10-04-2024, 06:55 AM
यह सारी घटना मात्र दस पंद्रह मिनट के अंदर हो गई थी। मेरा हुलिया जरा अस्त व्यस्त सा हो गया था लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी नहीं समझी। उसे गेट पर छोड़ कर निकलते हुए मैं बोली,
"तुम्हें तो छोड़ रही हूं लेकिन उन कमीनों को छोड़ूंगी नहीं। हां, अगर जरूरत पड़ी तो मेरी ओर से गवाही देने के लिए तैयार रहना नहीं तो तुम जानते हो कि मैं क्या कर सकती हूं।" मैं उससे चेतावनी भरे लहजे में बोली।
"जी बिटिया, समझ गया।" वह इतना ही बोल कर कृतज्ञता भरी (और हसरत भरी) दृष्टि से मुझे देखने लगा।
"और हां, यह बिटिया बिटिया कहने का ढोंग मत करो। यह शब्द तुम्हारे मुंह से बड़ा खोखला लग रहा है। क्या तुम्हें पता है कि मैं तुम्हें क्यों माफ कर रही हूं?'" मैं वहां से जाने से पहले बोली।
"नहीं।" वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए बोला।
"पहली बात, कि तुम बाल बच्चों वाले हो और तुम्हारी नौकरी का सवाल है। दूसरी बात, तुम्हारा पपलू मुझे भा गया है।" मैं शर्म से लाल होती हुई बोली।
"थैंक्यू बिटिया।"
"फिर बिटिया बोले तो सचमुच तुम भी इनके साथ फंस जाओगे।"
"ओह सॉरी मैडम जी।" अब वह आश्वस्त हुआ और हल्का सा मुस्कुरा उठा।
"गुड। तो अब मैं चलती हूं और मेरी बातों का ख्याल रखना।"
"जी मैडम जी, बहुत मेहरबानी है आपकी। कभी भी मेरी 'जरूरत' हो तो याद कीजिएगा, यह बंदा आपकी खिदमत में हाजिर हो जाएगा।" वह कृतज्ञ और हसरत भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोला। मैं भी एक चित्ताकर्षक दृष्टि से उसे देखते हुए वहां से रुखसत हुई।
यहां मेरे साथ बहुत कुछ हो चुका था। जो कुछ भी हुआ था उससे मेरे अंदर आग सी लगी हुई थी। कई चरणों में मेरे अंदर की कामुकता बढ़ती चली गई थी। एक तो इन कमीनों ने मेरे शरीर के साथ जो कुछ किया था उसके कारण। अभी भी मेरे स्तनों पर विशाल के हाथों का दबाव महसूस हो रहा था जिससे मेरे अंदर अजीब सा नशा सा छाया हुआ था। मुझे गुस्सा होना चाहिए था कि उन्होंने मेरी नंगी चूत का दर्शन भी कर लिया लेकिन गुस्सा और शर्मिंदगी के साथ ही साथ यह सोच कर सनसना रही थी कि इन गलीज लड़कों ने मेरी नंगी चूत का दीदार कर लिया था। दीदार तो दीदार, कमीना रफीक की उंगलियों का स्पर्श अब भी मेरी चूत पर महसूस हो रहा था। मेरी हालत बड़ी अजीब हो रही थी। मेरे शरीर के साथ इन कमीनों ने जो छेड़ छाड़ की थी, उसके कारण मेरा मन गुस्से से भरा हुआ था लेकिन तन में वासना की अदम्य आग भड़क उठी थी। दूसरा, रघु के लंड का दर्शन। गजब का लंड था उसका। सिर्फ दर्शन ही नहीं हुआ बल्कि मैं कमीनी तो उसके लंड को छू कर और पकड़ कर महसूस भी कर चुकी थी। एक अजीब सी हलचल मची हुई थी मेरे अंदर। तीसरा, मेरी चूची पर रघु के हाथ का स्पर्श, जो उसे गेट तक लाने के दौरान मैंने जानबूझ कर अपनी चूची पर दबा रखा था। इन सभी चीजों के कारण एक अजीब तरह की मनःस्थिति के साथ अस्त व्यस्त हालत में मैं गेट से बाहर निकली तो सामने ही हमारी कार मुझे खड़ी मिली। कार के सामने पहुंच कर मैंने देखा कि ड्राईवर घनश्याम, जो कि करीब पचपन साल का अधेड़ था, मुझे घूर कर देख रहा था। मैं समझ गई कि मेरा हुलिया मेरे साथ हुई कुछ न कुछ अनहोनी की चुगली कर रहा है।
