28-04-2024, 10:39 AM
जब राधा 'अपने लंड' पर दबाव देने लगी तो मेरी चूत का मुंह खुलता चला गया और मैं चीखने लगी और छटपटाने लगी। "आआआआआआह मर गई मर गई, फट गई फट गई, ओओओहहह मेरी चूऊऊऊऊत......" उसी समय एक तरफ से शीला और दूसरी तरफ से रश्मि ने मुझे थाम लिया और मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने लगीं। मैं ऐसा दिखा रही थी मानो ऐसा लंड मेरी चूत में पहली बार घुस रहा हो। रेखा मेरे कंधों को दबा कर मुझे तसल्ली देने लगी, "बस बस हो गया हो गया। अब देख तुझे मजा आएगा।" इधर मुझे भीतर ही भीतर हंसी आ रही थी। धीरे धीरे राधा ने पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।
"आह ओह फट गई फट गई ओह मेरी चूत फट गई।" मैं फिर से दर्द का नाटक करती हुई चीखती रही। मेरी चीख चिल्लाहट को नजरंदाज करके धीरे धीरे राधा ने चोदना आरम्भ कर दिया। उस कृत्रिम लिंग के बाहरी सतह पर चारों तरफ उभरी हुई नसें बनी हुई थीं, जिनके घर्षण से मेरी चूत की संवेदनशील अंदरूनी दीवारों के द्वारा मेरे सारे शरीर और अंतरतम में सुखद और रोमांचक तरंगों का संचार हो रहा था। मुझे अनिर्वचनीय आनंद मिल रहा था क्योंकि मैं उत्तेजना के जिस मुकाम पर थी उस समय मुझे ऐसे ही अद्वितीय लिंग से चुदाई की जरूरत थी। मैं पीड़ा भरी आहें भर रही थी लेकिन मेरी शारीरिक भाषा मेरी आंतरिक स्थिति की चुगली करने लगी थीं। दरअसल मुझसे अब चाह कर भी और ड्रामा नहीं किया जा रहा था और मैं ऐसा दिखाने लगी जैसे अभी अभी ही मेरी चूत उसके लंड के हिसाब से फैल कर लंड को ग्रहण करने में सक्षम हो गई हो और अब मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है। सच कहूं तो उत्तेजना के अतिरेक में मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी थी। राधा के धक्कों का जवाब मैं चूतड़ उछाल उछाल कर देने लगी थी।
"साली नौटंकीबाज झूठ मूठ का नौटंकी कर रही थी। देखो तो कैसे गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही है बुरचोदी।" राधा बोली और अपने धक्कों की रफ्तार बढाती चली गई। गजब की ताकत का प्रदर्शन कर रही थी वह। कस कस कर धक्का लगा रही थी। उसका हर धक्का मुझे आह्लादित कर रहा था और मैं मदहोशी के आलम में सिसकारी निकालने को मजबूर हो गयी। सबको लगने लगा कि अब मैं भी उनकी तरह अच्छी लंडखोर बन गई हूं। लेकिन उन्होंने मेरी चूचियों से खेलना बंद नहीं किया। उन्हें मेरी चूचियों से खेलने में मजा आ रहा था और मुझे भी चुदते हुए अपने नाज़ुक अंगों पर इतने हाथों का स्पर्श बड़ा सुख प्रदान कर रहा था। उत्तेजना के अतिरेक में मैं बहुत जल्द चर्मोत्कर्ष में पहुंच गई और झड़ने लगी।
"ओओओओओ मांआंआंआंआंआं मैं गयीईईईईईई...." आहें भरते हुए मैं राधा से चिपक गई और उस सुखद स्खलन में डूबने उतराने लगी। राधा अब मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमते हुए बोली,
