01-05-2024, 03:30 PM
इस सब वाक़ए ने मेरे लॅंड की हालत और भी ख़राब कर दी थी। मेरी आँखों के सामने सिर्फ़ दीदी की मस्त मस्त चूत घूम रही थी। मैं दीदी को लेकर घर चल दिया। पूरे रास्ते मैं किसी न किसी बहाने से दीदी के शरीर को टच कर रहा था जिसमे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
घर पहुँच कर मैंने रज़िया को बोला कि अब मामी बिलकुल ठीक है तुम निश्चिन्त हो कर अपने एंट्रेंस की तैय्यारी करो। मै और दीदी खाना तैयार करते हैं फिर तीनो लोग मिल कर खाना खाएँगे।
रज़िया बोली- “ठीक है भैय्या! लेकिन आप और दीदी ही खाना खा लेना, मेरी खाना खाने की अभी बिलकुल भी तबियत नहीं है, मै ऊपर वाले कमरे में अपनी पढ़ाई करती हूँ अगर रात में भूख लगी तो मै आकर खा लूंगी, मेरे लिए चार रोटियां केसरोल में छोड़ देना”
यह कहकर रज़िया घूम कर ऊपर जाने वाली सीडियों की तरफ बढ़ गयी। तब मैंने पहली बार रज़िया को गौर से देखा कि वो भी बहुत हसीन और सेक्सी थी, पिंक कलर के स्लीवलेस टॉप और ब्लैक कैपरी में उसकी गदराई हुई मस्त गांड जो उसकी कमर से कम से कम छह इंच उठी हुई थी और तनी हुई चूचियां जैसे चुदाई का खुला निमंत्रण सा दे रही थी जब वह गांड हिलाती सीढियां चढ़ रही थी तो ऐसा लग रहा था कि रज़िया की गांड में कोई छोटी वाली बेरिंग फिट है जिस पर उसकी गांड टिक टाक टिक नाचती है। वो दीदी जितनी अगर सेक्सी नहीं थी तो कुछ कम भी नहीं थी, उसका शरीर किसी भी लंड को बेक़ाबू करने के लिए पर्याप्त था।
उस वक़्त मै अपने आप को किसी ज़न्नत में दो दो परियों के बीच किसी महाराजा के मानिंद महसूस कर रहा था। मैं वहीं दीदी के पास किचिन में ही आ गया। मेरी आँखे उनके रोटियों के लिए आटा बनाते समय ऊपर नीचे होती हुई चूचियो पर ही टिकीं थीं।
जब दोनों हाथो पर जोर देती हुई दीदी नीचे को झुकती थी तो उनकी नारंगी जैसी दूधिया चूचिया कुर्ते के गले से आधे से भी ज्यादा नुमाया हो जाती थी, यहाँ तक कि उनकी ब्लैक ब्रा के कप्स मुझे साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे। मै किचिन के दरवाज़े में खड़ा एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए दीदी की चूचियों के पूरे मज़े ले रहा था।
तभी दीदी रोटियों के लिए आटा तैयार करके बोली- “सग़ीर! मेरे सर में बहुत दर्द होने लगा है जिससे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं पड़ रही है, वैसे भूख भी बहुत लग रही है"
"दीदी तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो, मै तुम्हारे साथ अभी फटाफट रोटियां बनवा लेता हूँ, तुम बेलती जाना और मै गैस पर सेंक लूँगा और अगर तुम कहो तो रज़िया को नीचे बुला लेता हूँ” -मैंने उनका हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा।
दीदी ऊपर उठते हुए अचानक हल्का सा लड़खड़ा गईं, मैने उन्हे एकदम से सहारा देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो उनकी चूची मेरे हाथ में आ गई जिसे मैने बिना मौका गवाए हल्का सा मसल दिया साथ ही ये भी ख़याल रखा कि यह सब अंजाने में हुआ महसूस हो।
वैसे तो मेरी इस हरक़त को दीदी ने नज़र अंदाज़ कर दिया था परंतु मैं जानता था कि नज़र पहचानने के मामले में लड़कियों की सिक्स सेंस बहुत तेज़ होती है। वो समझ गईं थीं कि मेरे मन में उनकी चुदाई का ख़याल चल रहा है मगर मैं भी हार मानने वालों में से नहीं था।
जब मैने रूही आपी जैसी शर्मो हया की मूरत को चोद लिया तो ये क्या चीज़ हैं परंतु शायद मुझे देख कर उनकी चूत में भी सुरसुराहट हो रही थी और मैं भी आपी और हनी को चोद चोद कर इस खेल का माहिर खिलाड़ी बन गया था।
मैने कहा- "तुम तो मेरी सबसे प्यारी और हसीन दीदी हो, बहुत दिनों से आपसे मिलने को दिल कर रहा था पर पढ़ाई और शॉप से बिल्कुल मौका ही नहीं मिल पा रहा था, कितना वक़्त हो गया आप से मिले हुए। वो आपका बात बात पर मुझे हग करना और मेरे गालों पर किस करना आज़ तक मिस करता हूँ"
इतना कह कर मैं दीदी की तरफ देखने लगा। उनका गोरा चेहरा एक दम हया से सिंदूरी हो गया था।
