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Adultery चित्रा और मैं (जिस्मो की आग)
#11
इतना सब कुछ इतनी जल्दी हम दोनों के साथ हो गया था कि दोनों की साँस में साँस आने में समय लगा। इससे पहले कि हम और कुछ बात करते दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने जाकर देखा तो पड़ोस वाली आंटी आयी थीं यह बताने कि उनके घर में फ़ोन करके मेरे पापा ने उनको बताया है कि वो लोग रात को डिनर के बाद तक ही आएंगे, और चित्रा और में उनके आने का इंतज़ार तब तक ना करें।

हम वापस आ कर बैठ गए, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा रिलैक्स्ड थे, और खूब सारी बातें करने के मूड में थे। इस बार मैं पहले बोला “चित्रा बहन आपको—” मेरा इतना कहना था कि चित्रा मेरी बात काटते बोल पड़ी “ये क्या आप-आप लगा रखी है तुमने? बंद करो ये फॉर्मेलिटी और मुझे चित्रा या ‘तुम’ ही बुलाया करो ” “ओके” मैं बोला, “यह बताना चाहता था कि आज मैंने तुम्हें बाथरूम के दरवाज़े की दरार से झाँक कर नंगा नहाते हुए देखा था।”

वह हंसी और बोली “अच्छा तो बताओ क्या देखा तुमने?” मैंने कहा “तुम तो बहुत ही अनोखे तरीके से मास्टरबेट कर रही थीं यार, बिल्कुल बिना हाथ लगाए अपनी चूत को, नहाने के बहाने बाथरूम में बैठी। कैसे सीखा ये तरीका?” “अरे ये तो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है तुम लड़कों के लिए।

चूत में जो सही जगह नल से पानी की धार गिराने में मज़ा आता है और कितनी देर तक आता रहता है इसका अंदाज़ तो सिर्फ खुद लड़की या फिर उसको बेहद प्यार करने वाला और मज़ा दिलाने में ही मज़ा लेने वाला लड़का ही जान सकता है” चित्रा ने मुझे समझाया।

“ओह्ह्ह्ह यह तो मुझे भी तुमसे सीखना पड़ेगा, सिखाओगी ना?” मैंने कहा। “ओके” चित्रा बोली “लेकिन पहले ज़रा खड़े होकर मेरे सामने तो आओ। और ये जान लो की मैंने भी उसी दरार से तुम्हें भी नंगा और लौड़े पर साबुन लगाते हुए भी देखा है। और जैसे मैंने कहा था, अब सब कुछ खुल्लम-खुल्ला भी देखने वाली हूँ।” मैं तो हैरान था कि चित्रा ने यह सब कुछ कह भी दिया बिना किसी संकोच के, और मुझसे कहलवा भी लिया, जैसे रिहर्सल करके ही आयी हो यहाँ।

मैं जा खड़ा हुआ उसके सामने तो चित्रा ने पहले मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरे होठों पर किस किया। फिर अपना चेहरा हटा कर बोली “कैसा लगा?” मेरा तो सर चकरा सा गया था! मैंने बिना कुछ बोले उसे ठीक उसकी तरह बस किस कर लिया फिरसे। “ओह, इसका मतलब अच्छा लगा तुम्हें। पता है, मैंने पहली बार किसी को होठों पर चूमा है?” मैंने भी अपना हाथ खड़ा करके कहा “मेरी भी पहली किस थी यह।” “चाचा और चाची तो डिनर तक आएंगे, तब तक और खुल्लम-खुल्ला मस्ती करें?” चित्रा ने पूछा।

मैंने हिम्मत करके जवाब में चित्रा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा, और उसके एक मम्मे पर अपना हाथ रख दिया। फुल मज़े लेने के मूड में चित्रा ने खुद ही मेरा दूसरा हाथ अपने दूसरे मम्मे पर रखते हुए बोली “लो दबा लो इन्हें मेरे मम्मों को।” मैंने उन्हें दबाया तो लौड़े पर असर होना ही था, तो मेरी पैंट पर तम्बू बनते हुए उसने देखा, और मेरी पैंट और ढीली चड्डी उतार दी। और मुझसे मेरी शर्ट और बनियान भी उतरवा दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: चित्रा और मैं (जिस्मो की आग) - by neerathemall - 27-04-2024, 12:55 AM



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