15-03-2024, 09:21 PM
अब मेरी मां की उत्तेजना चरम पर पहुंच चुकी थी और उत्तेजना के आवेग में उसने अपना हाथ घुसा की जांघों के बीच के बड़े से उभार को, मतलब पैजामे के ऊपर से ही उसके लंड को पकड़ कर मसलने लगी। उधर घुसा माँ के शरीर को बेतहाशा चूम रहा था, और उन्हें बता रहा था,
"मैडमजी , आपके पति कितने भाग्यशाली हैं कि आपके जैसी मस्त औरत को चोदने का सौभाग्य मिलता है। खैर, यह तो अपनी अपनी किस्मत है। उफ उफ, आज आपको चोदने का वही सौभाग्य मुझे मिलने वाला। कृपा करके ना मत कीजिएगा।" वह बेताबी से बोला।
इधर मैं उन्हें देख कर उत्तेजित हो रही थी और उधर मेरी मां की भारी भारी खूबसूरत चूचियों से वह जानवर खुल कर खेल रहा था। उसके काले काले हाथ मेरी माँ के सुंदर, गोरे रंग के शरीर के हरेक अंगों को छू रहे थे। इस वक्त मुझे मेरी मां से ईर्ष्या सी हो रही थी। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने लगी थी और मैं अपनी चुचियों को जोर जोर से मसलने और अपनी चूत को रगड़ने लगी थी। काश इस वक्त मेरी मां की जगह मैं होती।
अब घुसा से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने मेरी मां की साड़ी उठाने के बदले कमर से साड़ी ही खोल डाली।
"यह क्या कर रहे हो पागल। मुझे नंगी ही कर दोगे क्या? इस्स्स्स्स्स्स'" वह सिसकारियां निकालते हुए बोली।
"नंगी नहीं करेंगे तो पूरा मज़ा कैसे लीजिएगा मैडमजी। लीजिए हम भी नंगे हो जाते हैं।" कहकर घिसा पहले तो मेरी मां की साड़ी और पेटीकोट को खींच खांच कर खोल दिया और खुद भी पैजामा खोल दिया।
हे भगवान। सामने जो नजारा था वह किसी को भी पागल कर देने के लिए काफी था। मेरी मां की गोरी, संगमरमरी, मांसल देह पर मात्र एक पैंटी थी और पैंटी के अंदर फूला हुई मेरी मां का अनमोल खजाना छिपा हुआ था। मेरी मां का ब्लाऊज सामने से पहले ही खुल चुका था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां थलथला कर बाहर निकली हुई थीं। अब ब्लाऊज मेरी मां के तन से अलग हो या न हो क्या फर्क पड़ता था। मां की छाती तो सामने से नंगी हो ही चुकी थी और चूचियां पूरे जलाल के साथ अपना जलवा दिखा रही थीं। मेरी मां की पैंटी के सामने का हिस्सा गीला हो चुका था और उधर घुसा का काला, बेडौल मोटा नंगा शरीर किसी बनमानुष की तरह सिर्फ ढीले ढाले अंडरवियर में था और सामने विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। उसके लंड के आकार, लंबाई और मोटाई का अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था। वैसे भी मेरी मां तो पैजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ कर बखूबी अंदाजा लगा लिया था होगा। वह पगली तो उसके लंड का अंदाजा लगा कर गनगना ही चुकी थी होगी।
लेकिन कहां मेरी मां का गोरा चिट्टा चिकना शरीर और कहां घुसा का काला कलूटा, मोटा बेढब, शरीर, कितनी बेमेल जोड़ी थी यह। मेरी मां को अब क्या फर्क पड़ने वाला था। इस वक्त वासना की ज्वाला में तपते उसके शरीर को ठंडा करने के लिए अपने जबरदस्त हथियार के साथ घुसा के रूप में मेरी मां के लिए वह देवता का अवतार ही नजर आ रहा था होगा।अब सिर्फ मेरी मां की पैंटी उतरने और घुसा का अंडरवियर उतरना बाकी था, फिर जो धमाल होने वाला था उसकी कल्पना से ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। मैं बेहद उत्तेजित हो चुकी थी और अगर मेरा वश चलता तो वहीं बीच में कूद पड़ती और बोलती, "साले हरामी, चोदने की इतनी ही जल्दी पड़ी है तो पहले मुझे चोद, फिर मां को चोदते रहना।" लेकिन मन मसोस कर रह गई। यही इस वक्त का तकाजा भी था। मैं अपनी चूत को बदहवासी के आलम में जोर जोर से रगड़ने लगी।
