25-03-2024, 09:23 AM
“हमने बहुत कुछ नहीं किया है मैडम।"
"साले हरामी, कुकर्मी, चोदने को बहुत कुछ नहीं कहते हैं क्या?" मैं चीख कर बोली। जान बूझकर चीख चीखकर बोले जा रही थी। यहां हमें सुनने वाला और कौन था भला।
"उन्हें चोदना तो दूर, चोदने के लिए सोचना भी मेरे जैसे गरीब नौकर आदमी के लिए कहां संभव था मैडम। लेकिन क्या करें, बस हो गया। लेकिन सच मानिए, जो हुआ आज ही हुआ। यह सब आज ही अचानक अपने आप हो गया। अब इसके लिए जो सजा देना है दे दीजिए। हम कुछ नहीं बोलेंगे।" वह दयनीय मुद्रा में मुझसे बोला।
“ठीक है, ठीक है, जो तुमने किया सो किया, लेकिन मेरी मां को खुशी मिली यह काफी है। अब अचानक और अपने आप यह सब हुआ यह राग दुबारा मेरे सामने मत आलापना।इस पर विश्वास करना मुझ जैसी लड़की के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, समझे तुम? लेकिन हां, अब अगर आगे भी मेरी मां की रजामंदी से यह सब होता है तो ऐसा करने से मुझे कोई ऐतराज नहीं है, आगे भी ऐसा करो और मेरी मां को खुश रखो, क्योंकि वैसे भी पापा ज्यादातर समय व्यस्त रहते हैं और मेरी मां अपनी अतृप्त कामना के साथ जीती रहे, ऐसा मैं हर्गिज नहीं चाहती हूं। ऐसे में मेरी मां को तुम्हारे साथ खुशी मिलती है तो फिर ठीक है, लेकिन अगर मैंने कभी तुम्हें उनकी मर्जी के विरुद्ध उसके साथ जबरदस्ती करते हुए पकड़ लिया, तो मैं पापा से बोल कर तुम्हें नौकरी से निकलवा दूँगी, और तुम फिर कभी न तो मां को छू पाओगे और न ही मुझे, समझ गये ना।'' मैं धमकी भरे स्वर में बोली।
"नहीं। कृपया ऐसा न करें। हम आपकी मम्मी की मर्जी के बगैर ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे। अब तो आप हमको क्षमा कर देंगी ना रोज मैडम?" मेरी बात सुन कर उसके चेहरे का तनाव कम हो गया और प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला। एक तरह से वह आश्वस्त हो गया था।
"ठीक है। लेकिन मन में गांठ बांध लो इस बात को कि मेरी मां की रजामंदी के बगैर बिल्कुल नहीं करोगे।"
"जी मैडम।" वह आज्ञाकारी नौकर की भांति सर झुकाकर बोला।
"एक बात और कान खोलकर सुन लो कि मेरे और तुम्हारे बीच जो कुछ चल रहा है इसकी भनक तक मम्मी को नहीं लगनी चाहिए और इस बात की भी कि तुम्हारे और मम्मी के बीच जो कुछ चल रहा है वह मुझे पता है, समझ गये?" मैं सख़्त शब्दों में हिदायत देती हुई बोली।
"जी मैडम।"
"अब जी मैडम, जी मैडम ही करते रहोगे? अब तो सब कुछ साफ हो गया है या और कुछ कहना सुनना बाकी है?" मैं बोली।
"हां मैडम, सब कुछ साफ हो गया है"
"सब कुछ साफ हो गया है तो फिर मेरा मुंह क्या देख रहे हो। अब आगे मुझे कुछ और नहीं कहना है। जो कहना है कह चुकी हूं। अब चलो शुरू हो जाओ।" मैं बोली।
"क्या ?" समझ तो रहा था वह, लेकिन फिर भी सवालिया निगाहों से मुझे देख रहा था, गधा कहीं का। वैसे मेरे कथन का आशय तो समझ ही चुका था होगा, क्योंकि मैं देख रही थी कि इतनी बात होते होते उसके पैजामे का अगला भाग फिर से तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। साला खड़ूस कहीं का। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने का तो यथोचित कारण था लेकिन यह हरामी, जो कुछ देर पहले मेरी मां को चोद चुका था, अभी फिर से उसका लंड खड़ा हो गया था, मुझे चोदने के लिए, साला चुदक्कड़ कहीं का।
"अब आगे क्या करना है यह भी मैं ही अपने मुंह से बोलूं?" मैं झल्ला कर बोली।
