16-04-2024, 09:37 PM
"अब मैं ही इन बदमाश लड़कों को उनके अंजाम तक पहुंचाऊंगी। कल ही मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे कॉलेज जा रही हूं और यह सुनिश्चित करूंगी कि उनको उचित दंड मिल जाए। तुमने बहुत अच्छा किया कि यह मोबाईल साथ ले आई। इससे बड़ा सबूत उनकी काली करतूतों का और क्या होगा।" मां बोली।
"एक मिनट मम्मी। जरा यह मोबाईल देना तो।" कहकर मैंने रफीक का मोबाईल मम्मी के हाथ से लेकर उन खास फोटो और वीडियोज को अपनी मोबाईल में कॉपी करने लगी। इसी वक्त मैंने रफीक की मोबाईल से रघु से संबंधित फोटो और वीडियो को डिलीट कर दिया। अब रघु के फोटो और वीडियोज मेरी मोबाईल में तो था लेकिन रफीक की मोबाईल से गायब हो चुका था। ट्रैश में भी नहीं था। अब रघु सुरक्षित था।
"क्यों कर रही हो यह?" मां ने पूछा तो मैंने बताया कि यह अतिरिक्त कॉपी इमरजेंसी बैकअप के लिए है। कॉलेज मैनेजमेंट में अगर कोई और भी इन कृत्यों में संलिप्त हो तो वह इसे डिलीट करने की कोशिश करेगा, ऐसी स्थिति में यह बैकअप हमारे काम आएगा। मां मेरी बुद्धिमत्ता की दाद देती हुई रफीक का मोबाईल ले कर तेज कदमों से अपने कमरे में चली गई।
"बाल बाल बचे।" मम्मी के वहां से जाते ही मेरे मुंह से निकला। सहसा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। वहां उपस्थित घनश्याम ने मेरी बात सुन ली और भौंचक्का हो कर अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगा। हे भगवान, यह मेरे मुंह से क्या निकल गया।
"क्या मतलब है इसका?" वह बोला।
"किसका?" मैं हकबका कर बोली।
"यही, कि बाल बाल बचे। पकड़ी तो गयी ही।" वह बोला।
"ओह, कुछ नहीं। बस यही बोल रही थी कि आज वहां कॉलेज में बाल बाल बची, वरना वे लोग मेरे साथ क्या क्या करते वह तो भगवान ही जानता था होगा।" मैं बात घुमा कर बोली।
"ओह, मैं समझा यहां के बारे में बोल रही हो। लेकिन मुझे अब भी लगता है कि यहां जो कुछ हुआ वह आज की अकेली घटना नहीं है।" वह बोला।
"ऐसा क्यों लगता है आपको?'"
"मेरे बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं।"
"ओह, फिर मेरा चरित्र भी पता चल गया होगा?" अब मैं भी ढिठाई पर उतर आई।
"थोड़ा थोड़ा।" वह बोला। वह धीरे-धीरे खुलने लगा था।
"थोड़ा थोड़ा क्यों , पूरा ही पता चल जाना चाहिए था?" मैं बोली।
"पूरा पता चल जाता तो आज घुसा की जगह मैं होता।" अब वह पूरी तरह खुल गया था और मुझे घूर कर देखने लगा।
"ओह चाचाजी, आप भी?" मैं उनकी हिम्मत की दाद देने लगी। उनका आशय समझ कर मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। यही तो मैं चाहती थी कि कब वे अपनी चाहत शब्दों के माध्यम से व्यक्त करेंगे।
"हां मैं भी। आखिर मर्द हूं। सबकुछ समझता हूं।" वह बोला। वहां खड़ा घुसा हमारी बातें सुनकर मुस्कुरा उठा था। उसे अंदेशा हो गया था कि घनश्याम के रूप में मुझे खाने के लिए एक और भागीदार पैदा हो गया था। उनको क्या पता था कि रघु नाम का एक और भागीदार भी मेरी सूचि में शामिल हो चुका था।
"तो उस समय कार में आते वक्त आपकी मर्दानगी को क्या हो गया था?" मैं उसे चुनौती देती हुई बोली।
"उस वक्त तक मुझे तुम्हारे बारे में पूरा पता कहां था। कुछ करता और तुम्हारी प्रतिक्रिया विपरीत होती तो मैं तो गया था काम से।" वह बिंदास बोल रहा था और मैं घर में ही एक और जुगाड़ मिल जाने से खुश हो उठी।
"तो अब क्या लगता है आपको, मेरे बारे में पूरा पता लग गया?" मैं अब भी उसकी परीक्षा लेती हुई बोली। कहीं यह तुक्का तो नहीं मार रहा है।
"हां हां, यहां जो कुछ तुम्हारे और घुसा के बीच हो रहा था उसे देखकर पूरा पता लग गया।" पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला वह।