"मैडमजी , आपके पति कितने भाग्यशाली हैं कि आपके जैसी मस्त औरत को चोदने का सौभाग्य मिलता है। खैर, यह तो अपनी अपनी किस्मत है। उफ उफ, आज आपको चोदने का वही सौभाग्य मुझे मिलने वाला। कृपा करके ना मत कीजिएगा।" वह बेताबी से बोला।
इधर मैं उन्हें देख कर उत्तेजित हो रही थी और उधर मेरी मां की भारी भारी खूबसूरत चूचियों से वह जानवर खुल कर खेल रहा था। उसके काले काले हाथ मेरी माँ के सुंदर, गोरे रंग के शरीर के हरेक अंगों को छू रहे थे। इस वक्त मुझे मेरी मां से ईर्ष्या सी हो रही थी। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने लगी थी और मैं अपनी चुचियों को जोर जोर से मसलने और अपनी चूत को रगड़ने लगी थी। काश इस वक्त मेरी मां की जगह मैं होती।
अब घुसा से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने मेरी मां की साड़ी उठाने के बदले कमर से साड़ी ही खोल डाली।
"यह क्या कर रहे हो पागल। मुझे नंगी ही कर दोगे क्या? इस्स्स्स्स्स्स'" वह सिसकारियां निकालते हुए बोली।
"नंगी नहीं करेंगे तो पूरा मज़ा कैसे लीजिएगा मैडमजी। लीजिए हम भी नंगे हो जाते हैं।" कहकर घिसा पहले तो मेरी मां की साड़ी और पेटीकोट को खींच खांच कर खोल दिया और खुद भी पैजामा खोल दिया।
हे भगवान। सामने जो नजारा था वह किसी को भी पागल कर देने के लिए काफी था। मेरी मां की गोरी, संगमरमरी, मांसल देह पर मात्र एक पैंटी थी और पैंटी के अंदर फूला हुई मेरी मां का अनमोल खजाना छिपा हुआ था। मेरी मां का ब्लाऊज सामने से पहले ही खुल चुका था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां थलथला कर बाहर निकली हुई थीं। अब ब्लाऊज मेरी मां के तन से अलग हो या न हो क्या फर्क पड़ता था। मां की छाती तो सामने से नंगी हो ही चुकी थी और चूचियां पूरे जलाल के साथ अपना जलवा दिखा रही थीं। मेरी मां की पैंटी के सामने का हिस्सा गीला हो चुका था और उधर घुसा का काला, बेडौल मोटा नंगा शरीर किसी बनमानुष की तरह सिर्फ ढीले ढाले अंडरवियर में था और सामने विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। उसके लंड के आकार, लंबाई और मोटाई का अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था। वैसे भी मेरी मां तो पैजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ कर बखूबी अंदाजा लगा लिया था होगा। वह पगली तो उसके लंड का अंदाजा लगा कर गनगना ही चुकी थी होगी।
लेकिन कहां मेरी मां का गोरा चिट्टा चिकना शरीर और कहां घुसा का काला कलूटा, मोटा बेढब, शरीर, कितनी बेमेल जोड़ी थी यह। मेरी मां को अब क्या फर्क पड़ने वाला था। इस वक्त वासना की ज्वाला में तपते उसके शरीर को ठंडा करने के लिए अपने जबरदस्त हथियार के साथ घुसा के रूप में मेरी मां के लिए वह देवता का अवतार ही नजर आ रहा था होगा।अब सिर्फ मेरी मां की पैंटी उतरने और घुसा का अंडरवियर उतरना बाकी था, फिर जो धमाल होने वाला था उसकी कल्पना से ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। मैं बेहद उत्तेजित हो चुकी थी और अगर मेरा वश चलता तो वहीं बीच में कूद पड़ती और बोलती, "साले हरामी, चोदने की इतनी ही जल्दी पड़ी है तो पहले मुझे चोद, फिर मां को चोदते रहना।" लेकिन मन मसोस कर रह गई। यही इस वक्त का तकाजा भी था। मैं अपनी चूत को बदहवासी के आलम में जोर जोर से रगड़ने लगी।