09-04-2024, 04:17 PM
"साले मां के दल्लों, अब जाकर अपनी मां बहनों को चोदो मादरचोदों।" मैं गुस्से में गंदी गालियां देती हुई रण चंडी की तरह उनके गिरे हुए शरीरों को दो चार और डंडे लगा कर ठोकर मारती हुई बोली। मैं अबतक नंगी ही थी और अपने नंगे पन की परवाह भी नहीं थी मुझे। गुस्से से मेरा पारा सातवें आसमान पर था। सबसे ज्यादा खुन्नस मुझे राजू और रफीक पर था। उन घायल पड़े बदमाशों को देखकर मुझे उन पर जरा भी दया नहीं आ रही थी। मैंने राजू और रफीक की बड़ी तसल्ली से मरम्मत की तब जाकर मेरा गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। फिर मैंने उनके अधनंगे शरीरों से उनके बाकी कपड़ों को खींच खांच कर अलग कर दिया। इस क्रम में उनके शर्ट फट गये लेकिन मैं ने परवाह नहीं की। उन्हें पूरी तरह से नंगा कर के अपना मोबाईल निकाल कर अलग अलग कोणों से फोटो लेने लगी। अब जाकर मुझे पूरी तसल्ली हुई। अब मैं जल्दी जल्दी बिना पैंटी के ही अपना स्कर्ट उठा कर पहनने लगी। फिर मैं जल्दी से बिना ब्रा के ही ब्लाऊज पहनी। इस दौरान वे कमीने वहां जमीन पर पड़े पड़े दर्द से कराहते रहे और हाय हाय करते रहे। कोई भी इस काबिल नहीं बचा था कि मुझे किसी तरह रोकने की कोशिश करता। अब मैं बड़े आराम से हाथ झाड़ती हुई वहां से निकलने को तैयार हो गई। फिर मैंने रफीक का मोबाइल उठा लिया जो इस आपाधापी में वहीं गिर गया था। मैंने उस मोबाइल में बहुत सी लड़कियों के नग्न और अश्लील फोटो और संभोगरत वीडियो को देखा तो मेरा पारा और चढ़ गया। मैं उसके मोबाइल को अपने कब्जे में लेकर फिर से रफीक की अच्छी खासी धुनाई कर दी। उसका दाहिना हाथ शायद टूट चुका था जिसे पकड़ कर दर्द से कराह रहा था।
"साले मादरचोद, फोटो और वीडियो बनाकर तुमलोग लड़कियों को ब्लैकमेल करते हो ना? अब तुम सब देखना मैं तुम लोगों का क्या हश्र करती हूं। कल जब कॉलेज के सारे लोग तुम पर थूकेंगे तब तुम लोगों को समझ में आएगा कि तुम लोगों का पाला किससे पड़ा था।" कहकर मैं उन्हें हक्के-बक्के उसी तरह छोड़ कर बाहर निकल ही रही थी कि पीछे से रघु की गिड़गिड़ाने की आवाज आई। मेरे पांव जहां के तहां जम गये।
"मुझे माफ कर दो बिटिया। मैं बाल बच्चों वाला हूं। मेरी नौकरी चली जाएगी। मेरी मति मारी गयी थी कि मैं इन लोगों के चक्कर में फंस गया था। प्लीज़ मुझे माफ कर दो।" वह रोने लगा था। मुझे उस पर दया आ गई।
"बाल बच्चों की इतनी ही फिक्र थी तो इन कमीनों की संगति में यह कुकर्म क्यों कर रहे थे। मालूम भी है कि इसके चलते कितनी लड़कियों की जिंदगी नर्क बन गई है?" मैं चीख कर बोली।
"मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी बेटी। मैं कान पकड़ता हूं कि आज से ही ऐसा गंदा काम नहीं करूंगा। तुम जो सजा देना है दे दो लेकिन कॉलेज के मैनेजमेंट के सामने मेरी शिकायत मत करना, नहीं तो मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो जाएगा।" वह हाथ जोड़कर रोते हुए बोला। मैं सचमुच द्रवित हो उठी।
