27-04-2024, 12:49 AM
ड्राइंग रूम में दीवान पर चित्रा की पढ़ाई के लिए छोटी टांग वाली एक स्टडी डेस्क रक्खी रहती थी, और वहीं वो या तो अल्थी-पालथी मार के या फिर कभी एक टांग नीचे लटका के पढ़ने के लिए बैठती थी। दीवान और चित्रा के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं पढ़ाई करता था। उस दिन भी वो वहीं बैठी थी एक टांग नीचे करके, और लग रहा था कि बड़े ध्यान से कुछ लिख रही थी।
हाँ, उसके कान लाल तो थे ही, और चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि उसकी धड़कन अभी तक थोड़ी तेज़ ही थी। मेरा भी लौड़ा चित्रा को उस हालत में देख कर काफ़ी फूल सा गया, और इससे पहले कि वह खड़ा होकर तम्बू बनाये, मैं भी चुप-चाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के कितने मज़े होते हैं। पहली बात, लौड़ा ना होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं ना हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो मम्में और चूचियां भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं, और
हाँ, उसके कान लाल तो थे ही, और चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि उसकी धड़कन अभी तक थोड़ी तेज़ ही थी। मेरा भी लौड़ा चित्रा को उस हालत में देख कर काफ़ी फूल सा गया, और इससे पहले कि वह खड़ा होकर तम्बू बनाये, मैं भी चुप-चाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के कितने मज़े होते हैं। पहली बात, लौड़ा ना होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं ना हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो मम्में और चूचियां भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं, और
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.