11-04-2024, 01:46 PM
"थैंक्स अंकल।" कहकर मैं मुड़ने ही वाली थी कि घनश्याम की लरजती हुई आवाज आई,
"रोज बिटिया, एक बात थी....." बोल कर वह चुप हो गया।
"हां हां बोलिए" मै धड़कते हृदय से बोली।
"क क क कुछ नहीं....." वह इतना ही बोल कर चुप हो गया। बेचारा, बोल कर अपनी मनोदशा को व्यक्त भी नहीं कर पा रहा था।
"बोलिए ना, क्या बात है?" मैं सुनने को बेताब थी।
"बाद में बोलूंगा।" कहकर वह चुप हो गया और कार को पार्क करने के लिए कार को आगे बढ़ाने ही वाला था कि मेरे मुंह से निकला,
"हाय राम, यह मेरे ब्लाऊज का बटन कब टूट कर गिर गया?" मैं बनावटी हैरानी के साथ बोली और बोलने के क्रम में अपने ब्लाऊज को सामने की ओर और ज्यादा खोल कर बेध्यानी का ढोंग करती हुई इस तरह अपने शरीर का पोज बनाई जिससे मेरी उन्नत चूचियों का पूरा दर्शन घनश्याम को हो जाए। सचमुच यह लोमहर्षक दृष्य देख कर घनश्याम की आंखें तो फटी की फटी रह गईं। मैं समझ गई कि तीर निशाने पर लग गया है। उफ, क्या बीती होगी मेरी मदमस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर घनश्याम के दिल पर, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं था। घनश्याम की हसरत को हवा देकर उसे हतप्रभ हालत में छोड़कर मैं फुर्ती से अपनी छाती ढंकती हुई घर के दरवाजे की ओर बढ़ गयी। उधर घनश्याम बुत बना मुझे जाती हुई पीछे से देखता रह गया।
इधर जैसे ही कॉल-बेल की आवाज आई कि पल भर बाद ही दरवाजा खुला और सामने घुसा खड़ा मिला। ऐसा लगा जैसे वह मेरा ही इन्तजार कर रहा हो। तभी पीछे से फिर से कार के बाहर जाने की आवाज आई। जा रहा होगा बेचारा घनश्याम कहीं, पर मुझे क्या, सामने मेरे तपते जिस्म को ठंढक प्रदान करने हेतु घुसा जो प्रस्तुत था।
"आज बहुत देर हो गई बिटिया?" प्रश्न दाग बैठा था घुसा। उसकी आवाज में मेरे देर होने के कारण परेशानी नहीं बल्कि मेरे इंतजार की बेकरारी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मैंने उत्तर में अपने ब्लाऊज के सामने का हिस्सा छोड़ दिया जिस कारण सामने से मेरी भरी पूरी चूचियां मचलती हुई दिखाई दे रही थीं।
"कुछ बोलने की जरूरत है मुझे?" मैं बोली।
"नहीं, कुछ नहीं। कुछ न बोलो बिटिया। सब कुछ समझ गये हम।" कहकर उसने मेरे दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही मुझे दबोच लिया और बेहताशा चूमने लगा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे तपती गर्मी में मुझपर शीतल जल की बौछार हो रही हो। इतनी देर से अपने अंदर जो ज्वाला धधक रही थी उसकी तपन कम हो रही हो।
"यहीं?" वह बेहताशा चूमते हुए बोला।
"हां यहीं।" मैं उसकी बांहों में समा कर उत्तेजना के मारे हांफती हुई बोली।
"तुम्हारी मां आ गई तो?" वह मुझे सावधान करने के मतलब से बोला।
