17-03-2024, 03:33 PM
शाम को फोन चेक किया तो तीन मिस कॉल सलोनी की थीं। मैंने सलोनी को कॉल बैक किया।
सलोनी- “अरे कहाँ थे आप? मैं कितना कॉल कर रही थी आपको”
मैं- “क्या हुआ?”
सलोनी- “सुनो, मेरी जॉब लग गई है। वो जो कॉलेज है न उसमें”
मैं- “चलो, मैं घर आकर बात करता हूँ”
सलोनी- “ठीक है, हम भी बस पहुँचने ही वाले हैं”
मैं- “अरे, अभी तक कहाँ हो?”
सलोनी- “अरे! वो वहाँ साड़ी में जाना होगा ना, तो वही शॉपिंग और फिर टेलर के यहाँ टाइम लग गया”
मैं- “ओह! चलो तुम घर पहुँचो, मुझे भी एक डेढ़ घण्टा लग जाएगा”
सलोनी- “ठीक है कॉल कर देना जब आओ तो”
मैं- “ओके डार्लिंग, बाय”
सलोनी- “बाय जानू”
मैं अब यह सोचने लगा कि यार यह सलोनी, मेरी चालू बीवी शाम के छः बजे तक बाजार में कर क्या रही थी? और टेलर से क्या सिलवाने गई थी? है कौन यह टेलर?
पहले मैं घर जाने कि सोच रहा था पर इतनी जल्दी घर पहुँचकर करता भी क्या? अभी तो सलोनी भी घर नहीं पहुँची होगी।
मैं अपनी कॉलोनी से मात्र दस मिनट की दूरी पर ही था, सोच रहा था कि फ्लैट की दूसरी चाबी होती तो चुपचाप फ्लैट में जाकर छुप जाता और देखता वापस आने के बाद सलोनी क्या क्या करती है। पर चाबी मेरे पास नहीं थी। अब आगे से यह भी ध्यान रखूँगा।
तभी मधु का ध्यान आया। उसका घर पास ही तो था। एक बार मैं गया था सलोनी के साथ। सोचा, चलो उसके घर वालों से मिलकर बता देता हूँ और उन लोगों को कुछ पैसे भी दे देता हूँ। अब तो मधु को हमेशा अपने पास रखने का दिल कर रहा था।
गाड़ी को गली के बाहर ही खड़ा करके किसी तरह उस गंदी सी गली को पार करके मैं एक पुराने से छोटे से घर में घर के सामने रुका। उसका दरवाजा ही टूटफूट के टट्टों और टीन से जोड़कर बनाया था।
मैंने हल्के से दरवाजे को खटखटाया। दरवाजा खुलते ही मैं चौंक गया, खोलने वाली मधु थी। उसने अपना कल वाला फ्रॉक पहना था। मुझे देखते ही खुश हो गई।
मधु- “अरे भैया आप?”
मैं- “अरे तू यहाँ! मैं तो समझ रहा था कि तू अपनी भाभी के साथ होगी”
मधु- “अरे हाँ, मैं कुछ देर पहले ही तो आई हूँ। वो भाभी ने बोला कि अब शाम हो गई है तू अब घर जा और कल सुबह जल्दी बुलाया है”
मैं मधु के घर के अंदर गया, मुझे कोई नजर नहीं आया।
मैं- “अरे कहाँ है तेरे माँ, पापा?”
मधु- “पता नहीं, सब बाहर ही गए हैं। मैंने ही आकर दरवाजा खोला है”
बस उसको अकेला जानते ही मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया।
मैंने वहीं पड़ी एक टूटी सी चारपाई पर बैठते हुए मधु को अपनी गोद में खींच लिया।
मधु दूर होते हुए- “ओह! यहाँ कुछ नहीं भैया, कोई भी अंदर देख सकता है और सब आने वाले ही होंगे। मैं कल आऊँगी ना, तब कर लेना”
वाह रे मधु, वो कुछ मना नहीं कर रही थी। उसको तो बस किसी के देख लेने का डर था क्योंकि अभी वो अपने घर पर थी। कितनी जल्दी यह लड़की तैयार हो गई थी जो सब कुछ खुलकर बोल रही थी।
मैं मधु और रोज़ी की तुलना करने लगा। यह जिसने ज्यादा कुछ नहीं किया। कितनी जल्दी सब कुछ करने का सहयोग कर रही थी और उधर वो अनुभवी, सब कुछ कर चुकी रोज़ी, कितने नखरे दिखा रही थी।
शायद भूखा इंसान हमेशा खाने के लिए तैयार रहता है। यही बात थी या मधु की गरीबी ने उसको ऐसा बना दिया था?
मैंने मधु के मासूम चूतड़ों पर हाथ रख उस अपने पास किया और पूछा- “अरे मेरी गुड़िया! मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा। यह तो बता सलोनी खुद कहाँ है?”
मधु- “वो तो अब्दुल अंकल के यहाँ होंगी। वो उन्होंने तीन साड़ियाँ ली हैं ना तो उसके ब्लाउज और पेटीकोट सिलने देने थे”
मैं- “अरे कुछ देर पहले फोन आया था कि वो तो उसने दे दिए थे”
मधु- “नहीं, वो बाजार वाले दर्जी ने मना कर दिया था। वो बहुत दिनों बाद सिल कर देने को कह रहा था तो भाभी ने उसको नहीं दिए और फिर मुझको छोड़कर अब्दुल अंकल के यहाँ चली गई”
मैं सोचने लगा कि ‘अरे वो अब्दुल… वो तो बहुत कमीना है…’
और सलोनी ने ही उससे कपड़े सिलाने को खुद ही मना किया था।
तभी…
TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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