20-04-2024, 11:30 AM
गरम रोजा (भाग 7)
उस दिन फिर हम सभी सहेलियां कैंटीन में बैठी थीं। मैं इस वक्त हल्के गुलाबी रंग की टॉप और गहरे नीले रंग की स्कर्ट में थी। मैंने पहले ही उन्हें बता दिया था कि आज मेरे पास बताने के लिए बड़ा ही मजेदार किस्सा है। सभी ब्रेक की बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जैसे ही ब्रेक हुआ़, हम सभी जल्दी से कैंटीन में अपनी अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गये।
"हां अब बताओ क्या मजेदार किस्सा बताना चाह रही हो?" शीला ज्यादा ही बेसब्र हुई जा रही थी। मैं कल की सारी घटना सिलसिलेवार बताती रही और उनके चेहरे के चढ़ते उतरते भावों को देख देख कर मजे लेती रही। उन चारों लड़कों के बारे में सुनकर सबकी नजरें कैंटीन के चारों ओर घूम गयी।
"अरे सही में ये चारों लड़के आज दिखाई नहीं दे रहे हैं।" रेखा बोली।
"दिखाई कहां से देंगे साले। चारों अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हैं।" मैं बोली।
"इतनी बुरी तरह मारा है तुमने? तुम दिखती तो नहीं हो ऐसी?" रश्मि चकित हो कर बोली।
"मेरे दिखने पर मत जाओ। जब किसी पर बीतती है ना तो ताकत खुद ब खुद आ जाती है। राजू का सर फटा है, रफीक का हाथ टूटा है, विशाल का जबड़ा टूटा है और अशोक की टांग टूटी है। अब तो वैसे भी ये लोग दुबारा इस कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" मैं बोली।
"अच्छा! ऐसा क्या हो गया है?" शीला बोली।
"अरे मां के साथ प्रिंसिपल को सारी बात बता आई हूं और रफीक का मोबाईल भी दे आई हूं जिससे वे लोग लड़कियों की नंगी तस्वीरें खींचते थे और वीडियो बनाते थे। प्रिंसिपल ने खुद कहा है कि इस कॉलेज से उनकी छुट्टी हो जाएगी।" मैं बोली।
"वाह, यह तो बहुत बढ़िया हो गया। लेकिन तुमने रफीक की मोबाईल प्रिंसिपल को देने से पहले हमें भी दिखा दिया होता तो मजा ही आ जाता।" रेखा बोली।
"अरे उसकी चिंता मत करो। सबकुछ मैंने अपने मोबाईल में कॉपी कर लिया है।"
"दिखाओ, दिखाओ।" सभी एक साथ बोल पड़े।
"अभी यहां नहीं। कॉलेज की छुट्टी के बाद देख लेना।"
"तब तक इंतजार नहीं होगा।" रश्मि बड़ी बेताबी से बोली।
"चुप साली हरामजादी कुतिया। इंतजार नहीं होगा, ऐसे बोल रही है जैसे मर ही जा रही है। और किसी को पता चल जाएगा कि हमारे पास भी उन फोटोज़ और वीडियोज की कॉपी है तो सचमुच हम गये काम से। अच्छा एक काम करते हैं। आज कॉलेज की छुट्टी होते ही सभी मेरे घर चलते हैं। मेरा घर यहीं पास में है। मेरे कमरे में जाकर देखते हैं। क्या बोलती हो सब लोग? सभी लोग घर में बता दो कि आज लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी।" शीला बोली।
"हां हां यही ठीक रहेगा।" सबके सब एक स्वर में बोले। उसके बाद बाकी पीरियड कैसे वे लोग पहलू बदलते हुए काटे ये तो वही लोग जानते होंगे। जैसे ही कॉलेज की छुट्टी हुई, हम भागे भागे शीला के घर जा पहुंचे।
"नमस्ते आंटी।" हमने एक साथ शीला की मां का अभिवादन किया।
"क्या बात है भई, आज सारी सहेलियां एक साथ?" शीला की मां हमें एक साथ देख कर आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से बोली।
"हां मम्मी, ये लोग बोल रही थीं बहुत दिनों से हमारे घर नहीं आई हैं, सो आज हमारे घर का पानी पी कर जाएंगी।" शीला बोली।
"बहुत अच्छा किया। तुम लोग आई हो तो कुछ देर इसकी शैतानी से मुझे राहत मिलेगी, वरना यह तो कॉलेज से घर आते ही मेरी नाक में दम करके रखती है।" उसकी मां बोली।
"अच्छा! ऐसा है? यह तो कॉलेज में बड़ी शरीफ बनती है!" मैं शीला को छेड़ती हुई बोली।
"अच्छा! मैं तो समझती थी कि कॉलेज में भी इसकी शैतानी ऐसी ही रहती होगी।" उसकी मां आश्चर्य से बोली। "अच्छा चलो अब तुमलोग आराम से बैठ कर बातें करो, मैं चाय पानी भिजवाती हूं।" कहकर उसने नौकरानी को आवाज दी। नौकरानी तुरंत किचन से दौड़ी चली आई। वह पचीस तीस साल की एक अच्छी खासी, सामान्य से अधिक लंबी, (करीब पांच फुट दस इंच) और अपने कद के अनुसार मजबूत देहयष्टि वाली जवान महिला थी। सांवली थी लेकिन चेहरा मोहरा आकर्षक था। पता नहीं क्यों, लेकिन उसे देख कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा। वह हम सबको बड़े गौर से देख रही थी। तभी मैंने देखा कि शीला और उस नौकरानी की आंखें चार हुईं और एक रहस्यमई मुस्कान उन दोनों के होंठों पर आई। कुछ न कुछ तो था इन दोनों के बीच में था जो मैं समझ नहीं पाई। खैर मुझे क्या।