"तुम्हें तो छोड़ रही हूं लेकिन उन कमीनों को छोड़ूंगी नहीं। हां, अगर जरूरत पड़ी तो मेरी ओर से गवाही देने के लिए तैयार रहना नहीं तो तुम जानते हो कि मैं क्या कर सकती हूं।" मैं उससे चेतावनी भरे लहजे में बोली।
"जी बिटिया, समझ गया।" वह इतना ही बोल कर कृतज्ञता भरी (और हसरत भरी) दृष्टि से मुझे देखने लगा।
"और हां, यह बिटिया बिटिया कहने का ढोंग मत करो। यह शब्द तुम्हारे मुंह से बड़ा खोखला लग रहा है। क्या तुम्हें पता है कि मैं तुम्हें क्यों माफ कर रही हूं?'" मैं वहां से जाने से पहले बोली।
"नहीं।" वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए बोला।
"पहली बात, कि तुम बाल बच्चों वाले हो और तुम्हारी नौकरी का सवाल है। दूसरी बात, तुम्हारा पपलू मुझे भा गया है।" मैं शर्म से लाल होती हुई बोली।
"थैंक्यू बिटिया।"
"फिर बिटिया बोले तो सचमुच तुम भी इनके साथ फंस जाओगे।"
"ओह सॉरी मैडम जी।" अब वह आश्वस्त हुआ और हल्का सा मुस्कुरा उठा।
"गुड। तो अब मैं चलती हूं और मेरी बातों का ख्याल रखना।"
"जी मैडम जी, बहुत मेहरबानी है आपकी। कभी भी मेरी 'जरूरत' हो तो याद कीजिएगा, यह बंदा आपकी खिदमत में हाजिर हो जाएगा।" वह कृतज्ञ और हसरत भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोला। मैं भी एक चित्ताकर्षक दृष्टि से उसे देखते हुए वहां से रुखसत हुई।
यहां मेरे साथ बहुत कुछ हो चुका था। जो कुछ भी हुआ था उससे मेरे अंदर आग सी लगी हुई थी। कई चरणों में मेरे अंदर की कामुकता बढ़ती चली गई थी। एक तो इन कमीनों ने मेरे शरीर के साथ जो कुछ किया था उसके कारण। अभी भी मेरे स्तनों पर विशाल के हाथों का दबाव महसूस हो रहा था जिससे मेरे अंदर अजीब सा नशा सा छाया हुआ था। मुझे गुस्सा होना चाहिए था कि उन्होंने मेरी नंगी चूत का दर्शन भी कर लिया लेकिन गुस्सा और शर्मिंदगी के साथ ही साथ यह सोच कर सनसना रही थी कि इन गलीज लड़कों ने मेरी नंगी चूत का दीदार कर लिया था। दीदार तो दीदार, कमीना रफीक की उंगलियों का स्पर्श अब भी मेरी चूत पर महसूस हो रहा था। मेरी हालत बड़ी अजीब हो रही थी। मेरे शरीर के साथ इन कमीनों ने जो छेड़ छाड़ की थी, उसके कारण मेरा मन गुस्से से भरा हुआ था लेकिन तन में वासना की अदम्य आग भड़क उठी थी। दूसरा, रघु के लंड का दर्शन। गजब का लंड था उसका। सिर्फ दर्शन ही नहीं हुआ बल्कि मैं कमीनी तो उसके लंड को छू कर और पकड़ कर महसूस भी कर चुकी थी। एक अजीब सी हलचल मची हुई थी मेरे अंदर। तीसरा, मेरी चूची पर रघु के हाथ का स्पर्श, जो उसे गेट तक लाने के दौरान मैंने जानबूझ कर अपनी चूची पर दबा रखा था। इन सभी चीजों के कारण एक अजीब तरह की मनःस्थिति के साथ अस्त व्यस्त हालत में मैं गेट से बाहर निकली तो सामने ही हमारी कार मुझे खड़ी मिली। कार के सामने पहुंच कर मैंने देखा कि ड्राईवर घनश्याम, जो कि करीब पचपन साल का अधेड़ था, मुझे घूर कर देख रहा था। मैं समझ गई कि मेरा हुलिया मेरे साथ हुई कुछ न कुछ अनहोनी की चुगली कर रहा है।