16-03-2024, 12:49 PM
सहसा घुसा रुक गया। मेरी मां उसके लंड को चूसने और अपनी कमर उछालने में जिस जोश का परिचय दे रही थी उसे देख कर घुसा समझ गया था कि अब मौका आ गया है मां की चूत चोदने का। वह समझ गया था कि इस चरम उत्तेजना के स्वर्णिम मौके में मेरी मां बिना किसी डर भय के उसका लंड अपनी चूत में लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगी। बस फिर क्या था, लोहा गरम हो चुका था, हथौड़ा चलाने की देर थी कि किला फतह हो जाता। बिना समय गंवाए घुसा कूद कर पोजीशन बदला और मेरी मां की फैली हुई जांघों के बीच आया, अपने लंड को मां की चूत के मुंह पर रखा और बिना किसी भूमिका के गच्च से अपना लंड मेरी मां की चूत में उतार दिया।
"आआआआआआह ....." मेरी मां के मुंह से निकला। यह दर्द की आह थी या मस्ती भरी आह थी, पता नहीं। जो भी थी मजेदार थी। इधर उत्तेजना के अतिरेक में मैं उंगली करते करते कब चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई पता ही नहीं चला। उफ उफ उफ, मैं आहें भरने लगी और मेरी आंखें बंद हो गयीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराती हुई झड़ती रही। ओह बड़े ही सुखद अहसास से मैं दो चार हो रही थी।
जब मैं होश संभाल कर पुनः उधर देखने लगी तो अचंभित रह गई। वही मां जो कुछ देर पहले तक घुसा के लंड से भयभीत थी, बड़े मजे से उसका पूरा लंड अपनी चूत में लेने लगी थी। अब तो घुसा की निकल पड़ी। वह जानवरों की तरह अपने लंड की पूरी लंबाई का उपयोग करते हुए मेरी मां को चोदने लगा था मैंने मेरी मां अपनी टांगे उठा कर घुसा की कमर पर चढ़ा कर मजे से चुदी जा रही थी।
तभी, माँ का फ़ोन बजने लगा, मगर मां को फोन के बजने से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं थी। शायद किसी दूसरी दुनिया की सैर कर रही थी। गजब। "अब अच्छा लग रहा है ना मैडम?" चोदते चोदते घुसा रुक कर बोला।
"हां हां हां हरामी, तू चोदता रह कुत्ता कहीं का। रुको मत। ओह ओह ओह, बड़ा बढ़िया चुदक्कड़ है रे तू। लगा रह, जैसा नाम, वैसा ही घुसा घुसा कर चोद हरामी।" मेरी मां पागलों की तरह बोली। उसके बाल बिखर गए थे। अस्त व्यस्त हालत हो गई थी उसकी। मां की बातें सुनकर घुसा दुगुने उत्साह के साथ चोदने में भिड़ गया। यह कुश्ती करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा और फिर दोनों एक दूसरे से चिपक कर हांफने लगे और कुछ ही पलों में शांत हो कर लंबी लंबी सांसें लेने लगे।
"आआआआआआह ....." मेरी मां के मुंह से निकला। यह दर्द की आह थी या मस्ती भरी आह थी, पता नहीं। जो भी थी मजेदार थी। इधर उत्तेजना के अतिरेक में मैं उंगली करते करते कब चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई पता ही नहीं चला। उफ उफ उफ, मैं आहें भरने लगी और मेरी आंखें बंद हो गयीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराती हुई झड़ती रही। ओह बड़े ही सुखद अहसास से मैं दो चार हो रही थी।
जब मैं होश संभाल कर पुनः उधर देखने लगी तो अचंभित रह गई। वही मां जो कुछ देर पहले तक घुसा के लंड से भयभीत थी, बड़े मजे से उसका पूरा लंड अपनी चूत में लेने लगी थी। अब तो घुसा की निकल पड़ी। वह जानवरों की तरह अपने लंड की पूरी लंबाई का उपयोग करते हुए मेरी मां को चोदने लगा था मैंने मेरी मां अपनी टांगे उठा कर घुसा की कमर पर चढ़ा कर मजे से चुदी जा रही थी।
तभी, माँ का फ़ोन बजने लगा, मगर मां को फोन के बजने से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं थी। शायद किसी दूसरी दुनिया की सैर कर रही थी। गजब। "अब अच्छा लग रहा है ना मैडम?" चोदते चोदते घुसा रुक कर बोला।
"हां हां हां हरामी, तू चोदता रह कुत्ता कहीं का। रुको मत। ओह ओह ओह, बड़ा बढ़िया चुदक्कड़ है रे तू। लगा रह, जैसा नाम, वैसा ही घुसा घुसा कर चोद हरामी।" मेरी मां पागलों की तरह बोली। उसके बाल बिखर गए थे। अस्त व्यस्त हालत हो गई थी उसकी। मां की बातें सुनकर घुसा दुगुने उत्साह के साथ चोदने में भिड़ गया। यह कुश्ती करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा और फिर दोनों एक दूसरे से चिपक कर हांफने लगे और कुछ ही पलों में शांत हो कर लंबी लंबी सांसें लेने लगे।