19-04-2024, 12:14 PM
दूसरे दिन मैं मां के साथ कॉलेज गयी। मैं ने देखा कि घायल होने के बावजूद रघु अपनी ड्यूटी में आया हुआ था। मुझे देखते ही वह अपने स्टूल से खड़ा हुआ,
"नमस्ते मैडम जी।" वह मुझे सलाम करते हुए बोला। "नमस्ते नमस्ते। मैं मम्मी के साथ प्रिंसिपल के पास जा रही हूं। वैसे तो तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो तुम्हें भी बुलावा आ सकता है। लेकिन घबराओ मत, में हूं।" मैं बोली और मेरी मां मुझे ताज्जुब से देख रही थी कि उसकी बेटी कब इतनी बड़ी हो गई इसका उसे अंदाजा भी नहीं था।
"जी मैडम जी। अगर मेरी जरूरत पड़ी तो मैं अवश्य आ जाऊंगा।" वह अपना सर हिलाते हुए बोला।
"ठीक है।" कहकर मैं अपनी मां के साथ सीधे प्रिंसिपल के पास चली गयी। मेरी मां ने प्रिंसिपल को मेरे साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में बताया। न केवल मेरे साथ हुई घटना के बारे में, बल्कि उन लड़कों की अबतक की सारी करतूतों के बारे में बताया और सबूत के तौर पर प्रिंसिपल के हाथ में रफीक का मोबाईल थमा दिया। सबकुछ सुनकर और मोबाईल में मौजूद फोटो और वीडियो को देखकर प्रिंसिपल आग बबूला हो गया और चपरासी को बुला कर उन लड़कों को बुला कर लाने को कहा। इस बीच प्रिंसिपल ने कॉलेज के दो चार और सीनियर स्टाफ को बुला लिया। कुछ ही देर में चपरासी पुनः वापस आ कर बताया कि उन लड़कों में से कोई भी आज कॉलेज नहीं आया है। यह सुनकर प्रिंसिपल ने उनके अभिभावकों को फोन लगाया तो पता चला कि सभी लड़के अस्पताल में भर्ती हैं। राजू का सर फट गया था, रफीक का हाथ टूट गया था, विशाल का जबड़ा टूटा हुआ था और अशोक की टांग टूटी हुई थी।
"यह सब तुमने किया?" प्रिंसिपल ने मुझे आश्चर्य से देखते हुए पूछा। कल की घटना मेरी मां बता चुकी थी और उन लड़कों का अस्पताल में भर्ती रहना, उसी बात की पुष्टि कर रहा था।
"जी हां सर। मेरा ऐसा करना जरूरी था वरना मैं उनके चंगुल से निकल नहीं सकती थी।" मैं दृढ़ता से बोली।
"वेल डन माई गर्ल। अब इन पर ऐक्शन लेने की बारी मेरी है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि ऐसे आवारा लड़के दुबारा हमारे कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" वे मुझसे बोले फिर मेरी मां की तरफ मुखातिब हो कर बोले, "सॉरी मैडम, आपकी बेटी को इन सबसे गुजरना पड़ा। वन्स अगेन आई एम रीयली वेरी सॉरी। आपको जिस मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ा उसके लिए फिर से माफी चाहता हूं। आपको गर्व होना चाहिए कि आपकी बेटी इतनी बहादुर है।" उनकी आंखों में मेरे लिए प्रशंसा के भाव थे। मैं खुश थी कि सबकुछ सलट गया था।
"अब आप बेफिक्र होकर जाईए। आज के बाद हमारे कॉलेज में ऐसा कभी नहीं होगा, यह मेरा वादा है।" प्रिंसिपल साहब ने मेरी मां से कहा।
"थैंक्यू सर।" कहकर मेरी मां मेरे साथ ऑफिस से निकली। मैं उन्हें गेट तक छोड़ने आई। मेरी मां के जाते ही मैं रघु की ओर मुड़ी।
"अब कैसे हो?" मैं उससे बोली।
"थोड़ा थोड़ा यहां वहां दर्द है लेकिन कुल मिलाकर ठीक हूं।" वह बोला।
"तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ी। सबकुछ सलट गया।" मैं बोली।
"थैंक्यू मैडमजी।"
"खाली थैंक्यू से काम नहीं चलेगा। मेरी बात याद है ना?" मैं उसकी आंखों में देखते हुए बोली।
"कौन सी बात मैडम?"
"भूल गए?"
"आपने तो बहुत सारी बातें कही हैं। कौन सी बात के बारे में पूछ रही हैं?"
