आपी ने मेरे लण्ड को दबा कर मेरी गर्दन पर अपने दांतों से काटा और फिर अपने दांतों को आपस में दबा कर अजीब तरह से बोलीं- “सब घर में ही हैं नाआआ, अम्मी अपने कमरे में और हनी अपने में!”
आपी के इस अंदाज़ पर मैं हैरतजदा रह गया और मैंने उन्हें कहा- “होश में आओ यार, कोई बाहर निकल आया तो?”
आपी ने अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर रगड़ा और मेरी गर्दन को दूसरी तरफ से चूम और काट कर कहा- “देखने दो सब को, सारी दुनिया को देख लेने दो कि मैं अपने भाई की रानी हूँ। अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ अपने सगे भाई के लण्ड से”
मैंने आपी के दोनों कन्धों को पकड़ कर उन्हें अपने आपसे अलग किया और झुरझुरा कर कहा- “ऊओ मेरी माँ! बस कर दे एक्टिंग, क्यों फंसवाएगी भाईईइ...”
आपी ने हँसते हुए अपनी आँखें खोलीं और मुझे देख कर आँख मारते हुए नॉर्मल अंदाज़ में बोलीं- “यार सगीर आज कुछ करने का बहुत दिल चाह रहा है”
मैंने शरारत से कहा- “क्यों बहना जी! लीकेज खत्म हो गई है क्या?”
“हाँ यार आज सुबह ही नहा ली थी। तभी तो बेताब हो रही हूँ, इतने दिन से पानी नहीं निकाला ना”
मैंने आपी का हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की तरफ घूमते हुए कहा- “तो चलो आओ ऊपर, पानी निकालने का अभी कोई बंदोबस्त कर देता हूँ”
आपी ने आहिस्तगी से अपना हाथ छुड़ाया और कहा- “नहीं यार अभी नहीं, अभी खाना भी बनाना है। रात में आऊँगी तुम्हारे पास”
मैंने आपी की बात सुन कर अपने कंधे उचकाए और ऊपर जाने के लिए पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि आपी बोलीं- “अब इतने भी बेवफा ना बनो यार”
मैंने गरदन घुमा कर आपी को देखा और कहा- “क्या मतलब?? खुद ही तो कहा है रात में आऊँगी”
“हाँ मैंने रात में आने का कहा है लेकिन ये तो नहीं कहा कि ऐसे ही ऊपर चले जाओ?”
मैंने अपना क़दम सीढ़ी से वापस खींचा और घूम कर आपी की तरफ रुख करके कहा- “क्या करूँ फिर? साफ बोलो ना?”
आपी ने अपने निचले होंठ की साइड को अपने दांतों में दबा कर बड़े अजीब अंदाज़ से मेरी आँखों में देखा और कहा- “मेरे सोहने भैया जी! कम से कम दीदार ही करवा दो”
मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी मज़े लेते हुए कहा- “किस चीज़ का दीदार करवा दूँ मेरी सोहनी बहना जी?”
आपी ने मेरी आँखों में ही देखते हुए अपना एक क़दम आगे बढ़ाया और मेरी पैंट की ज़िप को खोलते हुए कहा- “अपने ‘लण्ड’ का दीदार करवा दो। कितने दिन हो गए हैं मैंने देखा तक नहीं है अपने भाई का ‘लण्ड’”
लण्ड लफ्ज़ बोलते हुए आपी की आँखें हमेशा ही चमक सी जातीं और लहज़ा भी अजीब सा हो जाता था।
मैंने भी लण्ड लफ्ज़ पर ज़ोर देते हुए कहा- “मेरी सोहनी बहना जी मेरा ‘लण्ड’ मेरी बहन के लिए ही तो है। खुद ही निकाल कर देख लो ना”
मेरी बात पूरी होने से पहले ही आपी ने मेरी पैंट की ज़िप से अन्दर हाथ डाल दिया था। उन्होंने अन्दर ही टटोल कर मेरे लण्ड को पकड़ा और पैंट से बाहर निकाल कर कहा- “सगीर चलो किचन में चलें। यहाँ कोई आ ना जाए”
मेरा लण्ड इस वक़्त सेमी इरेक्ट था मतलब ना ही फुल खड़ा था और ना ही फुल बैठा हुआ था।
मैं आपी के साथ ही किचन की तरफ चल पड़ा और कहा- “मैं तो पहले ही कह रहा था कि इधर कोई आ जाएगा लेकिन उस वक़्त तो रानी साहिबा को एक्टिंग सूझ रही थी ना”
“बकवास मत करो, एक्टिंग की बात नहीं है। उस वक़्त मुझे इतना इत्मीनान था कि किसी की आहट पर ही हम एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे लेकिन अब तुम्हारा ये ‘भोंपू’ बाहर निकला हुआ है ना इसे छुपाना मुश्किल होगा” -आपी की बात खत्म हुई तब तक हम दोनों किचन में दाखिल हो चुके थे।
