15-04-2024, 09:43 AM
"अगर विश्वास न हो तो खुद देख लो।" कहकर मैं ने मोबाइल मां के हाथों में थमा दिया। उसमें मेरी नग्न तस्वीरों के अलावा कई लड़कियों की अश्लील तस्वीरें और उनके संभोग रत वीडियो भरे पड़े थे।
"हे भगवान।" यह सब देखकर बस यही उद्गार मेरी मां के मुंह से निकला।
"अब आगे यहां देखिए" कहकर मैंने अपनी मोबाइल में उन लड़कों की नग्न और घायल तस्वीरों को दिखाया। यह सब दिखाने के बाद अब मुझे और कुछ कहना नहीं पड़ा। सभी मुझे चकित नजरों से देख रहे थे कि मैं अकेली लड़की उन छंटे हुए बदमाशों की इस तरह दुर्दशा करने में कैसे सफल हो पाई।
"अब आगे सुनिए और निर्णय कीजिए कि घुसा को यहां से जाना चाहिए या रहना चाहिए। उस जगह मेरे साथ वे अपनी हसरत तो पूरी नहीं कर सके लेकिन मेरे बदन के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करने में सफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा बदन सुलग उठा था। अपने सुलगते बदन की तपिश के वशीभूत यहां आकर मैंने ही घुसा को जबरदस्ती इस कृत्य के लिए उकसाया और यहां यह सब हुआ। यह बेचारा तो मना करता रहा लेकिन कब तक मना करता, आखिर यह भी मर्द है, कब-तक खुद को कंट्रोल करता, अंततः मेरी इच्छा के आगे हथियार डाल दिया और जो कुछ हुआ वह आपने देखा। अब आगे फैसला आपका। मुझे और कुछ नहीं कहना है।" कहकर मैं चुप हो गई। मैं ने जो कुछ कहा था उसमें काफी कुछ सच था और काफी कुछ झूठ। झूठ इसलिए, क्योंकि घुसा तो पहले से ही मुझे चोदने को तैयार था, उसे उकसाने की जरूरत कहां थी। मैंने बड़ी चतुराई से रघु का जिक्र इस कहानी में हल्का सा किया था, जिस कारण किसी ने रघु के नाम को कोई खास तवज्जो नहीं दी। रघु की भी खास भूमिका इस घटना में थी, क्योंकि बिना उसके सहयोग के वे लोग इस प्रकार की घटनाओं को इतनी सुगमता के साथ अंजाम नहीं दे सकते थे लेकिन जिस तरह से मैंने इस घटना को पेश किया था उससे रघु की संलिप्तता का पता नहीं चल रहा था। अगर रघु की संलिप्तता का पता चलता तो उसे भी मेरी मां छोड़ने वाली नहीं थी। मैं अपनी बात खत्म करके कभी मां को देखती कभी घनश्याम को, जो अभी तक वहां खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। मेरी बातें सुनकर मां तो निःशब्द हो गई।
तभी मेरी मां का ध्यान घनश्याम की ओर गया और वह इस बात से तनिक घबरा उठी कि इस घटना का एक और राजदार पैदा हो चुका था। वह घनश्याम की ओर मुखातिब हो कर बोली, "जो कुछ आपने यहां देखा और सुना, यह आप तक ही रहना चाहिए, समझ गये ना?"
"मैं समझता हूं मैडमजी। आप मुझपर भरोसा कर सकती हैं।" घनश्याम विश्वास दिलाता हुआ बोला।
मां तो आश्वस्त हो गई लेकिन मुझे इसका अंदाजा था कि घनश्याम आगे क्या गुल खिलाने वाला था। सारी बातें साफ होने के बाद मेरी मां सहज हो गई। इधर घनश्याम की मनःस्थिति की मैं कल्पना कर सकती थी। उस बेचारे को उकसाने की मैंने जो कोशिश की थी वह सफल हो चुकी थी लेकिन इस वक्त तो मौका उसके हाथ से निकल चुका था वरना आज इस सुनहरे मौके का लाभ उसे ही मिलने वाला था। जो कुछ यहां घुसा के साथ हुआ, वह घनश्याम के साथ भी हो सकता था। वह जरूर अपनी किस्मत को कोस रहा था होगा। खैर मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल घनश्याम की मुराद पूरी होनी ही थी। आखिर मैं कहीं भागी तो नहीं जा रही हूं और न ही घनश्याम कहीं भागा जा रहा था।
"ओके ओके, अब मैं समझ सकती हूं कि यहां हमने जो कुछ देखा वह क्यों हुआ। और घुसा, आज जो भी हुआ सो हुआ, आईंदा यह दुबारा नहीं होना चाहिए। समझ गये?" एक लंबी सांस ले कर मां बोली। मुझे मन ही मन हंसी आ गई। यह तो पहले से होता आ रहा था, यह तो आज ही हम रंगे हाथ पकड़े गये। आईंदा यह नहीं होगा, यह तो हो नहीं सकता था, यह मैं भी जानती थी और घुसा भी जानता था। सबसे मजेदार बात तो यह हुई कि इस दौरान मैं घनश्याम को अपने आकर्षण जाल में फांस चुकी थी। आज नहीं तो कल निश्चित रूप से मैं खुद ही उसकी गोद में गिरने वाली थी। अब यह कब और कैसे होगा यह तो भविष्य के गर्त में था।
