25-04-2024, 12:04 PM
"हां अब बता।" अब वे तीनों मुझे पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले कर पूछ रहे थे।
"तुम सब थूकोगी मुझ पर।"
"नहीं थूकेंगी।"
"तो सुनो।"
"सुनाओ हरामजादी। कब से हम सुनने के लिए मरी जा रही हैं।"
"वह वह मैं अपने घर के नौकर से....." मैं झिझकते हुए बोली।
"वाह मेरी बन्नो रानी कोई और नहीं मिला? घर का नौकर ही मिला था तुम्हें?" शीला बोली।
"और कौन था जो घर में? जो सामने मिला उसी से काम चलाना पड़ा। मेरे अंदर आग लगी हुई थी। जैसा भी मिला लेकिन अच्छा ही मिला, उस वक्त वह भी बहुत था।" मैं विवशता में, थोड़ा झूठ ही मिलाकर सही, बताने को बाध्य हो गई थी वरना ये लोग मुझे छोड़ती नहीं।
"नौकर कैसा है, मेरा मतलब कितनी उम्र का है?" शीला बोली।
"यही पचपन साठ साल का होगा।" मैं बोली।
"अरे साली, बूढ़े के साथ!" सभी आश्चर्यचकित हो कर बोले।
"बड़ा हरामी बूढ़ा होगा। तुम जैसी इतनी कम उम्र की लड़की को चोदने में भी झिझका नहीं?" रश्मि मजे लेती हुई बोली।
"मेरी जिद पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर हुआ।"
"मना भी तो कर सकता था? साला बुढ़ऊ, घर में बैठे बिठाए इतनी मस्त माल मिल रही थी तो छोड़ता कैसे? है कि नहीं? कैसा लगा? मजा आया ना?" शीला चुटकी लेते हुए बोली।
"हां, उस वक्त तो मेरा काम चल ही गया।" मैं आधा सच और आधा झूठ बोल गयी।
"बहुत बढ़िया, बूढ़े नौकर की बुढ़िया। सच ही कहा गया है, "चूत भला और क्या चाहे, बस एक लौड़ा,
क्या फर्क पड़ता है, जवान हो या हो बूढ़ा।
भूखी चूत भला और किसे किसे चीन्हे,
मालिक हो, नौकर हो, लूला हो या लंगड़ा।"
"मान गये रे तुमको, मान गये। अच्छा चल अब इधर ध्यान दे। अब देख खुद को और रेखा को, इस वक्त यहां रेखा नंगी, तू नंगी और तुम दोनों यहां इस तरह एक दूसरे से लिपटा लिपटी कर रहे हो, इससे आगे भी कुछ करना है कि बस ऐसे ही.... खाली टाईम पास?" शीला बोली। मैं इधर मन ही मन खुश हो रही थी कि बात का रुख दूसरी ओर मुड़ गया था और मैं पूरा सच बताने से बच गयी, वरना ये लोग बाल की खाल निकालने में पीछे कहां रहते। अब इन्हें कैसे बताती कि चूत नहीं, गांड़ चुदवाई थी। अब उन्हें हमारे नंगे जिस्म को देख कर मजा आ रहा था। इनकी मंशा मैं समझ रही थी। ये लोग हमारे बीच और भी कुछ होते हुए देख कर मजा लेना चाहते थे।
मैं पूरी तरह रेखा की तरह नंगी थी लेकिन इन लोगों के सामने नंगी होने में मुझे कोई शर्म नहीं आ रही थी। अबतक मैं ने रेखा के जिस्म से जिस तरह खिलवाड़ किया था उसके कारण रेखा काफी गरम हो चुकी थी। रेखा मेरे नंगे जिस्म को बड़ी भूखी नज़रों से देख रही थी। वास्तविकता तो यह थी कि मैं भी रेखा के नंगे बदन को महसूस करते हुए गरम हो चुकी थी। हम दोनों एक दूसरे की नग्नता को हवस भरी नज़रों से देख रहे थे। उधर शीला और रश्मि को पूरी उम्मीद थी कि अब हमारे बीच आगे भी कुछ न कुछ और घमासान होने वाला था, जिसके लिए वे बेसब्री से तमाशबीनों की तरह खड़े थे।
