मधु के चूतड़ों पर फ्रॉक के ऊपर से ही हाथ रखने पर मुझे उसकी कच्छी का एहसास हुआ। मैंने तुरंत अचानक ही उसके फ्रॉक को अपने दोनों हाथ से ऊपर कर दिया। उसकी पतली पतली जाँघों में हरे रंग की बहुत सुन्दर कच्छी फंसी हुई थी।
मधु जरा सा कसमसाई, उसने तुरंत दरवाजे की ओर देखा और मैं उसकी कच्छी और कच्छी से उभरे हुए उसके चूत वाले हिस्से को देख रहा था। उसके चूत वाली जगह पर ही मिक्की माउस बना था।
मैंने कच्छी के बहाने उसकी चूत को सहलाते हुए कहा- “यह तो बहुत सुन्दर है यार”
अब वो खुश हो गई- “हाँ भैया! भाभी ने दो दिलाई”
और वो मुझसे छूटकर तुरंत दूसरी कच्छी लेकर आई।
वो भी वैसी ही थी पर लाल सुर्ख रंग की।
मैं- “अरे वाह, चल इसे भी पहन कर दिखा”
मधु- “नहीं अभी नहीं, कल…”
मैं भी अभी जल्दी में ही था और कोई भी आ सकता था। फिर मैंने सोचा कि क्या अब्दुल के पास जाकर देखूँ, वो क्या कर रहा होगा?? पर दिमाग ने मना कर दिया मैं नहीं चाहता था कि सलोनी को शक हो कि मैं उसका पीछा कर रहा हूँ।
फिर मधु को वहीं छोड़ मैं अपने फ्लैट की ओर ही चल दिया। सोचा अगर सलोनी नहीं आई होगी तो कुछ देर नलिनी भाभी के यहाँ ही बैठ जाऊँगा। और अच्छा ही हुआ जो मैं वहाँ से निकल आया। बाहर निकलते ही मुझे मधु की माँ दिख गई। अच्छा हुआ उसने मुझे नहीं देखा। मैं चुपचाप वहाँ से निकल गाड़ी लेकर अपने घर पहुँच गया।
मैं आराम से ही टहलता हुआ अरविन्द अंकल के फ्लैट के सामने से गुजरा। दरवाजा हल्का सा भिड़ा हुआ था बस और अंदर से आवाजें आ रही थीं। मैं दरवाजे के पास कान लगाकर सुनने लगा कि कहीं सलोनी यहीं तो नहीं है?
नलिनी भाभी- “अरे, अब कहाँ जा रहे हो, कल सुबह ही बता देना ना”
अंकल- “तू भी न, जब बो बोल रही है तो उसको बताने में क्या हर्ज है। उसकी जॉब लगी है, उसके लिए कितनी ख़ुशी का दिन है”
नलिनी भाभी- “अच्छा ठीक है, जल्दी जाओ और हाँ वैसे साड़ी बांधना मत सिखाना जैसे मेरे बांधते थे”
अंकल- “हे हे… तू भी ना, तुझे भी तो नहीं आती थी साड़ी बांधना। तुझे याद है अभी तक कैसे मैं ही बांधता था?”
नलिनी भाभी- “हाँ हाँ! मुझे याद है कि कैसे बांधते थे पर वैसे सलोनी की मत बाँधने लग जाना”
अंकल- “और अगर उसने खुद कहा तो?”
नलिनी- “हाँ वो तुम्हारी तरह नहीं है। तुम ही उस बिचारी को बहकाओगे”
अंकल- “अरे नहीं मेरी जान! बहुत प्यारी बच्ची है। मैं तो बस उसकी हेल्प करता हूँ”
नलिनी- “अच्छा अब जल्दी से जाओ और तुरंत वापस आना”
मैं भी तुरंत वहाँ से हट कर एक कोने में को सरक गया, वहाँ कुछ अँधेरा था। इसका मतलब अरविन्द जी मेरे घर ही जा रहे हैं। सलोनी यहाँ पहुँच चुकी है और अंकल उसको साड़ी पहनना सिखाएंगे।
वाह! मुझे याद है कि सलोनी ने शादी के बाद बस 5-6 बार ही साड़ी पहनी है। वो भी तब, जब कोई पारिवारिक उत्सव हो तभी और उस समय भी उसको कोई ना कोई हेल्प ही करता था। मेरे घर की महिलायें ना कि पुरुष, पर अब तो अंकल उसको साड़ी पहनाने में हेल्प करने वाले थे। मैं सोचकर ही रोमांच का अनुभव करने लगा था कि अंकल सलोनी को कैसे साड़ी पहनाएंगे?
