उससे थोड़े ही नीचे आपी की खूबसूरत चूत के लब नज़र आ रहे थे जो थोड़े उभर गए थे और आपस में ऐसे मिले हुए थे कि चूत की बारीक सी लकीर बन गई थी। आपी की साफ और शफ़फ़ गुलाबी रानें अपनी मुकम्मल गोलाई के साथ कहर बरपा रही थीं।
मुझे हैरत का शदीद झटका लगा था। मैं गुमसुम सा ही खड़ा था और मेरी नज़र आपी की नंगी रानों और कूल्हों पर ही थी कि आपी की आवाज़ मुझे होश की दुनिया में वापस ले गई।
“चलो ना, रुक क्यों गए हो। आओ डालो अपना लण्ड मेरी चूत में”
तेजी से मैं आगे बढ़ा और आपी के कंधों को थाम कर ऊपर उठाने की कोशिश करते हुए बोला- “पागल हो गई हो आपी! क्या कर रही हो? उठो ऊपर, सीधी खड़ी हो और सलवार ऊपर करो अपनी”
आपी ने अपने कंधों को झटका दे कर मेरे हाथों से अलग किया और वैसे ही झुकर झुके अपने हाथ से मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही मज़बूती से पकड़ कर दबाया और जिद्दी लहजे में ही कहा- “नहीं! मैं नहीं होती सीधी, तुम इसे बाहर निकालो और अभी इसी वक़्त मेरी चूत में डाल कर ठंडा कर लो अपने आपको। अपनी ख्वाहिश पूरी करो आओ। तुम जिद्दी हो तो मैं भी तुम्हारी ही बहन हूँ”
यह बोलते हो आपी की आवाज़ भर्रा गई थी और उनकी आँखों में नमी भी आ गई थी। मैं नीचे झुका और आपी की सलवार को पकड़ कर ऊपर करने के बाद आपी के हाथ से उनकी क़मीज़ और चादर भी छुड़वा दी जो उन्होंने अपने एक हाथ से अपने पेट पर पकड़ रखी थी।
इसके बाद मैंने मज़बूती से आपी के कंधों को पकड़ा और उनको सीधा खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया।
आपी ने अपना चेहरा मेरे सीने से लगा दिया और रोते हो हिचकियाँ लेकर बोलीं- “सगीर! मुझसे नाराज़ नहीं हुआ करो। मैं मर जाऊँगी… अच्छा…”
मैंने अपना एक हाथ आपी की कमर पर रखा और कमर सहलाते हुए दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने से दबा कर बोला- “अच्छा बस ना आपी! रोया मत करो ना यार, गुस्सा कर लो, मार लो मुझे लेकिन रोया मत करो। मेरा दिल हिल जाता है”
कुछ देर हम दोनों ही कुछ ना बोले। आपी ऐसे ही मुझसे चिपकी अपना चेहरा मेरे सीने पर छुपाए खड़ी रहीं और अपनी सिसकियों पर क़ाबू करती रहीं। फिर उखड़े हुए लहजे में ही बोलीं- “तुम भी तो ख़याल नहीं करते हो ना, हर वक़्त तुम्हारे जेहन पर चूत ही सवार रहती है बस”
मैंने देखा कि आपी ने अब रोना बंद कर दिया है तो उनके मूड को सैट करने के लिए कहा- “अच्छा ना मेरी सोहनी बहना! बस अब रोना खत्म, अपना मूड अच्छा करो जल्दी से”
मेरी बात सुन कर आपी ने मेरी कमर पर मुक्का मारा और सीने पर हल्का सा काट लिया। आपी का एक हाथ मेरी कमर पर था और दूसरा हाथ हम दोनों के जिस्मों के दरमियान, आपी को ख़याल ही नहीं रहा था कि उनका हाथ अभी तक मेरे लण्ड पर ही है और उन्होंने बेख़याली में ही उसे बहुत मज़बूती से थाम रखा था।
मैंने आपी का मूड कुछ बेहतर होते देखा तो शरारत से कहा- “रोते रोते भी मेरे लण्ड को नहीं छोड़ा आपने और कह मुझसे रही हो कि मेरे जेहन पर चूत सवार रहती है। हाँ… अब छोड़ दो… अब मुझे दर्द होने लगा है”
