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Adultery यादों के झरोखे से
#14
Heart 
हम चारो ऐसे ही नंगे सो गए, रात में अचानक मुझे लगा कोई मेरा लॅंड चूस रहा है। इस एहसास से ही मेरा लॅंड फनफ़नाने लगा। मैने आँख खोल कर देखा तो आपी मेरा लॅंड चूस रहीं थीं, शायद वो दो दिन का कोटा पूरा करने के मूड में थीं मैने भी उनको खींच कर अपने बाज़ू में लिटाया और उनकी चूत में अपना लॅंड पेल कर सटासॅट चोदना शुरू कर दिया। मैने सोच लिया था कि आपी को अब कभी भी रोकूंगा नहीं चाहे उनकी चूत का भोसड़ा ही क्यूँ न बन जाए।

मैं पूरी स्पीड से उन्हें चो द रहा था, अचानक आपी की चूत ने पानी छोड़ दिया। मैने अपनी स्पीड और बढ़ा दी और थोड़ी देर में मैने भी अपना सारा माल आपी की चूत में निकाल कर वहीं बगल में गिर कर फिर सो गया।

सुबह जब आँख खुली तो देखा आपी नीचे जा चुकीं थीं, हनी और फरहान नंगे मेरे बाज़ू में सो रहे थे। फरहान का लॅंड पूरा खड़ा तनतना रहा था। मैने अपने लॅंड की तरफ निगाह डाली तो वो भी पूरे परवान पर था।

लुधियाना पहुँच कर क्या मौसम बनता है इसका कोई भरोसा नहीं था। सो मैने धीरे से हनी को अपनी ओर खींच कर उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया, जिससे हनी की भी आँख खुल गई और वो मुस्करा कर मेरा लॅंड सहलाने लगी।

इन तीन चार महीनों में हम चारो ही इतने ज़्यादा चुदक्कड़ हो गए थे कि हर वक़्त लॅंड और चूत के सिवाय कुछ नज़र ही नहीं आता था। जब भी मौका मिलता, चाहे दिन हो या रात हम लोग चुदाई में लग जाते थे। पता नहीं ये कैसा चस्का था कि जितना हम इसमें डूब रहे थे उतना ही हवस और बढ़ती जा रही थी।

हनी की चूत में अपना पानी निकाल कर मैने उसके चूतड़ पर चपत मार के उसे उठ जाने को बोला, साथ ही फरहान को उठाते हुए मैं बाथरूम में घुस गया।

अब्बू जब शाम को घर आए तो ज़ुमेरात को दिन के दो बजे के लगभग जाने वाली लुधियाना सुपर फास्ट ट्रेन की टिकट उनके हाथ में थी।

ज़ुमेरात को नियत समय पर मैं अपनी अम्मी को लेकर स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन समय से आ गई, हम लोग लगभग शाम के सात बजे लुधियाना पहुँच गये। पूरे रास्ते मै दीदी की चूचियों और मस्त चूत के बारे में ही सोचता रहा। अबकी बार मैंने पक्का मन बना लिया था कि मैं दीदी को ज़रूर चोदूंगा। जब हम लुधियाना पहुंचे तो मामू स्टेशन पर हम लोगों को लेने आ गए थे। आखिर मैं शाम ७:४५ तक अपनी प्यारी मस्त दीदी के दीदार को उनके घर पहुँच गया।

मेरी मामी छत पर कपडे उठाने गयी थी, उन्हें जैसे ही हमारे आने की खबर मिली वह तुरंत सारे कपडे लेकर नीचे आने लगी। ज्यादा कपडे होने के कारण उन्हें आगे का कुछ नज़र नहीं आ रहा था। अतः वह सारे कपड़ों के साथ सीडियों से नीचे फिसल कर आ गिरी जिससे उनका सर फट गया।

तुरंत ही सब लोग मामी को लेकर अस्पताल पहुंचे जहाँ डाक्टर ने इलाज करने के बाद कहा, "अब पेशेंट को कोई खतरा तो नहीं है परन्तु इन्हें कम से कम दो दिन तक अस्पताल में ही रखना पड़ेगा क्योंकि सर में बहुत गहरी चोट लगी है”

मामू ने कहा कि वह रात को अस्पताल में ही रुक जाते है बाकी सभी लोग अब घर जाये लेकिन अम्मी ने वही रुकने की जिद की तो आखिर में यह तय हुआ कि मैं और दीदी अब घर जाये और अम्मी व मामू ही अस्पताल में रुक जाते है क्योंकि अब मामी भी पूरे होश में आ चुकी थी।

कहावत है कि अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है। जो आज मुझे बिल्कुल सटीक बैठती लग रही थी। ऊपर वाला भी आज पूरा मेहरबान लग रहा था। मैं इस मौके को किसी भी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। इससे बेहतरीन मौका शायद जीवन में दोबारा नहीं मिलता।

