12-04-2024, 06:42 PM
"देखी? तुम्हारी गांड़ फैल कर मेरे लंड को रास्ता दे रही है।" वह बोला।
"फैल कर नहीं मां के लौड़े मादरचोओओओद.... फट कर बोलो, फट कर। फट गई मेरी गांड़। ओह बहुत दर्द हो रहा है।" मैं कराहती हुई बोली।
"बस बस हो गया जो होना था। अब हिलो मत और देखो अभिए दर्द कैसे गायब हो जाएगा।"
घुसा बड़ा शातिर और बेहद कुशल चुदक्कड़ था। वह अच्छी तरह से जानता था कि पहली बार किसी की गांड़ कैसे मारी जाती है। उसके कुछ पलों के विराम से ही मुझे बड़ी राहत का अनुभव होने लगा था। मैं ने अब हिल डुल कर विरोध करने का प्रयास छोड़ दिया और अपनी टाईट गांड़ में उसके आधे लंड को आत्मसात करके शांत रही क्योंकि अब मुझे पीड़ा नहीं हो रही थी। घुसा ने उसी तरह स्थिर रह कर एक हाथ से मेरी चूत सहलाना आरंभ कर दिया। यह एक अनोखा सुखद अनुभव था मेरे लिए। मुझे अब मजा आने लगा था। वह अपनी जादुई उंगलियों से मेरे भगनासे से छेड़छाड़ आरंभ कर दिया।
"आआआआह ओओओहहह जादूगर.....इस्स्स्स्स" मैं सिसक उठी। घुसा का दूसरा हाथ अब मेरी चूचियों पर पहुंच गया था और उससे वह मेरी चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा था। मैं तो जन्नत में पहुंच गई थी। घुसा समझ गया कि अब मुझे मजा आने लगा है।
"देखी? अब मजा आ रहा है ना? असली मजा तो अभी बाकी है, थोड़ा धीरज से काम लो तो पूरा मज़ा मिलेगा।" घुसा बोला।
"धीरज ही तो नहीं हो रहा है। जल्दी कर जो करना है।" मैं बदहवासी के आलम में बोली। अब घुसा ने मौका ताड़कर झट से मेरी कमर को को दुबारा कस कर पकड़ा और एक और करारा धक्का मार कर अपना पूरा लंड मेरी गांड़ में घुसेड़ दिया।
"आआआआह हरामी साले, मार ही डालोगे क्या आआआआह , इसी के लिए धीरज धरने को बोल रहे थे? आखिर फाड़ ही दिया ना?" मैं इस आकस्मिक हमले से दुबारा पीड़ा के मारे चीख पड़ी। उसका पूरा आठ इंच का लंड अब मेरी गांड़ के अंदर जड़ तक समा चुका था। मेरी तो जान ही हलक में आ गई थी। ऐसा लगा जैसे मेरी अंतड़ियों को फाड़ ही डालेगा मादरचोद। मैं छटपटाने लगी लेकिन उसकी पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। घुसा फिर उसी स्थिति में स्थिर हो गया और कुछ ही पलों के उस विराम में मानो चमत्कार हो गया। मेरी गांड़ का दर्द धीरे धीरे समाप्त होने लगा और धीरे-धीरे वह दर्द कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला। घुसा सब समझ रहा था। मेरी मन: स्थिति से अनभिज्ञ नहीं था वह।
"अब कैसा लग रहा है?"