"आआआआआआह लड़की, तुम्हें चोदना सचमुच बड़ा आनंददायक है। मैं बहुत खुश हुई।" मुझे संतुष्ट करके वह हट गई। मैं राधा की चुदाई की कायल हो गई। क्या जबरदस्त चुदाई हुई थी मेरी। मान गयी। बड़ी तबीयत से मेरी ठुकाई करके संतुष्टि की एक अलग ही परिभाषा लिख दी थी मेरे जेहन में। बड़ी जबरदस्त चुदक्कड़ थी। जिस रफ्तार और जिस शक्ति का प्रदर्शन उसने मुझे चोदने में किया था वह मेरे लिए अभूतपूर्व था। सचमुच शीला को नौकरानी के रूप में एक अद्भुत चुदक्कड़ मिली थी। साली हरामजादी बड़ी किस्मत वाली थी जो अपने तन की भूख मिटाने के लिए औरत के रूप में उसे इतनी बढ़िया साधन उपलब्ध हुई थी। उनके बीच इस अनैतिक संबंध पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था। अवश्य ही शीला और उसके बीच में यह सब पहले से चलता आ रहा होगा। सारी व्यवस्था पहले से शीला के पास थी तभी तो वह कृत्रिम लिंग इतनी सुगमतापूर्वक उपलब्ध हुआ और उसका इतनी कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।
अब राधा की नजर रेखा पर पड़ी। वह उसकी दूसरी शिकार थी।
"नहीं नहीं मैं नहीं।" जैसे ही रेखा की नजरें राधा से मिलीं, रेखा की घबराई आवाज आई। राधा ने जिस बेदर्दी से मेरी चुदाई की थी वह उसने अभी अभी खुद अपनी आंखों से देखा था। मेरी चीखों से जरूर वह और भी भयभीत हुई होगी। मैं तो झेल गई, क्या वह झेल पाएगी? यह भय उसे खाए जा रहा था होगा।
"तू क्यों नहीं? साली मेरी कुटाई हो रही थी तो बड़ा मजा आ रहा था ना? अब तू भी भुगत।" मैं रेखा को चिढ़ाती हुई बोली। रेखा चीखती चिल्लाती रही लेकिन उसके साथ भी वही हुआ जो मेरे साथ हुआ था। लेकिन उसे सचमुच में काफी तकलीफ़ हुई थी होगी, तभी तो वह जिबह होती हुई बकरी की तरह काफी देर तक दर्द से चीखती रही और कराहती रही। जहां मेरा छटपटाना दिखावा था वहीं उसका छटपटाना बिल्कुल बनावटी नहीं था। हां यह और बात है कि कुछ देर की चुदाई के बाद रेखा भी मस्ती भरी सीत्कार निकालने लगी। करीब दस मिनट बाद उसका भी काम तमाम हो गया। मेरी तरह वह भी राधा से चिपक कर स्खलित होने लगी और तत्पश्चात लंबी लंबी सांसें लेते हुए निढाल पड़ गयी। यही क्रम रश्मि के साथ, फिर शीला के साथ दुहराया गया। सबको संतुष्ट करके भी राधा की शारीरिक भाषा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वाह क्या दम था साली के अंदर। ऐसा लग रहा था कि अभी भी वह कई लड़कियों को चोद सकती थी।
"हम चारों का तो हो गया लेकिन अब तेरा क्या होगा?" शीला बोली।
"आह ओह फट गई फट गई ओह मेरी चूत फट गई।" मैं फिर से दर्द का नाटक करती हुई चीखती रही। मेरी चीख चिल्लाहट को नजरंदाज करके धीरे धीरे राधा ने चोदना आरम्भ कर दिया। उस कृत्रिम लिंग के बाहरी सतह पर चारों तरफ उभरी हुई नसें बनी हुई थीं, जिनके घर्षण से मेरी चूत की संवेदनशील अंदरूनी दीवारों के द्वारा मेरे सारे शरीर और अंतरतम में सुखद और रोमांचक तरंगों का संचार हो रहा था। मुझे अनिर्वचनीय आनंद मिल रहा था क्योंकि मैं उत्तेजना के जिस मुकाम पर थी उस समय मुझे ऐसे ही अद्वितीय लिंग से चुदाई की जरूरत थी। मैं पीड़ा भरी आहें भर रही थी लेकिन मेरी शारीरिक भाषा मेरी आंतरिक स्थिति की चुगली करने लगी थीं। दरअसल मुझसे अब चाह कर भी और ड्रामा नहीं किया जा रहा था और मैं ऐसा दिखाने लगी जैसे अभी अभी ही मेरी चूत उसके लंड के हिसाब से फैल कर लंड को ग्रहण करने में सक्षम हो गई हो और अब मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है। सच कहूं तो उत्तेजना के अतिरेक में मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी थी। राधा के धक्कों का जवाब मैं चूतड़ उछाल उछाल कर देने लगी थी।