तभी दीदी मुझसे बोली,"सग़ीर! बाइक बहुत धीरे धीरे चलाना, मुझे बहुत डर लगता है" यह सुनकर सब हँसने लगे।

मामू बोले, "बेटा सग़ीर! ये जबसे मेरे साथ बाइक से गिरी है तबसे बहुत डरने लगी है, तुम धीरे धीरे ही ले जाना"

मैंने हामी भर दी और मामू से बाइक की चाभी लेकर दीदी को चलने का इशारा किया। मैं दीदी को मामू की बाइक से लेकर घर चल दिया।

रास्ते में मैंने बाइक की स्पीड थोड़ी तेज़ कर दी जिससे दीदी डर कर मुझ से चिपक कर बोली, "सग़ीर...र…र... अगर तुमने बाइक धीमी नहीं की तो मै कूद जाऊँगी"

मुझे अपनी पीठ पर दीदी की रसीली चूचियां गड़ती सी महसूस हो रही थी जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन फिर भी मैंने बाइक धीमी करते हुए बोला "सॉरी दीदी! मुझे ध्यान नहीं रहा"

"ठीक है, ठीक है लेकिन प्लीज अब बाइक तेज़ मत चलाना" -दीदी बोली लेकिन उन्होने जो पीछे से मुझे कस कर पकड़ कर अपनी चूचियों को मेरी पीठ पर दबा रखा था उन्हे ढीला नहीं किया वो उसी तरह से मुझे पकड़ कर चिपकी रहीं।

मैं जानबूझ कर कभी ब्रेक तो कभी बाइक को गड्ढे में डाल दे रहा था जिससे उनकी चूचिया मेरी पीठ पर बुरी तरह रगड़ खा रहीं थीं। पता नहीं वो जानबूझ कर अपनी चूचियो को मेरी पीठ पर रगड़ रहीं थीं या बेखयाली में था पर कुछ भी हो मुझे मस्त मज़ा आ रहा था, मेरा लंड फुल टाइट होकर फुंफ़कार रहा था। दिल तो कर रहा था कि उनका हाथ पकड़ कर लंड पर रख दूं पर मैं आपी की तरह ही इनको भी आराम से चोदना चाह रहा था। हाँ इतना दिल में पक्का कर लिया था कि बिना चोदे लुधियाना से नहीं जाऊँगा।

रात के साढ़े दस के करीब बज रहे थे, मैने दीदी को बोला कि रास्ते में किसी होटेल से कोई सब्जी पैक करा लेते हैं, घर पर आप और रज़िया (छोटी बहिन) मिल कर सिर्फ़ रोटी बना लेना।

"जैसा तुम ठीक समझो" -दीदी ने वैसे ही चिपके हुए जवाब दिया।

मैने एक होटेल के सामने बाइक रोकी और देखा कि बगल में ही एक मेडिकल स्टोर भी है। मैं जैसे ही बाइक स्टेंड पर लगा कर दुकान की तरफ़ बढ़ा तो देखा एक कुत्ता कुतिया की चूत मारने की फिराक़ में लगा था परन्तु कुतिया उसे चोदने नहीं दे रही थी, हार कर वो उसकी चूत चाटने लगा, अब शायद कुतिया को मज़ा आने लगा था तो वह चुपचाप चटवाने लगी तभी मेरी निगाह कुत्ते के लॅंड पर गई जो गाँठ तक लगभग सात इंच बाहर निकल आया था और अच्छा ख़ासा मोटा भी था।

मैने अचानक दीदी की तरफ देखा तो वह भी बड़ा गौर से देख रहीं थी। मुझसे नज़र मिलते ही वो झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगीं। इसी बीच कुत्ते ने चूत चाटते चाटते अपने दो पैर कुतिया की पीठ पर टिका कर एक ही झटके में आधे के करीब लॅंड कुतिया की चूत में पेल दिया। 

कुतिया के मुँह से बड़ी दर्द भरी 'का...यं...ओ...ओ...' निकल गई पर अब वो थोड़ा आगे बढ़ कर रुक गई। कुत्ते ने अपने लॅंड को चूत से बाहर नहीं निकलने दिया। वो उसी के साथ आगे बढ़ते हुए चोदना शुरू कर दिया।

मैने फिर से दीदी की तरफ देखा तो वो इस चुदाई को बड़े गौर से देख रहीं थी। मैं मुस्कुराते हुए होटेल में अंडा करी का ऑर्डर दिया फिर मेडिकल पर जाकर टाइमिंग बढ़ाने वाली दवा लेकर जब तक वापस आया तो अंडा करी पैक हो चुकी थी।
CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 30-04-2024, 11:06 AM



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