07-04-2024, 08:14 PM
"अरे यार, क्या मस्त चूचियां हैं इसकी। साली इसी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी चूचियां किस लौंडिया की होती हैं? बड़ी बड़ी भी और सख्त सख्त भी। पक्का कोई न कोई इसकी चूचियां मसलता होगा।" विशाल मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला। ओह मेरी मां, उस वक्त मेरी क्या हालत हो रही थी वह बयान करना बड़ा ही मुश्किल है। गुस्से से मैं आग बबूला हो रही थी लेकिन उसकी हथेलियों के स्पर्श से मेरे अंदर चिंगारी सी सुलग उठी थी। मैं मदहोश हुई जा रही थी। मेरी पैंटी भीगने लगी थी।
"साले मादरचोद, खोल दे न पूरी तरह इसका ब्लाऊज और ब्रा और हां, खाली चूचियां दबाएगा कि इसकी स्कर्ट भी उतारेगा। मां के लौड़े जल्दी से इसकी स्कर्ट उतार। पूरी की पूरी नंगी कर दे साली को। फटाफट काम खत्म करके फूटेंगे यहां से। वैसे तो रघु की मेहरबानी से कोई इधर आएगा नहीं, फिर भी झूठ मूठ का समय बर्बाद करने का क्या फायदा।" यह आवाज अशोक की थी। यह दुबला पतला लेकिन एक नंबर का हरामी था। साला काला भुजंग, मरियल सा साढ़े पांच फुटा, कुत्ता कहीं का।
"अबे तू भी मिल कर उतार ना। देख नहीं रहा, मैं इसकी चूचियां दबा रहा हूं।" विशाल बोला। उसके कहने की देर थी कि आनन फानन में अशोक मेरे स्कर्ट को खोल कर नीचे खींच लिया। हे भगवान, स्कर्ट पल भर में ही फर्श पर पड़ी हुई थी और कमर से नीचे अब मैं सिर्फ पैंटी में थी।
"अरे, इसकी पैंटी तो भीग चुकी है। साली चुदवाने के लिए बिल्कुल तैयार है।" यह चौथे लड़के रफीक की थी। यह उनके ग्रुप का * सदस्य था। यह भी दुबला पतला मरियल सा था लेकिन अच्छे खासे कद का मालिक था। करीब छः फुट का कद था उसका। वह पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाते हुए बोला,
"खुदा कसम, इस लौंडिया को चोदने में सचमुच बड़ा मज़ा आने वाला है।"
पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत पर उसकी उंगलियों का स्पर्श महसूस करके मेरे तन बदन में सुरसुरी सी दौड़ गई। हालांकि उनकी हरकतों से मैं उत्तेजित होती जा रही थी लेकिन उत्तेजना के आवेग में भी मैंने अपने होशोहवास को बनाए रखा था।
"अबे भोंसड़ी के, उतार साली की पैंटी। देख क्या रहा है मादरचोद, बिना पैंटी उतारे ही चोदेगा क्या?" राजू खीझ कर बोला। उसके बोलते ही रफीक ने एक झटके से मेरी पैंटी खींच कर नीचे उतार दी।
"ले, उतार दिया।" रफीक बोला। उफ मेरे राम। अब मेरी चिकनी चूत नंगी हो कर उनके सामने थी। मेरी चूत को देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। मैं कमर से नीचे नंगी हो चुकी थी। इधर मेरी नंगी चूतड़ों पर मुझे राजू के लंड का उभार चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। मुझे लगा कि आज तो इन लोगों से बिना चुदे मेरी खैर नहीं। हालांकि यह मेरा बलात्कार था, मेरे साथ जबरदस्ती हो रही थी लेकिन इसके बावजूद मेरी उत्तेजना का पारावार न था। बस दुख इस बात का था कि ये चारों मुझे नापसंद थे और इन शैतानों के हाथों का मेरे शरीर पर यहां वहां पड़ना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वे मेरे नाजुक अंगों को छेड़ रहे थे। इस प्रकार की जबर्दस्ती मुझे बड़ी नागवार गुजर रही थी। मुझे बड़ा बुरा लग रहा था। मेरी मर्जी के बगैर इस तरह कोई ऐरा गैरा मुझे हाथ लगाए, यह मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन उनकी हरकतों से न चाहते हुए भी मेरे शरीर में वासना की चिंगारी को हवा मिल रही थी और मैं पागल हुई जा रही थी। इसी दौरान मेरी ब्लाऊज और ब्रा भी खोल कर एक तरफ फेंके जा चुके थे। अब मेरा पूरा नंगा जिस्म उनके सामने खुला हुआ था। मैं शर्म से मरी जा रही थी लेकिन फिर भी उनसे छूटने की जुगत मेरे दिमाग में निरंतर चल रही थी। तभी मेरी नज़र कोने पर रखे हुए डंडे पर पड़ी और मैं सोचने लगी कि जैसे ही इनकी गिरफ्त से आजाद हो जाऊंगी, इसी डंडे से इनकी वो धुलाई करूंगी कि जिंदगी में फिर किसी लड़की की ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं करेंगे। लेकिन फिलहाल तो मुझे उनकी गिरफ्त से किसी प्रकार छूटना था।
