23-04-2024, 05:51 PM
"अरी भोंसड़ी वाली, क्या करने का इरादा है?" वह उत्तेजित हो कर बोल उठी।
"तुम्हें बताना चाहती हूं कि उस लेबोरेट्री में मेरे साथ जो कुछ हो रहा था उस वक्त मेरी क्या हालत हो रही थी।" मैं बोली। सच तो यह था कि ऐसा करने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं भी भयानक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी। मर्द होती तो अभी ही उसे पटक कर चोद देती, लेकिन हाय रे मजबूरी, मैं लड़की थी। उसके नाज़ुक अंगों से खेलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी।
"समझ गई समझ गई। अब तो छोड़ दे मेरी मां आआआआह।" सचमुच वह बहुत उत्तेजित हो गई थी। उसका बदन ऐंठने लगा था और यही हाल मेरी भी थी। मैं भी एक नयी तरह की उत्तेजना का अनुभव कर रही थी।
"लो छोड़ दी।" मैंने अंततः कहा और न चाहते हुए भी उसे उसी उत्तेजना की हालत में छोड़कर हट रही थी तो रेखा मुझे कस कर पकड़ ली और मुझसे चिपकने लगी। मेरी हालत भी कम बुरी नहीं थी। मन तो कर रहा था कि उसके नंगे बदन से लिपट जाऊं। मैंने आज तक किसी दूसरी लड़की के नाजुक अंगों से इस तरह खिलवाड़ नहीं किया था लेकिन खुद को बड़ी मुश्किल से नियंत्रण में रखे हुए थी।
"अब इन नौटंकीबाजों को देखो। साली हरामजादियां यहां क्या करने आई थीं और क्या कर रही हैं।" शीला हमारी ओर देखते हुए बोली।
"अच्छा चलो पहले इन्हीं लोगों का तमाशा देखते हैं।" रश्मि भी हमारी हरकतों पर रुचि लेने लगी थी।
"हां हां देखो देखो। साली इस लड़की के नंगे सेक्सी बदन को देख कर कौन मादरचोद खुद को कंट्रोल में रख पाएगा।" मैं हांफती हुई बोली।
"साली रांड, मेरी जैसी ही हालत कल तेरी हुई थी तो तू कल शांत कैसे रह सकी?" रेखा तड़प कर बोली।
"शांत रही? साली मेरे बदन में आग लगी हुई थी। उन बदमाशों की जबर्दस्ती पर मुझे गुस्सा आ रहा था, फिर उन कमीनों के आगे कैसे समर्पण कर देती। बस मन में आ रहा था कि उस वक्त उनके अलावा कोई भी और मर्द मिल जाता और ढंग से प्रोपोज करता तो कसम से उसकी बांहों में समा कर खुद को समर्पित कर देती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कॉलेज से निकलते वक्त और घर लौटने तक तड़पती रही थी।" मैं बोली।
"इसका मतलब घर लौटने तक कुछ नहीं हुआ लेकिन, घर लौट कर हुआ, यही ना? आखिरकार शांत तो हुई ना, बताओ बताओ कैसे शांत हुई? तुम्हारे घर में ऐसा कौन था जिससे मरवा कर शांत हुई?" रेखा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी।
"यह मत पूछो तो अच्छा है, यह लंबी कहानी है। बताने लायक नहीं है।" मैं बोली। मैं यह कैसे बताती कि घुसा से गांड़ मरवा कर मेरी कामाग्नि शांत हुई थी? जोश जोश में गांड़ मरवा कर मेरी गांड़ की जो दुर्गति हुई थी वह कैसे बता देती? दुर्गति हुई तो हुई फिर भी कैसे घुसा जैसे गर्दभ की गर्दभी बन गुदामैथुन से गदगद हुई, यह कैसे बताती? कैसे बता देती कि मेरी जख्मी गांड़ में अभी भी हल्की हल्की जलन सी महसूस हो रही थी? मीठी मीठी सी ही सही, मलद्वार में खुजली हो रही थी यह कैसे बताती? सब लोग मेरी इस हालत का माखौल ही तो उड़ाते।