मेरी बात सुन कर आपी बेसाख्ता ही पीछे हटीं। एकदम मेरे लण्ड को छोड़ा और नम आँखों से ही हँसते हुए मेरे सीने पर मुक्का मार कर दोबारा मेरे सीने से लग गईं। मैंने भी हँसते हुए फिर से आपी को अपनी बाँहों में भींच लिया।
चंद लम्हों बाद मैंने आपी को पीछे किया और अपने हाथ से उनके गालों पर बहते आँसुओं को साफ किया। जिन्होंने आपी के गुलाबी रुखसारों पर काजल की काली लकीरें बना डाली थीं और फिर उनके चेहरे को दोनों हाथों में नर्मी से पकड़ कर चेहरा उठाया। आपी ने भी अपनी नजरें उठा कर मेरी आँखों में देखा और हम दोनों फिर से हँस दिए। आपी की आँखों के इर्द-गिर्द काजल फैल गया था और उनकी रोई-रोई सी आँखें बहुत ज्यादा हसीन लग रही थीं।
मैंने आपी की दोनों आँखों को बारी-बारी चूमा और कहा- “आपी आपकी आँखें काजल लगाने से इतनी हसीन लग रही थीं कि कसम खुदा की, मैं कहता हूँ मैंने आज तक कभी इतनी हसीन आँखें नहीं देखीं और अब काजल फैल गया है तो एक नया हुस्न उभर आया है”
आपी ने भी आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूमा और नाराज़ से अंदाज़ में बोलीं- “तुम्हारे ही लिए लगाया था काजल, मुझे पता था कि तुम्हें अच्छा लगेगा लेकिन तुमने एक बार भी नहीं देखीं मेरी आँखें और अब तो सारा काजल फैल ही गया होगा”
आपी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि अम्मी की आवाज़ आई- “रूही बस कर दो! क्या सारा पानी खत्म करके ही आओगी?”
“बस आ रही हूँ अम्मी”
आपी ने अम्मी को जवाब दिया और अन्दर जाने ही लगी थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर आपी के होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया।
तकरीबन 2 मिनट तक मैं और आपी एक-दूसरे के होंठों और ज़ुबान को चूसते रहे फिर आपी मेरे निचले होंठ को चूस कर खींचते हुए मुझसे अलग हुईं और अपने होंठों पर ज़ुबान फेर कर बोलीं- “सगीर! बस अब छोड़ो, कोई आ ना जाए”
मेरे मुँह से बेसाख्ता ही हँसी निकल गई और मैंने हँसते हुए ही आपी को कहा- “अब होश आया है कि कोई आ ना जाए, कुछ देर पहले की अपनी हालत याद करो ज़रा?”
“बकवास नहीं करो, मुझे गुस्सा आ गया तो मैं फिर शुरू हो जाऊँगी” -आपी ने वॉर्निंग देने वाले अंदाज़ में अकड़ कर कहा।
तो मैंने ताली मारने के अंदाज़ में अपनी दोनों हथेलियाँ अपने माथे के पास जोड़ीं और कहा- “माफ़ कर दे मेरी माँ, गुस्सा ना करना। बहुत भारी गुस्सा है तुम्हारा”
आपी ने हँसते हो मेरे जुड़े हुए हाथों को पकड़ा और उनको नीचे करके अन्दर चली गईं। आपी के अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर वहाँ ही खड़ा रहा और फिर सोचा कि मूड फ्रेश हो ही गया है तो चलो आज का दिन स्नूकर की नज़र ही कर देते हैं और ये सोच कर बाहर निकल गया।
TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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