17-04-2024, 04:56 PM
"बुरा लगा?" वह मेरी प्रतिक्रिया देखकर बोला।
"न न न नहीं। बुरा नहीं लगा लेकिन आपकी हिम्मत पर आश्चर्य हुआ।" मैं शर्म से लाल भभूका होती हुई बोली।
"आश्चर्य क्यों हुआ?" वह भलीभांति जानता था कि मेरा आश्चर्यचकित होना मात्र एक दिखावा था।
"आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि मैंने जब से होश संभाला तब से आपको चाचा ही कहती आ रही हूं और चाचा के मुंह से ऐसी बात सुनकर आश्चर्य नहीं होगा तो और क्या होगा।" मै बोली।
"अच्छा? और वह क्या था जो तुम कार में कर रही थी? चाचा ही समझती तो कार के अंदर अपने उत्तेजक अंगों की नुमाइश क्यों कर रही थी? अब मेरे सामने भोली बनने का नाटक तो मत करो। तुम्हें पता भी है कि उस वक्त मेरी क्या दशा हो रही थी?" घनश्याम बोला। घनश्याम के सामने अब और कुछ नहीं बोल सकती थी मैं। सच ही तो था, कि मैं उनकी नजरों के सामने ज्यादा से ज्यादा अपने सेक्सी तन की, आंशिक ही सही, नुमाइश करके उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी ताकि वे मेरे तन की भाषा समझ कर अपने अंदर उठी हुई कामना को व्यक्त करें।
"क्या हालत हो रही थी जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं अब झूठ मूठ अपने बचाव में कुछ नहीं बोलना चाह रही थी। जब सबकुछ स्पष्ट हो ही गया है तो खुलकर बात करने में क्या समस्या है।
"जो तुम चाहती थी वही तो हुआ था। बस समय नहीं था वरना दिखा देता कि मैं नामर्द नहीं हूं।"
"समय का बहाना किसी और को सुनाईए, मुझे नहीं। कमसे कम अपना यंत्र ही दिखा देते।"
"उस समय मुझे पता नहीं था कि तुम इस तरह की लड़की हो। यह तो यहां आकर पता चला कि तुम किस तरह की लड़की हो, वरना घुसा की जगह आज मैं होता। अब यंत्र दिखाने की बात कर रही हो तो अभी भी दिखा सकता हूं, लेकिन यहां घुसा के सामने? और कहीं बड़ी मालकिन ने देख लिया तो मेरी नौकरी तो गयी समझ लो।" अब हमारे बीच घुमा फिरा कर बात नहीं हो रही थी बल्कि सीधे मुद्दे की बात हो रही थी।
"घुसा के सामने क्या पर्दा। अब तो घुसा से भी आपके मन की बात छिपी नहीं रह गई है। जहां तक मैं मम्मी को जानती हूं, वह अभी एक नींद मारे बिना अपने कमरे से बाहर नहीं निकलेंगी। वैसे अभी यहां उसने अपनी आंखों से जो कुछ देखा है और मेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता चला है, उसके बाद उसे नींद आ रही है कि नहीं यह नहीं बता सकती, फिर भी अपना यंत्र दिखाने का जोखिम उठाना चाहें तो दिखा सकते हैं। क्यों घुसा, सही कह रही हूं ना?" मैं जिस लहजे में बोली उससे मेरी उत्सुकता का पता चल रहा था। घुसा भी सहमति में सिर हिला दिया। इतनी देर तक हमारे बीच में जो भी वार्तालाप हुआ, घुसा बिल्कुल खामोशी के साथ सुन कर मजा ले रहा था। वैसे उसे क्या फर्क पड़ने वाला था। वह जानता था कि मैं उस पर पहले से ही फिदा हूं, एक और साझेदार मिल भी जाए तो पहला हक़ तो उसी का है, आखिर उद्घाटक जो ठहरा।
"फिर ठीक है, देख ही लो।" कहकर घनश्याम अपना पैंट ढीला करने लगा लेकिन पूरी तरह खोलकर अपना लंड निकालने में उसे मुश्किल हो रही थी। मुश्किल क्यों हो रही थी उसका कारण कुछ पलों में ही पता चल गया जब उसके पैंट और जांघिए के अंदर से करीब आठ इंच लंबा और करीब दो इंच मोटा दिल दहलाने वाला काला कोबरा फनफना कर बाहर निकल आया।
"हे भगवान!" मेरे मुंह से निकला। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। घुसा भी विस्मित हो कर घनश्याम का लंड देखता रह गया। घुसा के लंड से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था, बल्कि थोड़ा मोटा ही होगा।
"देख ली?" घनश्याम मुझे देखते हुए बोला। मेरी मुख मुद्रा देखकर वह मुस्कुरा रहा था।
"हहहह हां.... बाआआआआप रेएएएए.... इतना बड़ाआआआआ.....!" मैं अब भी भयभीत नजरों से उसे देख रही थी।
"देखना हो गया तो अब बंद करूं?"