"बताना तो पड़ेगा ही। यहां हम कौन सी दूध की धुली हैं। अरे हम सब किसी न किसी से मरवाती हैं। बता ना।" रेखा बोली।
"मैं बोल रही हूं ना, बताने लायक नहीं है।" मैं झुंझला कर बोली।
रेखा और मेरे बीच जो हरकतें हो रही थीं उसे देख कर और हमारे बीच जो वार्तालाप चल रहा था उसे सुन कर शीला और रश्मि हमारी ओर आकर्षित हो चुकी थीं और मजा ले रही थीं।
"साली कुत्ती, जो इस वक्त कर रही हो वह तुझे करने लायक लग रहा है और जो कल तुम्हारे साथ घर में हुआ वह बताने लायक नहीं है, यह भी कोई बात हुई?" रेखा मुझसे लिपटते हुए बोली।
"सुन कर क्या करोगी? मुझपर छी छी थू थू करोगी। नहीं बता सकती।" मैं बताने से हिचकिचा रही थी। सुन कर पता नहीं ये लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
"बताना तो पड़ेगा ही, नहीं तो यहां से निकल नहीं पाओगी।" कहकर वह मेरे टॉप को खोलने लगी।
"यह क्या कर रही हो तुम? रुको रुको। अच्छा बाबा ठीक है बताती हूं।" मैं घबराकर बोली लेकिन तब तक वह मुझ पर चढ़ गयी थी और आनन-फानन मेरे टॉप को खोल दी। मैं ज्यादा विरोध करती तो मेरी टॉप की बटन टूट जाती। अब मैं ने खुद को उसके हवाले करने में ही अपनी भलाई समझ ली थी। वैसे मैं भी यही चाहती थी। मुझे समर्पण की मुद्रा में देख कर उसका हौसला बढ़ गया और उसने बड़े आराम से मेरी ब्रा को खोल दिया जिससे मेरी थरथराती उन्नत, चमचमाती चूचियां छलक कर बाहर आ गयीं। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, इतनी देर से मूक दर्शक बनी शीला और रश्मि भी मुझ पर टूट पड़ीं और देखते ही देखते मेरी स्कर्ट और पैंटी से मुझे मुक्त करके पूरी तरह नंगी कर दिया।
"तुम्हें बताना चाहती हूं कि उस लेबोरेट्री में मेरे साथ जो कुछ हो रहा था उस वक्त मेरी क्या हालत हो रही थी।" मैं बोली। सच तो यह था कि ऐसा करने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं भी भयानक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी। मर्द होती तो अभी ही उसे पटक कर चोद देती, लेकिन हाय रे मजबूरी, मैं लड़की थी। उसके नाज़ुक अंगों से खेलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी।
"समझ गई समझ गई। अब तो छोड़ दे मेरी मां आआआआह।" सचमुच वह बहुत उत्तेजित हो गई थी। उसका बदन ऐंठने लगा था और यही हाल मेरी भी थी। मैं भी एक नयी तरह की उत्तेजना का अनुभव कर रही थी।
"लो छोड़ दी।" मैंने अंततः कहा और न चाहते हुए भी उसे उसी उत्तेजना की हालत में छोड़कर हट रही थी तो रेखा मुझे कस कर पकड़ ली और मुझसे चिपकने लगी। मेरी हालत भी कम बुरी नहीं थी। मन तो कर रहा था कि उसके नंगे बदन से लिपट जाऊं। मैंने आज तक किसी दूसरी लड़की के नाजुक अंगों से इस तरह खिलवाड़ नहीं किया था लेकिन खुद को बड़ी मुश्किल से नियंत्रण में रखे हुए थी।
"अब इन नौटंकीबाजों को देखो। साली हरामजादियां यहां क्या करने आई थीं और क्या कर रही हैं।" शीला हमारी ओर देखते हुए बोली।
"अच्छा चलो पहले इन्हीं लोगों का तमाशा देखते हैं।" रश्मि भी हमारी हरकतों पर रुचि लेने लगी थी।
"हां हां देखो देखो। साली इस लड़की के नंगे सेक्सी बदन को देख कर कौन मादरचोद खुद को कंट्रोल में रख पाएगा।" मैं हांफती हुई बोली।
