29-04-2024, 11:20 PM
"हे भगवान! यह लड़की देखने में ही मासूम है। साली इस उम्र में ही खूब खेली खाई है।" रेखा मेरी बात सुनकर आश्चर्य से बोली।
"ठीक बोली। लगता है साला इसका नौकर बहुत कुछ सिखा दिया है।" शीला बोली।
"हां और तुम सब लोग तो दूध की धुली हुई हो ना।" मैं चिढ़ कर बोली।
"अब बकवास ही करती रहोगी कि कुछ करोगी भी?' राधा बेकरारी में बोली।
"करती हूं करती हूं। तू पहले कुतिया तो बन।"
"मैं चुदने के लिए तड़प रही हूं। जैसे करना है करो मगर जल्दी करो। लो मैं कुतिया बन गई।" कहकर वह हाथों और घुटनों के बल झुक कर चौपाया बन गई। अब मैं उसके ऊपर पीछे से झुक कर 'अपना लंड' उसकी लसलसी चूत पर रखने लगी। जब 'मेरा लंड' पोजीशन में आया, मैं उसकी कमर पकड़ कर दबाव देने लगी। बड़ा अजीब सा लग रहा था।
"आआआआआहहहहहह....." राधा की आह निकल गई। 'मेरा लंड ' धीरे धीरे सरकता हुआ उसकी चूत पर दाखिल होता चला गया। पूरा 'लंड' उसकी चूत में घुसा कर मुझे तसल्ली हुई कि चलो शुरुआत तो अच्छी तरह से कर दी अब दनादन ठोकना है। राधा भी शायद उसी का इंतजार कर रही थी।
"आआआआआआह बहुत बढ़िया ओओओहहह....चल अब शुरू हो जा।" वह बदहवासी के आलम में बोली।
"हां हां शुरू करती हूं। किसी की चूत में लंड घुसेड़ने का पहला मौका है ना, जरा उस आनंद को ठीक से अनुभव अनुभव तो कर लूं, ठोकाई तो होती ही रहेगी।" मैं किसी लड़की की चुदाई के इस पहले अहसास से रोमांचित होती हुई बोली। कुछ पल मैं उसी अवस्था में स्थिर रह कर उस रोमांचक पलों का रसास्वादन करती रही।
"साली जल्दी कर। मां आ जाएगी तो तेरा यह चूत लंड का खेल और आनंद सब खत्म हो जाएगा।" शीला बोली। उसकी बात सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं राधा को घपाघप ठोकने में जुट गई। शीला की बात सही भी थी। करीब एक घंटा तो हो ही चुका था। मैं ने पीछे से राधा की सख्त चूचियों को मसलते हुए दनादन ठुकाई चालू कर दी।
"आह ओह अरी मां, ओह ठोक री मेरी रानी ठोक। ओह बड़ी मस्त चुदक्कड़ है तू आह ओह....।" इसी प्रकार के उद्गार के साथ वह भी अपनी गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थी। मुझे उसकी चूचियों को मसलते हुए चोदना बड़ा अच्छा लग रहा था। उसकी सिसकारियां और उद्गार मेरा जोश दुगुना करने में सहायक हो रहे थे। मैंने भी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी और तूफानी रफ्तार से चोदने में भिड़ गई। मात्र पांच मिनट में ही राधा का शरीर थरथरा उठा और वह
"आआआआआआह ओओओहहह गयी रेएएएएए गयी मैं.....गयीईईईईई" कहती हुई झड़ने लगी। मैंने एक जोरदार धक्का लगाया और उसके शरीर से चिपक गई। दरअसल हुआ यह कि उसे चोदने के क्रम में कृत्रिम लिंग के पीछे में जो उभार था उसका घर्षण मेरी चूत में होता रहा और उस घर्षण से जो मजा मुझे मिल रहा था, उसके कारण मैं, बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी। यही कारण था कि जब राधा खल्लास हो रही थी तो मैं भी खुद पर से नियंत्रण खो बैठी और मैं भी स्खलन सुख में डूब गयी। राधा मुंह के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और मैं उसी के ऊपर लद गयी। हम दोनों कुत्तों की तरह हांफ रहे थे तभी,
"अरे कहां मर गये सबके सब?'" यह शीला की मां की आवाज थी। हड़बड़ा कर हम सभी अपने अपने कपड़ों की ओर झपटे।
"हां मम्मी, हम सब मेरे कमरे में हैं।" फटाफट अपने कपड़े पहनते हुए शीला बोली। कपड़े पहनने की आपाधापी में उल्टा सीधा जो बन पड़ा, आनन-फानन हमने किसी तरह कपड़े पहन कर अपने आप को दुरुस्त किया।
"यह राधा भी न जाने कहां मर गई है?" मां की दुबारा आवाज आई।
"यह भी हमारे साथ है।" कहकर शीला ने दरवाजा खोला और राधा दौड़ती हुई बाहर निकल गयी। उसके पीछे पीछे हम सब भी बाहर निकल आए।
"देख रही हूं, यह राधा भी तुम्हारी संगति में बिगड़ती जा रही है। मैं घर में नहीं हूं तो इसका मतलब है तू भी काम धाम छोड़ कर शीला के साथ मस्ती करने लगी, गधी कहीं की।" शीला की मां बिगड़ती हुई बोली। शीला की मां की डांट में वह गंभीरता नहीं थी, बस यह एक औपचारिकता मात्र थी। हमें तसल्ली हुई। बाल बाल बचे। अच्छा हुआ सबकुछ निबटने के बाद उसका आगमन हुआ था।