"नहीं, जरा पकड़ कर देख सकती हूं?" मैं विश्वास करना चाहती थी कि यह सचमुच में वास्तविक है। इसके अलावा मैं उसे पकड़ कर उसकी विशालता का आंकलन और इतने बड़े लंड को पकड़ने के रोमांच से दो चार होना चाहती थी।
"जरूर जरूर, यह तुम्हारा ही है बिटिया।" वह बोला।
मैं डरते डरते उसके लंड को पहले छूकर देखी, फिर हथेली में ले कर पकड़ी। उफ उस गरमागरम लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मैं सिहर उठी। फिर सहसा मुझे क्या हुआ कि मैं उसके लंड को पकड़े पकड़े घनश्याम से लिपट गई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दी। घनश्याम भी एक पल को भौंचक्का रह गया।
"ओह अंकल यू आर ग्रेट।" मैं अपने होंठ अलग करके एक हाथ से उसके लंड को सहलाती हुई बोली। मैं उस लंड से चुदने की कल्पना करके ही सिहर उठी थी।
"ग्रेट तो तब होऊंगा जब मुझे मौका दोगी हमारी बिटिया रानी।" कहकर वह मेरे स्कर्ट को उठाकर मेरी नंगी चूतड़ को सहला कर बोला।
"न न न नहीं। बुरा नहीं लगा लेकिन आपकी हिम्मत पर आश्चर्य हुआ।" मैं शर्म से लाल भभूका होती हुई बोली।
"आश्चर्य क्यों हुआ?" वह भलीभांति जानता था कि मेरा आश्चर्यचकित होना मात्र एक दिखावा था।
"आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि मैंने जब से होश संभाला तब से आपको चाचा ही कहती आ रही हूं और चाचा के मुंह से ऐसी बात सुनकर आश्चर्य नहीं होगा तो और क्या होगा।" मै बोली।
"अच्छा? और वह क्या था जो तुम कार में कर रही थी? चाचा ही समझती तो कार के अंदर अपने उत्तेजक अंगों की नुमाइश क्यों कर रही थी? अब मेरे सामने भोली बनने का नाटक तो मत करो। तुम्हें पता भी है कि उस वक्त मेरी क्या दशा हो रही थी?" घनश्याम बोला। घनश्याम के सामने अब और कुछ नहीं बोल सकती थी मैं। सच ही तो था, कि मैं उनकी नजरों के सामने ज्यादा से ज्यादा अपने सेक्सी तन की, आंशिक ही सही, नुमाइश करके उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी ताकि वे मेरे तन की भाषा समझ कर अपने अंदर उठी हुई कामना को व्यक्त करें।
"क्या हालत हो रही थी जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं अब झूठ मूठ अपने बचाव में कुछ नहीं बोलना चाह रही थी। जब सबकुछ स्पष्ट हो ही गया है तो खुलकर बात करने में क्या समस्या है।
"जो तुम चाहती थी वही तो हुआ था। बस समय नहीं था वरना दिखा देता कि मैं नामर्द नहीं हूं।"
"समय का बहाना किसी और को सुनाईए, मुझे नहीं। कमसे कम अपना यंत्र ही दिखा देते।"
"उस समय मुझे पता नहीं था कि तुम इस तरह की लड़की हो। यह तो यहां आकर पता चला कि तुम किस तरह की लड़की हो, वरना घुसा की जगह आज मैं होता। अब यंत्र दिखाने की बात कर रही हो तो अभी भी दिखा सकता हूं, लेकिन यहां घुसा के सामने? और कहीं बड़ी मालकिन ने देख लिया तो मेरी नौकरी तो गयी समझ लो।" अब हमारे बीच घुमा फिरा कर बात नहीं हो रही थी बल्कि सीधे मुद्दे की बात हो रही थी।
