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Adultery मौके पर चौका
#6
Heart 
मैं बोला- "अब आगे भी बोलो क्या चाह्ती हो"

वीणा - "मुझे गलत तो नहीं समझोगे ना…"

मैं - "अब लिख के दूं क्या?" और ये कहते हुए मैं ने अपनी जेब से पेन निकालने का उपक्रम किया।

वीणा - "नहीं रहने दीजिये…!"

मैं- "तो बोलो अब…"

वीणा - "अब मुझे बताओ कि मुझे इस स्थिति में क्या करना चाहिये, या तो मुझे कोई दवा बताओ ताकि सेक्स मुझे परेशान ना करे और या फ़िर इसका कोई समाधान…"

मैं- "दवा की बात तो बेकार है, पैंतीस तक जाते जाते बूढ़ी हो जाओगी और चालीस तक भद्दी भी, हाँ इसके दूसरे इलाज यह हैं कि इसके लिये खिलौने मिल जाते हैं और या फ़िर आप अपने रिश्ते या दोस्ती में किसी को अपना साथी बना लो"

वीणा - "खिलौने तो बेकार हैं, मुझे नहीं पसन्द, अब रही किसी मेरे साथी की बात तो बताओ कि मैं किसको अपना साथी बनाऊं, मेरे कोई सगा देवर नहीं है और हो या नहीं हो, ये क्या विश्वास करूं कि मेरा कोई साथी मुझसे गलत फ़ायदा नहीं उठायेगा, यदि वो मेरी बात को अपने दोस्तों में उछालता है या मुझे अपने किसी और मिलने वाले से जबरदस्ती सेक्स करने के लिये कहता है तो मैं तो मैं, मेरे पति और परिवार की इज्जत का क्या होगा, कैसे विश्वास करूं किसी पर?"

मैं- "कहती तो सही हो लेकिन इसका और कोई क्या इलाज बताऊं, फ़िर कुछ नहीं हो सकता"

वीणा - "हो सकता है बिलकुल हो सकता है। आप मेरे साथी बन जाओ..."

जैसे अचानक कोई बम का धमाका मेरे कानों में हुआ हो। मेरी आंखें फ़टी रह गई और मैं अवाक वीणा को देखने लगा।

वीणा -"सॉरी... सगीर..."

अब मैं सम्हल चुका था, बोला- "नहीं वीणा सॉरी की कोई बात नहीं, वैसे भी मैंने ही तुमको अपनी बात कहने को कहा है, तो तुम बिलकुल बेहिचक कह सकती हो"

फ़िर कुछ पल ठहर कर मैं बोला- "तुम मुझ पर कैसे विश्वास कर सकती हो? अभी कुछ दिन से ही तो जानती हो, ये हमारी दूसरी मुलाकात है फ़िर ये तुम किस प्रकार से कह सकती हो कि मैं तुम्हारी सन्तुष्टि में कामयाब हो जाउंगा और तुमको एक और बार जिल्लत नहीं उठानी पड़ेगी वो भी अस्मत की क़ुरबानी देकर, फ़िर ये बताओ कि मैं… मेरे पास तो यदि कोई भी इस प्रकार की समस्या लेकर आये तो क्या मुझे सभी से सम्बन्ध स्थापित कर लेने चाहियें? और वीणा अब मेरी बात का बुरा मत मानना… मैं भी तो तुमको अभी कुछ ही दिनों से जानता हूँ, पहले देखा तक नहीं… मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं… तुम बताओ कि तुम किस के रेफ़रेन्स से मेरे पास आई हो"

