06-04-2024, 04:23 PM
उस दिन कॉलेज की छुट्टी कुछ देर से हुई। मेरी सहेलियां मुझसे कुछ आगे आगे चलती हुईं कॉलेज के गेट तक पहुंच चुकी थीं। कॉलेज के गेट की बाईं ओर ऊंचे और घने पौधे एक कतार से लगाए गये थे जिन्हें क़रीने से छांट दिया गया था जिससे कॉलेज परिसर की सुंदरता काफी निखरी हुई थी। उन्हीं ऊंचे घने पौधों की कतार से सटा हुआ कंक्रीट का चार फुट चौड़ा रास्ता था। मैं अपनी ही धुन में धीरे धीरे चलती हुई आगे बढ़ रही थी तभी बगल की झाड़ियों में सरसराहट हुई और एक मजबूत हाथ मेरे मुंह पर कस गया और दूसरा हाथ मेरी कमर को मजबूती के साथ पकड़ कर झाड़ियों के पीछे खींच लिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि एक पल को मुझे समझ ही नहीं आया कि यह अचानक क्या हो गया। आगे चलने वालों की पीठ मेरी ओर थी और शायद मेरे पीछे कोई नहीं था जिसके कारण किसी को कुछ भनक तक नहीं लगी। जबतक मुझे कुछ समझ आता, तब-तब मैं चार लड़कों के बीच असहाय अवस्था में घिर चुकी थी। ये वही चारों लड़के थे जो कैंटीन में हमारी ओर देख देख कर भद्दी मुस्कुराहट के साथ बातें कर रहे थे। मुझे पकड़ कर खींचने वाला राजू ही था। मेरा मुंह सख्ती से बंद था इसलिए मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी। उस एकांत में हमें कोई देख भी नहीं सकता था। वे मुझे खींचते हुए कुछ दूर कॉलेज के पीछे वाले एक पुराने भवन की ओर ले गये। उस पुराने भवन में एक पुराना साईंस लेबोरेट्री था जिसका इस्तेमाल अब नहीं होता था और उधर कोई आता जाता भी नहीं था। उस लेबोरेट्री के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था। अब तो नये लेबोरेट्री में ही साईंस का प्रैक्टिकल होता था जो कॉलेज की बाईं ओर करीब करीब कॉलेज भवन से सटा हुआ था। जैसे ही मुझे खींच कर वे मुझे पुराने लेबोरेट्री के दरवाजे तक लाए, उनमें से एक, विशाल, अपनी जेब से एक चाबी निकालकर कर दरवाजे का ताला खोलने लगा। मैं समझ गयी कि ये कमीने इस लेबोरेट्री को अपनी हवस पूर्ति का सुरक्षित अड्डा बनाए हुए हैं। जैसे ही मुझे खींच कर राजू मुझे उस लेबोरेट्री के अंदर लाया मैंने देखा कि पुराने टेस्ट टेबल्स अबतक उसी तरह क़रीने से रखे हुए थे। बीच के टेबल्स को हटा कर करीब दस फुट बाई दस फुट का जगह बना दिया गया था और उस खाली स्थान के फर्श पर गत्ते बिछा कर रखे हुए थे। हे भगवान, ये लोग तो इस परित्यक्त लेबोरेट्री को अपनी ऐय्याशी का अड्डा बनाए हुए थे।
"अबे साले, जल्दी से चौकिदार को भी फोन करके बुला ले। आज इस बेहतरीन चिड़िया को हम पांचों मिल बांट कर खाएंगे।" राजू विशाल से बोला और विशाल झट से फोन निकाल कर वहां के चौकिदार को फोन कर दिया। लो, अब किससे मदद की उम्मीद करूं, यहां का चौकीदार भी इस चंडाल चौकड़ी का हिस्सा बना हुआ था। तभी तो ये लोग इतनी निर्भीकता से इसी कॉलेज के परिसर में अपने कुकृत्य को अंजाम देते होंगे। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि यह उनकी चुनी हुई जगह थी जहां लड़कियों को लाकर अपनी कारगुजारियों को अंजाम देते हैं। विशाल के फोन करने के दो मिनट बाद ही वहां का चौकीदार भी हाजिर हो गया। यह काला कलूटा, अधेड़ उम्र का औसत व्यक्तित्व का मालिक था लेकिन देखते ही पता चल गया था कि यह भी एक नंबर का हरामी था। उसने अंदर आते ही अपने पीछे उस लेबोरेट्री का दरवाजा बंद कर दिया था।
"लो, रघु भाई भी आ गया।" विशाल बोला।
चौकीदार की नजर जैसे ही मुझ पर पड़ी उसकी बांछें खिल गयीं। उसकी आंखें चमक उठीं। बड़ी बुरी फंसी थी मैं आज। अब ये पांच लोग मिलकर मुझे नोचेंगे और चोदेंगे। सोचकर ही मैं सिहर उठी।
"वाह भाई वाह। क्या माल हाथ लगी है आज। सच में मज़ा आ गया। इस लौंडिया को तो आते जाते जितनी भी बार देखते थे, साला मेरा लौड़ा एकदम से खड़ा हो जाता था। बड़ा अच्छा काम किया है तुम लोगों ने। आज मेरे लंड की मुराद पूरी हो जाएगी।" चौकीदार खुशी से किलक कर बोला।
