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Adultery सर … छोटे साहब को … ?”
#4
मेरी तो जैसे किस्मत ही जाग गई। किराये के मकान का खर्चा बच गया और खाना मुफ़्त ! फिर ३००० रुपये तनख्वाह। मैं तुरन्त चाबी ले कर पीछे गई, ताला खोला तो शानदार दो कमरे का मकान, सभी सुविधायें मौजूद थी। मैंने जल्दी से सफ़ाई की और घर आकर जो थोड़ा सा सामान था, दिन को शिफ़्ट कर लिया। मेरा ५ साल का एक लड़का और मैं … और इतना बड़ा घर !

सेठ जी काम पर जा चुके थे। पर घर में ताला था। शाम को जब सेठ जी आये तो मैं उनके पास गई। उन्होंने सारा काम बता दिया। विनय सेठ कोई ३५ साल के थे। और मधुर स्वभाव के थे।

मैंने झटपट शाम का खाना बनाया … मेरा खाना क्वार्टर में ही अलग बनता था। उसने हिदायत दी कि मुझे हमेशा नहा धो कर साफ़ रहना है … साफ़ कपड़े … बाल बंधे हुए … एक दम साफ़ सुथरे …… वगैरह। उन्होंने पहले से तैयार नये कपड़े मुझे दे दिये।

विनय बहुत मोटे इन्सान थे। कहते हैं कि उनकी बीवी उनके मोटापे के कारण छोड़ कर भाग गई थी। विनय का एक दोस्त जो उससे अमीर था और दिखता भी हीरो की तरह था … उसकी रखैल बन कर अलग मकान में रहती थी। विनय सेट एकदम अकेले थे।

विनय सेठ को अब मैं विनय कह पर ही सम्बोधित करूंगी। विनय को जिम जाते हुए २ महीने हो चुके थे। उनका मोटापा अब काफ़ी कम हो चुका था। शरीर गठ गया था। मैं भी अब अब उनकी ओर आकर्षित होने लगी थी। औरत मर्द की जरूरत है, ये मैं जानती थी। मेरा ज्यादातर समय खाली रहने में ही गुजरता था। खाली दिमाग शैतान का घर होता है।

मैं भी भरपूर जवान थी। मेरे स्तन भी पुष्ट थे और पूरा उभार लिये हुए थे। मेरा जिस्म भी अब कसमसाता था। रह रह कर मेरे उरोज़ कसक जाते थे। रह रह कर अंगड़ाइयां आने लगती थी, कपड़े तंग से लगते थे। मेरे आगे और पीछे के निचले भाग भी अब शान्त होने के लिये कुछ मांगने लगे थे।

एक बार रात को लगभग १० बजे मुझे ख्याल आया कि मुख्य गेट खुला ही रह गया है। सोने से पहले मैं जब बाहर निकली तो मैंने देखा कि विनय की खिड़की थोड़ी सी खुली रह गई थी। मैंने यूं ही अन्दर झांका तो मेरे बदन में जैसे चींटियां रेंगने लगी।

विनय बिलकुल नंगा खड़ा था और कुछ देख कर मुठ मार रहा था। मैं वहीं खड़ी रह गई। मेरा दिल धक धक करने लगा था। शायद वो कोई ब्ल्यू फ़िल्म देख रहा था और मुठ मार रहा था। मेरा हाथ बरबस ही चूत पर चला गया और दबाने लगी। मेरी चूत गीली होने लगी … जहाँ मैं चूत दबा रही थी वहाँ पेटीकोट गीला हो गया था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: सर … छोटे साहब को … ?” - by neerathemall - 15-03-2024, 06:30 PM



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