03-05-2024, 03:19 PM
(03-05-2024, 03:17 PM)neerathemall Wrote:
अब्बू ने चोद दिया
!!!!!
मैंने गांव के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। मुझे आगे पढ़ने की बहुत इच्छा थी, लेकिन मेरी अम्मी किसी तरह से राजी नहीं हो रही थीं कि मुझे शहर में शिक्षा के लिए भेजा जाए।
तब भी मेरी जिद की वजह से अम्मी अब्बू से बात की। मेरे अब्बू रोजगार के चलते कराची में पिछले 13 से एक चिकित्सा कंपनी में मार्केटिंग पर्सन का काम कर रहे हैं। अम्मी ने अब्बू से कहा कि आप फौजिया को अपने पास बुला लें, इस तरह वह अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी और आपकी भी घर के कामकाज से जान छूट जाएगी।
चूँकि मेरे अब्बू अपनी ड्यूटी के बाद अपने घर का कामकाज खुद ही करते थे, अब्बू ने तुरंत कहा- ठीक है, उसे भेज दो मैं यहाँ उसकी सब व्यवस्था कर दूंगा।
मैं मन ही मन में खुश हो रही थी कि शहर जाऊँगी और कॉलेज में दाखिला लूंगी।
फिर सब तय हुआ और करीब 2 महीने के बाद अब्बू 10 दिन के लिए घर आए और वापसी में मैं भी उनके साथ कराची के लिए रवाना हो गई।
कराची पहुंचने पर पहले तो बहुत खुश हुई लेकिन यहाँ यातायात और भीड़ देखकर मेरा दिल घबरा गया। एक पल को तो मैंने सोचा कि अब्बू से बोलूं कि मुझे वापस भेज दें, लेकिन फिर मैं यह सोच कर चुप हो गई कि कुछ दिनों में इस माहौल की आदी हो जाऊँगी।
यही हुआ भी यहां की चहल-पहल और शोर-शराबे के भी आदी हो गई।
कुछ दिनों के बाद अब्बू ने मेरा एडमिशन एक कॉलेज में करवा दिया। कॉलेज घर से करीब था और मैं नियमित रूप से कॉलेज जाने लगी। शुरू के दिनों में मुझे कुछ समस्या हुई.. लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता मैं इस सबकी आदी हो गई।
अब जिन्दगी की रवायत सी हो गई थी कि कॉलेज से वापस आकर घर की साफ-सफाई करती, जो अब्बू कभी ठीक से नहीं कर पाते थे।
धीरे-धीरे मैंने पूरे क्वार्टर को साफ कर दिया.. इसमें 2 कमरे, किचन और 1 बाथरूम है।
फिर मेरे आग्रह पर अब्बू ने घर का रंग रोशन भी फिर से करा दिया और हमारा घर साफ-सुथरा हो गया।
अब्बू ने यह सब देखा तो वे बहुत खुश हो गए और कहने लगे- यहाँ जीवन बीत गया है.. कभी समय पर खाना भी नहीं खा पाया है, लेकिन तुम्हारे आने से यह घोंसला एक घर बन गया है.. जो पहले केवल एक क्वार्टर था।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और मुझे यहां रहते हुए 7 महीने बीत गए।
इतने समय में, मैंने खुद को काफी बदल लिया था और यहां के रहन-सहन के अनुसार भी ढल चुकी थी। मुझे में यहां आकर कुछ निखार भी आ चुका था। उसी दौरान मैंने नोटिस किया कि अब्बू मुझसे बातें भी अधिक करने लगे थे और वह कोशिश करने लगे थे कि मेरे साथ खाना खाएं, जबकि पहले वह हमेशा कहते थे कि तुम खाना खा लेना.. मेरा नहीं पता मैं कब वापस आ पाऊँगा।
समय बीतता गया और पता भी नहीं चला कि मैं कब सेकंड ईयर में आ गई। सब कुछ सामान्य था। अम्मी से भी दैनिक बात होती रहती थी। अम्मी हमेशा यही कहती थीं कि अब्बू का ख्याल रखना.. वे सारा दिन काम करते हैं, तुम उन्हें समय पर खाना बनाकर देना आदि आदि।
मैं भी यही जवाब देती कि अम्मी मैं यह सब कर रही हूँ। फिर वह कहतीं कि ठीक है.. अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना, जिसके के लिए तुम उधर गई हो.. सब काम दिल लगाकर करना।
मेरा यही जवाब होता कि हाँ अम्मी आप चिंता न करें.. ऐसा ही करूँगी।