"साले मादरचोद, खोल दे न पूरी तरह इसका ब्लाऊज और ब्रा और हां, खाली चूचियां दबाएगा कि इसकी स्कर्ट भी उतारेगा। मां के लौड़े जल्दी से इसकी स्कर्ट उतार। पूरी की पूरी नंगी कर दे साली को। फटाफट काम खत्म करके फूटेंगे यहां से। वैसे तो रघु की मेहरबानी से कोई इधर आएगा नहीं, फिर भी झूठ मूठ का समय बर्बाद करने का क्या फायदा।" यह आवाज अशोक की थी। यह दुबला पतला लेकिन एक नंबर का हरामी था। साला काला भुजंग, मरियल सा साढ़े पांच फुटा, कुत्ता कहीं का।
"अबे तू भी मिल कर उतार ना। देख नहीं रहा, मैं इसकी चूचियां दबा रहा हूं।" विशाल बोला। उसके कहने की देर थी कि आनन फानन में अशोक मेरे स्कर्ट को खोल कर नीचे खींच लिया। हे भगवान, स्कर्ट पल भर में ही फर्श पर पड़ी हुई थी और कमर से नीचे अब मैं सिर्फ पैंटी में थी।
"अरे, इसकी पैंटी तो भीग चुकी है। साली चुदवाने के लिए बिल्कुल तैयार है।" यह चौथे लड़के रफीक की थी। यह उनके ग्रुप का * सदस्य था। यह भी दुबला पतला मरियल सा था लेकिन अच्छे खासे कद का मालिक था। करीब छः फुट का कद था उसका। वह पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाते हुए बोला,
"खुदा कसम, इस लौंडिया को चोदने में सचमुच बड़ा मज़ा आने वाला है।"
पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत पर उसकी उंगलियों का स्पर्श महसूस करके मेरे तन बदन में सुरसुरी सी दौड़ गई। हालांकि उनकी हरकतों से मैं उत्तेजित होती जा रही थी लेकिन उत्तेजना के आवेग में भी मैंने अपने होशोहवास को बनाए रखा था।
"अबे भोंसड़ी के, उतार साली की पैंटी। देख क्या रहा है मादरचोद, बिना पैंटी उतारे ही चोदेगा क्या?" राजू खीझ कर बोला। उसके बोलते ही रफीक ने एक झटके से मेरी पैंटी खींच कर नीचे उतार दी।
"ले, उतार दिया।" रफीक बोला। उफ मेरे राम। अब मेरी चिकनी चूत नंगी हो कर उनके सामने थी। मेरी चूत को देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। मैं कमर से नीचे नंगी हो चुकी थी। इधर मेरी नंगी चूतड़ों पर मुझे राजू के लंड का उभार चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। मुझे लगा कि आज तो इन लोगों से बिना चुदे मेरी खैर नहीं। हालांकि यह मेरा बलात्कार था, मेरे साथ जबरदस्ती हो रही थी लेकिन इसके बावजूद मेरी उत्तेजना का पारावार न था। बस दुख इस बात का था कि ये चारों मुझे नापसंद थे और इन शैतानों के हाथों का मेरे शरीर पर यहां वहां पड़ना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वे मेरे नाजुक अंगों को छेड़ रहे थे। इस प्रकार की जबर्दस्ती मुझे बड़ी नागवार गुजर रही थी। मुझे बड़ा बुरा लग रहा था। मेरी मर्जी के बगैर इस तरह कोई ऐरा गैरा मुझे हाथ लगाए, यह मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन उनकी हरकतों से न चाहते हुए भी मेरे शरीर में वासना की चिंगारी को हवा मिल रही थी और मैं पागल हुई जा रही थी। इसी दौरान मेरी ब्लाऊज और ब्रा भी खोल कर एक तरफ फेंके जा चुके थे। अब मेरा पूरा नंगा जिस्म उनके सामने खुला हुआ था। मैं शर्म से मरी जा रही थी लेकिन फिर भी उनसे छूटने की जुगत मेरे दिमाग में निरंतर चल रही थी। तभी मेरी नज़र कोने पर रखे हुए डंडे पर पड़ी और मैं सोचने लगी कि जैसे ही इनकी गिरफ्त से आजाद हो जाऊंगी, इसी डंडे से इनकी वो धुलाई करूंगी कि जिंदगी में फिर किसी लड़की की ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं करेंगे। लेकिन फिलहाल तो मुझे उनकी गिरफ्त से किसी प्रकार छूटना था।