18-04-2024, 12:52 PM
"हटाईए अपना हाथ। अभी मां घर में ही है। कल देखुंगी आपके इस लंड का दम और आपकी मर्दानगी।" मैं उसका हाथ झटक कर बोली।
"इधर हम भी हैं। हमको मत भूलना।" घुसा झट से बोला।
"तुझे कैसे भूल सकती हूं। साला मादरचोद गांड़ फाड़ कर रख दिया और बोलता है हमको मत भूलना। तू ही तो है इस सारी कहानी का मुख्य पात्र। तू न होता तो मैं ऐसी न होती। अच्छा आज का ड्रामा खत्म हुआ। अब अपना अपना काम देखो और मुझे भी आराम करने दो।" गंदे शब्दों से अपनी बात कहकर (घनश्याम के सामने जब मेरी गंदगी उजागर हो ही गयी तो गंदे शब्दों से परहेज़ क्यों ?) मैं अपने अंदर के तूफान को समेटे अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।
ओह मेरे भगवान, जब मैं वहां से अपने कमरे की ओर चल रही थी तो मुझे पता चल रहा था कि घुसा नें मेरी गांड़ मारकर मेरी गांड़ की क्या हालत कर दी थी। जितनी देर मैं वहां खड़ी थी, मुझे कुछ खास तकलीफ का अहसास नहीं हो रहा था लेकिन जैसे ही मैं वहां से चलने लगी, मेरी गुदा की दोनों गोलाईयों के बीच जो घर्षण हो रहा था उसके कारण मेरे मलद्वार में जलन होने लगी थी। गांड़ मरवाने का मजा अब मुझे सजा की तरह लग रहा था। कैसे घुसा का उतना मोटा लंड सर्र सर्र मेरी गांड़ में अंदर बाहर हो कर मुझे स्वर्ग की सैर करा रहा था और उन आनंद के पलों में मैं आरंभिक पीड़ा को भूलकर प्रथम गांड़ चुदाई का अद्भुत रसास्वादन कर रही थी। पहली बार की गांड़ चुदाई में भगवान किसी को भी इतने मोटे लंड से पाला न पड़ने दे। मैं अब समझ रही थी कि पहली बार ही जब घुसा का लंड घुस रहा था, उसी समय उसके लंड की मोटाई के कारण मेरी गांड़ का मुंह अपनी सीमा से बाहर फैल गया था जिसके कारण गांड़ हल्का सा चिरा गया था। उस समय मुझे जलन सी महसूस हुई थी लेकिन उस जलन को धीरे धीरे भूलकर चुदाई के आनंद में डूब गयी थी लेकिन अब फिर से जलन महसूस कर रही थी। हां यह और बात है कि यह जलन थोड़ी कम थी। चलने फिरने में भी थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी।
दर्द को पीती हुई किसी तरह अपने कमरे में जा घुसी। कमरे में घुस कर सबसे पहले मैंने हाथ से छू कर महसूस किया तो पता चला कि गुदा द्वार का छल्ला थोड़ा सूज भी गया था। यह भी मुझे महसूस हो रहा था कि मेरी गांड़ काफी खुल गई थी। मैंने बोरोलीन की ट्यूब से उंगली में थोड़ी सी बोरोलीन ले कर गुदा द्वार के अंदर और बाहर अच्छी तरह से लगाया और कपड़े बदल कर कुछ देर लेट गई लेकिन मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट के अंदर एक ऐसा दबाव सा महसूस हो रहा था जैसा मल विसर्जन से पहले होता है। लाख कोशिशों के बाद भी मुझे उस दबाव को रोकने में सफलता नहीं मिल रही थी, जिसके कारण मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और टॉयलेट में जा घुसी। कमोड पर बैठते न बैठते भरभरा कर घुसा के वीर्य के साथ साथ पतला मल बाहर निकलने लगा। कुछ ही पलों में ऐसा लगा जैसे मेरा पेट खाली हो गया हो। टॉयलेट से फारिग हो कर मैं बाहर आई और धम से बिस्तर पर गिर कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। मुझे दुबारा अच्छी तरह से बोरोलीन लगाना पड़ा। मैं भयभीत हो रही थी कि क्या इसी तरह मेरी गांड़ ढीली रह जाएगी? जो लोग गांड़ मरवाने के आदी होते हैं, क्या उनकी भी गांड़ ऐसी ही ढीली हो जाती होगी? अगर ऐसा ही होता तो लोग गांड़ क्यों मरवाते? निश्चित तौर पर यह पहली बार में ही इतने मोटे और लंबे लंड से गांड़ मरवाने का नतीजा था। यह निश्चय ही तात्कालिक परेशानी थी। यही सोचकर मैं खुद को तसल्ली देने लगी थी। मेरा यह अनुमान बाद में सही भी साबित हुआ, हालांकि अगले दिन भी मुझे थोड़ी तकलीफ़ से गुजरना पड़ा लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो गया। बाद के कुछ दिनों में तो बड़ी सुगमता से गांड़ मरवाने में सक्षम हो गई।