"ठीक बोली। लगता है साला इसका नौकर बहुत कुछ सिखा दिया है।" शीला बोली।
"हां और तुम सब लोग तो दूध की धुली हुई हो ना।" मैं चिढ़ कर बोली।
"अब बकवास ही करती रहोगी कि कुछ करोगी भी?' राधा बेकरारी में बोली।
"करती हूं करती हूं। तू पहले कुतिया तो बन।"
"मैं चुदने के लिए तड़प रही हूं। जैसे करना है करो मगर जल्दी करो। लो मैं कुतिया बन गई।" कहकर वह हाथों और घुटनों के बल झुक कर चौपाया बन गई। अब मैं उसके ऊपर पीछे से झुक कर 'अपना लंड' उसकी लसलसी चूत पर रखने लगी। जब 'मेरा लंड' पोजीशन में आया, मैं उसकी कमर पकड़ कर दबाव देने लगी। बड़ा अजीब सा लग रहा था।
"आआआआआहहहहहह....." राधा की आह निकल गई। 'मेरा लंड ' धीरे धीरे सरकता हुआ उसकी चूत पर दाखिल होता चला गया। पूरा 'लंड' उसकी चूत में घुसा कर मुझे तसल्ली हुई कि चलो शुरुआत तो अच्छी तरह से कर दी अब दनादन ठोकना है। राधा भी शायद उसी का इंतजार कर रही थी।
"आआआआआआह बहुत बढ़िया ओओओहहह....चल अब शुरू हो जा।" वह बदहवासी के आलम में बोली।
"हां हां शुरू करती हूं। किसी की चूत में लंड घुसेड़ने का पहला मौका है ना, जरा उस आनंद को ठीक से अनुभव अनुभव तो कर लूं, ठोकाई तो होती ही रहेगी।" मैं किसी लड़की की चुदाई के इस पहले अहसास से रोमांचित होती हुई बोली। कुछ पल मैं उसी अवस्था में स्थिर रह कर उस रोमांचक पलों का रसास्वादन करती रही।
"साली जल्दी कर। मां आ जाएगी तो तेरा यह चूत लंड का खेल और आनंद सब खत्म हो जाएगा।" शीला बोली। उसकी बात सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं राधा को घपाघप ठोकने में जुट गई। शीला की बात सही भी थी। करीब एक घंटा तो हो ही चुका था। मैं ने पीछे से राधा की सख्त चूचियों को मसलते हुए दनादन ठुकाई चालू कर दी।
"आह ओह अरी मां, ओह ठोक री मेरी रानी ठोक। ओह बड़ी मस्त चुदक्कड़ है तू आह ओह....।" इसी प्रकार के उद्गार के साथ वह भी अपनी गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थी। मुझे उसकी चूचियों को मसलते हुए चोदना बड़ा अच्छा लग रहा था। उसकी सिसकारियां और उद्गार मेरा जोश दुगुना करने में सहायक हो रहे थे। मैंने भी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी और तूफानी रफ्तार से चोदने में भिड़ गई। मात्र पांच मिनट में ही राधा का शरीर थरथरा उठा और वह
"आआआआआआह ओओओहहह गयी रेएएएएए गयी मैं.....गयीईईईईई" कहती हुई झड़ने लगी। मैंने एक जोरदार धक्का लगाया और उसके शरीर से चिपक गई। दरअसल हुआ यह कि उसे चोदने के क्रम में कृत्रिम लिंग के पीछे में जो उभार था उसका घर्षण मेरी चूत में होता रहा और उस घर्षण से जो मजा मुझे मिल रहा था, उसके कारण मैं, बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी। यही कारण था कि जब राधा खल्लास हो रही थी तो मैं भी खुद पर से नियंत्रण खो बैठी और मैं भी स्खलन सुख में डूब गयी। राधा मुंह के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और मैं उसी के ऊपर लद गयी। हम दोनों कुत्तों की तरह हांफ रहे थे तभी,
"अरे कहां मर गये सबके सब?'" यह शीला की मां की आवाज थी। हड़बड़ा कर हम सभी अपने अपने कपड़ों की ओर झपटे।
"हां मम्मी, हम सब मेरे कमरे में हैं।" फटाफट अपने कपड़े पहनते हुए शीला बोली। कपड़े पहनने की आपाधापी में उल्टा सीधा जो बन पड़ा, आनन-फानन हमने किसी तरह कपड़े पहन कर अपने आप को दुरुस्त किया।
"यह राधा भी न जाने कहां मर गई है?" मां की दुबारा आवाज आई।
"यह भी हमारे साथ है।" कहकर शीला ने दरवाजा खोला और राधा दौड़ती हुई बाहर निकल गयी। उसके पीछे पीछे हम सब भी बाहर निकल आए।
"देख रही हूं, यह राधा भी तुम्हारी संगति में बिगड़ती जा रही है। मैं घर में नहीं हूं तो इसका मतलब है तू भी काम धाम छोड़ कर शीला के साथ मस्ती करने लगी, गधी कहीं की।" शीला की मां बिगड़ती हुई बोली। शीला की मां की डांट में वह गंभीरता नहीं थी, बस यह एक औपचारिकता मात्र थी। हमें तसल्ली हुई। बाल बाल बचे। अच्छा हुआ सबकुछ निबटने के बाद उसका आगमन हुआ था।