16-04-2024, 11:51 PM
"मैं दावे के साथ बोल सकता हूं कि यह आकस्मिक नहीं था। यह पहले से चल रहा है।" वह बेधड़क बोला।
"अगर मैं आपके दावे को चुनौती दूं तो?" मैं अब भी उसे ठोक बजा रही थी।
"मुझे तुम्हारी चुनौती मंजूर है। बोलो क्या चुनौती देना चाहती हो।" वह ताव में आकर बोला।
"यह जो आप कह रहे हैं यह तो आपका जुबानी दावा है। इसे आप साबित कैसे कर सकते हैं?" मैं बोली।
"तुम केवल एक मौका तो दो, मैं इसे साबित भी कर दूंगा।" वह अब थोड़ा जोश में आकर बोला। मैं जानती थी कि अब वह जोश में आ गया था और मेरे एक मौका देने का इंतजार कर रहा था।
"चलो मैं पूरी छूट देती हूं। आप साबित करके दिखाएं।" यह मेरी ओर से खुली छूट भी थी और चुनौती भी।
"तो साबित करूं ना?"
"हां बाबा हां। और कैसे बोलूं?"
"एक टेस्ट लूंगा, अगर तुम हां बोलो तो।" वह आशा पूर्ण नेत्रों से मुझे देखते हुए बोला।
"हां तो बोल रही हूं, और कैसे बोलूं?"
"टेस्ट से पहले टेस्ट का यंत्र देखना चाहोगी?" घनश्याम की आवाज में अब शरारत का पुट था और उसकी आंखों में हवस की चमक दिखाई दे रही थी। मैं उसके कहने का आशय समझ रही थी इसलिए मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था लेकिन वहां खड़ा घुसा हमारी बातें कितनी समझ रहा था पता नहीं।
"अ अ हां हां, क्यों नहीं। ज ज जरूर देखना चाहूंगी।" धड़कते दिल से हकलाते हुए मैं बोली। क्या वह यहीं दिखाने की हिम्मत करेगा?
"यहीं?" वह मेरी मनःस्थिति समझ गया था। वह मेरे भय और झिझक को महसूस कर रहा था।
"हहहह हां, यहां देखने में दिक्कत क्या है?" मैं देखने को उत्सुक भी थी लेकिन अंदर ही अंदर भयभीत भी थी और यह भी जानती थी कि वह यहां दिखाने की हिम्मत तो कत्तई नहीं करेगा।
"सोच लो। तुम्हें दिक्कत हो सकती है।"
"मुझे क्या दिक्कत हो सकती है भला।" मैं बोली और तभी मेरी नजर उसकी जांघों के बीच उठते हुए बेहद बड़े से उभार पर पड़ी। मैं भीतर ही भीतर गनगना उठी।
"सोच लो। यह सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की चीज नहीं है।" वह शैतानी मुस्कान के साथ बोला।
"ऐसा भी क्या यंत्र है जिसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं झिझकते हुए अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली।
"सुनोगी? हो सकता है सुनकर तुम्हें बुरा लगेगा।"
"कुछ बुरा नहीं मानूंगी, हां सुनाईए।"
"ठीक है तो पास आओ।"
"लो आ गई। अब बताईए।" मैं धड़कते हृदय के साथ उसके पास जाकर बोली। वह मेरे कान में धीरे से बोला,
"वह यंत्र है मेरा लंड।" कहकर मेरा चेहरा देखने लगा। इतने स्पष्ट शब्दों को सुनकर मेरा चेहरा कनपट्टी तक लाल हो उठा था। मैं जानती थी वह क्या बोलने वाला है लेकिन उसके मुंह से सुनना एक अलग ही रोमांचक अनुभव था। बचपन से लेकर आज तक जिसे मैं चाचा बोलती आ रही थी उसके मुंह से इस तरह का नंगा शब्द सुनने की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"हाय राम! बड़े बेशर्म हैं आप तो।" मैं आंखें बड़ी-बड़ी करके चकित नजरों से उन्हें देखकर बोली।
"अगर मैं आपके दावे को चुनौती दूं तो?" मैं अब भी उसे ठोक बजा रही थी।
"मुझे तुम्हारी चुनौती मंजूर है। बोलो क्या चुनौती देना चाहती हो।" वह ताव में आकर बोला।
"यह जो आप कह रहे हैं यह तो आपका जुबानी दावा है। इसे आप साबित कैसे कर सकते हैं?" मैं बोली।
"तुम केवल एक मौका तो दो, मैं इसे साबित भी कर दूंगा।" वह अब थोड़ा जोश में आकर बोला। मैं जानती थी कि अब वह जोश में आ गया था और मेरे एक मौका देने का इंतजार कर रहा था।
"चलो मैं पूरी छूट देती हूं। आप साबित करके दिखाएं।" यह मेरी ओर से खुली छूट भी थी और चुनौती भी।
"तो साबित करूं ना?"
