ रख कर बोली।
"पहले अपना हाथ हटाओ यहां से।"
"कहां से?"
"मेरी जांघ से, और कहां से।"
"और कहां से? पता नहीं है और कहां से? वहां भी हाथ लगा दूंगी।"
"तुम बहुत गड़बड़ कर रही हो।"
"गड़बड़ तो हो चुका है। न मेरे साथ कॉलेज में वह सब होता और न कल आप हमें उस हालत में देखते और न बात यहां तक बढ़ती।"
"तो जो बात कल जहां तक बढ़ी है उसको तुम और आगे तक बढ़ाना चाहती हो?"
"मेरी बात का तो आपको पता ही है, आप बोलिए कहां तक और कब तक आगे बढ़ना चाहते हैं?" मैं उसके जांघ पर हाथ फेरती हुई बोली।
"ज्यादा बनने की कोशिश मत करो, और अपना हाथ दूर रखो नहीं तो ठीक नहीं होगा।"
"क्या ठीक नहीं होगा जरा मैं भी तो सुनूं।"
"मेरा पप्पू जाग जाएगा।"
"जागा तो कल भी था। आज जाग जाएगा तो जागने दो, जाग जाएगा तो क्या हो जाएगा?"
"जाग जाने पर संभलता नहीं है।"
"कल तो संभल गया था। वैसे भी पप्पू तो आपका है, आप संभाल नहीं सकते हैं?"
"पप्पू मेरा है लेकिन जाग जाने के बाद यह आऊट आॉफ कंट्रोल हो जाता है, कल की बात कुछ और थी। समय और मौका रहता तो तुमको पता चल जाता कि यह कितना उधम मचाता है। मुझसे भी नहीं संभलता है।"
"ओह ऐसी बात है? मैं भी कहां संभालने को बोल रही हूं" मैं अब उसकी जांघों के ऊपर हाथ ले जा रही थी।
"ओके बाय।" शीला बोली और हमलोग शीला को बाय कहकर वहां से निकल गयीं। उस समय शाम का छः बज रहा था। हमलोगों ने पहले ही अपने अपने घरों में खबर कर दिया था कि आज थोड़ी देर हो जाएगी। जैसे ही शीला के घर से हम बाहर निकले, सामने हमारी कार खड़ी मिली।
"चलो हमारी कार में ही। तुम दोनों को ड्रॉप करते हुए हम चलेंगे।" मैंने रेखा और रश्मि से कहा। रेखा और रश्मि के घर हमारे घर के रास्ते में ही थे। हम तीनों हमारी कार में ही निकल पड़े। घनश्याम ने क्या क्या नहीं सोच रखा था होगा।सोचा था होगा कि मैं अकेली ही होऊंगी और उस अकेले पन का कुछ न कुछ लाभ तो आज जरूर उठाने का मौका मिलेगा लेकिन हम तीन लोगों को एक साथ देख कर उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया होगा। मायूसी उसके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी। मैं तिरछी नजरों से घनश्याम की ओर देखती हुई सामने की सीट पर बैठी और रेखा और रश्मि पीछे की ओर बैठ गयीं। उसी तरह बैठी जैसे मैं कल बैठी थी। मेरी चमकती हुई चिकनी जांघें खुली हुई थीं। बेचारा घनश्याम हवस भरी नज़रों से एक नजर मेरी जांघों को देखा और मन मसोस कर कार स्टार्ट कर दिया। रास्ते में यदा कदा घनश्याम की नजरें रीयर व्यू दर्पण पर भी पड़ रही थीं जिसमें वह रश्मि और रेखा को भी देखे जा रहा था। रश्मि और रेखा ने भी घाट घाट का पानी पिया हुआ था। मर्दों की ऐसी दृष्टि का अर्थ समझना कौन सी बड़ी बात थी। पहले रश्मि का घर पहुंचा।कार से उतरते वक्त रश्मि अर्थपूर्ण दृष्टि से मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। फिर रेखा का घर पहुंचा। रेखा ने इशारे से मुझे कार से उतरने को कहा तो कार से उतर कर जैसे ही उसके पास पहुंची, उसने मेरे कान में जो कुछ कहा उसे सुनकर मैं लाल हो गयी। "जरा संभलकर रहना, तुम्हारा ड्राईवर भी एक नंबर का लौंडियाबाज प्रतीत होता है।" वह बोली थी।
"हट साली, जैसी तू, वैसी ही सोच और वैसी ही दृष्टि है तुम्हारी।" मैं झिड़क कर बोली। हालांकि सच्चाई तो यही थी।
"मानो न मानो, मर्जी तुम्हारी।" कहकर बाय करते हुए वह भी रुखसत हुई।
"हां तो चाचाजी बात क्या है, ऐसे गुमसुम क्यों हैं?" जैसे ही कार स्टार्ट हुई, मैं जानबूझकर छेड़ती हुई बोली।
"कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" वह बोला।
"कुछ तो है। बोलिए ना।" मैं उनकी जांघ पर हाथ रख कर बोली।
"पहले अपना हाथ हटाओ यहां से।"
"कहां से?"
"मेरी जांघ से, और कहां से।"
"और कहां से? पता नहीं है और कहां से? वहां भी हाथ लगा दूंगी।"
"तुम बहुत गड़बड़ कर रही हो।"
"गड़बड़ तो हो चुका है। न मेरे साथ कॉलेज में वह सब होता और न कल आप हमें उस हालत में देखते और न बात यहां तक बढ़ती।"
"तो जो बात कल जहां तक बढ़ी है उसको तुम और आगे तक बढ़ाना चाहती हो?"
"मेरी बात का तो आपको पता ही है, आप बोलिए कहां तक और कब तक आगे बढ़ना चाहते हैं?" मैं उसके जांघ पर हाथ फेरती हुई बोली।
"ज्यादा बनने की कोशिश मत करो, और अपना हाथ दूर रखो नहीं तो ठीक नहीं होगा।"
"क्या ठीक नहीं होगा जरा मैं भी तो सुनूं।"
"मेरा पप्पू जाग जाएगा।"
"जागा तो कल भी था। आज जाग जाएगा तो जागने दो, जाग जाएगा तो क्या हो जाएगा?"
"जाग जाने पर संभलता नहीं है।"
"कल तो संभल गया था। वैसे भी पप्पू तो आपका है, आप संभाल नहीं सकते हैं?"
"पप्पू मेरा है लेकिन जाग जाने के बाद यह आऊट आॉफ कंट्रोल हो जाता है, कल की बात कुछ और थी। समय और मौका रहता तो तुमको पता चल जाता कि यह कितना उधम मचाता है। मुझसे भी नहीं संभलता है।"
"ओह ऐसी बात है? मैं भी कहां संभालने को बोल रही हूं" मैं अब उसकी जांघों के ऊपर हाथ ले जा रही थी।