यूं ही समय बीतता गया.. फिर अचानक से मैंने नोट किया कि अब्बू काम से लेट आने लगे और कभी-कभी तो मैं सो जाती थी और वे कब आते थे, मुझे पता ही नहीं चलता था।
कुछ दिन यूँ ही गुजर गए।
तब भी मेरी जिद की वजह से अम्मी अब्बू से बात की। मेरे अब्बू रोजगार के चलते कराची में पिछले 13 से एक चिकित्सा कंपनी में मार्केटिंग पर्सन का काम कर रहे हैं। अम्मी ने अब्बू से कहा कि आप फौजिया को अपने पास बुला लें, इस तरह वह अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी और आपकी भी घर के कामकाज से जान छूट जाएगी।
चूँकि मेरे अब्बू अपनी ड्यूटी के बाद अपने घर का कामकाज खुद ही करते थे, अब्बू ने तुरंत कहा- ठीक है, उसे भेज दो मैं यहाँ उसकी सब व्यवस्था कर दूंगा।
मैं मन ही मन में खुश हो रही थी कि शहर जाऊँगी और कॉलेज में दाखिला लूंगी।
फिर सब तय हुआ और करीब 2 महीने के बाद अब्बू 10 दिन के लिए घर आए और वापसी में मैं भी उनके साथ कराची के लिए रवाना हो गई।
कराची पहुंचने पर पहले तो बहुत खुश हुई लेकिन यहाँ यातायात और भीड़ देखकर मेरा दिल घबरा गया। एक पल को तो मैंने सोचा कि अब्बू से बोलूं कि मुझे वापस भेज दें, लेकिन फिर मैं यह सोच कर चुप हो गई कि कुछ दिनों में इस माहौल की आदी हो जाऊँगी।
यही हुआ भी यहां की चहल-पहल और शोर-शराबे के भी आदी हो गई।
कुछ दिनों के बाद अब्बू ने मेरा एडमिशन एक कॉलेज में करवा दिया। कॉलेज घर से करीब था और मैं नियमित रूप से कॉलेज जाने लगी। शुरू के दिनों में मुझे कुछ समस्या हुई.. लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता मैं इस सबकी आदी हो गई।
अब जिन्दगी की रवायत सी हो गई थी कि कॉलेज से वापस आकर घर की साफ-सफाई करती, जो अब्बू कभी ठीक से नहीं कर पाते थे।
धीरे-धीरे मैंने पूरे क्वार्टर को साफ कर दिया.. इसमें 2 कमरे, किचन और 1 बाथरूम है।
फिर मेरे आग्रह पर अब्बू ने घर का रंग रोशन भी फिर से करा दिया और हमारा घर साफ-सुथरा हो गया।
अब्बू ने यह सब देखा तो वे बहुत खुश हो गए और कहने लगे- यहाँ जीवन बीत गया है.. कभी समय पर खाना भी नहीं खा पाया है, लेकिन तुम्हारे आने से यह घोंसला एक घर बन गया है.. जो पहले केवल एक क्वार्टर था।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और मुझे यहां रहते हुए 7 महीने बीत गए।
इतने समय में, मैंने खुद को काफी बदल लिया था और यहां के रहन-सहन के अनुसार भी ढल चुकी थी। मुझे में यहां आकर कुछ निखार भी आ चुका था। उसी दौरान मैंने नोटिस किया कि अब्बू मुझसे बातें भी अधिक करने लगे थे और वह कोशिश करने लगे थे कि मेरे साथ खाना खाएं, जबकि पहले वह हमेशा कहते थे कि तुम खाना खा लेना.. मेरा नहीं पता मैं कब वापस आ पाऊँगा।
समय बीतता गया और पता भी नहीं चला कि मैं कब सेकंड ईयर में आ गई। सब कुछ सामान्य था। अम्मी से भी दैनिक बात होती रहती थी। अम्मी हमेशा यही कहती थीं कि अब्बू का ख्याल रखना.. वे सारा दिन काम करते हैं, तुम उन्हें समय पर खाना बनाकर देना आदि आदि।
मैं भी यही जवाब देती कि अम्मी मैं यह सब कर रही हूँ। फिर वह कहतीं कि ठीक है.. अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना, जिसके के लिए तुम उधर गई हो.. सब काम दिल लगाकर करना।
मेरा यही जवाब होता कि हाँ अम्मी आप चिंता न करें.. ऐसा ही करूँगी।
यूं ही समय बीतता गया.. फिर अचानक से मैंने नोट किया कि अब्बू काम से लेट आने लगे और कभी-कभी तो मैं सो जाती थी और वे कब आते थे, मुझे पता ही नहीं चलता था।
कुछ दिन यूँ ही गुजर गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.