27-04-2024, 05:05 PM
"रोजा को देखो। साली हम सबसे उमर में छोटी है लेकिन यह कुत्ती की बच्ची है हम सबसे ज्यादा सेक्सी। कमीनी बदन भी क्या पाई है मां की लौड़ी। इस उम्र में ही इसकी चूचियों को देखो तो, इतनी बड़ी बड़ी चूचियां कहीं देखी है? कपड़े पहनने के बाद भी आदमी को साफ साफ पता चल जाता होगा कि इसकी ब्लाऊज के अंदर कितना माल भरा पड़ा है। अब देखो तो, अपनी गर्मी रेखा पर कैसे निकाल रही है साली जंगली बिल्ली।" शीला ईर्ष्या से मुझे देखते हुए बोली।
"चूचियां तो चूचियां, इसकी गांड़ देख नहीं रही हो? इतनी बड़ी गांड़ देख कर किस मां के लौड़े का लंड खड़ा नहीं हो जाएगा? जिस आदमी का लंड न खड़ा हो, वह जरूर नामर्द होगा। तभी तो उन बदमाशों ने हमारे बीच में से इसी को चुना था चोदने के लिए। उनके दिमाग में सबसे पहले इसी को चोदने का प्लान आया होगा।" रश्मि बोली। मैं अपने बारे में उनकी ईर्ष्या भरी और प्रशंसात्मक बातें सुनकर सोचने लगी कि जब ये लोग ऐसी बातें कर रहे हैं तो बाकी लोग क्या क्या बातें करते होंगे। मैं खुश तो हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। इसी उत्तेजना का असर था कि मेरे और रेखा के बीच जो कुछ हो रहा था वह खुद ब खुद होता जा रहा था। मेरा हाथ उसके नाज़ुक अंगों पर यंत्रवत विचरण कर रहा था और उसी तरह रेखा भी मेरे तन के यौनांगों से खेल रही थी। हम दोनों बदहवासी की हालत में पहुंच चुके थे और अब आगे क्या करना है यह हमें समझ नहीं आ रहा था। तभी रेखा मेरी एक चूची मुंह में भर कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मेरी दूसरी चूची को मसलने लगी।
"आआआआआआह ओओओहहह पगली कहीं की।" मैं आहें भरने को बाध्य हो गई। मैं भी पागलों की तरह उसकी एक चूची को मसलने लगी और दूसरे हाथ से उसकी चूत रगड़ने लगी। कुछ देर ऐसा ही चलता रहा लेकिन हमें तसल्ली नहीं हो रही थी। उत्तेजना के अतिरेक में मैं पलट गई और उसकी जांघों के बीच सर घुसा कर उसकी चूत पर मुंह रख दी और सटासट चाटने लगी। यह सबकुछ अपने आप हो रहा था। एक स्त्री तन के साथ हम जो कुछ कर सकते थे वह करने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। ऐसा क्या करें कि हमें एक दूसरे के शरीर से और ज्यादा खुशी मिले, उस अतिरिक्त खुशी की तलाश में अनजाने ही नया नया अन्वेषण करते जा रहे थे। मेरी इस क्रिया से रेखा भी पागल हो उठी और वह भी मेरा अनुसरण करती हुई मेरी चूत पर मुंह लगा कर चपाचप चाटने में जुट गई। अब हम 69 की पोजीशन में थे। मेरा सर उसकी जांघों के बीच और उसका सर मेरी जांघों के बीच था। हम पागलों की तरह एक दूसरे की चूत को सड़प सड़प चाट रहे थे और चूस चूस कर लाल कर रहे थे।
"बाप रे बाप, इस कमरे का वातावरण इतना गरम हो चुका है कि मुझे भी उस असह्य गर्मी का अहसास हो रहा है। तुम्हारी क्या हालत है रश्मि?" शीला के गले से फंसी फंसी सी आवाज निकली।
