17-03-2024, 03:24 PM
कहते हैं कि यह मन बावला होता है। यह प्रत्यक्ष प्रमाण मेरे सामने था। एक मिनट में ही मेरे मन ने रोज़ी के ना जाने कितने पोज़ बना दिए थे और दरवाजा खोलते ही ये सब के सब धूमिल हो गए।
रोज़ी दर्पण के सामने खड़े हो अपने बाल ठीक कर रही थी। उसने बड़े साधारण ढंग से मुझे देखा जैसे उसको पता था कि मैं जरूर आऊँगा। मेरे ख्याल से उसको चौंक जाना चहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ।
वो मुझे देख मुस्कुराई- “क्या हुआ?”
मैं- “कुछ नहीं यार, मेरा भी प्रेशर बन गया”
और उसको नजरअंदाज कर मैं अपना लण्ड बाहर निकाल उसके उसकी ओर पीठ कर मूतने लगा। यह बहाना भी नहीं था, इस सबके बाद मुझे वाकयी बहुत तेज प्रेशर बन गया था मूतने का। मैंने गौर किया कि रोज़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ा, वो वैसे ही अपने बाल बनाती रही और शायद मुस्कुरा भी रही थी।
बहुत मुश्किल है इस दुनिया में नारी को समझ पाना और उनके मन में क्या है। यह तो उतना ही मुश्किल है जैसे यह बताना कि अंडे में मुर्गा है या मुर्गी?
मूतने के बाद मैंने जोर जोर से पाने लण्ड को हिलाया। यह भी आज आराम के मूड में बिल्कुल नहीं था। अभी भी धरती के समानान्तर खड़ा था। मैं लण्ड को हिलाते हुए ही रोज़ी के पास चला गया। वो वाशबेसिन के दर्पण के सामने ही अपने बाल संवार रही थी।
मैं लण्ड को पेंट से बाहर ही छोड़ अपने हाथ धोने लगा। रोज़ी ने उड़ती नज़र से मुझे देखा, बोली- “अरे, इसको अंदर क्यों नहीं करते?”
मैं हँसते हुए- “हा…हा… तुमको शर्म नहीं आती जहाँ देखो वहीं अंदर करने की बात करने लगती हो हा हा…”
वो एकदम मेरी द्विअर्थी बात समझ गई और समझती भी क्यों नहीं आखिर शादीशुदा और कई साल से चुदवाने वाली अनुभवी नारी है।
रोज़ी- “जी वहाँ नहीं, मैं पैंट के अंदर करने की बात कर रही हूँ”
मैं- “ओह मैं समझा कि साड़ी के अंदर हा हा…”
रोज़ी- “हो हो… बस हर समय आपको यही बातें सूझती हैं?”
मैं- “अरे यार, अब जब तुमने बीवी वाला काम नहीं किया तो उसकी तरह व्यवहार भी मत करो। ये करो, वो मत करो। अरे यार जो दिल में आये, जो अच्छा लगे, वो करना चाहिए”
रोज़ी- “इसका मतलब पराई स्त्री के सामने अपना बाहर निकाल कर घूमो?”
मैं- “पहले तो आप हमारे लिए पराई नहीं हो और यही ऐसी जगह है जहाँ इस बेचारे को आज़ादी मिलती है और रोज़ी डियर, मुझको कहने से पहले अपना नहीं सोचती हो”
रोज़ी- “मेरा क्या? मैं तो ठीक ही खड़ी हूँ ना”
मैं- “मैं अब की नहीं, सुबह की बात कर रहा हूँ। कैसे अपनी साड़ी पूरी कमर से ऊपर तक पकड़े और वो सेक्सी गुलाबी कच्छी नीचे तक उतारे, अपने सभी अंगों को हवा लगा रही थीं। तब मैंने तो कुछ नहीं कहा”
रोज़ी- “ओह! आप फिर शुरू हो गए। अब बस भी करो ना”
मैं- “क्यों? तुम अपना बाहर रखो कोई बात नहीं, पर मेरा बाहर है तो तुमको परेशानी हो रही है?”
रोज़ी- “अरे आप हमेशा बाहर रखो और सब जगह ऐसे ही घूमो। मुझे क्या”
रोज़ी मेरे से अब काफी खुलने लगी थी। मेरा प्लान उसको खोलने का कामयाब होने लगा था।
रोज़ी- “अच्छा मैं चलती हूँ”
उसने एक पैकेट सा वाशबेसिन की साइड से उठाया।
मेरी जिज्ञासा बढ़ी- “अरे इसमें क्या है?”
वो शायद टॉयलेट पेपर में कुछ लिपटा था। मैंने तुरंत उसके हाथ से झपट लिया।
मैं- “यह क्या लेकर जा रही हो यहाँ से?”
और छीनते ही वो खुल गया, तुरंत एक कपड़ा सा नीचे गिरा। अरे! यह तो रोज़ी की कच्छी थी। वही सुबह वाली, सेक्सी, हल्के नेट वाली, गुलाबी। रोज़ी के उठाने से पहले ही मैंने उसको उठा लिया। मेरा हाथ में कच्छी का चूत वाले हिस्से का कपड़ा आया जो काफी गीला और चिपचिपा सा था।
ओह तो रोज़ी ने बाथरूम में आकर अपनी कच्छी निकाली थी ना कि मूत किया था। इसका मतलब उस समय यह भी पूरी गीली हो गई थी। रोज़ी ने मेरे लण्ड को पूरा एन्जॉय किया था, बस ऊपर से नखरे दिखा रही थी।
रोज़ी- “उफ्फ! क्या करते हो?? दो मेरा कपड़ा”
मैं- “अरे कौन सा कपड़ा भई?”
मैंने उसके सामने ही उसकी कच्छी का चूत वाला हिस्सा अपनी नाक पर रख सूंघा- “अरे, लगता है तुमने कच्छी में ही शूशू कर दिया”
रोज़ी- “जी नहीं, वो सूसू नहीं है, प्लीज मुझे और परेशान मत करो। दे दो ना इसे”
मैं- “अरे बताओ तो यार क्या है यह?”
रोज़ी- “मेरी पैंटी, बस हो गई ख़ुशी। अब तो दो ना”
मैं- “जी नहीं, यह तो अब मेरा गिफ्ट है। इसको मैं अपने पास ही रखूँगा”
रोज़ी चुपचाप पैर पटकते हुए बाथरूम और फिर केबिन से भी बाहर चली गई। पता नहीं नाराज होकर या…
फिर मैं कुछ काम में व्यस्त हो गया।
TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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