वीणा - "हाय मर जावां, क्या पोइन्ट्स निकाले हैं… अब सुनो, मेरे विश्वास की बात ये है कि जिस भी किसी ने आपके बारे में बताया है मुझे उसकी बातों पर पूरी तरह से विश्वास है कि आप गलत आदमी नहीं हो, मैं उन पर अविश्वास कर ही नहीं सकती और ये आपकी अभी अभी कही आपकी बातें ही साबित करती हैं वरना कोई और होता तो अब तक तो फ़ेवीकोल लगा कर मुझसे चिपक गया होता और सगीर ये भी मेरा विश्वास ही है कि अब के सेक्स में सफ़लता ही होगी और सगीर प्लीज मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ मुझसे रेफ़रेन्स का नाम मत पूछिये, आप भी गोपनीयता का मतलब जानते हैं। हाँ जान पहचान नई है तो आप मेरे घर आते जाते रहिये, हम फ़िर एक दूसरे से कुछ बार मिलते हैं"

मैंने वातावरण को थोड़ा हलका करने की कोशिश की- "इतना मिलने जुलने से तो चाय, ठन्डे का खर्चा बहुत बढ़ जायेगा…"

वीणा - "मैंने आपको बताया ना, पैसों का मुझसे कोई हिसाब नहीं मांगता। बस इस घर के लोगों के पास किसी को भी देने के लिए वक़्त नहीं है"

पता नहीं क्यों मेरा दिमाग इस रिश्ते को आगे बढ़ाने से रोक रहा था पर दिल था कि कह रहा था 'अबे चोद ले, ऐसा माल बार बार नहीं मिलता'... मैं कुछ भी डिसाइड नहीं कर पा रहा था।

फ़िर टालने के लिहाज से बोला- "देखते हैं वीणा, सोचेंगे... लेकिन अपने पति से किसी तरह टाइम लेकर अपना काम चलाती रहो, मुझे तब तक थोड़ा सोचने का समय दो"

उसके बदन से उठाने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी। जिसका असर मेरे पेन्ट में खड़े होते लण्ड से आसानी से लगाया जा सकता था परन्तु मैं किसी भी तरह की की कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था।

"सगीर मुझे पैसों की कोई दिक्कत नहीं है मैं जितना चाहूं खर्च कर सकती हूँ। इसके लिए आज तक किसी ने मुझ से कोई हिसाब नहीं लिया, पर प्लीज़ सगीर मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, ना मत कहना प्लीज़" -वीणा मेरे नज़दीक आकर मुझसे सटकर बैठते बोली

उसकी नाज़ुक बांह मेरी बांह से टच हो रही थी। उसने हल्का सा मेकअप किया हुआ था उसकी चूचियों की गोलाइयाँ पिछली बार की तरह उसकी ब्लाउज से आधी से ज्यादा नुमाया हो रहीं थीं। मेरा लण्ड तो पहले से ही फ़नफनाने लगा था। मुझे लगा यदि मैं थोड़ी देर और बैठा तो शायद इसे यहीं चोद दूंगा।

"ऐसा है वीणा, मुझे थोड़ा समय दो, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा क्या ठीक है और क्या गलत" -मैंने उसके हाथ को अपने दोनों हाथों में लेकर कहा

"ठीक है, जहाँ दो साल वहां दो चार दिन और सही, कोई बात नहीं" -यह कह कर उसने मुझे अपनी बाँहों में लेकर अपना चेहरा मेरे चेहरे के नज़दीक कर दिया।

मेरे लिए इतना इशारा बहुत था, मैंने उसे अपने से चिपका कर उसके होठों पर अपने होठों से एक गाढ़ा चुम्बन देते हुए मैंने धीरे से उसके चूतड़ सहला दिए। उसकी चूचियां ठोस होकर मेरे सीने में गढ़ रहीं थीं। हम दोनों की ही सांसे भारी हो गईं थीं। मुझे अपने लण्ड पर उसकी आग उगलती चूत महसूस हो रही थी।

मैंने उसे बड़े प्यार से अपने से अलग किया क्योंकि मेरे बहकने के पूरे पूरे चांस थे।

"अच्छा वीणा जी, तो क्या मुझे अब इज़ाज़त है?" -मैंने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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Messages In This Thread
मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 03-05-2024, 02:08 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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