"हे भगवान।" यह सब देखकर बस यही उद्गार मेरी मां के मुंह से निकला।
"अब आगे यहां देखिए" कहकर मैंने अपनी मोबाइल में उन लड़कों की नग्न और घायल तस्वीरों को दिखाया। यह सब दिखाने के बाद अब मुझे और कुछ कहना नहीं पड़ा। सभी मुझे चकित नजरों से देख रहे थे कि मैं अकेली लड़की उन छंटे हुए बदमाशों की इस तरह दुर्दशा करने में कैसे सफल हो पाई।
"अब आगे सुनिए और निर्णय कीजिए कि घुसा को यहां से जाना चाहिए या रहना चाहिए। उस जगह मेरे साथ वे अपनी हसरत तो पूरी नहीं कर सके लेकिन मेरे बदन के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करने में सफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा बदन सुलग उठा था। अपने सुलगते बदन की तपिश के वशीभूत यहां आकर मैंने ही घुसा को जबरदस्ती इस कृत्य के लिए उकसाया और यहां यह सब हुआ। यह बेचारा तो मना करता रहा लेकिन कब तक मना करता, आखिर यह भी मर्द है, कब-तक खुद को कंट्रोल करता, अंततः मेरी इच्छा के आगे हथियार डाल दिया और जो कुछ हुआ वह आपने देखा। अब आगे फैसला आपका। मुझे और कुछ नहीं कहना है।" कहकर मैं चुप हो गई। मैं ने जो कुछ कहा था उसमें काफी कुछ सच था और काफी कुछ झूठ। झूठ इसलिए, क्योंकि घुसा तो पहले से ही मुझे चोदने को तैयार था, उसे उकसाने की जरूरत कहां थी। मैंने बड़ी चतुराई से रघु का जिक्र इस कहानी में हल्का सा किया था, जिस कारण किसी ने रघु के नाम को कोई खास तवज्जो नहीं दी। रघु की भी खास भूमिका इस घटना में थी, क्योंकि बिना उसके सहयोग के वे लोग इस प्रकार की घटनाओं को इतनी सुगमता के साथ अंजाम नहीं दे सकते थे लेकिन जिस तरह से मैंने इस घटना को पेश किया था उससे रघु की संलिप्तता का पता नहीं चल रहा था। अगर रघु की संलिप्तता का पता चलता तो उसे भी मेरी मां छोड़ने वाली नहीं थी। मैं अपनी बात खत्म करके कभी मां को देखती कभी घनश्याम को, जो अभी तक वहां खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। मेरी बातें सुनकर मां तो निःशब्द हो गई।
तभी मेरी मां का ध्यान घनश्याम की ओर गया और वह इस बात से तनिक घबरा उठी कि इस घटना का एक और राजदार पैदा हो चुका था। वह घनश्याम की ओर मुखातिब हो कर बोली, "जो कुछ आपने यहां देखा और सुना, यह आप तक ही रहना चाहिए, समझ गये ना?"
"मैं समझता हूं मैडमजी। आप मुझपर भरोसा कर सकती हैं।" घनश्याम विश्वास दिलाता हुआ बोला।
मां तो आश्वस्त हो गई लेकिन मुझे इसका अंदाजा था कि घनश्याम आगे क्या गुल खिलाने वाला था। सारी बातें साफ होने के बाद मेरी मां सहज हो गई। इधर घनश्याम की मनःस्थिति की मैं कल्पना कर सकती थी। उस बेचारे को उकसाने की मैंने जो कोशिश की थी वह सफल हो चुकी थी लेकिन इस वक्त तो मौका उसके हाथ से निकल चुका था वरना आज इस सुनहरे मौके का लाभ उसे ही मिलने वाला था। जो कुछ यहां घुसा के साथ हुआ, वह घनश्याम के साथ भी हो सकता था। वह जरूर अपनी किस्मत को कोस रहा था होगा। खैर मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल घनश्याम की मुराद पूरी होनी ही थी। आखिर मैं कहीं भागी तो नहीं जा रही हूं और न ही घनश्याम कहीं भागा जा रहा था।
"ओके ओके, अब मैं समझ सकती हूं कि यहां हमने जो कुछ देखा वह क्यों हुआ। और घुसा, आज जो भी हुआ सो हुआ, आईंदा यह दुबारा नहीं होना चाहिए। समझ गये?" एक लंबी सांस ले कर मां बोली। मुझे मन ही मन हंसी आ गई। यह तो पहले से होता आ रहा था, यह तो आज ही हम रंगे हाथ पकड़े गये। आईंदा यह नहीं होगा, यह तो हो नहीं सकता था, यह मैं भी जानती थी और घुसा भी जानता था। सबसे मजेदार बात तो यह हुई कि इस दौरान मैं घनश्याम को अपने आकर्षण जाल में फांस चुकी थी। आज नहीं तो कल निश्चित रूप से मैं खुद ही उसकी गोद में गिरने वाली थी। अब यह कब और कैसे होगा यह तो भविष्य के गर्त में था।