"घुसा के सामने क्या पर्दा। अब तो घुसा से भी आपके मन की बात छिपी नहीं रह गई है। जहां तक मैं मम्मी को जानती हूं, वह अभी एक नींद मारे बिना अपने कमरे से बाहर नहीं निकलेंगी। वैसे अभी यहां उसने अपनी आंखों से जो कुछ देखा है और मेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता चला है, उसके बाद उसे नींद आ रही है कि नहीं यह नहीं बता सकती, फिर भी अपना यंत्र दिखाने का जोखिम उठाना चाहें तो दिखा सकते हैं। क्यों घुसा, सही कह रही हूं ना?" मैं जिस लहजे में बोली उससे मेरी उत्सुकता का पता चल रहा था। घुसा भी सहमति में सिर हिला दिया। इतनी देर तक हमारे बीच में जो भी वार्तालाप हुआ, घुसा बिल्कुल खामोशी के साथ सुन कर मजा ले रहा था। वैसे उसे क्या फर्क पड़ने वाला था। वह जानता था कि मैं उस पर पहले से ही फिदा हूं, एक और साझेदार मिल भी जाए तो पहला हक़ तो उसी का है, आखिर उद्घाटक जो ठहरा।
"फिर ठीक है, देख ही लो।" कहकर घनश्याम अपना पैंट ढीला करने लगा लेकिन पूरी तरह खोलकर अपना लंड निकालने में उसे मुश्किल हो रही थी। मुश्किल क्यों हो रही थी उसका कारण कुछ पलों में ही पता चल गया जब उसके पैंट और जांघिए के अंदर से करीब आठ इंच लंबा और करीब दो इंच मोटा दिल दहलाने वाला काला कोबरा फनफना कर बाहर निकल आया।
"हे भगवान!" मेरे मुंह से निकला। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। घुसा भी विस्मित हो कर घनश्याम का लंड देखता रह गया। घुसा के लंड से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था, बल्कि थोड़ा मोटा ही होगा।
"देख ली?" घनश्याम मुझे देखते हुए बोला। मेरी मुख मुद्रा देखकर वह मुस्कुरा रहा था।
"हहहह हां.... बाआआआआप रेएएएए.... इतना बड़ाआआआआ.....!" मैं अब भी भयभीत नजरों से उसे देख रही थी।
"देखना हो गया तो अब बंद करूं?"
"नहीं, जरा पकड़ कर देख सकती हूं?" मैं विश्वास करना चाहती थी कि यह सचमुच में वास्तविक है। इसके अलावा मैं उसे पकड़ कर उसकी विशालता का आंकलन और इतने बड़े लंड को पकड़ने के रोमांच से दो चार होना चाहती थी।
"जरूर जरूर, यह तुम्हारा ही है बिटिया।" वह बोला।
मैं डरते डरते उसके लंड को पहले छूकर देखी, फिर हथेली में ले कर पकड़ी। उफ उस गरमागरम लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मैं सिहर उठी। फिर सहसा मुझे क्या हुआ कि मैं उसके लंड को पकड़े पकड़े घनश्याम से लिपट गई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दी। घनश्याम भी एक पल को भौंचक्का रह गया।
"ओह अंकल यू आर ग्रेट।" मैं अपने होंठ अलग करके एक हाथ से उसके लंड को सहलाती हुई बोली। मैं उस लंड से चुदने की कल्पना करके ही सिहर उठी थी।
"ग्रेट तो तब होऊंगा जब मुझे मौका दोगी हमारी बिटिया रानी।" कहकर वह मेरे स्कर्ट को उठाकर मेरी नंगी चूतड़ को सहला कर बोला।