पहले तो मैंने सोचा कि चलो जब तक अंकल नहीं आते नलिनी भाभी से ही थोड़ा मजे ले लिए जाएँ पर मेरा मन सलोनी और अंकल को देखने का कर रहा था। रसोई की ओर गया खिड़की तो खुली थी पर उस पर चढ़कर जाना संभव नहीं था। इसका भी कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। फिर अपने मुख्य गेट की ओर आया और दिल बाग़ बाग़ हो गया। सलोनी ने अंकल को बुलाकर गेट लॉक नहीं किया था।
क्या किस्मत थी यार…??
और मैं बहुत हल्के से दरवाजा खोलकर अंदर झांकने लगा और मेरी बांछें खिल गई। अंदर इस कमरे में कोई नहीं था शायद दोनों बैडरूम में ही चले गए थे। बस मैंने चुपके से अंदर घुस दरवाजा फिर से वैसे ही भिड़ा दिया और चुपके चुपके बैडरूम की ओर बढ़ा। मन में एक उत्सुकता लिए कि जाने क्या देखने को मिले???
कमरे में प्रवेश करते हुए एक डर सा भी था। लो कर लो बात, अपने ही घर में घुसते हुए डर लग रहा था मुझे। जबकि पड़ोसी मेरी बीवी के साथ बेधड़क मेरे बेडरूम में घुसा हुआ था और ना जाने क्या-क्या कर रहा था।
मैं बहुत धीमे क़दमों से इधर उधर देखते हुए आगे बढ़ रहा था कि कहीं कोई देख ना ले!
सच खुद को इस समय बहुत बेचारा समझ रहा था।
मुझे अच्छी तरह याद है करीब एक साल पहले एक पारिवारिक शादी के कार्यक्रम में भी सलोनी को साड़ी नहीं बंध रही थी तब उसके ताऊ जी ने उसकी मदद की थी। पर उस समय मैं नहीं देख पाया था कि कैसे उन्होंने सलोनी को साड़ी पहनाई क्योंकि ताऊजी ने सबको बाहर भेज दिया था और मैंने या किसी ने कुछ नहीं सोचा था क्योंकि ताऊजी बहुत आदरणीय थे।
मगर अब अरविन्द अंकल को देखने के बाद तो किसी भी आदरणीय पर भी भरोसा नहीं रहा था। फ़िलहाल किसी तरह मैं बेडरूम के दरवाजे तक पहुंचा, दरवाजे पर पड़ा परदा मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं था। इसके लिए मैंने मन ही मन अपनी जान सलोनी को धन्यवाद दिया क्योंकि ये मोटे परदे उसी की पसंद थे जो आज मुझे छिपाकर उसके रोमांच को दिखा रहे थे।
अंदर से दोनों की आवाज आ रही थी, मैंने अपने को पूरी तरह छिपाकर परदे को साइड से हल्का सा हटा अंदर झाँका। देखने से पहले ही मेरा लण्ड पैंट में पूरी तरह से अपना सर उठकर खड़ा हो गया था, उसको शायद मेरे से ज्यादा देखने की जल्दी थी।
अंदर पहली नजर मेरी सलोनी पर ही पड़ी, माय गॉड! यह ऐसे गई थी आज? पूरी क़यामत लग रही थी मेरी जान।
उसने अभी भी जीन्स और टॉप ही पहना था। पर्पल रंग की लोवेस्ट जींस और सफ़ेद शर्ट नुमा टॉप जो उसकी कमर तक ही था। टॉप और जींस के बीच करीब 6-7 इंच का गैप था जहाँ से सलोनी की गोरी त्वचा दिख रही थी।
सलोनी की पीठ मेरी ओर थी इसलिए उसके मस्त चूतड़ जो जींस के काफी बाहर थे वो दिख रहे थे।
अब मैंने उनकी बातें सुनने का प्रयास किया।
TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
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