मैं ने उन्हें नजरअंदाज किया और सहसा मुझपर जैसे पागलपन का दौरा सा पड़ गया, मैं एकदम से रेखा पर टूट पड़ी और उसे अपनी बाहों में ले कर पागलों की तरह चूमने लगी। रेखा तो पहले तो हकबका गयी लेकिन वह भी तो उत्तेजना की आग में जल रही थी, मेरे चुंबन का प्रतिदान उसकी ओर से भी चुंबन के रूप में मिलने लगा। मैं उसके ऊपर चढ़ी हुई थी और मेरी चूचियों से उसकी चूचियां दबी हुई थीं। एक नग्न नारी की देह से दूसरी नग्न नारी की देह का इस प्रकार संपर्क होने से कैसा अहसास होता है यह मैं पहली बार अनुभव कर रही थी। मैं भीतर तक झनझना उठी थी। मैं अपनी चूचियां उसकी चूचियों पर रगड़ने लगी। ऐसा लग रहा था मानो चूचियों के घर्षण से चिंगारियां सी छूट रही हों। रेखा ने स्वयंमेव आमंत्रण की मुद्रा में अपने पैर फैला दिए और मैं यंत्रवत उसके दोनों पैरों के बीच घुस कर उसे अपनी आगोश में ले ली। इसी दौरान जैसे ही मेरी चूत का संपर्क उसकी चूत से हुआ मुझे जैसे बिजली का झटका सा लगा। ओह मेरी मां, कितना उत्तेजक अहसास था वह मैं बयां नहीं कर सकती हूं। कुछ देर हम दोनों अपनी चूत आपस में सटा कर स्थिर हो गई थीं। वह एक बड़ा ही रोमांचक और सुखद अहसास था जिसके आनंद को हम महसूस कर रहे थे। हमारे अंदर एक आग सी भड़क उठी थी और हम उत्तेजना के आवेग में अनियंत्रित होकर चूत पर चूत रगड़ने लगीं। उफ उफ यह एक ऐसा सुखद अनुभव था जो अवर्णनीय है। अपने आप ही मेरी कमर हिचकोलें लेने लगी। चूत पर चूत छपाक छईयां कर रही थीं। चूत की चुदाई भला चूत से हो सकती थीं? कदापि नहीं, लेकिन उस घर्षण ने हमारी उत्तेजना को चरम पर पहुंचा दिया। हम दोनों एक दूसरे से गुंथ कर मानो एक दूसरे के शरीर में समा जाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। हम दोनों को इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी कि शीला और रश्मि हमारी हरकतों का मजा ले रही थीं, बल्कि मैं तो मना रही थी कि वे भी अपने कपड़ों से मुक्त हो कर हमारी तरह इस कृत्य में लिप्त हो जाएं।
"तुम सब थूकोगी मुझ पर।"
"नहीं थूकेंगी।"
"तो सुनो।"
"सुनाओ हरामजादी। कब से हम सुनने के लिए मरी जा रही हैं।"
"वह वह मैं अपने घर के नौकर से....." मैं झिझकते हुए बोली।
"वाह मेरी बन्नो रानी कोई और नहीं मिला? घर का नौकर ही मिला था तुम्हें?" शीला बोली।
"और कौन था जो घर में? जो सामने मिला उसी से काम चलाना पड़ा। मेरे अंदर आग लगी हुई थी। जैसा भी मिला लेकिन अच्छा ही मिला, उस वक्त वह भी बहुत था।" मैं विवशता में, थोड़ा झूठ ही मिलाकर सही, बताने को बाध्य हो गई थी वरना ये लोग मुझे छोड़ती नहीं।
"नौकर कैसा है, मेरा मतलब कितनी उम्र का है?" शीला बोली।
"यही पचपन साठ साल का होगा।" मैं बोली।
"अरे साली, बूढ़े के साथ!" सभी आश्चर्यचकित हो कर बोले।
"बड़ा हरामी बूढ़ा होगा। तुम जैसी इतनी कम उम्र की लड़की को चोदने में भी झिझका नहीं?" रश्मि मजे लेती हुई बोली।
"मेरी जिद पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर हुआ।"
"मना भी तो कर सकता था? साला बुढ़ऊ, घर में बैठे बिठाए इतनी मस्त माल मिल रही थी तो छोड़ता कैसे? है कि नहीं? कैसा लगा? मजा आया ना?" शीला चुटकी लेते हुए बोली।
"हां, उस वक्त तो मेरा काम चल ही गया।" मैं आधा सच और आधा झूठ बोल गयी।
"बहुत बढ़िया, बूढ़े नौकर की बुढ़िया। सच ही कहा गया है, "चूत भला और क्या चाहे, बस एक लौड़ा,
क्या फर्क पड़ता है, जवान हो या हो बूढ़ा।
भूखी चूत भला और किसे किसे चीन्हे,
मालिक हो, नौकर हो, लूला हो या लंगड़ा।"