करीब एक घंटे तक अपने बिस्तर पर आराम करने के बाद मुझे काफी राहत मिली। रात को खाना खाने के बाद मेरी मां ने अगले दिन मेरे साथ कॉलेज जाने की बात कही। मैं अपनी मां के कथन से सहमत थी। मां ने कहा कि वह अगले दिन ऑफिस नहीं जा रही है। मुझे भी यही उचित लग रहा था। मामला गरम था और बिना देर किए हुए हमें उन लड़कों के विरुद्ध कदम उठाना आवश्यक था। फिर हम सोने चले गये। सोने के पहले आज की सारी घटनाएं चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूम रही थीं। लेबोरेट्री में उन बदमाश लड़कों के साथ जो कुछ हुआ, फिर रघु के साथ जो कुछ हुआ, फिर कार में घनश्याम के साथ, फिर घर में आकर घुसा के द्वारा मेरी गांड़ की कुटाई (गांड़ कुटाई की बात जेहन में आते ही मेरी गांड़ में टीस सी उठी), फिर मां के द्वारा घुसा के द्वारा गांड़ मरवाते हुए हमारा रंगे हाथ पकड़ा जाना और अंत में घनश्याम के साथ वार्तालाप और उसके मस्ताने लंड का दर्शन, कुल मिलाकर आज का दिन मेरे लिए कभी न भूलने वाला दिन साबित हुआ। यही सब मेरे जेहन में घूम रहा था और अगले दिन जो कुछ होने वाला था वह भी दिमाग में चल रहा था। सारी बातें मेरे दिमाग में गड्ड मड्ड होती रहीं और कब मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया मुझे पता ही नहीं चला।
"इधर हम भी हैं। हमको मत भूलना।" घुसा झट से बोला।
"तुझे कैसे भूल सकती हूं। साला मादरचोद गांड़ फाड़ कर रख दिया और बोलता है हमको मत भूलना। तू ही तो है इस सारी कहानी का मुख्य पात्र। तू न होता तो मैं ऐसी न होती। अच्छा आज का ड्रामा खत्म हुआ। अब अपना अपना काम देखो और मुझे भी आराम करने दो।" गंदे शब्दों से अपनी बात कहकर (घनश्याम के सामने जब मेरी गंदगी उजागर हो ही गयी तो गंदे शब्दों से परहेज़ क्यों ?) मैं अपने अंदर के तूफान को समेटे अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।
ओह मेरे भगवान, जब मैं वहां से अपने कमरे की ओर चल रही थी तो मुझे पता चल रहा था कि घुसा नें मेरी गांड़ मारकर मेरी गांड़ की क्या हालत कर दी थी। जितनी देर मैं वहां खड़ी थी, मुझे कुछ खास तकलीफ का अहसास नहीं हो रहा था लेकिन जैसे ही मैं वहां से चलने लगी, मेरी गुदा की दोनों गोलाईयों के बीच जो घर्षण हो रहा था उसके कारण मेरे मलद्वार में जलन होने लगी थी। गांड़ मरवाने का मजा अब मुझे सजा की तरह लग रहा था। कैसे घुसा का उतना मोटा लंड सर्र सर्र मेरी गांड़ में अंदर बाहर हो कर मुझे स्वर्ग की सैर करा रहा था और उन आनंद के पलों में मैं आरंभिक पीड़ा को भूलकर प्रथम गांड़ चुदाई का अद्भुत रसास्वादन कर रही थी। पहली बार की गांड़ चुदाई में भगवान किसी को भी इतने मोटे लंड से पाला न पड़ने दे। मैं अब समझ रही थी कि पहली बार ही जब घुसा का लंड घुस रहा था, उसी समय उसके लंड की मोटाई के कारण मेरी गांड़ का मुंह अपनी सीमा से बाहर फैल गया था जिसके कारण गांड़ हल्का सा चिरा गया था। उस समय मुझे जलन सी महसूस हुई थी लेकिन उस जलन को धीरे धीरे भूलकर चुदाई के आनंद में डूब गयी थी लेकिन अब फिर से जलन महसूस कर रही थी। हां यह और बात है कि यह जलन थोड़ी कम थी। चलने फिरने में भी थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी।
