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Adultery चित्रा और मैं (जिस्मो की आग)
#10
चित्रा काफ़ी मिन्नतें सी करती हुई बोली “यार तुम तो मुझे अभी ठीक से पहचाने ही नहीं हो। एडल्ट टॉपिक्स पर तो मैं और मेरी फ्रेंड्स भी बातें करते हैं और उस तरह की बातों में ही तो मन लगा रहता है ना। अब मैं चाची से तो ये सब बातें कर नहीं सकती, और बचे एक तुम।

और फिर तुम हो भी तो इतने हैंडसम और थोड़े से दुष्ट भी, तुम भी नहीं बताओगे तो मैं कहाँ जाउंगी? तुमसे मिलते ही मुझे तो लगने लगा था कि यहां तुम्हारे साथ मज़े से यह बोर्ड एग्जाम तक का टाइम कट जाएगा, और तुम्हें तो लग रहा है कि मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी ”

चित्रा ने रुआंसी सी शक्ल बना कर बोला। मुझे उस पर तरस आ गया और सबसे ज़्यादा मज़ा तो यह सुन कर आया था कि उसे भी एडल्ट और उस तरह की बातों में ही तो मज़ा आता था।

मैंने खड़ा हो कर एक हाथ चित्रा के कंधे पर रख के बोला “आप यहां थोड़े दिन के लिए ही आई हो, मुझसे बड़ी हो, और मैं आपको खुश ही देखना चाहता हूँ। और आप खुद ही कह रही हो कि मेरी शिकायत नहीं करोगी तो मैंने मान लिया।

लेकिन एडल्ट टॉपिक्स जैसी बातों में तो कुछ ऐसे वैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होता है, वह सब मैं कैसे बोलूंगा? और आजकल तो लेटेस्ट एक मस्तराम नाम के लेखक की किताबें भी आ गयी हैं जिनमे सब कुछ खुल्लम-खुल्ला लिखा रहता है, ऐसा मैंने अपने दोस्तों से सुना है।”

चित्रा का चेहरा मेरी बातें सुन कर एक-दम रिलैक्स हो गया। वो बोली “हाँ! मस्तराम की किताबों के बारे में तो मेरी फ्रेंड्स भी खुसर-पुसर करती हैं। और तुम पूछ रहे हो ऐसे-वैसे शब्द कैसे बोलूंगा, है ना? रोज़ तो हम सब बार-बार और चाहे कोई भी बात पे चाचा से ‘बुरचोद’ ये या ‘माचोद’ सुनते हैं ना?

जैसे कि यह बोलने में या सुनने में कोई बिग डील नहीं है? या जब गुस्से में होते हैं तो ‘माँ-चोद’ या ‘बैन-चोद’ भी सुनने में आता है ना? बस चाची और मैं या तुम और हमारे माँ-बाप हमारे सामने साफ़-साफ़ आपस की बातों में बुर, चूत, लौड़ा, लंड, झांट, भोंसड़ा, गांड, और साफ़ लफ़्ज़ों में मादर-चोद या बे्हन-चोद नहीं बोलते हैं।

लेकिन कभी सोचा है, इसीलिये तुम और तुम्हारे दोस्त या मैं और मेरी सहेलियां आपस में कुछ भी कहने में झिझकते नहीं हैं? हम और तुम भी बेझिझक एक दूसरे से इन सब तरह की बातें करें अकेले में तो क्या प्रॉब्लम है? और बोलूं ? कोई पर्दा भी नहीं रहेगा मेरी तरफ से हमारे बीच, और मैंने भी मस्तराम के बारे में सुना है, मुझे भी वो किताबें पढ़नी हैं बस अकेले में तुम्हारे साथ।

मुझे तो ज़रा भी शर्म या झिझक नहीं हुई तुमसे यह कहने में। हम सब फ्रेंड्स भी आपस में कभी कभी ‘चूतिया मत बना यार’ जैसी बातें भी करती हैं। मैं अपनी क्लास में कई लड़कियों को जानती हूँ जो अपने बॉय-फ्रेंड्स से रेगुलरली अपने या उनके घर पर रोज़ मौज-मस्ती भी करती हैं।

फिर क्या तुम्हारी क्लास में ऐसे लड़के नहीं है जिन्होंने कई लड़कियों को फंसा रखा है? मैंने तो अपने मन की सारी बात तुमसे कह दी, अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी।”

यह सब चित्रा के मुँह से सुन कर मेरी कुछ देर के लिए तो बोलती ही बंद हो गयी और मैं भौंचक्का उनको बस देखता रह गया। चित्रा खिलखिला कर ज़ोर से हंसी और फिर उसने खड़े होकर अपनी बाहें खोली और मुझ से चिपक कर खूब मेरे चेहरे को किस किया और बोली “बड़े भोले हो यार तुम, ठीक तो हो ना, और अब तुम्हें क्या कहना है?”

मैंने बड़ी सी मुस्कराहट के साथ फिर उन्हें गले लगाया और इस बार मैंने उन्हें सारे चेहरे पर किस करते हुए कहा “चित्रा बहन यू आर द बेस्ट इन द वर्ल्ड”, और दोनों पास पास की कुर्सियों पर बैठ गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: चित्रा और मैं (जिस्मो की आग) - by neerathemall - 27-04-2024, 12:54 AM



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