"हां सच बोला रघु भाई। साला आज तो बड़ी मस्त जुगाड़ हाथ लगी है। इस ग्रुप पर बहुत दिनों से नजर थी और खास कर के इस लौंडिया पर तो खास नजर थी। आज लगी है हाथ। इस साली को तो देखते ही मेरा हमारा लौड़ा भी खड़ा हो जाता था। आज जाकर मिला है इसे चोदने का मौका। चल बे शुरू हो जाओ सबके सब।" राजू बोला। अबतक राजू मुझे घसीट कर लेबोरेट्री के बीच में ले आया था। उसके बोलने की देर थी कि विशाल, जो उनमें से थोड़ा नाटा था, करीब पांच फुट का, लेकिन था बड़ा हट्ठा-कट्टा, आगे आया और सामने से मेरी ब्लाऊज के ऊपर से ही चूचियों को पकड़ कर मसलने लगा। मैं छटपटाने लगी लेकिन राजू की पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं कुछ कर नहीं सकती थी। विशाल का हाथ ज्योंहि मेरी उन्नत चूचियों पर पड़ा, मैं गनगना उठी। मेरी चूचियां मेरी सबसे कमजोर जगह थीं जहां किसी मर्द का हाथ लगे तो मेरे शरीर पर से मेरा नियंत्रण छूट जाने का खतरा हमेशा रहता था। इसका पता घुसा की कारगुजारियों से मुझे भली भांति पता हो गया था। विशाल इतने पर ही नहीं रुका था। वह अपनी हथेलियों को मेरे ब्लाऊज के अंदर घुसेड़ कर मेरी ब्रा को खिसका दिया था और मेरी नंगी चूचियों को पकड़ कर मसलने लगा था।
"अबे साले, जल्दी से चौकिदार को भी फोन करके बुला ले। आज इस बेहतरीन चिड़िया को हम पांचों मिल बांट कर खाएंगे।" राजू विशाल से बोला और विशाल झट से फोन निकाल कर वहां के चौकिदार को फोन कर दिया। लो, अब किससे मदद की उम्मीद करूं, यहां का चौकीदार भी इस चंडाल चौकड़ी का हिस्सा बना हुआ था। तभी तो ये लोग इतनी निर्भीकता से इसी कॉलेज के परिसर में अपने कुकृत्य को अंजाम देते होंगे। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि यह उनकी चुनी हुई जगह थी जहां लड़कियों को लाकर अपनी कारगुजारियों को अंजाम देते हैं। विशाल के फोन करने के दो मिनट बाद ही वहां का चौकीदार भी हाजिर हो गया। यह काला कलूटा, अधेड़ उम्र का औसत व्यक्तित्व का मालिक था लेकिन देखते ही पता चल गया था कि यह भी एक नंबर का हरामी था। उसने अंदर आते ही अपने पीछे उस लेबोरेट्री का दरवाजा बंद कर दिया था।
"लो, रघु भाई भी आ गया।" विशाल बोला।
चौकीदार की नजर जैसे ही मुझ पर पड़ी उसकी बांछें खिल गयीं। उसकी आंखें चमक उठीं। बड़ी बुरी फंसी थी मैं आज। अब ये पांच लोग मिलकर मुझे नोचेंगे और चोदेंगे। सोचकर ही मैं सिहर उठी।
"वाह भाई वाह। क्या माल हाथ लगी है आज। सच में मज़ा आ गया। इस लौंडिया को तो आते जाते जितनी भी बार देखते थे, साला मेरा लौड़ा एकदम से खड़ा हो जाता था। बड़ा अच्छा काम किया है तुम लोगों ने। आज मेरे लंड की मुराद पूरी हो जाएगी।" चौकीदार खुशी से किलक कर बोला।
"हां सच बोला रघु भाई। साला आज तो बड़ी मस्त जुगाड़ हाथ लगी है। इस ग्रुप पर बहुत दिनों से नजर थी और खास कर के इस लौंडिया पर तो खास नजर थी। आज लगी है हाथ। इस साली को तो देखते ही मेरा हमारा लौड़ा भी खड़ा हो जाता था। आज जाकर मिला है इसे चोदने का मौका। चल बे शुरू हो जाओ सबके सब।" राजू बोला। अबतक राजू मुझे घसीट कर लेबोरेट्री के बीच में ले आया था। उसके बोलने की देर थी कि विशाल, जो उनमें से थोड़ा नाटा था, करीब पांच फुट का, लेकिन था बड़ा हट्ठा-कट्टा, आगे आया और सामने से मेरी ब्लाऊज के ऊपर से ही चूचियों को पकड़ कर मसलने लगा। मैं छटपटाने लगी लेकिन राजू की पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं कुछ कर नहीं सकती थी। विशाल का हाथ ज्योंहि मेरी उन्नत चूचियों पर पड़ा, मैं गनगना उठी। मेरी चूचियां मेरी सबसे कमजोर जगह थीं जहां किसी मर्द का हाथ लगे तो मेरे शरीर पर से मेरा नियंत्रण छूट जाने का खतरा हमेशा रहता था। इसका पता घुसा की कारगुजारियों से मुझे भली भांति पता हो गया था। विशाल इतने पर ही नहीं रुका था। वह अपनी हथेलियों को मेरे ब्लाऊज के अंदर घुसेड़ कर मेरी ब्रा को खिसका दिया था और मेरी नंगी चूचियों को पकड़ कर मसलने लगा था।