"यह भी बताने की जरूरत है? मैं भी इस तपन को महसूस कर रही हूं। तुम्हें नहीं लगता है कि हमें भी अपने कपड़ों से मुक्त हो जाना चाहिए?" रश्मि झट से बोली और शीला के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही फटाफट मादरजात नंगी हो गई। उसकी चिकनी काया को देख कर शीला भूखी बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी। रश्मि इस अचानक हमले से खुद को संभाल नहीं पाई और धड़ाम से बिस्तर पर उलट गयी।
"साली हरामजादी, बिना कपड़े उतारे ही मुझ पर चढ़ी जा रही है मां की लौड़ी।" कहकर रश्मि, शीला के बदन से कपड़े नोचने लगी। पलक झपकते ही शीला भी नंगी पुंगी हो कर रश्मि के शरीर से गुंथ गयी। अब तो वहां का मंजर और भी उत्तेजक हो गया था। हमें अब कुछ भी होश नहीं था कि कौन किसके साथ क्या कर रहा था। सबको अपनी अपनी हवस की पड़ी थी। यहां जो भी हो रहा था यह समलैंगिक (लेस्बियन ) सेक्स था जिसका रसास्वादन मैं पहली बार अनजाने में कर रही थी। बाकी लोगों के बारे में मुझे पता नहीं। यह सब करते हुए मुझे बड़ा आनन्द का अनुभव हो रहा था लेकिन सोने पर सुहागा हो जाता यदि इस वक्त कोई मर्दाना लंड भी मिल जाता। यह बात मेरे जेहन में उठी ही थी कि फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। हम जिस स्थिति में थे उसी स्थिति में बुत बने रह गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें तभी,
"कौन?" खीझ भरी आवाज शीला की आई।
"मैं हूं, राधा।" बाहर से आवाज आई।
"बड़े मौके पर आई है साली गधी की बच्ची।" शीला बदहवासी के आलम में बोली और तुरंत कूद कर नंगी ही दरवाजा खोलने बढ़ गई। हम सब उसकी बेशर्मी देख कर भौंचक्की रह गये। दरवाजा खोल कर शीला झट से उसे अंदर खींच ली और दरवाजा बंद कर दी। राधा वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गई। कभी वह शीला के नंगे बदन को देखती कभी हमारी बेशर्मी भरी स्थिति को देखती।
"चूचियां तो चूचियां, इसकी गांड़ देख नहीं रही हो? इतनी बड़ी गांड़ देख कर किस मां के लौड़े का लंड खड़ा नहीं हो जाएगा? जिस आदमी का लंड न खड़ा हो, वह जरूर नामर्द होगा। तभी तो उन बदमाशों ने हमारे बीच में से इसी को चुना था चोदने के लिए। उनके दिमाग में सबसे पहले इसी को चोदने का प्लान आया होगा।" रश्मि बोली। मैं अपने बारे में उनकी ईर्ष्या भरी और प्रशंसात्मक बातें सुनकर सोचने लगी कि जब ये लोग ऐसी बातें कर रहे हैं तो बाकी लोग क्या क्या बातें करते होंगे। मैं खुश तो हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। इसी उत्तेजना का असर था कि मेरे और रेखा के बीच जो कुछ हो रहा था वह खुद ब खुद होता जा रहा था। मेरा हाथ उसके नाज़ुक अंगों पर यंत्रवत विचरण कर रहा था और उसी तरह रेखा भी मेरे तन के यौनांगों से खेल रही थी। हम दोनों बदहवासी की हालत में पहुंच चुके थे और अब आगे क्या करना है यह हमें समझ नहीं आ रहा था। तभी रेखा मेरी एक चूची मुंह में भर कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मेरी दूसरी चूची को मसलने लगी।