दर्द को पीती हुई किसी तरह अपने कमरे में जा घुसी। कमरे में घुस कर सबसे पहले मैंने हाथ से छू कर महसूस किया तो पता चला कि गुदा द्वार का छल्ला थोड़ा सूज भी गया था। यह भी मुझे महसूस हो रहा था कि मेरी गांड़ काफी खुल गई थी। मैंने बोरोलीन की ट्यूब से उंगली में थोड़ी सी बोरोलीन ले कर गुदा द्वार के अंदर और बाहर अच्छी तरह से लगाया और कपड़े बदल कर कुछ देर लेट गई लेकिन मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट के अंदर एक ऐसा दबाव सा महसूस हो रहा था जैसा मल विसर्जन से पहले होता है। लाख कोशिशों के बाद भी मुझे उस दबाव को रोकने में सफलता नहीं मिल रही थी, जिसके कारण मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और टॉयलेट में जा घुसी। कमोड पर बैठते न बैठते भरभरा कर घुसा के वीर्य के साथ साथ पतला मल बाहर निकलने लगा। कुछ ही पलों में ऐसा लगा जैसे मेरा पेट खाली हो गया हो। टॉयलेट से फारिग हो कर मैं बाहर आई और धम से बिस्तर पर गिर कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। मुझे दुबारा अच्छी तरह से बोरोलीन लगाना पड़ा। मैं भयभीत हो रही थी कि क्या इसी तरह मेरी गांड़ ढीली रह जाएगी? जो लोग गांड़ मरवाने के आदी होते हैं, क्या उनकी भी गांड़ ऐसी ही ढीली हो जाती होगी? अगर ऐसा ही होता तो लोग गांड़ क्यों मरवाते? निश्चित तौर पर यह पहली बार में ही इतने मोटे और लंबे लंड से गांड़ मरवाने का नतीजा था। यह निश्चय ही तात्कालिक परेशानी थी। यही सोचकर मैं खुद को तसल्ली देने लगी थी। मेरा यह अनुमान बाद में सही भी साबित हुआ, हालांकि अगले दिन भी मुझे थोड़ी तकलीफ़ से गुजरना पड़ा लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो गया। बाद के कुछ दिनों में तो बड़ी सुगमता से गांड़ मरवाने में सक्षम हो गई।
करीब एक घंटे तक अपने बिस्तर पर आराम करने के बाद मुझे काफी राहत मिली। रात को खाना खाने के बाद मेरी मां ने अगले दिन मेरे साथ कॉलेज जाने की बात कही। मैं अपनी मां के कथन से सहमत थी। मां ने कहा कि वह अगले दिन ऑफिस नहीं जा रही है। मुझे भी यही उचित लग रहा था। मामला गरम था और बिना देर किए हुए हमें उन लड़कों के विरुद्ध कदम उठाना आवश्यक था। फिर हम सोने चले गये। सोने के पहले आज की सारी घटनाएं चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूम रही थीं। लेबोरेट्री में उन बदमाश लड़कों के साथ जो कुछ हुआ, फिर रघु के साथ जो कुछ हुआ, फिर कार में घनश्याम के साथ, फिर घर में आकर घुसा के द्वारा मेरी गांड़ की कुटाई (गांड़ कुटाई की बात जेहन में आते ही मेरी गांड़ में टीस सी उठी), फिर मां के द्वारा घुसा के द्वारा गांड़ मरवाते हुए हमारा रंगे हाथ पकड़ा जाना और अंत में घनश्याम के साथ वार्तालाप और उसके मस्ताने लंड का दर्शन, कुल मिलाकर आज का दिन मेरे लिए कभी न भूलने वाला दिन साबित हुआ। यही सब मेरे जेहन में घूम रहा था और अगले दिन जो कुछ होने वाला था वह भी दिमाग में चल रहा था। सारी बातें मेरे दिमाग में गड्ड मड्ड होती रहीं और कब मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया मुझे पता ही नहीं चला।