"सजा तो दूंगी लेकिन तुम्हारी नौकरी नहीं जाने दूंगी। तुम चलो मेरे साथ।" कहकर मैं उसे सहारा देकर उठाने लगी। उसके हाथ पांव सही सलामत थे क्योंकि मैंने डंडा चलाते समय इस बात का खास ख्याल रखा था कि चोट तो उसे अच्छी तरह लगे और दर्द का अहसास भी हो लेकिन उसका कोई अंग भंग न हो। इसका कारण तो आपलोग समझ ही रहे होंगे। मैं उसकी पैंट शर्ट उसकी तरफ उछाल कर बोली, "जल्दी से पहन लो और मेरे साथ चलो। इन कमीनों को पड़े रहने दो।"
रघु उठा लेकिन ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा था। मैं आगे बढ़कर उसे सहायता करने लगी। इसी क्रम में मैंने उसके लंड को कई बार छू लिया। उसके लंड को स्पर्श करना मेरे अंतर्मन को आंदोलित कर रहा था। यह सब करते हुए मैं ऐसा दिखा रही थी जैसे यह अनचाहे और अनजाने में हो रहा हो। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि वह दर्द से ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा था लेकिन मेरे हाथ का स्पर्श ज्यों ज्यों उसके लंड पर हो रहा था, उसका लंड खड़ा होता जा रहा था। हद तो तब हो गई जब उसके पैंट की चेन लगाना मुश्किल हो गया था क्योंकि उसका लंड पूरी तरह खड़ा हो कर सख्त हो चुका था।
"बेशरम , यह क्या हो रहा है? तेरी गर्मी अभी तक उतरी नहीं?" मैं बनावटी गुस्से से लाल पीली होती हुई बोली।
"अब क्या करूं? कंट्रोल नहीं होता है।" वह झेंप कर बोला।
"कंट्रोल नहीं होता है सूअर कहीं का।" मैं झिड़कती हुई बोली लेकिन मेरी आवाज कांप रही थी। बड़ी मुश्किल से उसका लंड पकड़ कर उसकी पैंट के अंदर डाल पाई। क्या आप लोग अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय मेरी हालत क्या हो रही थी होगी? मैं उत्तेजित हुई जा रही थी लेकिन बमुश्किल खुद को कंट्रोल कर पा रही थी। कपड़े पहन कर जब वह किसी तरह तैयार हुआ तो उसके दाएं हाथ को अपने कंधे पर रख कर मैं सहारा देते हुए उसे लेकर बाहर निकली। वह लंगड़ा कर चल रहा था और मैं उसके हाथ को मेरे कंधे पर लेकर ऐसे सहारा दे रही थी कि उसका हाथ बिना ब्रा वाली मेरी चूची पर पहुंच गया था। मैं उसके हाथ को जोर से पकड़ कर अपनी दाईं चूची पर रखी हुई थी और उसी तरह मैं उसे गेट तक ले कर आई। इस छोटे से सफर में ही मेरे तन में वासना की ज्वाला भड़क उठी थी। उसका हाल क्या था यह तो वही जाने।
"साले मादरचोद, फोटो और वीडियो बनाकर तुमलोग लड़कियों को ब्लैकमेल करते हो ना? अब तुम सब देखना मैं तुम लोगों का क्या हश्र करती हूं। कल जब कॉलेज के सारे लोग तुम पर थूकेंगे तब तुम लोगों को समझ में आएगा कि तुम लोगों का पाला किससे पड़ा था।" कहकर मैं उन्हें हक्के-बक्के उसी तरह छोड़ कर बाहर निकल ही रही थी कि पीछे से रघु की गिड़गिड़ाने की आवाज आई। मेरे पांव जहां के तहां जम गये।
"मुझे माफ कर दो बिटिया। मैं बाल बच्चों वाला हूं। मेरी नौकरी चली जाएगी। मेरी मति मारी गयी थी कि मैं इन लोगों के चक्कर में फंस गया था। प्लीज़ मुझे माफ कर दो।" वह रोने लगा था। मुझे उस पर दया आ गई।