"धत्त... तब तो तू छोटा था....." -उन्होने बिना मेरी तरफ़ देखे शरमाते हुए ज़वाब दिया।
"और... अब...., अब भी तो मैं छोटा ही हूँ" -यह कह कर मैने उन्हे कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमा दिया।
"तब की बात और थी, अब... तो... तू... पूरा मर्द हो गया है..." -उन्होने फिर से नज़र झुका ली।
मैं फूँक फूँक कर कदम रख रहा था, मेरा एक ग़लत कदम सब चौपट कर सकता था।
मैने धीरे से उन्हे अपनी तरफ खींचा तो वो बिना नानुकुर के बिल्कुल मेरे से लग कर खड़ी हो गईं, मुझे अपनी गाड़ी पटरी पर रेंगती लग रही थी और ज़रूरत थी तो बस इसे स्पीड देने की।
"मैं तो आपके लिए हमेशा बच्चा ही रहूँगा दीदी" - मैने उन्हे थोड़ा और अपने से चिपकाते हुए कहा. "सिर्फ़ वही पुरानी किस और हॅग ही तो माँग रहा हूँ" मैने उनके कान में सरगोशी सा करते हुए कहा और धीरे से अपने दोनों हाथों से उनकी कमर को पकड़ कर अपने से बिल्कुल चिपका लिया।
अब उनकी चुचियाँ मेरे सीने से दब गईं थीं, उनके हाथ अभी भी नीचे लटक रहे थे जिन्हे मैने थोड़ा पीछे हट कर अपने कंधों पर रख कर उन्हे पहले से और ज़ोर से कस कर अपने सीने से लगाते हुए कहा, "हाँ, अब किस दो"
दीदी ने धीरे से सिर उठा कर मेरे गाल पर चुम्मी ले ली।
मैने कहा, "अभी तो आपने कहा कि मैं बड़ा हो गया हूँ, फिर भी ये बच्चों वाली चुम्मी?"
"तो.... फिर.....?"
मैने होठों की तरफ इशारा किया और बिना उनके ज़वाब का इंतेज़ार किए मैने अपने होंठ उनके होठों पर चिपका दिए। मैं डर तो रहा था कि कहीं बिदक न जाएँ पर 'जो होगा देखा जाएगा' सोच कर मैने होंठ चिपका दिए थे।
दीदी ने जब कुछ नहीं कहा तो मैने उनके निचले होंठ को धीरे से चूसना शुरू कर दिया साथ ही मेरे हाथ उनकी पीठ पर रेंग रहे थे।
मेरी बाँहों में कसमसाते हुए दीदी बोलीं- "अब छोड़ो मुझे, रज़िया का कोई भरोसा नहीं वो कब आ जाए… और मुझे रोटी भी बनानी है, ११ बज चुके हैं"
"ऊं... हूं... बन जाएँगीं रोटी"
मैं समझ गया कि इस चूत में तो अब लंड जा कर रहेगा क्योंकि उनकी बातों से इतना तो मुझे पता चल ही गया था कि उनकी चूत में भी कीड़े रेंगना शुरू हो गए हैं। मैने उनके दोनों चूतड़ कस कर मसलते हुए उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए।
दीदी ने पेंटी नहीं पहनी थी यह मैं उनके चूतड़ पकड़ते ही समझ गया था। मैं दीदी के दोनों तरबूज़ जैसे चूतड़ मसलते हुए उनके होठों के रस को पी रहा था, चूतड़ मसलते मसलते मैने अपना उंगली उनकी गाँड़ में कर दी, वैसे ही दीदी ने मुझे कस कर अलग करते हुए कहा, "नहीं सग़ीर! ये सब ग़लत है, हमें इतना आगे नहीं बढ़ना चाहिए कि फिर वापस लौटना नामुमकिन हो जाए और फिर ये भी मत भूलो कि मैं भी तुम्हारी बड़ी बहन हूँ, बिल्कुल रूही की तरह दूसरी बात मेरे सिर में बहुत तेज़ दर्द भी हो रहा है, बस किसी तरह रोटी बन जाए फिर मैं आराम करूँगी"
ये पता नहीं लड़कियों की क्या आदत होती है कि जब तक ख़ुद को मज़ा आ रहा होता है तब तक तो ठीक है जैसे ही तुम मज़ा लेना शुरू करो तो एकदम से बिदक जाती हैं और इन्हें अब ये कौन बताए कि मेरी आपी तो सबसे बड़ी लॅंडखोर है। उसका बस चले तो मेरे लॅंड को काट के हमेशा के लिए अपनी चूत में डाल ले। दो दो लॅंड से दिन रात चुदाई होने के बाद भी उनकी चूत की आग शांत नहीं होती है।
ख़ैर नज़ाक़त तो हुस्न का हिस्सा होता है और मैं भी हिम्मत हारने वालों में से नहीं था. वैसे तो हॉस्पिटल से आने के बाद से ही मैने अपनी हरकतों से दीदी की चूत को पनिया दिया था, वो पता इसलिए भी चल रहा था कि थोड़ी थोड़ी देर के बाद दीदी अपनी चूत को रगड़ कर साफ़ हर रहीं थीं।
शायद वो भी समझ रहीं थीं कि आज उनकी चूत जम कर चुदने वाली है, यही सोच सोच कर उनकी साँसें भारी और चेहरा लाल हो जा रहा था।
परंतु मैं चाहता था कि भले ही दीदी मुझसे खुल कर न कहें कि, 'आओ सग़ीर, मेरी चूत में अपना लॅंड पेल दो' लेकिन कम से कम अपनी तरफ से पहल तो करें जिससे फिर मैं खुल कर आगे बढ़ कर उन्हें हचक हचक के चोद सकूँ।
CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All