"साले हरामी, कुकर्मी, चोदने को बहुत कुछ नहीं कहते हैं क्या?" मैं चीख कर बोली। जान बूझकर चीख चीखकर बोले जा रही थी। यहां हमें सुनने वाला और कौन था भला।
"उन्हें चोदना तो दूर, चोदने के लिए सोचना भी मेरे जैसे गरीब नौकर आदमी के लिए कहां संभव था मैडम। लेकिन क्या करें, बस हो गया। लेकिन सच मानिए, जो हुआ आज ही हुआ। यह सब आज ही अचानक अपने आप हो गया। अब इसके लिए जो सजा देना है दे दीजिए। हम कुछ नहीं बोलेंगे।" वह दयनीय मुद्रा में मुझसे बोला।
“ठीक है, ठीक है, जो तुमने किया सो किया, लेकिन मेरी मां को खुशी मिली यह काफी है। अब अचानक और अपने आप यह सब हुआ यह राग दुबारा मेरे सामने मत आलापना।इस पर विश्वास करना मुझ जैसी लड़की के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, समझे तुम? लेकिन हां, अब अगर आगे भी मेरी मां की रजामंदी से यह सब होता है तो ऐसा करने से मुझे कोई ऐतराज नहीं है, आगे भी ऐसा करो और मेरी मां को खुश रखो, क्योंकि वैसे भी पापा ज्यादातर समय व्यस्त रहते हैं और मेरी मां अपनी अतृप्त कामना के साथ जीती रहे, ऐसा मैं हर्गिज नहीं चाहती हूं। ऐसे में मेरी मां को तुम्हारे साथ खुशी मिलती है तो फिर ठीक है, लेकिन अगर मैंने कभी तुम्हें उनकी मर्जी के विरुद्ध उसके साथ जबरदस्ती करते हुए पकड़ लिया, तो मैं पापा से बोल कर तुम्हें नौकरी से निकलवा दूँगी, और तुम फिर कभी न तो मां को छू पाओगे और न ही मुझे, समझ गये ना।'' मैं धमकी भरे स्वर में बोली।
"नहीं। कृपया ऐसा न करें। हम आपकी मम्मी की मर्जी के बगैर ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे। अब तो आप हमको क्षमा कर देंगी ना रोज मैडम?" मेरी बात सुन कर उसके चेहरे का तनाव कम हो गया और प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला। एक तरह से वह आश्वस्त हो गया था।
"ठीक है। लेकिन मन में गांठ बांध लो इस बात को कि मेरी मां की रजामंदी के बगैर बिल्कुल नहीं करोगे।"
"जी मैडम।" वह आज्ञाकारी नौकर की भांति सर झुकाकर बोला।
"एक बात और कान खोलकर सुन लो कि मेरे और तुम्हारे बीच जो कुछ चल रहा है इसकी भनक तक मम्मी को नहीं लगनी चाहिए और इस बात की भी कि तुम्हारे और मम्मी के बीच जो कुछ चल रहा है वह मुझे पता है, समझ गये?" मैं सख़्त शब्दों में हिदायत देती हुई बोली।
"जी मैडम।"
"अब जी मैडम, जी मैडम ही करते रहोगे? अब तो सब कुछ साफ हो गया है या और कुछ कहना सुनना बाकी है?" मैं बोली।
"हां मैडम, सब कुछ साफ हो गया है"
"सब कुछ साफ हो गया है तो फिर मेरा मुंह क्या देख रहे हो। अब आगे मुझे कुछ और नहीं कहना है। जो कहना है कह चुकी हूं। अब चलो शुरू हो जाओ।" मैं बोली।
"क्या ?" समझ तो रहा था वह, लेकिन फिर भी सवालिया निगाहों से मुझे देख रहा था, गधा कहीं का। वैसे मेरे कथन का आशय तो समझ ही चुका था होगा, क्योंकि मैं देख रही थी कि इतनी बात होते होते उसके पैजामे का अगला भाग फिर से तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। साला खड़ूस कहीं का। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने का तो यथोचित कारण था लेकिन यह हरामी, जो कुछ देर पहले मेरी मां को चोद चुका था, अभी फिर से उसका लंड खड़ा हो गया था, मुझे चोदने के लिए, साला चुदक्कड़ कहीं का।
"अब आगे क्या करना है यह भी मैं ही अपने मुंह से बोलूं?" मैं झल्ला कर बोली।