"साले मादरचोद, देख नहीं रहे हो मेरी हालत? चुदने के लिए मरी जा रही हूं। भगवान इतना निर्दई नहीं है कि इस वक्त मां को यहां भेजेगा।" मैं बेताब हो कर अपने कपड़े उतारने लगी। आनन-फानन मैं स्कर्ट और पैंटी उतार कर कमर से नीचे नंगी हो गई। ब्लाऊज को पूरी तरह उतारने की जरूरत भी क्या थी। फिर भी उतार कर मादरजात नंगी हो गई। मेरी उतावली घुसा को पागल करने के लिए काफी थी। वह भी होश खो बैठा और आव देखा न ताव, उसने मेरे नंगे जिस्म के नाजुक अंगों से खेलना शुरू कर दिया।
"बहुत जोश में हो।" वह बोला।
"मां के लौड़े, होश की बात कर रहे हो? पागल हो रही हूं मैं। जल्दी निकाल अपने पपलू को बाहर।" मुझसे रहा नहीं जा रहा था। इससे पहले कि वह और कुछ करता, मैं खुद ही झपट कर उसके पैजामे के नाड़े को खोल कर पैजामा नीचे खिसका दिया। साला हरामी आज भी अंडरवियर नहीं पहना था। एकदम साफ था कि जैसे ही मैं पहुंचुंगी, वह मुझे चोदने के लिए झपटने को तैयार था। जैसे ही उसका पैजामा नीचे खिसका, उसका मस्ताना मूसल उछल कर सामने फुंफकार मारने लगा। मैं ने आव देखा न ताव, दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ कर मुंह में ले कर चूसने लगी।
"आह मेरी बिटिया रानी। चूस मेरा लौड़ा। ओह साली पगली कहीं की। बहुत बढ़िया चूस रही हो। आज तो पागल हो गई हो। इतना बढ़िया तो पहिले कभी चूसी नहीं थी। बाप रे बाप, पूरा लंड खा जाओगी क्या? बहुत बढ़िया।" घुसा मेरी बेताबी से चूसने से खुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था। अब मैं उसका लंड हाथों से छोड़ कर उसकी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींचती हुई चूस रही थी। वह भी अब मेरा सर पकड़ कर अपनी कमर चलाते हुए मेरा मुंह चोदने लगा था।
"रोज बिटिया, एक बात थी....." बोल कर वह चुप हो गया।
"हां हां बोलिए" मै धड़कते हृदय से बोली।
"क क क कुछ नहीं....." वह इतना ही बोल कर चुप हो गया। बेचारा, बोल कर अपनी मनोदशा को व्यक्त भी नहीं कर पा रहा था।
"बोलिए ना, क्या बात है?" मैं सुनने को बेताब थी।
"बाद में बोलूंगा।" कहकर वह चुप हो गया और कार को पार्क करने के लिए कार को आगे बढ़ाने ही वाला था कि मेरे मुंह से निकला,
"हाय राम, यह मेरे ब्लाऊज का बटन कब टूट कर गिर गया?" मैं बनावटी हैरानी के साथ बोली और बोलने के क्रम में अपने ब्लाऊज को सामने की ओर और ज्यादा खोल कर बेध्यानी का ढोंग करती हुई इस तरह अपने शरीर का पोज बनाई जिससे मेरी उन्नत चूचियों का पूरा दर्शन घनश्याम को हो जाए। सचमुच यह लोमहर्षक दृष्य देख कर घनश्याम की आंखें तो फटी की फटी रह गईं। मैं समझ गई कि तीर निशाने पर लग गया है। उफ, क्या बीती होगी मेरी मदमस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर घनश्याम के दिल पर, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं था। घनश्याम की हसरत को हवा देकर उसे हतप्रभ हालत में छोड़कर मैं फुर्ती से अपनी छाती ढंकती हुई घर के दरवाजे की ओर बढ़ गयी। उधर घनश्याम बुत बना मुझे जाती हुई पीछे से देखता रह गया।