"बाल बच्चों की इतनी ही फिक्र थी तो इन कमीनों की संगति में यह कुकर्म क्यों कर रहे थे। मालूम भी है कि इसके चलते कितनी लड़कियों की जिंदगी नर्क बन गई है?" मैं चीख कर बोली।
"मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी बेटी। मैं कान पकड़ता हूं कि आज से ही ऐसा गंदा काम नहीं करूंगा। तुम जो सजा देना है दे दो लेकिन कॉलेज के मैनेजमेंट के सामने मेरी शिकायत मत करना, नहीं तो मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो जाएगा।" वह हाथ जोड़कर रोते हुए बोला। मैं सचमुच द्रवित हो उठी।
"सजा तो दूंगी लेकिन तुम्हारी नौकरी नहीं जाने दूंगी। तुम चलो मेरे साथ।" कहकर मैं उसे सहारा देकर उठाने लगी। उसके हाथ पांव सही सलामत थे क्योंकि मैंने डंडा चलाते समय इस बात का खास ख्याल रखा था कि चोट तो उसे अच्छी तरह लगे और दर्द का अहसास भी हो लेकिन उसका कोई अंग भंग न हो। इसका कारण तो आपलोग समझ ही रहे होंगे। मैं उसकी पैंट शर्ट उसकी तरफ उछाल कर बोली, "जल्दी से पहन लो और मेरे साथ चलो। इन कमीनों को पड़े रहने दो।"
रघु उठा लेकिन ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा था। मैं आगे बढ़कर उसे सहायता करने लगी। इसी क्रम में मैंने उसके लंड को कई बार छू लिया। उसके लंड को स्पर्श करना मेरे अंतर्मन को आंदोलित कर रहा था। यह सब करते हुए मैं ऐसा दिखा रही थी जैसे यह अनचाहे और अनजाने में हो रहा हो। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि वह दर्द से ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा था लेकिन मेरे हाथ का स्पर्श ज्यों ज्यों उसके लंड पर हो रहा था, उसका लंड खड़ा होता जा रहा था। हद तो तब हो गई जब उसके पैंट की चेन लगाना मुश्किल हो गया था क्योंकि उसका लंड पूरी तरह खड़ा हो कर सख्त हो चुका था।
"बेशरम , यह क्या हो रहा है? तेरी गर्मी अभी तक उतरी नहीं?" मैं बनावटी गुस्से से लाल पीली होती हुई बोली।
"अब क्या करूं? कंट्रोल नहीं होता है।" वह झेंप कर बोला।
"कंट्रोल नहीं होता है सूअर कहीं का।" मैं झिड़कती हुई बोली लेकिन मेरी आवाज कांप रही थी। बड़ी मुश्किल से उसका लंड पकड़ कर उसकी पैंट के अंदर डाल पाई। क्या आप लोग अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय मेरी हालत क्या हो रही थी होगी? मैं उत्तेजित हुई जा रही थी लेकिन बमुश्किल खुद को कंट्रोल कर पा रही थी। कपड़े पहन कर जब वह किसी तरह तैयार हुआ तो उसके दाएं हाथ को अपने कंधे पर रख कर मैं सहारा देते हुए उसे लेकर बाहर निकली। वह लंगड़ा कर चल रहा था और मैं उसके हाथ को मेरे कंधे पर लेकर ऐसे सहारा दे रही थी कि उसका हाथ बिना ब्रा वाली मेरी चूची पर पहुंच गया था। मैं उसके हाथ को जोर से पकड़ कर अपनी दाईं चूची पर रखी हुई थी और उसी तरह मैं उसे गेट तक ले कर आई। इस छोटे से सफर में ही मेरे तन में वासना की ज्वाला भड़क उठी थी। उसका हाल क्या था यह तो वही जाने।