27-04-2024, 12:51 AM
शिकायत तो कर ही नहीं सकती।
मेरी सोच इस बार फिर सच निकली।
जब चित्रा ने अपनी नीचे लटक रही टांग को पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखा, और दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये तो उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी थी, जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी थी, और काली झांटें पैंटी की दोनों साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं।
मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी। और उसने शायद यह जान-बूझ कर किया था। लग रहा था कि चित्रा ने मुझे दिखाने के लिए ही एक बार अपनी टांग उठाई और फिर वापस नीचे रख ली। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी।
मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी, जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा था।
हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना और एक-दूसरे की तरफ देखे बिना ही आपस में बहुत कुछ कह दिया था। और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे। ज़रूर चित्रा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।
थोड़ी और देर पढ़ाई का नाटक करने के बाद अचानक चित्रा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठ कर मुझसे बोली “मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।”
मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए चित्रा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली “यार तुम तो कॉलेज चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ? और सच तो यह है कि मुझे तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल में शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले लड़के से और सेट हो जाऊंगी।
मेरी सोच इस बार फिर सच निकली।
जब चित्रा ने अपनी नीचे लटक रही टांग को पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखा, और दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये तो उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी थी, जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी थी, और काली झांटें पैंटी की दोनों साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं।
मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी। और उसने शायद यह जान-बूझ कर किया था। लग रहा था कि चित्रा ने मुझे दिखाने के लिए ही एक बार अपनी टांग उठाई और फिर वापस नीचे रख ली। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी।
मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी, जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा था।
हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना और एक-दूसरे की तरफ देखे बिना ही आपस में बहुत कुछ कह दिया था। और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे। ज़रूर चित्रा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।
थोड़ी और देर पढ़ाई का नाटक करने के बाद अचानक चित्रा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठ कर मुझसे बोली “मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।”
मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए चित्रा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली “यार तुम तो कॉलेज चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ? और सच तो यह है कि मुझे तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल में शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले लड़के से और सेट हो जाऊंगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