इधर जैसे ही कॉल-बेल की आवाज आई कि पल भर बाद ही दरवाजा खुला और सामने घुसा खड़ा मिला। ऐसा लगा जैसे वह मेरा ही इन्तजार कर रहा हो। तभी पीछे से फिर से कार के बाहर जाने की आवाज आई। जा रहा होगा बेचारा घनश्याम कहीं, पर मुझे क्या, सामने मेरे तपते जिस्म को ठंढक प्रदान करने हेतु घुसा जो प्रस्तुत था।
"आज बहुत देर हो गई बिटिया?" प्रश्न दाग बैठा था घुसा। उसकी आवाज में मेरे देर होने के कारण परेशानी नहीं बल्कि मेरे इंतजार की बेकरारी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मैंने उत्तर में अपने ब्लाऊज के सामने का हिस्सा छोड़ दिया जिस कारण सामने से मेरी भरी पूरी चूचियां मचलती हुई दिखाई दे रही थीं।
"कुछ बोलने की जरूरत है मुझे?" मैं बोली।
"नहीं, कुछ नहीं। कुछ न बोलो बिटिया। सब कुछ समझ गये हम।" कहकर उसने मेरे दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही मुझे दबोच लिया और बेहताशा चूमने लगा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे तपती गर्मी में मुझपर शीतल जल की बौछार हो रही हो। इतनी देर से अपने अंदर जो ज्वाला धधक रही थी उसकी तपन कम हो रही हो।
"यहीं?" वह बेहताशा चूमते हुए बोला।
"हां यहीं।" मैं उसकी बांहों में समा कर उत्तेजना के मारे हांफती हुई बोली।
"तुम्हारी मां आ गई तो?" वह मुझे सावधान करने के मतलब से बोला।
"साले मादरचोद, देख नहीं रहे हो मेरी हालत? चुदने के लिए मरी जा रही हूं। भगवान इतना निर्दई नहीं है कि इस वक्त मां को यहां भेजेगा।" मैं बेताब हो कर अपने कपड़े उतारने लगी। आनन-फानन मैं स्कर्ट और पैंटी उतार कर कमर से नीचे नंगी हो गई। ब्लाऊज को पूरी तरह उतारने की जरूरत भी क्या थी। फिर भी उतार कर मादरजात नंगी हो गई। मेरी उतावली घुसा को पागल करने के लिए काफी थी। वह भी होश खो बैठा और आव देखा न ताव, उसने मेरे नंगे जिस्म के नाजुक अंगों से खेलना शुरू कर दिया।
"बहुत जोश में हो।" वह बोला।
"मां के लौड़े, होश की बात कर रहे हो? पागल हो रही हूं मैं। जल्दी निकाल अपने पपलू को बाहर।" मुझसे रहा नहीं जा रहा था। इससे पहले कि वह और कुछ करता, मैं खुद ही झपट कर उसके पैजामे के नाड़े को खोल कर पैजामा नीचे खिसका दिया। साला हरामी आज भी अंडरवियर नहीं पहना था। एकदम साफ था कि जैसे ही मैं पहुंचुंगी, वह मुझे चोदने के लिए झपटने को तैयार था। जैसे ही उसका पैजामा नीचे खिसका, उसका मस्ताना मूसल उछल कर सामने फुंफकार मारने लगा। मैं ने आव देखा न ताव, दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ कर मुंह में ले कर चूसने लगी।
"आह मेरी बिटिया रानी। चूस मेरा लौड़ा। ओह साली पगली कहीं की। बहुत बढ़िया चूस रही हो। आज तो पागल हो गई हो। इतना बढ़िया तो पहिले कभी चूसी नहीं थी। बाप रे बाप, पूरा लंड खा जाओगी क्या? बहुत बढ़िया।" घुसा मेरी बेताबी से चूसने से खुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था। अब मैं उसका लंड हाथों से छोड़ कर उसकी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींचती हुई चूस रही थी। वह भी अब मेरा सर पकड़ कर अपनी कमर चलाते हुए मेरा मुंह चोदने लगा था।