02-05-2024, 12:34 PM
सर्द वो एक रात थी,
लन्ड ने मचाई करामात थी।
पड़ोस की आंटी को पटाया था,
उनके भरे बदन का लुफ्त उठाया था।
छत पर उन्हें बुलाया था,
अंधेरे ने साथ निभाया था।
शुरुआत हुई थी होंठो से, फिर मम्मों को जो दबाया था,
उस रात ना जाने कितना आंनद हम दोनों ने पाया था।
उनके रसीले लबों पर मैं भीगी जीभ फेर रहा था,
फिर कोमल बदन को अपनी बाहों में घेर रहा था।
उंगलियां फेर रही थी वो मेरे बालों में,
गर्म हो गए थे हम सर्द रात के उस उजाले में।
हाथों को कमर से सरका जब गांड़ पर टिकाया,
उफ्फ एक कोमल गद्दे सा एहसास सा पाया।
फिर धीरे धीरे जो जो मैनें उनकी गांड़ को रगड़ा,
आंटी की मादक सिसकियों ने लन्ड को करदिया रगड़ा।
लन्ड का एहसास पा, उन्होंने फट से हाथ लगाया,
हाथों में पकड़ फिर प्यार से उसे सहलाया।
जोश में आकर मैंने भी हाथ पजामी में सरकाया,
फिर एक उंगली को उनकी दरार का रास्ता दिखाया।
देखा बिना पैंटी के वो आई थी,
चूचों में दबा एक कॉन्डम भी लाई थी।
खड़े लन्ड को उसने पजामे से बाहर को निकाला,
फिर झट से नीचे बैठा फेरने लगी होठों को उस पर माला।
मैं मदहोशी में आगे को झुक गया,
और लोड़ा पूरा उसके गले तक धुक गया।
पच पच कर आंटी ने जो चुप्पे उस रात लगाए,
वो शायद ही मुझसे कभी भूले जाएं।
थूक से चिपचिपा कर मेरा वो लोड़ा खड़ी होकर वो घूम गई,
इशारा कर गांड़ को चाटने का वो गीले होठों से एक दफा मुझे चूम गई।
मैं गीला लोड़ा ले नीचे को अब घुटनों के बल हो गया,
पजामी को उनकी नीचे सरका उनकी गद्देदार गांड़ पे जैसे सो गया।
लेकर खुश्बू उनकी गांड़ की लगा मैं मुंह उसपर घूमाने,
गरमा गर्म चूदाई के अब पूरे बन चुके ते पयमाने।
अपने दोनो हाथों से मोटी उनकी गांड़ को मैंने जैसे ही खोला,
दरार में जीभ फेर दिल किया के डाल दू बस अब इसमें लोला।
थोड़ा सा उसे चाट कर खड़ा हो उनकी कमर को थोड़ी नीचे झुकाया,
ऐसा कर उनको मैं एक प्रोपर घोड़ी की पोजिशन में लाया।
आंटी ने अपने चूचों से निकाल वो कॉन्डम मुझे थमाया,
मैनें भी मुस्कुराकर फट से लोड़े पर उसे चडाया।
गीले लोड़े को चूत पर सैट कर प्यार से एक धक्का लगाया,
फिर अगले ही पल लोड़े को उनकी डबल रोटी जैसे चूत में पाया।
हाथ रख उनकी कमर पर मैं यूं दबादब धक्के लगाता गया,
अंधेरी उस रात में हमारी चूदाई की कोमल सिसकियां उठाता गया।
कुछ मिनटों तक हम यूंही चूदाई करते रहे,
एक दूजे के हो ठरक को पूरी करते रहे।
ऑर्गेज्म पा वो भी अब शांत हुई,
छत पर जैसे सिस्कियों से अब एकांत हुई।
फिर कपड़े चढ़ा प्यार से हमने एक टाइट हग किया,
फिर मुस्कुराहट के साथ एक दूजे को अलग किया।
आंटी जा फिर अपनी छत की सीढियों पर मुस्कुराती हुई नीचे भाग गई,
इधर आंटी की मुलायम चूत से मेरे जिस्म की ठरक भी भाग गई।
अब जब भी हम मिलते हैं,
चूदाई के फूल खिलते हैं।
कभी अपने घर वो मुझसे चूदवाती है,
तो कभी मेरे घर आ नंगा नाच दिखाती है।
ये किस्सा यूंही चलता रहेगा,