"हां बाबा हां। और कैसे बोलूं?"
"एक टेस्ट लूंगा, अगर तुम हां बोलो तो।" वह आशा पूर्ण नेत्रों से मुझे देखते हुए बोला।
"हां तो बोल रही हूं, और कैसे बोलूं?"
"टेस्ट से पहले टेस्ट का यंत्र देखना चाहोगी?" घनश्याम की आवाज में अब शरारत का पुट था और उसकी आंखों में हवस की चमक दिखाई दे रही थी। मैं उसके कहने का आशय समझ रही थी इसलिए मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था लेकिन वहां खड़ा घुसा हमारी बातें कितनी समझ रहा था पता नहीं।
"अ अ हां हां, क्यों नहीं। ज ज जरूर देखना चाहूंगी।" धड़कते दिल से हकलाते हुए मैं बोली। क्या वह यहीं दिखाने की हिम्मत करेगा?
"यहीं?" वह मेरी मनःस्थिति समझ गया था। वह मेरे भय और झिझक को महसूस कर रहा था।
"हहहह हां, यहां देखने में दिक्कत क्या है?" मैं देखने को उत्सुक भी थी लेकिन अंदर ही अंदर भयभीत भी थी और यह भी जानती थी कि वह यहां दिखाने की हिम्मत तो कत्तई नहीं करेगा।
"सोच लो। तुम्हें दिक्कत हो सकती है।"
"मुझे क्या दिक्कत हो सकती है भला।" मैं बोली और तभी मेरी नजर उसकी जांघों के बीच उठते हुए बेहद बड़े से उभार पर पड़ी। मैं भीतर ही भीतर गनगना उठी।
"सोच लो। यह सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की चीज नहीं है।" वह शैतानी मुस्कान के साथ बोला।
"ऐसा भी क्या यंत्र है जिसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं झिझकते हुए अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली।
"सुनोगी? हो सकता है सुनकर तुम्हें बुरा लगेगा।"
"कुछ बुरा नहीं मानूंगी, हां सुनाईए।"
"ठीक है तो पास आओ।"
"लो आ गई। अब बताईए।" मैं धड़कते हृदय के साथ उसके पास जाकर बोली। वह मेरे कान में धीरे से बोला,
"वह यंत्र है मेरा लंड।" कहकर मेरा चेहरा देखने लगा। इतने स्पष्ट शब्दों को सुनकर मेरा चेहरा कनपट्टी तक लाल हो उठा था। मैं जानती थी वह क्या बोलने वाला है लेकिन उसके मुंह से सुनना एक अलग ही रोमांचक अनुभव था। बचपन से लेकर आज तक जिसे मैं चाचा बोलती आ रही थी उसके मुंह से इस तरह का नंगा शब्द सुनने की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"हाय राम! बड़े बेशर्म हैं आप तो।" मैं आंखें बड़ी-बड़ी करके चकित नजरों से उन्हें देखकर बोली।