उस दिन फिर हम सभी सहेलियां कैंटीन में बैठी थीं। मैं इस वक्त हल्के गुलाबी रंग की टॉप और गहरे नीले रंग की स्कर्ट में थी। मैंने पहले ही उन्हें बता दिया था कि आज मेरे पास बताने के लिए बड़ा ही मजेदार किस्सा है। सभी ब्रेक की बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जैसे ही ब्रेक हुआ़, हम सभी जल्दी से कैंटीन में अपनी अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गये।
"हां अब बताओ क्या मजेदार किस्सा बताना चाह रही हो?" शीला ज्यादा ही बेसब्र हुई जा रही थी। मैं कल की सारी घटना सिलसिलेवार बताती रही और उनके चेहरे के चढ़ते उतरते भावों को देख देख कर मजे लेती रही। उन चारों लड़कों के बारे में सुनकर सबकी नजरें कैंटीन के चारों ओर घूम गयी।
"अरे सही में ये चारों लड़के आज दिखाई नहीं दे रहे हैं।" रेखा बोली।
"दिखाई कहां से देंगे साले। चारों अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हैं।" मैं बोली।
"इतनी बुरी तरह मारा है तुमने? तुम दिखती तो नहीं हो ऐसी?" रश्मि चकित हो कर बोली।
"मेरे दिखने पर मत जाओ। जब किसी पर बीतती है ना तो ताकत खुद ब खुद आ जाती है। राजू का सर फटा है, रफीक का हाथ टूटा है, विशाल का जबड़ा टूटा है और अशोक की टांग टूटी है। अब तो वैसे भी ये लोग दुबारा इस कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" मैं बोली।
"अच्छा! ऐसा क्या हो गया है?" शीला बोली।
"अरे मां के साथ प्रिंसिपल को सारी बात बता आई हूं और रफीक का मोबाईल भी दे आई हूं जिससे वे लोग लड़कियों की नंगी तस्वीरें खींचते थे और वीडियो बनाते थे। प्रिंसिपल ने खुद कहा है कि इस कॉलेज से उनकी छुट्टी हो जाएगी।" मैं बोली।
"वाह, यह तो बहुत बढ़िया हो गया। लेकिन तुमने रफीक की मोबाईल प्रिंसिपल को देने से पहले हमें भी दिखा दिया होता तो मजा ही आ जाता।" रेखा बोली।
"अरे उसकी चिंता मत करो। सबकुछ मैंने अपने मोबाईल में कॉपी कर लिया है।"
"दिखाओ, दिखाओ।" सभी एक साथ बोल पड़े।
"अभी यहां नहीं। कॉलेज की छुट्टी के बाद देख लेना।"
"तब तक इंतजार नहीं होगा।" रश्मि बड़ी बेताबी से बोली।
"चुप साली हरामजादी कुतिया। इंतजार नहीं होगा, ऐसे बोल रही है जैसे मर ही जा रही है। और किसी को पता चल जाएगा कि हमारे पास भी उन फोटोज़ और वीडियोज की कॉपी है तो सचमुच हम गये काम से। अच्छा एक काम करते हैं। आज कॉलेज की छुट्टी होते ही सभी मेरे घर चलते हैं। मेरा घर यहीं पास में है। मेरे कमरे में जाकर देखते हैं। क्या बोलती हो सब लोग? सभी लोग घर में बता दो कि आज लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी।" शीला बोली।
"हां हां यही ठीक रहेगा।" सबके सब एक स्वर में बोले। उसके बाद बाकी पीरियड कैसे वे लोग पहलू बदलते हुए काटे ये तो वही लोग जानते होंगे। जैसे ही कॉलेज की छुट्टी हुई, हम भागे भागे शीला के घर जा पहुंचे।
"नमस्ते आंटी।" हमने एक साथ शीला की मां का अभिवादन किया।
"क्या बात है भई, आज सारी सहेलियां एक साथ?" शीला की मां हमें एक साथ देख कर आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से बोली।
"हां मम्मी, ये लोग बोल रही थीं बहुत दिनों से हमारे घर नहीं आई हैं, सो आज हमारे घर का पानी पी कर जाएंगी।" शीला बोली।
"बहुत अच्छा किया। तुम लोग आई हो तो कुछ देर इसकी शैतानी से मुझे राहत मिलेगी, वरना यह तो कॉलेज से घर आते ही मेरी नाक में दम करके रखती है।" उसकी मां बोली।
"अच्छा! ऐसा है? यह तो कॉलेज में बड़ी शरीफ बनती है!" मैं शीला को छेड़ती हुई बोली।
"अच्छा! मैं तो समझती थी कि कॉलेज में भी इसकी शैतानी ऐसी ही रहती होगी।" उसकी मां आश्चर्य से बोली। "अच्छा चलो अब तुमलोग आराम से बैठ कर बातें करो, मैं चाय पानी भिजवाती हूं।" कहकर उसने नौकरानी को आवाज दी। नौकरानी तुरंत किचन से दौड़ी चली आई। वह पचीस तीस साल की एक अच्छी खासी, सामान्य से अधिक लंबी, (करीब पांच फुट दस इंच) और अपने कद के अनुसार मजबूत देहयष्टि वाली जवान महिला थी। सांवली थी लेकिन चेहरा मोहरा आकर्षक था। पता नहीं क्यों, लेकिन उसे देख कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा। वह हम सबको बड़े गौर से देख रही थी। तभी मैंने देखा कि शीला और उस नौकरानी की आंखें चार हुईं और एक रहस्यमई मुस्कान उन दोनों के होंठों पर आई। कुछ न कुछ तो था इन दोनों के बीच में था जो मैं समझ नहीं पाई। खैर मुझे क्या।