चूदाई का फूल खिलता रहेगा।।।
लन्ड ने मचाई करामात थी।
पड़ोस की आंटी को पटाया था,
उनके भरे बदन का लुफ्त उठाया था।
छत पर उन्हें बुलाया था,
अंधेरे ने साथ निभाया था।
शुरुआत हुई थी होंठो से, फिर मम्मों को जो दबाया था,
उस रात ना जाने कितना आंनद हम दोनों ने पाया था।
उनके रसीले लबों पर मैं भीगी जीभ फेर रहा था,
फिर कोमल बदन को अपनी बाहों में घेर रहा था।
उंगलियां फेर रही थी वो मेरे बालों में,
गर्म हो गए थे हम सर्द रात के उस उजाले में।
हाथों को कमर से सरका जब गांड़ पर टिकाया,
उफ्फ एक कोमल गद्दे सा एहसास सा पाया।
फिर धीरे धीरे जो जो मैनें उनकी गांड़ को रगड़ा,
आंटी की मादक सिसकियों ने लन्ड को करदिया रगड़ा।
लन्ड का एहसास पा, उन्होंने फट से हाथ लगाया,
हाथों में पकड़ फिर प्यार से उसे सहलाया।
जोश में आकर मैंने भी हाथ पजामी में सरकाया,
फिर एक उंगली को उनकी दरार का रास्ता दिखाया।
देखा बिना पैंटी के वो आई थी,
चूचों में दबा एक कॉन्डम भी लाई थी।
खड़े लन्ड को उसने पजामे से बाहर को निकाला,
फिर झट से नीचे बैठा फेरने लगी होठों को उस पर माला।
मैं मदहोशी में आगे को झुक गया,
और लोड़ा पूरा उसके गले तक धुक गया।
पच पच कर आंटी ने जो चुप्पे उस रात लगाए,
वो शायद ही मुझसे कभी भूले जाएं।
थूक से चिपचिपा कर मेरा वो लोड़ा खड़ी होकर वो घूम गई,
इशारा कर गांड़ को चाटने का वो गीले होठों से एक दफा मुझे चूम गई।
मैं गीला लोड़ा ले नीचे को अब घुटनों के बल हो गया,
पजामी को उनकी नीचे सरका उनकी गद्देदार गांड़ पे जैसे सो गया।
लेकर खुश्बू उनकी गांड़ की लगा मैं मुंह उसपर घूमाने,
गरमा गर्म चूदाई के अब पूरे बन चुके ते पयमाने।
अपने दोनो हाथों से मोटी उनकी गांड़ को मैंने जैसे ही खोला,
दरार में जीभ फेर दिल किया के डाल दू बस अब इसमें लोला।
थोड़ा सा उसे चाट कर खड़ा हो उनकी कमर को थोड़ी नीचे झुकाया,
ऐसा कर उनको मैं एक प्रोपर घोड़ी की पोजिशन में लाया।
आंटी ने अपने चूचों से निकाल वो कॉन्डम मुझे थमाया,
मैनें भी मुस्कुराकर फट से लोड़े पर उसे चडाया।
गीले लोड़े को चूत पर सैट कर प्यार से एक धक्का लगाया,
फिर अगले ही पल लोड़े को उनकी डबल रोटी जैसे चूत में पाया।
हाथ रख उनकी कमर पर मैं यूं दबादब धक्के लगाता गया,
अंधेरी उस रात में हमारी चूदाई की कोमल सिसकियां उठाता गया।
कुछ मिनटों तक हम यूंही चूदाई करते रहे,
एक दूजे के हो ठरक को पूरी करते रहे।
ऑर्गेज्म पा वो भी अब शांत हुई,
छत पर जैसे सिस्कियों से अब एकांत हुई।
फिर कपड़े चढ़ा प्यार से हमने एक टाइट हग किया,
फिर मुस्कुराहट के साथ एक दूजे को अलग किया।
आंटी जा फिर अपनी छत की सीढियों पर मुस्कुराती हुई नीचे भाग गई,
इधर आंटी की मुलायम चूत से मेरे जिस्म की ठरक भी भाग गई।
अब जब भी हम मिलते हैं,
चूदाई के फूल खिलते हैं।
कभी अपने घर वो मुझसे चूदवाती है,
तो कभी मेरे घर आ नंगा नाच दिखाती है।
ये किस्सा यूंही चलता रहेगा,
चूदाई का फूल खिलता रहेगा।।।