"साली रांड, मेरी जैसी ही हालत कल तेरी हुई थी तो तू कल शांत कैसे रह सकी?" रेखा तड़प कर बोली।
"शांत रही? साली मेरे बदन में आग लगी हुई थी। उन बदमाशों की जबर्दस्ती पर मुझे गुस्सा आ रहा था, फिर उन कमीनों के आगे कैसे समर्पण कर देती। बस मन में आ रहा था कि उस वक्त उनके अलावा कोई भी और मर्द मिल जाता और ढंग से प्रोपोज करता तो कसम से उसकी बांहों में समा कर खुद को समर्पित कर देती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कॉलेज से निकलते वक्त और घर लौटने तक तड़पती रही थी।" मैं बोली।
"इसका मतलब घर लौटने तक कुछ नहीं हुआ लेकिन, घर लौट कर हुआ, यही ना? आखिरकार शांत तो हुई ना, बताओ बताओ कैसे शांत हुई? तुम्हारे घर में ऐसा कौन था जिससे मरवा कर शांत हुई?" रेखा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी।
"यह मत पूछो तो अच्छा है, यह लंबी कहानी है। बताने लायक नहीं है।" मैं बोली। मैं यह कैसे बताती कि घुसा से गांड़ मरवा कर मेरी कामाग्नि शांत हुई थी? जोश जोश में गांड़ मरवा कर मेरी गांड़ की जो दुर्गति हुई थी वह कैसे बता देती? दुर्गति हुई तो हुई फिर भी कैसे घुसा जैसे गर्दभ की गर्दभी बन गुदामैथुन से गदगद हुई, यह कैसे बताती? कैसे बता देती कि मेरी जख्मी गांड़ में अभी भी हल्की हल्की जलन सी महसूस हो रही थी? मीठी मीठी सी ही सही, मलद्वार में खुजली हो रही थी यह कैसे बताती? सब लोग मेरी इस हालत का माखौल ही तो उड़ाते।
"बताना तो पड़ेगा ही। यहां हम कौन सी दूध की धुली हैं। अरे हम सब किसी न किसी से मरवाती हैं। बता ना।" रेखा बोली।
"मैं बोल रही हूं ना, बताने लायक नहीं है।" मैं झुंझला कर बोली।
रेखा और मेरे बीच जो हरकतें हो रही थीं उसे देख कर और हमारे बीच जो वार्तालाप चल रहा था उसे सुन कर शीला और रश्मि हमारी ओर आकर्षित हो चुकी थीं और मजा ले रही थीं।
"साली कुत्ती, जो इस वक्त कर रही हो वह तुझे करने लायक लग रहा है और जो कल तुम्हारे साथ घर में हुआ वह बताने लायक नहीं है, यह भी कोई बात हुई?" रेखा मुझसे लिपटते हुए बोली।
"सुन कर क्या करोगी? मुझपर छी छी थू थू करोगी। नहीं बता सकती।" मैं बताने से हिचकिचा रही थी। सुन कर पता नहीं ये लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
"बताना तो पड़ेगा ही, नहीं तो यहां से निकल नहीं पाओगी।" कहकर वह मेरे टॉप को खोलने लगी।
"यह क्या कर रही हो तुम? रुको रुको। अच्छा बाबा ठीक है बताती हूं।" मैं घबराकर बोली लेकिन तब तक वह मुझ पर चढ़ गयी थी और आनन-फानन मेरे टॉप को खोल दी। मैं ज्यादा विरोध करती तो मेरी टॉप की बटन टूट जाती। अब मैं ने खुद को उसके हवाले करने में ही अपनी भलाई समझ ली थी। वैसे मैं भी यही चाहती थी। मुझे समर्पण की मुद्रा में देख कर उसका हौसला बढ़ गया और उसने बड़े आराम से मेरी ब्रा को खोल दिया जिससे मेरी थरथराती उन्नत, चमचमाती चूचियां छलक कर बाहर आ गयीं। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, इतनी देर से मूक दर्शक बनी शीला और रश्मि भी मुझ पर टूट पड़ीं और देखते ही देखते मेरी स्कर्ट और पैंटी से मुझे मुक्त करके पूरी तरह नंगी कर दिया।