"मान गये रे तुमको, मान गये। अच्छा चल अब इधर ध्यान दे। अब देख खुद को और रेखा को, इस वक्त यहां रेखा नंगी, तू नंगी और तुम दोनों यहां इस तरह एक दूसरे से लिपटा लिपटी कर रहे हो, इससे आगे भी कुछ करना है कि बस ऐसे ही.... खाली टाईम पास?" शीला बोली। मैं इधर मन ही मन खुश हो रही थी कि बात का रुख दूसरी ओर मुड़ गया था और मैं पूरा सच बताने से बच गयी, वरना ये लोग बाल की खाल निकालने में पीछे कहां रहते। अब इन्हें कैसे बताती कि चूत नहीं, गांड़ चुदवाई थी। अब उन्हें हमारे नंगे जिस्म को देख कर मजा आ रहा था। इनकी मंशा मैं समझ रही थी। ये लोग हमारे बीच और भी कुछ होते हुए देख कर मजा लेना चाहते थे।
मैं पूरी तरह रेखा की तरह नंगी थी लेकिन इन लोगों के सामने नंगी होने में मुझे कोई शर्म नहीं आ रही थी। अबतक मैं ने रेखा के जिस्म से जिस तरह खिलवाड़ किया था उसके कारण रेखा काफी गरम हो चुकी थी। रेखा मेरे नंगे जिस्म को बड़ी भूखी नज़रों से देख रही थी। वास्तविकता तो यह थी कि मैं भी रेखा के नंगे बदन को महसूस करते हुए गरम हो चुकी थी। हम दोनों एक दूसरे की नग्नता को हवस भरी नज़रों से देख रहे थे। उधर शीला और रश्मि को पूरी उम्मीद थी कि अब हमारे बीच आगे भी कुछ न कुछ और घमासान होने वाला था, जिसके लिए वे बेसब्री से तमाशबीनों की तरह खड़े थे।
मैं ने उन्हें नजरअंदाज किया और सहसा मुझपर जैसे पागलपन का दौरा सा पड़ गया, मैं एकदम से रेखा पर टूट पड़ी और उसे अपनी बाहों में ले कर पागलों की तरह चूमने लगी। रेखा तो पहले तो हकबका गयी लेकिन वह भी तो उत्तेजना की आग में जल रही थी, मेरे चुंबन का प्रतिदान उसकी ओर से भी चुंबन के रूप में मिलने लगा। मैं उसके ऊपर चढ़ी हुई थी और मेरी चूचियों से उसकी चूचियां दबी हुई थीं। एक नग्न नारी की देह से दूसरी नग्न नारी की देह का इस प्रकार संपर्क होने से कैसा अहसास होता है यह मैं पहली बार अनुभव कर रही थी। मैं भीतर तक झनझना उठी थी। मैं अपनी चूचियां उसकी चूचियों पर रगड़ने लगी। ऐसा लग रहा था मानो चूचियों के घर्षण से चिंगारियां सी छूट रही हों। रेखा ने स्वयंमेव आमंत्रण की मुद्रा में अपने पैर फैला दिए और मैं यंत्रवत उसके दोनों पैरों के बीच घुस कर उसे अपनी आगोश में ले ली। इसी दौरान जैसे ही मेरी चूत का संपर्क उसकी चूत से हुआ मुझे जैसे बिजली का झटका सा लगा। ओह मेरी मां, कितना उत्तेजक अहसास था वह मैं बयां नहीं कर सकती हूं। कुछ देर हम दोनों अपनी चूत आपस में सटा कर स्थिर हो गई थीं। वह एक बड़ा ही रोमांचक और सुखद अहसास था जिसके आनंद को हम महसूस कर रहे थे। हमारे अंदर एक आग सी भड़क उठी थी और हम उत्तेजना के आवेग में अनियंत्रित होकर चूत पर चूत रगड़ने लगीं। उफ उफ यह एक ऐसा सुखद अनुभव था जो अवर्णनीय है। अपने आप ही मेरी कमर हिचकोलें लेने लगी। चूत पर चूत छपाक छईयां कर रही थीं। चूत की चुदाई भला चूत से हो सकती थीं? कदापि नहीं, लेकिन उस घर्षण ने हमारी उत्तेजना को चरम पर पहुंचा दिया। हम दोनों एक दूसरे से गुंथ कर मानो एक दूसरे के शरीर में समा जाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। हम दोनों को इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी कि शीला और रश्मि हमारी हरकतों का मजा ले रही थीं, बल्कि मैं तो मना रही थी कि वे भी अपने कपड़ों से मुक्त हो कर हमारी तरह इस कृत्य में लिप्त हो जाएं।