03-04-2024, 03:50 PM
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(02-04-2024, 06:05 PM)KHANSAGEER Wrote:मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो आपी अपने जिस
और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह...’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।
मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड आपी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार आपी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज
आपी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से
मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा
मैंने आपी की बात सुन कर कहा- “आपी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो मेरी प्यारी सी आपी की चूत हो-घुटी आवाज़ में बोलीं- “आह नहीं सगीर... प्लीज़ आहहीस... आहिस्ता... अफ दर्द होता है... आह… आहिस्ता करो प्लीज़…”
मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि आपी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया। मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।
मैं रुका तो आपी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा-
“सगीर इन्हें चूसो, इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है”
मैंने आपी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर
मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा। मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज
लेकिन अब आपी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक आपी की चूत में दाखिल होता तो सामने से आपी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह...’ निकल जाती।
मैं अब अपनी मंज़िल
आपी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “रुक क्यों गए हो? प्लीज़ सगीर अन्दर डालो ना वापस, मैं झड़ने वाली हूँ। डालोऊऊ नाआअ...”
आपी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि आपी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है। जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।
TO BE CONTINUED .....
good discription
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