"साली नौटंकीबाज झूठ मूठ का नौटंकी कर रही थी। देखो तो कैसे गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही है बुरचोदी।" राधा बोली और अपने धक्कों की रफ्तार बढाती चली गई। गजब की ताकत का प्रदर्शन कर रही थी वह। कस कस कर धक्का लगा रही थी। उसका हर धक्का मुझे आह्लादित कर रहा था और मैं मदहोशी के आलम में सिसकारी निकालने को मजबूर हो गयी। सबको लगने लगा कि अब मैं भी उनकी तरह अच्छी लंडखोर बन गई हूं। लेकिन उन्होंने मेरी चूचियों से खेलना बंद नहीं किया। उन्हें मेरी चूचियों से खेलने में मजा आ रहा था और मुझे भी चुदते हुए अपने नाज़ुक अंगों पर इतने हाथों का स्पर्श बड़ा सुख प्रदान कर रहा था। उत्तेजना के अतिरेक में मैं बहुत जल्द चर्मोत्कर्ष में पहुंच गई और झड़ने लगी।
"ओओओओओ मांआंआंआंआंआं मैं गयीईईईईईई...." आहें भरते हुए मैं राधा से चिपक गई और उस सुखद स्खलन में डूबने उतराने लगी। राधा अब मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमते हुए बोली,
"आआआआआआह लड़की, तुम्हें चोदना सचमुच बड़ा आनंददायक है। मैं बहुत खुश हुई।" मुझे संतुष्ट करके वह हट गई। मैं राधा की चुदाई की कायल हो गई। क्या जबरदस्त चुदाई हुई थी मेरी। मान गयी। बड़ी तबीयत से मेरी ठुकाई करके संतुष्टि की एक अलग ही परिभाषा लिख दी थी मेरे जेहन में। बड़ी जबरदस्त चुदक्कड़ थी। जिस रफ्तार और जिस शक्ति का प्रदर्शन उसने मुझे चोदने में किया था वह मेरे लिए अभूतपूर्व था। सचमुच शीला को नौकरानी के रूप में एक अद्भुत चुदक्कड़ मिली थी। साली हरामजादी बड़ी किस्मत वाली थी जो अपने तन की भूख मिटाने के लिए औरत के रूप में उसे इतनी बढ़िया साधन उपलब्ध हुई थी। उनके बीच इस अनैतिक संबंध पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था। अवश्य ही शीला और उसके बीच में यह सब पहले से चलता आ रहा होगा। सारी व्यवस्था पहले से शीला के पास थी तभी तो वह कृत्रिम लिंग इतनी सुगमतापूर्वक उपलब्ध हुआ और उसका इतनी कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।
अब राधा की नजर रेखा पर पड़ी। वह उसकी दूसरी शिकार थी।
"नहीं नहीं मैं नहीं।" जैसे ही रेखा की नजरें राधा से मिलीं, रेखा की घबराई आवाज आई। राधा ने जिस बेदर्दी से मेरी चुदाई की थी वह उसने अभी अभी खुद अपनी आंखों से देखा था। मेरी चीखों से जरूर वह और भी भयभीत हुई होगी। मैं तो झेल गई, क्या वह झेल पाएगी? यह भय उसे खाए जा रहा था होगा।
"तू क्यों नहीं? साली मेरी कुटाई हो रही थी तो बड़ा मजा आ रहा था ना? अब तू भी भुगत।" मैं रेखा को चिढ़ाती हुई बोली। रेखा चीखती चिल्लाती रही लेकिन उसके साथ भी वही हुआ जो मेरे साथ हुआ था। लेकिन उसे सचमुच में काफी तकलीफ़ हुई थी होगी, तभी तो वह जिबह होती हुई बकरी की तरह काफी देर तक दर्द से चीखती रही और कराहती रही। जहां मेरा छटपटाना दिखावा था वहीं उसका छटपटाना बिल्कुल बनावटी नहीं था। हां यह और बात है कि कुछ देर की चुदाई के बाद रेखा भी मस्ती भरी सीत्कार निकालने लगी। करीब दस मिनट बाद उसका भी काम तमाम हो गया। मेरी तरह वह भी राधा से चिपक कर स्खलित होने लगी और तत्पश्चात लंबी लंबी सांसें लेते हुए निढाल पड़ गयी। यही क्रम रश्मि के साथ, फिर शीला के साथ दुहराया गया। सबको संतुष्ट करके भी राधा की शारीरिक भाषा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वाह क्या दम था साली के अंदर। ऐसा लग रहा था कि अभी भी वह कई लड़कियों को चोद सकती थी।
"हम चारों का तो हो गया लेकिन अब तेरा क्या होगा?" शीला बोली।