"हाय राम, बहुत अच्छा लग रहा है।" मैं बोल उठी।
उफ उतना बड़ा लंड मेरी गांड़ में पूरी तरह समाया हुआ था और मैं कुछ भी दर्द का अनुभव नहीं कर रही थी, जबकि मेरी गांड़ फटने की सीमा तक फैल चुका था। यह चमत्कार नहीं था तो और क्या था। उसका लंड लंबा ही नहीं, उसी के अनुपात में मोटा भी था जिसके कारण मेरी गांड़ का रास्ता अपनी क्षमता से बाहर फैल चुका था और उसके लंड को सख्ती से अपनी गिरफ्त में ले चुका था। मेरे अंदर पूरी तरह संपूर्णता का अहसास हो रहा था। इधर घुसा फिर से मेरी चूचियों और चूत से खेलने लगा। यह अद्भुत अनुभव था। बेहद आनंददायक।
"फैल कर नहीं मां के लौड़े मादरचोओओओद.... फट कर बोलो, फट कर। फट गई मेरी गांड़। ओह बहुत दर्द हो रहा है।" मैं कराहती हुई बोली।
"बस बस हो गया जो होना था। अब हिलो मत और देखो अभिए दर्द कैसे गायब हो जाएगा।"
घुसा बड़ा शातिर और बेहद कुशल चुदक्कड़ था। वह अच्छी तरह से जानता था कि पहली बार किसी की गांड़ कैसे मारी जाती है। उसके कुछ पलों के विराम से ही मुझे बड़ी राहत का अनुभव होने लगा था। मैं ने अब हिल डुल कर विरोध करने का प्रयास छोड़ दिया और अपनी टाईट गांड़ में उसके आधे लंड को आत्मसात करके शांत रही क्योंकि अब मुझे पीड़ा नहीं हो रही थी। घुसा ने उसी तरह स्थिर रह कर एक हाथ से मेरी चूत सहलाना आरंभ कर दिया। यह एक अनोखा सुखद अनुभव था मेरे लिए। मुझे अब मजा आने लगा था। वह अपनी जादुई उंगलियों से मेरे भगनासे से छेड़छाड़ आरंभ कर दिया।
"आआआआह ओओओहहह जादूगर.....इस्स्स्स्स" मैं सिसक उठी। घुसा का दूसरा हाथ अब मेरी चूचियों पर पहुंच गया था और उससे वह मेरी चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा था। मैं तो जन्नत में पहुंच गई थी। घुसा समझ गया कि अब मुझे मजा आने लगा है।
"देखी? अब मजा आ रहा है ना? असली मजा तो अभी बाकी है, थोड़ा धीरज से काम लो तो पूरा मज़ा मिलेगा।" घुसा बोला।
"धीरज ही तो नहीं हो रहा है। जल्दी कर जो करना है।" मैं बदहवासी के आलम में बोली। अब घुसा ने मौका ताड़कर झट से मेरी कमर को को दुबारा कस कर पकड़ा और एक और करारा धक्का मार कर अपना पूरा लंड मेरी गांड़ में घुसेड़ दिया।
"आआआआह हरामी साले, मार ही डालोगे क्या आआआआह , इसी के लिए धीरज धरने को बोल रहे थे? आखिर फाड़ ही दिया ना?" मैं इस आकस्मिक हमले से दुबारा पीड़ा के मारे चीख पड़ी। उसका पूरा आठ इंच का लंड अब मेरी गांड़ के अंदर जड़ तक समा चुका था। मेरी तो जान ही हलक में आ गई थी। ऐसा लगा जैसे मेरी अंतड़ियों को फाड़ ही डालेगा मादरचोद। मैं छटपटाने लगी लेकिन उसकी पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। घुसा फिर उसी स्थिति में स्थिर हो गया और कुछ ही पलों के उस विराम में मानो चमत्कार हो गया। मेरी गांड़ का दर्द धीरे धीरे समाप्त होने लगा और धीरे-धीरे वह दर्द कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला। घुसा सब समझ रहा था। मेरी मन: स्थिति से अनभिज्ञ नहीं था वह।
"अब कैसा लग रहा है?"
"हाय राम, बहुत अच्छा लग रहा है।" मैं बोल उठी।
उफ उतना बड़ा लंड मेरी गांड़ में पूरी तरह समाया हुआ था और मैं कुछ भी दर्द का अनुभव नहीं कर रही थी, जबकि मेरी गांड़ फटने की सीमा तक फैल चुका था। यह चमत्कार नहीं था तो और क्या था। उसका लंड लंबा ही नहीं, उसी के अनुपात में मोटा भी था जिसके कारण मेरी गांड़ का रास्ता अपनी क्षमता से बाहर फैल चुका था और उसके लंड को सख्ती से अपनी गिरफ्त में ले चुका था। मेरे अंदर पूरी तरह संपूर्णता का अहसास हो रहा था। इधर घुसा फिर से मेरी चूचियों और चूत से खेलने लगा। यह अद्भुत अनुभव था। बेहद आनंददायक।