"तुम्हारे पपलू की बात कर रही हूं गधे।"
"ओह। मैंने भी तो कहा था कि जब भी जरूरत हो, खाली बोल दीजियेगा, मैं हाज़िर हो जाऊंगा।" उसकी आंखें चमक उठीं।
"गुड। अब मैं चलती हूं क्लास।" कहकर एक दिलकश मुस्कान उसकी ओर उछाल कर मैं क्लास की ओर बढ़ गयी। आज मेरी सहेलियों को बताने के लिए मेरे पास बहुत सारा मसाला था।
आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए अपनी गरम रोजा को आज्ञा दीजिए।
"नमस्ते मैडम जी।" वह मुझे सलाम करते हुए बोला। "नमस्ते नमस्ते। मैं मम्मी के साथ प्रिंसिपल के पास जा रही हूं। वैसे तो तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो तुम्हें भी बुलावा आ सकता है। लेकिन घबराओ मत, में हूं।" मैं बोली और मेरी मां मुझे ताज्जुब से देख रही थी कि उसकी बेटी कब इतनी बड़ी हो गई इसका उसे अंदाजा भी नहीं था।
"जी मैडम जी। अगर मेरी जरूरत पड़ी तो मैं अवश्य आ जाऊंगा।" वह अपना सर हिलाते हुए बोला।
"ठीक है।" कहकर मैं अपनी मां के साथ सीधे प्रिंसिपल के पास चली गयी। मेरी मां ने प्रिंसिपल को मेरे साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में बताया। न केवल मेरे साथ हुई घटना के बारे में, बल्कि उन लड़कों की अबतक की सारी करतूतों के बारे में बताया और सबूत के तौर पर प्रिंसिपल के हाथ में रफीक का मोबाईल थमा दिया। सबकुछ सुनकर और मोबाईल में मौजूद फोटो और वीडियो को देखकर प्रिंसिपल आग बबूला हो गया और चपरासी को बुला कर उन लड़कों को बुला कर लाने को कहा। इस बीच प्रिंसिपल ने कॉलेज के दो चार और सीनियर स्टाफ को बुला लिया। कुछ ही देर में चपरासी पुनः वापस आ कर बताया कि उन लड़कों में से कोई भी आज कॉलेज नहीं आया है। यह सुनकर प्रिंसिपल ने उनके अभिभावकों को फोन लगाया तो पता चला कि सभी लड़के अस्पताल में भर्ती हैं। राजू का सर फट गया था, रफीक का हाथ टूट गया था, विशाल का जबड़ा टूटा हुआ था और अशोक की टांग टूटी हुई थी।
"यह सब तुमने किया?" प्रिंसिपल ने मुझे आश्चर्य से देखते हुए पूछा। कल की घटना मेरी मां बता चुकी थी और उन लड़कों का अस्पताल में भर्ती रहना, उसी बात की पुष्टि कर रहा था।
"जी हां सर। मेरा ऐसा करना जरूरी था वरना मैं उनके चंगुल से निकल नहीं सकती थी।" मैं दृढ़ता से बोली।
"वेल डन माई गर्ल। अब इन पर ऐक्शन लेने की बारी मेरी है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि ऐसे आवारा लड़के दुबारा हमारे कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" वे मुझसे बोले फिर मेरी मां की तरफ मुखातिब हो कर बोले, "सॉरी मैडम, आपकी बेटी को इन सबसे गुजरना पड़ा। वन्स अगेन आई एम रीयली वेरी सॉरी। आपको जिस मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ा उसके लिए फिर से माफी चाहता हूं। आपको गर्व होना चाहिए कि आपकी बेटी इतनी बहादुर है।" उनकी आंखों में मेरे लिए प्रशंसा के भाव थे। मैं खुश थी कि सबकुछ सलट गया था।
"अब आप बेफिक्र होकर जाईए। आज के बाद हमारे कॉलेज में ऐसा कभी नहीं होगा, यह मेरा वादा है।" प्रिंसिपल साहब ने मेरी मां से कहा।
"थैंक्यू सर।" कहकर मेरी मां मेरे साथ ऑफिस से निकली। मैं उन्हें गेट तक छोड़ने आई। मेरी मां के जाते ही मैं रघु की ओर मुड़ी।
"अब कैसे हो?" मैं उससे बोली।
"थोड़ा थोड़ा यहां वहां दर्द है लेकिन कुल मिलाकर ठीक हूं।" वह बोला।
"तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ी। सबकुछ सलट गया।" मैं बोली।
"थैंक्यू मैडमजी।"
"खाली थैंक्यू से काम नहीं चलेगा। मेरी बात याद है ना?" मैं उसकी आंखों में देखते हुए बोली।
"कौन सी बात मैडम?"
"भूल गए?"
"आपने तो बहुत सारी बातें कही हैं। कौन सी बात के बारे में पूछ रही हैं?"
"तुम्हारे पपलू की बात कर रही हूं गधे।"
"ओह। मैंने भी तो कहा था कि जब भी जरूरत हो, खाली बोल दीजियेगा, मैं हाज़िर हो जाऊंगा।" उसकी आंखें चमक उठीं।
"गुड। अब मैं चलती हूं क्लास।" कहकर एक दिलकश मुस्कान उसकी ओर उछाल कर मैं क्लास की ओर बढ़ गयी। आज मेरी सहेलियों को बताने के लिए मेरे पास बहुत सारा मसाला था।
आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए अपनी गरम रोजा को आज्ञा दीजिए।