"तो आपको नहीं लगता है कि यह आकस्मिक था?" मैं अब भी पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाह रही थी कि वह जो बोल रहा था उस पर उसे कितना विश्वास था।
"एक मिनट मम्मी। जरा यह मोबाईल देना तो।" कहकर मैंने रफीक का मोबाईल मम्मी के हाथ से लेकर उन खास फोटो और वीडियोज को अपनी मोबाईल में कॉपी करने लगी। इसी वक्त मैंने रफीक की मोबाईल से रघु से संबंधित फोटो और वीडियो को डिलीट कर दिया। अब रघु के फोटो और वीडियोज मेरी मोबाईल में तो था लेकिन रफीक की मोबाईल से गायब हो चुका था। ट्रैश में भी नहीं था। अब रघु सुरक्षित था।
"क्यों कर रही हो यह?" मां ने पूछा तो मैंने बताया कि यह अतिरिक्त कॉपी इमरजेंसी बैकअप के लिए है। कॉलेज मैनेजमेंट में अगर कोई और भी इन कृत्यों में संलिप्त हो तो वह इसे डिलीट करने की कोशिश करेगा, ऐसी स्थिति में यह बैकअप हमारे काम आएगा। मां मेरी बुद्धिमत्ता की दाद देती हुई रफीक का मोबाईल ले कर तेज कदमों से अपने कमरे में चली गई।
"बाल बाल बचे।" मम्मी के वहां से जाते ही मेरे मुंह से निकला। सहसा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। वहां उपस्थित घनश्याम ने मेरी बात सुन ली और भौंचक्का हो कर अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगा। हे भगवान, यह मेरे मुंह से क्या निकल गया।
"क्या मतलब है इसका?" वह बोला।
"किसका?" मैं हकबका कर बोली।
"यही, कि बाल बाल बचे। पकड़ी तो गयी ही।" वह बोला।
"ओह, कुछ नहीं। बस यही बोल रही थी कि आज वहां कॉलेज में बाल बाल बची, वरना वे लोग मेरे साथ क्या क्या करते वह तो भगवान ही जानता था होगा।" मैं बात घुमा कर बोली।
"ओह, मैं समझा यहां के बारे में बोल रही हो। लेकिन मुझे अब भी लगता है कि यहां जो कुछ हुआ वह आज की अकेली घटना नहीं है।" वह बोला।
"ऐसा क्यों लगता है आपको?'"
"मेरे बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं।"
"ओह, फिर मेरा चरित्र भी पता चल गया होगा?" अब मैं भी ढिठाई पर उतर आई।
"थोड़ा थोड़ा।" वह बोला। वह धीरे-धीरे खुलने लगा था।
"थोड़ा थोड़ा क्यों , पूरा ही पता चल जाना चाहिए था?" मैं बोली।
"पूरा पता चल जाता तो आज घुसा की जगह मैं होता।" अब वह पूरी तरह खुल गया था और मुझे घूर कर देखने लगा।
"ओह चाचाजी, आप भी?" मैं उनकी हिम्मत की दाद देने लगी। उनका आशय समझ कर मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। यही तो मैं चाहती थी कि कब वे अपनी चाहत शब्दों के माध्यम से व्यक्त करेंगे।
"हां मैं भी। आखिर मर्द हूं। सबकुछ समझता हूं।" वह बोला। वहां खड़ा घुसा हमारी बातें सुनकर मुस्कुरा उठा था। उसे अंदेशा हो गया था कि घनश्याम के रूप में मुझे खाने के लिए एक और भागीदार पैदा हो गया था। उनको क्या पता था कि रघु नाम का एक और भागीदार भी मेरी सूचि में शामिल हो चुका था।
"तो उस समय कार में आते वक्त आपकी मर्दानगी को क्या हो गया था?" मैं उसे चुनौती देती हुई बोली।
"उस वक्त तक मुझे तुम्हारे बारे में पूरा पता कहां था। कुछ करता और तुम्हारी प्रतिक्रिया विपरीत होती तो मैं तो गया था काम से।" वह बिंदास बोल रहा था और मैं घर में ही एक और जुगाड़ मिल जाने से खुश हो उठी।
"तो अब क्या लगता है आपको, मेरे बारे में पूरा पता लग गया?" मैं अब भी उसकी परीक्षा लेती हुई बोली। कहीं यह तुक्का तो नहीं मार रहा है।
"हां हां, यहां जो कुछ तुम्हारे और घुसा के बीच हो रहा था उसे देखकर पूरा पता लग गया।" पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला वह।
"तो आपको नहीं लगता है कि यह आकस्मिक था?" मैं अब भी पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाह रही थी कि वह जो बोल रहा था उस पर उसे कितना विश्वास था।