आपी ने मेरा हाथ पकड़ा और रेफ्रिजरेटर की साइड पर ले जाते हुए कहा- “यहाँ दीवार से लग कर खड़े हो जाओ और ये मुसीबत कि जड़ बैग तो कंधे से उतार देना था”
आपी ने ये कहा और अपने हाथ पीछे कमर पर ले जाकर दुपट्टे के दोनों कोनों को आपस में गाँठ लगाने लगीं।
ये जगह फ्रिज की साइड में थी और यहाँ पर खड़े होने से मेरे और किचन के दरवाज़े के दरमियान रेफ्रिजरेटर आ गया था। मुझे दरवाज़ा या उससे बाहर का मंज़र नज़र नहीं आ सकता था और इसी तरह अगर कोई दरवाज़े में खड़ा हो तो वो भी मुझे नहीं देख सकता था बल्कि किचन में अन्दर आ जाने के बाद भी मैं उस वक़्त तक नज़र से ओझल ही रहता कि जब तक कोई मेरे बिल्कुल सामने आकर ना खड़ा हो जाए।
मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ा हुआ और कहा- “यार, ये सारा दिन कंधे पर लटका होता है तो अभी अहसास ही नहीं रहा था कि यह भी लटका है। आप ही बोल देती ना उतारने का”
मैं बैग नीचे ज़मीन पर रखने लगा तो मुझे अचानक कैमरा याद आया और मैं बैग को हाथ में पकड़े हुए ही बोला- “आपी आज मैं कैमरा लाया हूँ। डिजिटल है 20 मेगा पिक्सल का, 52जे ज़ूम का है और अंधेरे में भी क्लियर मूवी बनाता है”
आपी ने अपने दुपट्टे को अपनी कमर पर गाँठ लगा ली थी और अब अपने सीने पर दुपट्टा सही करते हुए बोलीं- “कहाँ से लिया है?”
मैंने बैग खोलते हुए कहा- “कहाँ से क्या मतलब यार? अपनी शॉप से लाया हूँ, अभी दिखाऊँ क्या?”
आपी ने मेरा खुला बैग एक झटके से बंद किया- “अभी छोड़ो, दफ़ा करो और बैग नीचे रख दो”
यह बोलते हुए आपी ने मेरे लण्ड को पकड़ा और किचन के दरवाज़े से बाहर देखते हुए नीचे बैठ गईं और आखिरी बार नज़र बाहर डाल कर मेरे लण्ड को मुँह में ले लिया।
आज इतने दिनों बाद अपने लण्ड पर आपी के मुँह की गर्मी को महसूस करके मैं भी तड़फ उठा- “उफ्फ़ आप्पी! मेरी सोहनी बहना के मुँह की गर्मी, लण्ड की क़ातिल”
मैंने एक सिसकारी ली और आपी के चेहरे को देखने लगा। आपी भी मेरा लण्ड चूसते हुए ऊपर नज़र उठा कर मेरी आँखों में ही देख रही थीं। आपी लण्ड ऐसे चूसती थीं जैसे कोई अनुभवी चुसक्कड़ हो।
शायद यह चीज़ औरतों में कुदरती तौर पर ही होती है कि वो चुदाई के तमाम असरार बिना किसी से सीखे ही समझ जाती हैं और आपी तो काफ़ी सारी ट्रिपल एक्स मूवीज देख चुकी थीं जो वैसे ही अपने आप में एक बहुत बड़ा ट्रेनिंग कॉलेज होती हैं।
मेरा लण्ड अब आपी के मुँह की गर्मी से फुल खड़ा हो गया था, मैंने मज़े में डूबते हुए आपी के सिर पर हाथ रख दिए। जब आपी मेरे लण्ड को जड़ तक अपने मुँह में उतार लेतीं तो मैं आपी के सिर को दबा कर कुछ देर वहीं रोक लेता और जब आपी पीछे की तरफ ज़ोर देने लगतीं तो मैं अपने हाथों को ढीला कर लेता।
इसी तरह से आपी ने मेरा लण्ड चूसते हुए अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी टाँगों के बीच रखा ही था कि किसी आहट को सुन कर आपी फ़ौरन पीछे हट कर खड़ी हो गईं और मैंने भी जल्दी से अपने लण्ड को अपनी पैंट में डाल कर ज़िप बंद कर दी।
आपी मुझसे दूर हट कर वॉशबेसिन में बिला वजह बर्तन इधर-उधर करने लगीं और मैं सांस रोके वहीं खड़ा किसी के आने का इन्तजार करने लगा लेकिन काफ़ी देर तक कोई सामने ना आया तो आपी ने डरते-डरते दरवाज़े के बाहर नज़र डाली और वहाँ किसी को ना पाकर मेरी तरफ देखा।
मैंने आपी को हाथ से इशारा करके बगैर आवाज़ के होंठों को जुंबिश दी- “बाहर जा कर देखो ना यार”
आपी सहमे हुए से अंदाज़ में ही बाहर तक गईं और फिर अन्दर आ कर बोलीं- “कोई नहीं है बाहर और बस अब तुम जाओ। मैं रात में आऊँगी कमरे में, सोना नहीं अच्छा”
TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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