"आआआआआआह ओओओहहह पगली कहीं की।" मैं आहें भरने को बाध्य हो गई। मैं भी पागलों की तरह उसकी एक चूची को मसलने लगी और दूसरे हाथ से उसकी चूत रगड़ने लगी। कुछ देर ऐसा ही चलता रहा लेकिन हमें तसल्ली नहीं हो रही थी। उत्तेजना के अतिरेक में मैं पलट गई और उसकी जांघों के बीच सर घुसा कर उसकी चूत पर मुंह रख दी और सटासट चाटने लगी। यह सबकुछ अपने आप हो रहा था। एक स्त्री तन के साथ हम जो कुछ कर सकते थे वह करने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। ऐसा क्या करें कि हमें एक दूसरे के शरीर से और ज्यादा खुशी मिले, उस अतिरिक्त खुशी की तलाश में अनजाने ही नया नया अन्वेषण करते जा रहे थे। मेरी इस क्रिया से रेखा भी पागल हो उठी और वह भी मेरा अनुसरण करती हुई मेरी चूत पर मुंह लगा कर चपाचप चाटने में जुट गई। अब हम 69 की पोजीशन में थे। मेरा सर उसकी जांघों के बीच और उसका सर मेरी जांघों के बीच था। हम पागलों की तरह एक दूसरे की चूत को सड़प सड़प चाट रहे थे और चूस चूस कर लाल कर रहे थे।
"बाप रे बाप, इस कमरे का वातावरण इतना गरम हो चुका है कि मुझे भी उस असह्य गर्मी का अहसास हो रहा है। तुम्हारी क्या हालत है रश्मि?" शीला के गले से फंसी फंसी सी आवाज निकली।
"यह भी बताने की जरूरत है? मैं भी इस तपन को महसूस कर रही हूं। तुम्हें नहीं लगता है कि हमें भी अपने कपड़ों से मुक्त हो जाना चाहिए?" रश्मि झट से बोली और शीला के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही फटाफट मादरजात नंगी हो गई। उसकी चिकनी काया को देख कर शीला भूखी बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी। रश्मि इस अचानक हमले से खुद को संभाल नहीं पाई और धड़ाम से बिस्तर पर उलट गयी।
"साली हरामजादी, बिना कपड़े उतारे ही मुझ पर चढ़ी जा रही है मां की लौड़ी।" कहकर रश्मि, शीला के बदन से कपड़े नोचने लगी। पलक झपकते ही शीला भी नंगी पुंगी हो कर रश्मि के शरीर से गुंथ गयी। अब तो वहां का मंजर और भी उत्तेजक हो गया था। हमें अब कुछ भी होश नहीं था कि कौन किसके साथ क्या कर रहा था। सबको अपनी अपनी हवस की पड़ी थी। यहां जो भी हो रहा था यह समलैंगिक (लेस्बियन ) सेक्स था जिसका रसास्वादन मैं पहली बार अनजाने में कर रही थी। बाकी लोगों के बारे में मुझे पता नहीं। यह सब करते हुए मुझे बड़ा आनन्द का अनुभव हो रहा था लेकिन सोने पर सुहागा हो जाता यदि इस वक्त कोई मर्दाना लंड भी मिल जाता। यह बात मेरे जेहन में उठी ही थी कि फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। हम जिस स्थिति में थे उसी स्थिति में बुत बने रह गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें तभी,
"कौन?" खीझ भरी आवाज शीला की आई।
"मैं हूं, राधा।" बाहर से आवाज आई।
"बड़े मौके पर आई है साली गधी की बच्ची।" शीला बदहवासी के आलम में बोली और तुरंत कूद कर नंगी ही दरवाजा खोलने बढ़ गई। हम सब उसकी बेशर्मी देख कर भौंचक्की रह गये। दरवाजा खोल कर शीला झट से उसे अंदर खींच ली और दरवाजा बंद कर दी। राधा वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गई। कभी वह शीला के नंगे बदन को देखती कभी हमारी बेशर्मी भरी स्थिति को देखती।